भारत में 'अमृत काल' के स्वर्णिम समय में मानवाधिकार की स्थिति वैश्विक औसत से भी कम,
पिछले 25 वर्षों से दुनिया मानवाधिकार को लगातार कमजोर करती जा रही है, अब स्थिति यह है कि मानवाधिकार को कुचलने वाले देशों की तुलना में मानवाधिकार का सम्मान करने वाले देशों की संख्या लगातार कम होती जा रही है।

दुनिया के 195 देशों में मानवाधिकार के विस्तृत अध्ययन के नतीजों से स्पष्ट है कि 115 देश मानवाधिकार के संदर्भ में भारत से बेहतर स्थिति में हैं, जबकि केवल 79 देश भारत से भी बदतर स्थिति में हैं। भारत में अमृत काल के स्वर्णिम समय में मानवाधिकार की स्थिति वैश्विक औसत से भी कम है। जी 20 देशों के समूह में भी यूरोप के देशों को छोड़कर मानवाधिकार कमजोर पड़ता जा रहा है। अपने पड़ोसी देशों की तुलना में भारत में मानवाधिकार की स्थिति अपेक्षाकृत अच्छी है, पर एशिया-मध्यपूर्व क्षेत्र में हमारा देश 14 वें स्थान पर है। मानवाधिकार के संदर्भ में हमसे आगे 115 देशों में से – 25 अमेरिकी क्षेत्र में, 13 एशिया और मध्यपूर्व में, 42 यूरोप में, 13 ओशेनिया में और 22 अफ्रीका में हैं।

पिछले 25 वर्षों से दुनिया मानवाधिकार को लगातार कमजोर करती जा रही है, अब स्थिति यह है कि मानवाधिकार को कुचलने वाले देशों की तुलना में मानवाधिकार का सम्मान करने वाले देशों की संख्या लगातार कम होती जा रही है। यह जानकारी यूनिवर्सिटी ऑफ रोडे आइलैंड द्वारा प्रकाशित ऐन्यूअल रिपोर्ट ऑन ग्लोबल ह्यूमन राइट्स के 2024 के संस्करण में दी गई है। इसके अनुसार दुनियाभर में मानवाधिकार को कुचला जा रहा है और दुनिया में कोई देश ऐसा नहीं है, जहां इसका सम्मान शत-प्रतिशत किया जाता है।
इस रिपोर्ट में दुनिया के 195 देशों के मानवाधिकार की स्थिति को 0 से 100 अंक के पैमाने पर आँका गया है – 0 यानि शून्य मानवाधिकार और 100 अंक यानि पूर्ण मानवाधिकार। जाहिर है अंक जितने अधिक होंगें मानवाधिकार की स्थिति उतनी ही बेहतर होगी। रिपोर्ट में 0 से 60 अंक तक के देशों को “एफ” श्रेणी में वर्गीकृत किया जाता है, यह वर्ग उन देशों का है जहां
मानवाधिकार का गंभीर हनन किया जाता है, भारत 41 अंकों के साथ इसी श्रेणी में है। मानवाधिकार के संदर्भ में वैश्विक औसत 52 अंकों का है, यानि भारत की स्थिति वैश्विक औसत से भी बदतर है। इस श्रेणी में दुनिया के 62 प्रतिशत देश हैं। 61 से 70 अंक वाले देशों की श्रेणी “डी” है, और अमेरिका इसी श्रेणी में है। 71 से 80 अंक “सी” श्रेणी, 81 से 90 अंक “बी” श्रेणी और 91 से 100 अंक “ए” श्रेणी है। मानवाधिकार संरक्षण के संदर्भ में सबसे अच्छी स्थिति “ए” श्रेणी की है। दुनिया के महज 18 प्रतिशत देश “ए” और “बी” श्रेणी में सम्मिलित तौर पर हैं। इस आकलन के लिए मानवाधिकार के 4 श्रेणियों – शारीरिक समग्रता, सशक्तीकरण, श्रमिक अधिकार और न्यायिक अधिकार – के अंतर्गत 24 अधिकारों का आकलन किया जाता है।
पिछले 25 वर्षों के दौरान वैश्विक स्तर पर प्रजातन्त्र का हनन किया गया है, असमानता और डिजिटल उत्पीड़न तेजी से बढ़ा है। यह एक अजीब विरोधाभास है कि इस संबंध में कानूनों का दायरा बढ़ा है, नई संस्थाएं और एनजीओ बनते जा रहे हैं, नई प्रोद्योगिकी से मानवाधिकार से संबंधित सूचनाओं का प्रचार बढ़ गया है, पर इन सबके बीच मानवाधिकार नष्ट होता जा रहा है। यह ठीक वैसा ही है जैसे वैश्विक अर्थव्यवस्था बढ़ती जा रही है, और साथ ही गरीबों की संख्या भी बढ़ रही है।

इस रिपोर्ट के अनुसार किसी देश को पूरे 100 अंक नहीं मिले हैं। मानवाधिकार के संदर्भ में सबसे आगे 97.9 अंकों के साथ आइसलैंड है, इसके बाद एस्टोनिया, डेनमार्क, फ़िनलैंड और मोनाको का स्थान है। सबसे अंतिम स्थान पर 0 अंक के साथ ईरान है, इससे ऊपर के देश अफगानिस्तान, उत्तर कोरिया, येमन और साउथ सूडान हैं। प्रजातन्त्र मानवाधिकार का सबसे अच्छा सूचक है, पर इसके अपवाद भी हैं। भारत प्रजातन्त्र है पर मानवाधिकार की सूची में 41
अंकों के साथ “एफ” श्रेणी में है, वैश्विक स्तर पर 116 वें स्थान पर है। दूसरी तरफ मोनाको में राजशाही है, पर यह “ए” श्रेणी में और वैश्विक स्तर पर पांचवें स्थान पर है।
मानवाधिकार के संदर्भ में सबसे आगे यूरोप के देश हैं, यहाँ औसत अंक 74.4 है। इसके बाद ओशेनिया क्षेत्र में 69 अंक और उत्तरी और दक्षिण अमेरिका में सम्मिलित तौर पर 57.6 अंक हैं। अफ्रीका में 35.9 अंक और सबसे बुरी स्थिति में 32.9 अंकों के साथ एशिया और मध्यपूर्व का क्षेत्र है। मानवाधिकार के संदर्भ में सबसे अधिक हनन श्रमिकों के अधिकारों का किया जा रहा है, अहिंसक आंदोलनों को कुचला जा रहा है, प्रदर्शनों के अधिकार को छीना जा रहा है, बाल मजदूरी पर अंकुश नहीं लग रहा है, न्यूनतम मजदूरी का पालन नहीं हो रहा है, महिलाओं के आर्थिक अधिकारों को छीना जा रहा है।

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि अधिकतर अमीर देशों में मानवाधिकार सुरक्षित है, पर जी 20 समूह के अमीर देशों की स्थिति इसके ठीक विपरीत है। जी 20 समूह के कुल 19 देशों में से कोई भी देश “ए” श्रेणी में नहीं है, 5 देश “बी” श्रेणी में, 3 देश “सी” श्रेणी में, 2 देश “डी” श्रेणी में और भारत समेत 9 देश “एफ” श्रेणी में हैं। इस समूह में 89.9 अंकों के साथ ऑस्ट्रेलिया सबसे आगे है, जबकि 13.2 अंकों के साथ चीन सबसे पीछे है।
कुल 195 देशों में से 58 प्रतिशत देश मानवाधिकार से संदर्भ में सबसे खराब श्रेणी में हैं, 23 प्रतिशत देश मध्यम श्रेणी में है और केवल 19 प्रतिशत देश इसका ठीक से पालन कर रहे हैं। मानवाधिकार की स्थिति ऐसी है कि किसी भी द्विपक्षीय या अनेक पक्षीय वार्ताओं में मानवाधिकार का जिक्र तक नहीं किया जाता। इसकी चर्चा अंतरराष्ट्रीय अधिवेशनों तक ही सीमित है, और इन अधिवेशनों में वही राष्ट्राध्यक्ष सबसे तेजी से इसकी वकालत करते हैं जो अपने देशों में मानवाधिकार को लगातार कुचलते हैं। हमारे प्रधानमंत्री जी मानवता की बात तो कभी-कभी करते हैं पर मानवाधिकार पर खामोश रहते हैं। यहाँ मानवाधिकार की आवाज उठाने वालों पर बुल्डोज़र चलाया जाता है, मीडिया इसका लाइव प्रसारण करता है, सत्ता इसे रामराज्य बताती है और जनता इसपर तालियाँ बजाती है।
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