संविधान, लोकतंत्र और सामाजिक न्याय वाली समावेशी राजनीति का वादा है 'INDIA'

नए विपक्षी गठबंधन का नाम ‘इंडिया’ ऐसी नई राजनीति का वादा कर रहा है जो समावेशी है, संविधान में दिए गए भारत के विचारों के अनुकूल है।

फोटो: नवजीवन ग्राफिक्स
फोटो: नवजीवन ग्राफिक्स
user

शालिनी सहाय

जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी विपक्षी नेताओं के पहले अनौपचारिक सत्र में भाग लेने के लिए बेंगलुरु के होटल से निकलीं, तो अपने राज्य के पत्रकारों के सवालों के जवाब में उन्होंने कहा कि वह एक घंटे में लौटकर जानकारी देंगी। वह तीन घंटे बाद लौटीं, हालांकि वह बाकी लोगों के साथ रात्रि भोजन के लिए नहीं रुकीं थीं। 

बैठक में उनकी भागीदारी और भूमिका को लेकर सवाल उठ रहे थे। कांग्रेस और वाम मोर्चा ने हाल ही में तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी- दोनों के खिलाफ कड़ा पंचायत चुनाव लड़ा था। बेबाक ममता ने कहा भी था कि जिन पार्टियों ने राज्य में उन पर हमला किया, उन्हें यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि वह दिल्ली में सब भूलकर उनसे हंसकर मिलेंगी। वह कांग्रेस और राहुल गांधी के बारे में अपनी आपत्तियों को सार्वजनिक करने से भी परहेज नहीं करती रही हैं और कई मौकों पर उनके सांसद संसद में कांग्रेस द्वारा बुलाई गई समन्वय बैठकों में शामिल नहीं हुए या उनका बहिष्कार किया।

लेकिन ममता और कांग्रेस के रिश्तों में सुधार के संकेत हैं। पहले दिन ममता सोनिया गांधी के बगल में बैठी थीं जबकि राहुल नीतीश कुमार के बगल में। अगले दिन वह सोनिया और राहुल गांधी के बीच बैठीं और उन्होंने सौहार्दपूर्ण ढंग से बातचीत की। दोपहर बाद जब नेता दोपहर का भोजन छोड़कर विचार-विमर्श में मशगूल रहे, राहुल गांधी ने कटोरे से कुछ मेवे उठाकर ममता को दिए। 

यह भी पटरी पर आ रहे रिश्तों का सबूत था कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के शुरुआती संबोधन के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में मीडिया को संबोधित करने के लिए बनर्जी को सबसे पहले बुलाया गया। उन्होंने ही खुलासा किया कि गठबंधन का नाम ‘इंडिया’ (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस) होगा। उद्धव ठाकरे और अरविंद केजरीवाल के बाद बोलने वाले राहुल गांधी ने बड़े उत्साह के साथ ‘इंडिया’ नाम का समर्थन किया। बताया जाता है कि केजरीवाल ने कहा था कि किसी भी स्थिति में नाम से कहीं ज्यादा अहम है सीट-बंटवारे की व्यवस्था। वाम मोर्चे के नेता भी इस नाम से असहज थे। सबकी भावनाओं का ध्यान रखने की कोशिशों के तहत 12 घंटे से भी कम समय में निर्णय लिया गया कि ‘इंडिया’ गठबंधन की टैगलाइन होगी- ‘जीतेगा भारत’। 

मल्लिकार्जुन खड़गे ने बैठक का माहौल बना दिया जब उन्होंने बेबाक तरीके से माना कि पार्टियों में मतभेद हैं; लेकिन जोर देकर कहा कि मतभेद ऐसे नहीं कि उन्हें राष्ट्रीय हित में नजरअंदाज नहीं किया जा सके। उन्होंने जोर देकर कहा कि कांग्रेस को न तो सत्ता में दिलचस्पी है और न ही प्रधानमंत्री का पद हथियाने में। उन्होंने आश्वासन दिया कि कांग्रेस को बड़े भाई की भूमिका निभाने में भी दिलचस्पी नहीं और वह सभी दलों के हितों को ध्यान में रखेगी। उन्होंने घोषणा की कि देश नाजुक मोड़ से गुजर रहा है और देश और संविधान के लिए लड़ना ज्यादा जरूरी है। 

कहते हैं कि लालू प्रसाद यादव ने कांग्रेस नेतृत्व को बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष और सांसद अधीर रंजन चौधरी पर लगाम लगाने को कहा है जो सार्वजनिक रूप से ममता पर हमले के आदी हैं। नेताओं का मानना था कि सत्तारूढ़ दल आलोचना से बच नहीं सकते लेकिन इसका तरीका सभ्य हो। संदेश यह था कि जहां माकपा केरल में कांग्रेस से लड़ेगी, वहीं राष्ट्रीय स्तर पर वह संसद में और बाहर कांग्रेस से सहयोग से गुरेज नहीं करेगी। 

बनर्जी इतनी शांत हो गईं  कि उन्होंने सीताराम येचुरी को ‘येचुरी जी’ और डी. राजा को ‘राजा’ कहकर संबोधित किया और अंत में ‘हमारे चहेते, सबके चहेते राहुल, राहुल गांधी’ को धन्यवाद दिया। खड़गे और राहुल गांधी की मुस्कान उनकी खुशी बता रही थी। 

23 जून को पटना में हुई बैठक की तुलना में कहीं खुशनुमा माहौल था। गतिरोध टूटते साफ दिखे। यहां तक ​​कि अरविंद केजरीवाल और राहुल गांधी भी आपस में बड़े सहज दिखे। यह प्रगति नहीं तो क्या है?


एक महीने से भी कम समय में दूसरा विपक्षी सम्मेलन हुआ और इसमें गठबंधन का नाम सामने आया जिस पर बीजेपी खेमे में बेचैनी है। केन्द्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने ट्वीट कर कहा कि नाम बदलने से पहचान नहीं बदल जाती। यह कहना था कि ट्विटर पर उन्हें याद दिला दिया गया कि यह बीजेपी है जो संस्थानों, शहरों, सड़कों और गलियों का नाम बदलने के लिए जानी जाती है।

कुछ मीडिया रिपोर्टों के उलट, यह नाम अचानक से नहीं टपक गया। महसूस किया जा रहा था कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) कम प्रभाव डालता था और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की तुलना में कमजोर दिखता था। गठबंधन का नाम बदलकर ‘इंडिया’ करके विपक्ष ने एनडीए द्वारा हथिया लिए गए लोकतांत्रिक और राष्ट्रवादी नैरेटिव को फिर से पा लिया। 

कांग्रेस अध्यक्ष के सहयोगी गुरुमीत सिंह सप्पल ने बताया कि यह नाम बीजेपी के भारत के विभाजनकारी विचार के विपरीत, समावेशी ‘भारत के संवैधानिक विचार’ के प्रति गठबंधन की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। सप्पल ने जोर दिया कि 26 विपक्षी दलों को 2019 में बीजेपी की तुलना में 50 लाख ज्यादा वोट मिले थे। पुलवामा और राष्ट्रवादी उत्साह के बाद नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता चरम पर पहुंचने के बावजूद, अलग-अलग चुनाव लड़ने वाली 26 पार्टियों को ज्यादा वोट मिले, यह छोटी बात है क्या? उन्होंने याद दिलाया कि बेंगलुरु में जो पार्टियां इकट्ठा हैं, उनकी ग्यारह राज्यों में सरकार हैं। 

कॉन्क्लेव में आगे के रोड मैप और रणनीति पर खासा विचार किया गया। उदाहरण के लिए, गठबंधन ने शासन का वैकल्पिक मॉडल प्रदान करने के लिए एक सामूहिक प्रतिज्ञा जारी की जो वर्तमान सत्तावादी और मनमाने शासन के उलट ‘विचार-विमर्श पर आधारित, लोकतांत्रिक और सहभागितापूर्ण’ होगा। इन 26 दलों ने जाति जनगणना कराने का वादा भी किया। प्रतिज्ञा में वर्तमान शासन द्वारा निजीकरण और साठगांठ वाले पूंजीवाद को बढ़ावा देने के विरोध में सार्वजनिक क्षेत्र और एक ‘प्रतिस्पर्धी निजी क्षेत्र’ को मजबूत करने की प्रतिबद्धता की बात की गई।

भले बीजेपी ने ‘भ्रष्टों का सम्मेलन’ कहकर इसका मजाक उड़ाया हो लेकिन 26 राजनीतिक दलों ने बड़ी चतुराई से गठबंधन की बीजेपी से अलग छवि बनाने में कामयाबी पाई। जाहिर है कि संविधान, धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र, सामाजिक न्याय और संघवाद के प्रति ‘इंडिया’ की प्रतिबद्धता असाधारण है और इसका मुकाबला करना कठिन होगा। इसके साथ ही ‘इंडिया’ ने मणिपुर की त्रासदी और प्रधानमंत्री की निरंतर चुप्पी पर भी गौर किया। यह दलील कि प्रधानमंत्री मणिपुर में समाधान के लिए चुपचाप काम कर रहे हैं, थोथी ही साबित हो रही है क्योंकि हिंसा लगातार जारी है। प्रधानमंत्री के पास चुनाव प्रचार और विपक्ष को कोसने के लिए पूरा समय है लेकिन मणिपुर के लिए नहीं। 

बेंगलुरु में एक और अच्छी बात दिखी। विपक्ष कभी भी इससे ज्यादा संगठित और व्यवस्थित नहीं दिखा। सम्मेलन में सर्वसम्मति से ग्यारह सदस्यीय समन्वय समिति गठित करने और नई दिल्ली में एक सामान्य सचिवालय स्थापित करने का निर्णय लिया गया जो संयुक्त रैलियों, आंदोलनों और एक आम एजेंडे के आयोजन के लिए पार्टियों के बीच समन्वय करेगा। इसमें न्यूनतम साझा कार्यक्रम को अंतिम रूप देने और अगले महीने मुंबई में फिर से बैठक करने का भी संकल्प लिया गया।

26 पार्टियां संसद में एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करने के लिए भी सैद्धांतिक रूप से सहमत हो गई हैं। सूत्रों ने दावा किया कि पार्टियों ने ‘गोदी’ मीडिया की भूमिका और उनका मुकाबला करने के तरीकों पर चर्चा की। सूत्रों का दावा है कि पार्टियां वैसे टीवी चैनलों के बहिष्कार का विचार कर रही हैं जो पूरी तरह पक्षपाती हैं। यहां तक कि इसपर भी विचार किया गया कि गठबंधन की ग्यारह राज्य सरकारें विपक्ष के प्रति स्पष्ट रूप से शत्रुतापूर्ण मीडिया को विज्ञापन देना बंद कर दें।

बेंगलुरू के सम्मेलन ने बहुत कुछ हासिल किया- छिने नैरेटिव को वापस पाना, भविष्य के लिए एक स्पष्ट रोडमैप और एक स्पष्ट विकल्प का वादा। लेकिन सफर लंबा है और इसमें काफी काम करने की जरूरत है। विपक्ष को परेशान बीजेपी और घबराई सरकार को समय-समय पर झटके देने के लिए तैयार रहना चाहिए। फिलहाल, तमाम शंकाओं पर विराम लग गया है और 2024 के युद्ध की रूपरेखा तैयार हो गई है। 2024 में भारत की भावना के लिए लड़ाई और भी दिलचस्प हो गई है।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia