मोदी राज में गुलाम मीडिया का 'विश्वगुरु' बना भारत! ताजा रिपोर्टर्स तो यही कहती है

प्रधानमंत्री मोदी के विश्वगुरु वाले जुमले के बाद हम किसी भी क्षेत्र में भले ही विश्वगुरु नहीं बन पाए हों पर मीडिया की आजादी के विश्वगुरु पिछले कुछ वर्षों में जरूर बन गए हैं।

फोटो : सोशल मीडिया
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महेन्द्र पांडे

प्रधानमंत्री मोदी के विश्वगुरु वाले जुमले के बाद हम किसी भी क्षेत्र में भले ही विश्वगुरु नहीं बन पाए हों पर मीडिया की आजादी के विश्वगुरु पिछले कुछ वर्षों में जरूर बन गए हैं। इस वर्ष 3 मई को जब दुनिया वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे मना रही थी, रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स ने प्रेस की आजादी के इंडेक्स में दुनिया के 180 देशों में भारत को 150वें स्थान पर बिठा दिया। रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स ने दुनिया के 9 अन्य प्रतिष्ठित मानवाधिकार सगठनों के साथ मिलकर उसी दिन अपने वेबसाइट पर एक आर्टिकल भी प्रकाशित की, इंडिया: मीडिया फ्रीडम अंडर थ्रेट। प्रेस फ्रीडम डे के दिन इस आर्टिकल का प्रकाशित किया जाना ही, हमारे देश में प्रेस और अभिव्यक्ति की आजादी की वास्तविक स्थिति बता देता है। रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स के साथ इस मुहीम में शामिल संगठनों के नाम हैं – कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स, फ्रीडम हाउस, पेन अमेरिका, इन्टरनेशनल फेडरेशन ऑफ़ जर्नलिस्ट्स, सिविकस, असेस नाऊ, इन्टरनेशनल कमीशन ऑफ़ जुरिस्ट्स, एमनेस्टी इन्टरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वाच।

इस आर्टिकल के अनुसार, भारतीय अधिकारियों को अभिव्यक्ति की आजादी का आदर करना चाहिए और पत्रकारों पर निशाना साधना बंद कर देना चाहिए। स्वतंत्र मीडिया में सरकारी दखलंदाजी बंद होनी चाहिए। सरकारी स्तर पर पत्रकारों को प्रताड़ित करने और सरकारी नीतियों का विरोध करने वालों पर झूठे आरोप मढ़कर कार्यवाही करने के कारण हिन्दू राष्ट्रवादी गिरोह, जिन्हें सरकार का संरक्षण प्राप्त है, ऐसे पत्रकारों को ऑनलाइन या ऑफ़लाइन धमकाने, प्रताड़ित करने, दुर्व्यवहार करने या फिर शारीरिक तौर पर हमले करने के लिए आजाद हैं और इनपर कभी कोई कार्यवाही नहीं की जाती।


मीडिया की स्वतंत्रता पर हमला करते हुए भारतीय अधिकारी पत्रकारों को आतंकवाद निरोधी और देशद्रोह जैसे मामलों में फंसा रहे हैं और स्वतंत्र मीडिया संस्थानों और विर्धियों पर नियमित तौर पर कार्यवाही कर रहे हैं। ऐसे पत्रकारों और मीडिया संस्थानों पर वित्तीय संस्थाओं से जांच करा रहे हैं, इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी क़ानून 2021 के अंतर्गत कार्यवाही कर रहे हैं। भारतीय अधिकारियों ने निष्पक्ष पत्रकारों के फोन की जासूसी इसरायली स्पाईवेयर पेगासस से की। सरकार ने इन्टरनेट बंदी को भी पत्रकारों और सूचना के प्रसार के विरुद्ध एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया है।

भारतीय जनता पार्टी के सरकार बनने के बाद से निष्पक्ष पत्रकारों, स्वतंत्र मीडिया संस्थानों और सिविल सोसाइटी पर सरकारी हमले तेज हुए हैं। सरकार मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, विद्यार्थियों, विरोधियों और शांतिपूर्ण आन्दोलनकारियों के विरुद्ध राष्ट्रीय सुरक्षा, आतंकवाद और राजद्रोह जैसे कुख्यात कानूनों का सहारा ले रही है। सबसे अधिक खतरे में अल्पसंख्यक समूहों के और जम्मू-कश्मीर के पत्रकार हैं।

अप्रैल 2022 में हिन्दू राष्ट्रवादी गिरोह द्वारा दिल्ली में आयोजित समारोह की रिपोर्टिंग करने गए 5 पत्रकारों पर हमले किये गए। दिल्ली पुलिस ने हमलावरों पर कार्यवाही करने के बदले इनमें से एक पत्रकार, मीर फैजल, पर ही मुकदमा दायर कर दिया। आरोप लगाया गया कि मीर फैजल ने एक ट्वीट में लिखा है कि इस समारोह में उनपर और एक फोटो जर्नलिस्ट पर हमले इस लिए किये गए क्रोंकी वे मुस्लिम हैं| दिल्ली की बहादुर पुलिस के अनुसार इस ट्वीट से समाज में वैमनस्व बढ़ेगा। मार्च 2022 में मोदी सरकार की प्रखर आलोचक राणा अय्यूब को मुंबई हवाईअड्डे से लन्दन जाने से रोका गया, जहां पत्रकारों के एक समारोह में उन्हें शामिल होना था। संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञ कहते रहे हैं कि राणा अय्यूब को केवल सरकार विरोधी होने के कारण वर्षों से प्रताड़ित किया जा रहा है। सरकार के समर्थक और हिन्दू राष्ट्रवादी गिरोह के सदस्य सोशल मीडिया पर राणा अय्यूब को लगातार ट्रोल करते रहे हैं और तमाम धमकियां देते रहे हैं।


कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स के अनुसार राणा अय्यूब समेत कम से कम 20 मुस्लिम महिला पत्रकारों के चित्रों को एक नीलामी वाली वेबसाइट पर डाला गया था, जिससे उन्हें प्रताड़ित किया जा सके और बदनाम किया जा सके। ये सभी पत्रकार बीजेपी सरकार की नीतियों के खिलाफ मुखर रही हैं। सोशल मीडिया पर सरकार के विरोध में लिखने वाली महिला पत्रकारों को बलात्कार और हत्या की धमकियां लगातार दी जाती हैं और ऐसी पोस्ट करने वाले अधिकतर यूजर अपने आप को बीजेपी का समर्थक बताते हैं। मुस्लिम पत्रकार सिद्दीक कप्पन वर्ष 2020 के अक्टूबर महीने से जेल में बंद हैं। उन्हें उत्तर प्रदेश की एनकाउंटर-प्रेमी पुलिस ने गिरफ्तार किया है और आतंकवाद, राजद्रोह और समाज में वैमनस्व पैदा करने जैसे आरोप मढ़े गए हैं। गिरफ्तार होने के समय कप्पन नई दिल्ली से हाथरस जा रहे थे, जहां एक दलित बच्ची की सामूहिक बलात्कार के बाद हत्या की गयी थी। उत्तर प्रदेश की आदित्यनाथ सरकार विरोध के स्वर लगातार दबाती रही है और पत्रकारों और सोशल मीडिया पर सरकार की आलोचना करने वालों को झूठे आरोप लगाकर जेल में डालती रही है। वर्ष 2017 में आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद से इस राज्य में 66 पत्रकारों पर आपराधिक मुकदमे दायर किये गए हैं और 48 पत्रकारों पर शारीरिक हमले किये गए हैं। इस राज्य के छोटे शहरों और गाँव में हिंदी पत्रकारिता करते पत्रकार पर लगातार खतरे बने रहते हैं।

अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा ख़त्म करने के बाद से सबसे अधिक खतरे में वहां के स्थानीय पत्रकार हैं। इसके बाद से कश्मीर के कम से कम 35 पत्रकारों पर पुलिस ने निराधार आपराधिक मुकदमे दर्ज किये हैं, या फिर इनकी अघोषित निगरानी की जा रही है। पुलिस द्वारा इनके घरों की तलाशी ली जाती है और इनके फोन भी टैप किये जाते हैं। जून 2020 में सरकार ने नई मीडिया नीति की घोषणा की, जिसके तहत अधिकारियों को पत्रकारों को गिरफ्तार करने और किसी भी खबर को सेंसर करने के असीमित अधिकार दिए गए हैं। कश्मीर में अधिकतर पत्रकारों की गिरफ्तारी तथाकथित पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत की गयी है, जिसके लिए किसी आरोप या न्यायिक प्रक्रिया की जरूरत नहीं है। वर्ष 2022 में अधिकारियों ने पत्रकार फहद शाह, आसिफ सुल्तान और सज्जाद गुल को फिर से गिरफ्तार किया। यह गिरफ्तारी न्यायालय द्वारा इन्हें जमानत पर रिहा करने के बाद पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत की गयी है। कश्मीर में निष्पक्ष पत्रकारिता को रोकने के लिए सरकार इन्टरनेट बंदी को एक घातक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करती है। असेस नाऊ के अनुसार वर्ष 2021 में 106 बार इन्टरनेट बंदी की घोषणा कर भारत लगातार चौथे वर्ष भी इस सन्दर्भ में विश्वगुरु बना रहा। अकेले कश्मीर में कम से कम 85 बार इन्टरनेट बंदी की घोषणा की गयी।


भारत सरकार मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगाने के लिए टेक्नोलॉजी का व्यापक उपयोग करती है। फरवरी 2021 में इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी कानून की घोषणा की गयी, जिससे अभिव्यक्ति की आजादी और निजता के अधिकारों का हनन होता है। एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने इस क़ानून को मीडिया की आजादी में एक रोड़ा बताया है। सयुक्त राष्ट्र के तीन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने इन कानूनों पर तीखी प्रतिक्रया देते हुए कहा है कि ये कानून अन्तराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों की अवहेलना करते हैं। पेगासस प्रोजेक्ट के तहत कम से कम 40 भारतीय पत्रकारों के नाम सामने आये, जिनके जासूसी इस स्पाईवेयर द्वारा की गयी। पर, भारत सरकार इस सम्बन्ध में किसी भी जांच से लगातार बचती रही है। यह सब अभिव्यक्ति की आजादी और स्वतंत्र मीडिया के लिए गंभीर खतरा है।

रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स समेत इस 9 संस्थानों ने भारत सरकार से कहा है कि अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा करे, केवल सरकार विरोधी रिपोर्टिंग के लिए जेल में डाले गए सभी पत्रकारों को तुरंत रिहा करे, अनियोजित इन्टरनेट बंदी पर लगाम लगाए, जम्मू-कश्मीर के लिए बनी मीडिया पालिसी के साथ ही इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी क़ानून को तत्काल वापस ले। पत्रकारों पर हमले और उन्हें प्रताड़ित करने, जिसमें अनेक सरकारी अधिकारी भी शामिल हैं, की निष्पक्ष और त्वरित जांच कराई जाए और दोषियों पर कार्यवाही हो। केवल इमानदारी से काम करते पत्रकारों को आजादी के हनन और किसी हमले का खतरा नहीं हो।

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