आकार पटेल का लेख: भारत-पाकिस्तान संबंधों में सुधार की उम्मीद बेमानी है?

मुझे नहीं मालूम कि सीमाओं पर कड़ाई करके हमने क्या हासिल किया है, और मेरा मतलब दोनों देशों से है। पाकिस्तान ने हमारी तरह अपने जातीय और सांस्कृतिक संबंधियों से संपर्क खो दिया, लेकिन साथ ही पाकिस्तान ने भारतीय पर्यटकों को भी खो दिया है।

फोटो: सोशल मीडिया
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आकार पटेल

बाहरी लोग अक्सर इस बात को लेकर उलझन में रहते हैं कि भारत और पाकिस्तान आपस में दोस्त क्यों नहीं हो सकते। उनके नजरिये में दोनों राष्ट्रों में न सिर्फ अस्पष्ट समानता है, बल्कि वे एक जैसे हैं। इसका मतलब यह हुआ कि स्पेन और पुर्तगाल या जर्मनी और फ्रांस की तरह अलग नहीं, जहां अलगाव की एक लंबा इतिहास है और भिन्न संस्कृतियां और अलग भाषाएं हैं। 1947 के पहले भारत और पाकिस्तान के बीच ऐसा कोई विभाजन नहीं था, क्योंकि दोनों देशों के बीच कोई स्वाभाविक अवरोध नहीं है। हालांकि हम यह कह सकते हैं कि उनकी संस्कृति हमसे बहुत अलग है, लेकिन यह साफ-साफ दिखाई नहीं देता और कम से कम बाहरी लोगों को तुरंत साफ-साफ दिखाई नहीं देता।

खाने का स्वाद एक है, मसाले से भरपूर और रोटी या चावल के साथ। लोग भी एक जैसे दिखते हैं। दिल्ली वाली किसी महिला और लाहौर की महिला के बीच या कराची के किसी शख्स से यूपी-बिहार में रहने वाले आदमी के बीच फर्क कर पाना आसान नहीं है। दक्षिण और भारत का पूर्व अलग है, लेकिन यह अंतर भारत के भीतर भी मौजूद है।

निश्चित तौर पर संगीत काफी समान है। बाहरी लोगों के लिए दोनों देशों में कुछ खास मसालों और मीट के इस्तेमाल का अंतर उतना साफ नहीं है (सच्चाई यह है कि पाकिस्तानी ज्यादातर जो खाना खाते हैं वह हमारे जैसा है, मीट नहीं लेकिन दाल, सब्जियां और अनाज)। और इसकी वजह से वे लगातार इस बात को लेकर उलझन में रहते हैं कि क्यों दोनों देशों के बीच इतना विद्वेष है।

मैं लगभग 50 का हो चुका है और मुझे कतई कोई आशा नहीं है कि दोनों देशों के बीच दोस्ती का रिश्ता मैं देख पाऊंगा। मैं निराशावादी नहीं हो रहा हूं, बस यथार्थवादी हो रहा हूं। मेरे पूरे वयस्क जीवन में यह नहीं हुआ है। जब मैं 20 साल का होने वाला था, कश्मीर का विवाद हिंसक हो गया और उसी तरह बना रहा और अब मैं 30 साल ज्यादा बड़ा हो चुका हूं। लेकिन उससे पहले भी ऐसा नहीं था कि पाकिस्तान के साथ रिश्ते अच्छे या सामान्य थे। 1980 के दशक में हम उन पर वही आरोप लगाते थे जो अभी लगाते हैं (आतंकवाद को बढ़ावा देना), लेकिन उस वक्त यह पंजाब में हिंसा को लेकर था।

मैं निजी तौर पर यह याद नहीं कर सकता कि रिश्तों के हिसाब से 1970 का दशक कैसा था, लेकिन अध्ययन के जरिये मैं यह जानता हूं कि 1965 के युद्ध के बाद पंजाब सीमा से आसान आवाजाही और व्यापार बंद हो गया था। एक-दूसरे की फिल्में दिखाना भी बंद कर दिया गया था, लेकिन 15 साल पहले जनरल मुशर्रफ के वक्त इस फैसले को वापस ले लिया गया था, लेकिन यह सिर्फ वहीं हुआ। हम आज भी उनकी फिल्में या उनके चैनल नहीं दिखाते हैं।

1971-72 के युद्ध ने सीमा को स्थायी रूप से बंद कर दिया और मुक्त व्यापार को समाप्त कर दिया और मुझे लगता है कि तब से लेकर (मेरा जन्म 1969 में हुआ था) यही स्थिति आज भी बनी हुई है।

आज भारत में रहने वाले महज कुछ हजार लोगों ने ही कभी पाकिस्तान को देखा होगा और यही स्थिति उस तरफ बचे लोगों की भी है। ऐसा वीजा पाने की बेहद कठिन प्रक्रिया के कारण हुआ है। जिन्हें वीजा मिलता भी है तो उन्हें 'पुलिस रिपोर्टिंग' वीजा दिया जाता है, जिसका मतलब है कि आने वाले को देश में दाखिल होने के बाद और वहां से निकलने के पहले तक कई घंटे पंजीकरण कराने और अपना पंजीकरण रद्द कराने में गुजारना पड़ता है। यात्रा की इस कठिन प्रक्रिया का सबसे बड़ा नुकसान ये है कि जो कुछ भी हम उनके बारे में जानते हैं, वह दूसरे से मिली जानकारी और काफी भावनात्मक प्रचार के जरिये सामने आई जानकारी के माध्यम से जानते हैं।

इसने मनोवैज्ञानिक विभाजन को जीवित रखा है। हम युद्ध के बीच नहीं हैं लेकिन हम कभी शांति के हालात में भी नहीं हैं।

मुझे नहीं मालूम कि सीमाओं पर कड़ाई करके हमने क्या हासिल किया है, और मेरा मतलब दोनों देशों से है। पाकिस्तान ने हमारी तरह अपने जातीय और सांस्कृतिक संबंधियों से संपर्क खो दिया, लेकिन साथ ही पाकिस्तान ने भारतीय पर्यटकों को भी खो दिया है। मैं ऐसे कई लोगों को जानता हूं जो सिंधु नदी या तक्षशीला या गंधारा को देखने के लिए बहुत सारा पैसा खर्च कर देंगे। और इसमें पंजाबियों और सिंधियों की तरह वैसे लोग शामिल नहीं हैं, जिनकी जड़ें वहां हैं। भारतीयों को पाकिस्तान में किसी भी चीज से एडजस्ट करने में कोई समस्या नहीं होगी और वे अन्य विदेशियों की तरह ऊंची उम्मीदों के बिना विनम्रतापूर्वक स्थानीय लोगों की तरह व्यवहार करेंगे।

दूसरी ओर भारत ने अपने उत्पादों के लिए एक बड़ा बाजार खो दिया है, जिनमें से कई आमतौर पर पाकिस्तान में उपलब्ध चीजों से अक्सर बेहतर और लगभग हमेशा सस्ते होते हैं, खासकर ऑटोमोबाइल जैसी चीजें। 20 करोड़ की आबादी वाले देश पाकिस्तान के एक दूसरा उत्तर प्रदेश होने की बात को खारिज करना आसान हो सकता है। लेकिन हमें ये जरूर याद रखना चाहिए कि वहां एक बड़ा अभिजात वर्ग है और इसकी अपनी एक मजबूत अर्थव्यवस्था है जिसमें हम दखल दे सकते हैं।

मुझे लगता है कि आतंकवाद का भय वह कारण है जिसकी वजह से दोनों देश एक-दूसरे के नागरिकों को अपने यहां नहीं आने देते हैं। 1990 के दशक के मध्य से हमने इस बात पर जोर दिया कि खुद को सुरक्षित रखने के लिए वीजा के नियम जितना संभव हो उतने सख्त होने चाहिए। लेकिन भारत में आतंक समाप्त नहीं हुआ है और इसकी शैली अन्य बड़ी घटनाओं द्वारा निर्धारित की गई है। दूसरी तरफ, मैंने हमेशा पाकिस्तानियों से आग्रह किया है कि कम से कम उन्हें भारतीयों को बिना विशेष औपचारिकता के अपने यहां आने देना चाहिए। हालांकि, हाल के वर्षों में जासूसी के आरोप में एक भारतीय की गिरफ्तारी और दोषी साबित होने का मतलब है कि उन्होंने भी हमारे तर्क को अपना लिया है। आज मेरे जैसे आदमी के लिए भी आसानी से वीजा ले पाना बहुत मुश्किल है, जो आधा दर्जन बार पाकिस्तान जा चुका है।

एक नए चेहरे के तौर पर क्रिकेटर और प्लेबॉय रहे इमरान खान की चुनाव में जीत ने अटकलों को जन्म दिया है कि पाकिस्तान और भारत के बीच संबंध अच्छे होंगे। नहीं, वे अच्छे नहीं होंगे। उनसे पहले दोनों ही तरफ कई नये चेहरे, जिनमें उदारवादी, रूढ़िवादी, कट्टरपंथी, तानाशाह हर तरह के चेहरे रहे हैं, और वे आए और गए। ऐसा नहीं है कि उस बड़े कदम को उठाने के लिए सही व्यक्तिव की कमी है या फिर दोनों तरफ के लोगों को ये नहीं पता है कि स्थायी शत्रुता की स्थिति में नहीं होने के फायदे हैं। मुझे लगता है कि जब हम एक-दूसरे से नफरत करते हैं तो हम खुश होते हैं।

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