पत्रकारों के लिए भारत उतना ही खतरनाक, जितना इराक या अफगानिस्तान

भारत से अधिक संवेदनशील पत्रकारिता पड़ोसी देश अफगानिस्तान में की जा रही है, जहां पिछले 10 वर्षों के दौरान 100 से अधिक पत्रकार मारे जा चुके हैंI पर, हर ऐसी हत्या के बाद निष्पक्ष पत्रकार झुकते नहीं, बल्कि उनकी एक नई पौध सामने आ जाती हैI

फोटोः सोशल मीडिया
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महेन्द्र पांडे

इस वर्ष भारत में अपने काम के दौरान तीन पत्रकारों की हत्या कर दी गई, जबकि आतंक के साए से जूझ रहे अफगानिस्तान, इराक और नाइजीरिया में भी इतने ही पत्रकार मारे गएI पूरी दुनिया में इस वर्ष अपने काम के दौरान कुल 42 पत्रकार मारे गए, जिसमें सर्वाधिक संख्या मेक्सिको के पत्रकारों की है, जहां अब तक 13 पत्रकार मारे जा चुके हैंI इसके बाद पाकिस्तान का स्थान है, जहां 5 पत्रकार मारे गएI इसके बाद भारत का स्थान हैI इन आंकड़ों को इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स ने अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस यानि 10 अक्टूबर को जारी किया हैI इसी दिन डच सरकार और यूनेस्को ने संयुक्त तौर पर पत्रकारों पर बढ़ते खतरे के संबंध में एक ऑनलाइन वैश्विक कांफ्रेंस भी आयोजित कियाI

इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स पिछले तीस वर्षों से पत्रकारों की स्थिति पर वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित करता रहा हैI इस फेडरेशन के 6 लाख सदस्य हैं, जो लगभग 150 देशों में फैले हैंI पिछले तीस वर्षों के दौरान कुल 2658 पत्रकारों की ह्त्या उनके काम के दौरान की जा चुकी हैI पिछले 5 वर्षों के दौरान 4 वर्षों में मेक्सिको पहले स्थान पर रहा हैI मेक्सिको की सरकारें बदलती हैं, पर पत्रकारों की हालत नहीं बदलतीI इस फेडरेशन के जनरल सेक्रेटरी ऐन्थोनी बेल्लान्गेर के अनुसार पिछले कुछ वर्षों के दौरान पत्रकारों की ह्त्या के आंकड़े कम होते जा रहे हैं, पर इसका कारण इनकी स्थिति में सुधार नहीं बल्कि सरकारों द्वारा ऐसी खबरों को दबाना हैI

फेडरेशन के प्रेसिडेंट यूनेस जाहेद के अनुसार अधिकतर देशों ने पत्रकारों की हत्या के बदले बिना किसी आरोप के ही उन्हें जेलों में बंद करना शुरू कर दिया हैI इस वर्ष दुनिया में लगभग 235 पत्रकारों को बिना किसी आरोप के ही जेल में डाला गया हैI जेल में बंद करने पर ज्यादा हंगामा भी नहीं होता और पत्रकार को शांत कराने का काम भी हो जाता हैI

10 दिसंबर को ही सर्वोच्च न्यायालय की तमाम तल्ख़ टिप्पणियों के बाद भी नए संसद भवन का भूमि पूजन आयोजित किया गयाI दरअसल मोदी सरकार की अनेक कामों में जल्दबाजी ही संशय को जन्म देती है और नए संसद भवन के साथ भी ऐसा ही हो रहा हैI इतनी जल्दबाजी और तमाम कटु टिप्पणियों के बाद भी नए संसद भवन के काम को आगे बढाते रहने का संबंध कम से कम लोकतंत्र से तो कतई नहीं हो सकताI

दरअसल यह कवायद उन सम्राटों के समकक्ष खड़ा होने की है, जिन्होंने आलीशान किले, दुर्ग या दूसरी इमारतें बनवाईंI प्रधानमंत्री मोदी भी विराट संसद भवन और ऊंची मूर्तियों के बल पर उनके बराबर पहुंचना चाहते हैं, भले ही इसके लिए लोकतंत्र का गला घोटना पड़ेI मोदी सरकार में मीडिया ही सबसे अधिक गिरा हुआ स्तंभ हैI जाहिर है चाटुकारों से भरी मीडिया से इस तानाशाही को लोकतंत्र की खाल में लपेटना सरकार के लिए आसान हैI निष्पक्ष मीडिया के नाम पर थोड़ी सी जान सोशल मीडिया या फिर स्थानीय समाचार पत्रों या वेब न्यूज पोर्टल के कारण है और इसी से जुड़े पत्रकार मारे जाते हैं या फिर जेल में डाले जाते हैंI

एक तरफ जहां सरकार दुनिया भर में कोविड 19 पर नियंत्रण और इससे संबंधित इंतजामों का दुनिया भर में डंका पीट रही है, वहीं स्वतंत्र पत्रकार इन दावों की पोल खोलते रहेI जाहिर है हमारी सरकार अपना विरोध किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं कर सकती और यही हुआ भीI देश के अलग-अलग हिस्सों से 50 से अधिक स्वतंत्र पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया है या उन पर डंडे बरसाए गए या फिर पुलिस ने शिकायत दर्ज की हैI इनमें से किसी ने क्वारेंटाइन सेंटर की बदहाली बताई, तो किसी ने प्रवासी मजदूरों की व्यथा का बयान किया या किसी ने अस्पतालों की बदहाली की तस्वीर उजागर की या किसी ने राज्यों की सीमा पर अघोषित बंदिशों को उजागर कियाI

ऐसे कई पत्रकारों पर गलत सूचना देने, सरकारी आदेशों की अवहेलना और कोविड 19 से सम्बंधित गलत खबरें फैलाने के आरोप लगाए गए हैंI इनमें से कुछ मामलों में कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट ने दखल दिया है, पर अधिकतर मामलों में सुनने वाला कोई नहीं हैI इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि कुल 180 देशों में हमारा देश प्रेस की आजादी के सन्दर्भ में 142वें स्थान पर हैI

कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स नामक संस्था 2008 से लगातार हरेक वर्ष ग्लोबल इम्प्युनिटी इंडेक्स प्रकाशित करती हैI इसमें पत्रकारों की हत्या या फिर हिंसा से जुड़े मामलों पर कार्यवाही के अनुसार देशों को क्रमवार रखती हैI इस इंडेक्स में जो देश पहले स्थान पर रहता है, वह अपने यहां पत्रकारों की ह्त्या के बाद हत्यारों पर कोई कार्यवाही नहीं करताI ग्लोबल इम्प्युनिटी इंडेक्स में भारत का स्थान 12वां था, जबकि 2019 में 13वां और 2018 में 14वां थाI इसका सीधा सा मतलब है कि हमारे देश में पत्रकारों की हत्या या उन पर हिंसा के बाद हत्यारों पर सरकार या पुलिस की तरफ से कोई कार्यवाही नहीं की जातीI

इन आंकड़ों से यह समझना आसान है कि देश में सरकार और पुलिस की मिलीभगत से पत्रकारों की ह्त्या की जाती हैI इस इंडेक्स में सोमालिया, सीरिया और इराक सबसे अग्रणी देश हैंI पाकिस्तान 9वें स्थान पर और बांग्लादेश 10वें स्थान पर हैI दुनिया के केवल 7 देश ऐसे हैं जो वर्ष 2008 से लगातार इस इंडेक्स में शामिल किये जा रहे हैं और हमारा देश इसमें एक हैI जाहिर है, वर्ष 2008 के बाद से देश में पत्रकारों की स्थिति में कोई सुधार नहीं आया हैI

भारत से अधिक संवेदनशील पत्रकारिता पड़ोसी देश अफगानिस्तान में की जा रही है, जहां पिछले 10 वर्षों के दौरान 100 से अधिक पत्रकार मारे जा चुके हैंI पर, हर ऐसी ह्त्या के बाद निष्पक्ष पत्रकार झुकते नहीं, बल्कि उनकी एक नई पौध सामने आ जाती हैI तालिबान की तमाम धमकियों के बाद भी बड़ी संख्या में महिलाएं भी निष्पक्ष पत्रकारिता कर रही हैंI अनेक महिला पत्रकारों की हत्या भी की गई हैI 9 दिसंबर को ही जलालाबाद में मलालाई मैवंद नामक एक महिला टीवी रिपोर्टर और महिला अधिकार कार्यकर्ता की गोली मार कर हत्या की गई हैI

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