आकार पटेल का लेख: कई मोर्चों पर पाकिस्तान और बांग्लादेश की कतार में खड़ा है भारत, तो फिर क्या है आगे का रास्ता!

आज तीनों देशों को बहुत ज्यादा अलग-अलग नहीं किया जा सकता, जबकि लगभग एक या दो दशक पहले ऐसा लगता था भारत एकदम अलग देश होगा और इनसे आगे होगा। अब तो साफ हो गया है कि तीनों ही देशों ने सरकार और अपनी राजनीति में साम्प्रदायिकता का प्रयोग किया है।

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आकार पटेल

जैसे-जैसे दक्षिण एशिया के तीन बड़े राष्ट्र अपनी स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के करीब पहुंच रहे हैं, यह देखना रोचक है कि आज वे एक देश के रूप में कहां खड़े हैं। सभी तीनों राष्ट्र आज ही नहीं बल्कि काफी समय से लोकतंत्र हैं, इसलिए यह हमारे इतिहास में एक असाधारण स्थिति है। पाकिस्तान पिछले 13 सालों से लोकतांत्रिक देश है। बीच का कुछ समय सैन्य हस्तक्षेप का निकाल दें तो बांग्लादेश भी पिछले तीन दशकों से लोकतांत्रिक रहा है। भारत निश्चित रूप से पूरे समय लोकतांत्रिक रहा है (यहां ध्यान रखना होगा और यह बहुत लोगों को शायद नहीं मालूम है कि आपातकाल संवैधानिक था)।

फिलहाल ऐसा लगता है कि पाकिस्तान ने देश के उच्च राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र में सेना के एकीकरण के साथ सैन्य शासन के अपने दौर को पीछे छोड़ दिया है। संसद में विपक्ष के लिए अधिक हिस्सेदारी के साथ पाकिस्तान राजनीतिक रूप से सबसे अधिक विभाजित देश भी है। जबकि बांग्लादेश और भारत में सत्ताधारी पार्टियों का पूर्ण वर्चस्व है।

बांग्लादेश के प्रधानमंत्री का रवैया विपक्ष के प्रति काफी निर्दयी जैसा होता है और अब से करीब एक साल बाद पता चलेगा कि हालात कहां जा रहे हैं। विपक्षी नेता खालिदा जिया ने एक लंबा अरसा जेल में बिताया और वे पिछला चुनाव नहीं लड़ सकी थीं, जबकि शेख हसीना पिछले करीब एक दर्जन वर्षों से देश की बागडोर संभाले हुए हैं।

शेख हसीना के शासन में बांग्लादेश ने आर्थिक रूप से भारत और पाकिस्तान दोनों को पीछे छोड़ दिया है। प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के मामले में हाल में भारत से आगे निकलने में बांग्लादेश का मजबूत विकास है जबकि इस मोर्चे पर भारत इस दौरान कमजोर रहा है। बांग्लादेश ने हाल के वर्षों में सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण की हिस्सेदारी को 16% से 20% तक करने में कामयाबी हासिल की है। जबकि भारत में इस मोर्चे पर स्थिति 15% से गिरकर 12% हो गई है।

विनिर्माण महत्वपूर्ण क्षेत्र है क्योंकि यह अर्थव्यवस्था में लोगों को रोजगार प्रदान करता है और इसमें अधिक कौशल की आवश्यकता नहीं होती है। विशेष रूप से वस्त्र निर्माण के क्षेत्र में बांग्लादेश एक चैंपियन है, जिसमें बहुत सारी महिलाएं कार्यरत हैं। दूसरी ओर भारत आर्थिक रूप से अपना रास्ता खो चुका है। 2014 के बाद से खासतौर से ऐसा हो रहा है। भारत में दक्षिण एशिया में सबसे कम श्रम शक्ति भागीदारी दर (काम करने वाले या काम की तलाश करने वाले लोगों की संख्या) है और दुनिया में सबसे कम है। पिछले कुछ वर्षों से यही स्थिति है और इसमें सुधार के फिलहाल कोई संकेत नहीं दिखते हैं। नौकरियां हैं नहीं।


पाकिस्तान में पिछले कुछ वर्षों में वृद्धि काफी कम रही है, लेकिन आने वाले वर्षों में समें सुधार हो सकता है। चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर पर चीन अरबों डॉलर खर्च कर रहा है। यह एक बुनियादी ढांचा परियोजना है जो पश्चिमी चीन को दक्षिणी पाकिस्तान से जोड़ती है। इससे रेल, सड़क और बंदरगाह की सुविधा मिलने पर चीन को मलक्का जलडमरूमध्य से गुजरे बिना बलूचिस्तान में एक बंदरगाह के माध्यम से दुनिया में वैकल्पिक तौर पर पहुंचने में आसानी होगी। सीपीईसी कॉरिडोर पाकिस्तान को मध्य एशिया से भी जोड़ेगा और यदि अफगानिस्तान स्थिर हो जाता है, तो पाकिस्तान व्यापार की एक बड़ी धुरी बन सकता है। दूसरी ओर यदि सीपीईसी ने इस डर को दूर नहीं किया तो यह पाकिस्तान को असहनीय कर्ज के साथ छोड़ देगा।

लेकिन फिलहाल 1800 डॉलर प्रति वर्ष के हिसाब से प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के मामले में तीनों देश एक दूसरे से बहुत दूर नहीं हैं। यानी लगभग 11,000 रुपये प्रति माह का औसत जो फिलहाल काफी दूर है। तीनों देशों में असमानता एक चिंता है। भारत असमानता के मामले में संभवत: शीर्ष पर है। भारत में एशिया के दो सबसे धनी व्यक्ति रहते हैं, लेकिन बाकी 80 करोड़ साथी नागरिकों (जनसंख्या का 60%) को हर महीने छह किलो मुफ्त अनाज के लिए कतार में लगना पड़ता है।

मानव विकास इंडेक्स (संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित जीवन संभावना, शिक्षा और आय पर आधारित मानदंड) में भारत विश्व में 133वें नंबर पर है। जबकि बांग्लादेश 135वें और पाकिस्तान 154वें नंबर पर है। इस मामले में भारत 2014 के बाद नीचे गिरा है जबकि बांग्लादेश करीब 2 दर्जन अंक ऊपर चढ़ा है। भारत और बांग्लादेश दोनों ही देशों ने फर्टिलिटी रेट में 2 अंक सुधार किया है, इसका अर्थ है कि दोनों ही देशों में जनसंख्या वृद्धि पर असर पड़ेगा।

दक्षिण एशिया के देशों में एनजीओ सेक्टर बांग्लादेश में सबसे अधिक विकसित है और शायद यही कारण है कि वहां मानव विकास सूचकांक में सुधार हुआ है। वहां की सरकार एनजीओ के गैरजरूरी तौर पर अपने लिए खतरा या चुनौती नहीं मानती और कई बार एनजीओ के साथ मिलकर काम करती है। इसके विपरीत पाकिस्तान और भारत दोनों ने ही एनजीओ सेक्टर पर अंकुश लगाने का काम किया है। सिविल सोसायटी ग्रुप और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर कार्यवाहियां इसकी मिसाल हैं।

आज तीनों देशों को बहुत ज्यादा अलग-अलग नहीं किया जा सकता, जबकि लगभग एक या दो दशक पहले ऐसा लगता था भारत एकदम अलग देश होगा और इनसे आगे होगा। अब तो साफ हो गया है कि तीनों ही देशों ने सरकार और अपनी राजनीति में साम्प्रदायिकता का प्रयोग किया है।


1980 के दशक में पाकिस्तान में बहुत ही खराब दौर रहा, जबकि भारत आज उस रास्ते पर है जब अल्पसंख्यकों के लिए खास कानून और नीतियां बनाई जा रही हैं। इनमें इबादत करना, खाना-पीना और शादी करने जैसे कानून भी हैं।

अगले दो दशकों में दक्षिण एशिया की हालत का बाहरी दुनिया पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ने की संभावना है। ऑटोमेशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए इन देशों के लिए अपने करोड़ों लोगों को गरीबी से मध्यम वर्ग में बदलने का रास्ता बंद हो रहा है। उम्मीद है कि तीनों देश, जो परंपरागत रूप से दुश्मन रहे हैं, एक दूसरे के करीब आएंगे। हमारे आस-पास के भू-राजनीतिक परिवर्तनों को देखते हुए, यह संभावना नहीं है कि हम निकट भविष्य में ऐसा कुछ देखेंगे जैसा कि 1947 के बाद से देखा था।

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