सुशांत की मौत की गुत्थी सुलझाने की कोशिश या बॉलीवुड की सरकार विरोधी आवाज़ों को सबक सिखाने का एजेंडा !

सुशांत केस में एनसीबी की कार्रवाई, मीडिया का सर्कस और बयानबाजी सवाल पैदा करते हैं कि ये सब सुशांत की मौत गुत्थी सुलझाने के लिए किया जा रहा है या कमोबेश सेक्युलर रहे फिल्म उद्योग को बदनाम कर धीरे-धीरे भगवा बनाने का प्रयास है?

फोटो : Getty Images
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फिल्म-टीवी कलाकार सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध मौत की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) कर रही है। यह कितनी आगे बढ़ी और उसमें क्या-क्या पता चल रहा है, इसका तो पता नहीं, लेकिन कोई एक सिरा पकड़कर इस जांच में केंद्रीय गृह मंत्रालय की एजेंसी- नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) को भी शामिल कर लिया गया। और, लगता है, अब यही जांच प्रमुख हो गई है। दीपिका पादुकोण, श्रद्धा कपूर और सारा अली खान से ड्रग रैकेट में पूछताछ हो चुकी है। जो रफ्तार है, उससे लगता है कि जब आप यह रिपोर्ट पढ़ रहे होंगे, तब तक जांच में पेश होने के लिए और भी कई स्टार सम्मन पा चुके होंगे। पूरा समां यह है कि ये फिल्म स्टार वस्तुतः ड्रग गिरोह चलाते हैं और किसी बड़े रैकेट का हिस्सा हैं।

भारत में कम-से-कम गांजा और चरस-जैसे सॉफ्ट ड्रग्स के हल्के-फुल्के सेवन को समाज के साथ-साथ कानून-व्यवस्था संभालने वाली एजंसियां भी बर्दाश्त करती रही हैं। एनसीबी जिस तरह से कार्रवाई करती दिख रही है और मीडिया जिस तरह सर्कस वाला हाल पैदा कर रहा है, उसमें सवाल यह उठता है कि क्या किसी ड्रग रैकेट का खुलासा हो रहा है, सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध मौत की जांच हो रही है या यह, बस उस फिल्म उद्योग को बदनाम करने का अवसर भर है जो कमोबेश सेक्युलर रहा है और जिसे धीरे-धीरे भगवा बनाने का प्रयास है?

वैसे, सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) पर सत्ता के इशारे पर कार्रवाई के आरोप जब-तब लगते रहे हैं लेकिन एनसीबी ने इस तरह बदला लेने वाले के तौर पर कभी कार्रवाई नहीं की है। इस वक्त एनसीबी क्यों इस तरह कुछ ज्यादा ही सक्रिय है, इसे समझने की जरूरत है। इसके प्रमुख हैं 1984 बैच के आईपीएस ऑफिसर राकेश अस्थाना। माना जाता है कि अस्थाना सन 2002 से ही नरेंद्र मोदी के करीब हैं जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे। अस्थाना पहले सीबीआई में थे लेकिन उन्होंने जिस तरह पिछले साल सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था, उसके बाद उनका तबादला कर दिया गया था। वर्मा-अस्थाना झगड़े में सरकार की काफी किरकिरी भी हुई थी।


एनसीबी जांच में दीपिका को इस तरह लपेटने की कोशिश के कारण तलाशने के लिए बहुत दूर जाने की जरूरत भी नहीं है। एनआरसी-सीएए के खिलाफ जब देश भर में प्रदर्शन हो रहे थे, लगभग उसी समय जेएनयू परिसर में विद्यार्थी परिषद वालों ने उत्पात मचाया था। उन्हें पुलिस की शह मिली हुई थी। इसके वीडियो भी सार्वजनिक हुए थे। जनवरी में इसके खिलाफ प्रदर्शन हुए थे और दीपिका जेएनयू परिसर पहुंच गई थीं। वह वहां एक शब्द नहीं बोली थीं लेकिन उनके वहां जाने भर से जो संदेश गया था, उससे केंद्र सरकार और बीजेपी असहज हो गई थी। दीपिका की फिल्म ‘छपाक’ उस वक्त रिलीज हो रही थी और बीजेपी नेता तेजिन्दर सिंह बग्गा के नेतृत्व में पार्टी तथा इससे संबद्ध छुटभैये नेताओं ने इसके बहिष्कार की अपील की थी। बग्गा को तो पुरस्कार के तौर पर दिल्ली विधानसभा चुनाव में पार्टी ने टिकट भी दिया। यह बात दूसरी है कि जनता ने उन्हें पसंद नहीं किया।

पिछले साल दिसंबर में दिल्ली पुलिस के जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में घुसने और छात्रों को पीटने के वीडियो वायरल हुए थे और तब हुमा कुरैशी, सिद्धार्थ मल्होत्रा, भूमि पेडणेकर, आयुष्मान खुराना और परिणीति चोपड़ा-जैसे कलाकारों ने इस घटना की निंदा की थी। मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के धुर विरोधी फिल्म निदेशक अनुराग कश्यप ने भी घटना की पुरजोर निंदा की। पिछले सप्ताह पायल घोष ने अनुराग कश्यप पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया और कंगना रनौत ट्विटर पर हैशटैग #arrestanuragkashyap के जरिये खुलकर पायल के समर्थन में कूद पड़ी। कंगना ने इसके पहले इसी माह ट्वीट किया था कि इस्लाम प्रभुत्व वाले इस बॉलीवुड में उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज और रानी लक्ष्मीबाई-जैसे किरदारों पर फिल्में बनाईं। इसी साल अगस्त में उन्होंने आरोप लगाया था कि बॉलीवुड हिंदू-विरोधी और राष्ट्र-विरोधी धारा को आगे बढ़ा रहा है। अगस्त में ही अर्नब गोस्वामी को दिए एक साक्षात्कार में कंगना ने कहा “... जब मीना कुमारी ने हलाला का बहिष्कार किया तो क्या वे हलाला पर एक लव स्टोरी नहीं बना सकते थे? क्या वे तीन तलाक की शिकार किसी महिला के संघर्ष पर कोई फिल्म नहीं बना सकते थे? पीके में उन्होंने मूर्ति पूजा का जमकर मजाक बनाया और इस देश ने उसे स्वीकार भी किया। इसलिए यह हिंदू-विरोधी रैकेट काफी बड़ा है।” वह घाटी से भगा दिए गए कश्मीरी पंडितों की व्यथा पर भी एक फिल्म बनाने का सोच रही हैं ।


ऐसा लगता है कि सत्तारूढ़ दल ने जान-बूझकर इस इंडस्ट्री को बदनाम और अपमानित करने की ठान रखी है। इसी महीने के शुरू में सत्तारूढ़ दल से घनिष्ठ संबंध रखने वाले फिल्मकार विवेक अग्निहोत्री को इंडियन काउंसिल फॉर कल्चरल रिलेशंस की संचालन परिषद का सदस्य बनाया गया। विवेक अग्निहोत्री को ‘अर्बन नक्सल’ शब्द को आम फहम बनाने का काफी हद तक ‘श्रेय’ जाता है। विवेक फिलहाल कश्मीर घाटी से 1990 के दशक में कश्मीरी हिंदुओं के पलायन पर एक फिल्म बना रहे हैं।

पिछले 30 सालों के दौरान हिंदी फिल्म उद्योग के सबसे बड़े तीन सुपरस्टार शाहरुख खान, आमिर खान और सलमान खान रहे हैं। इन कलाकारों का मुस्लिम होना कभी भी इस देश में उनकी लोकप्रियता के आड़े नहीं आया। रंग दे बसंती-जैसी फिल्में तो हिंदू- मुस्लिम एकता की मिसाल बनीं। लेकिन फिल्म उद्योग को लगातार बदनाम करना और इसे ड्रग्स के साथ जोड़ना इस बात को जाहिर करता है कि हिंदू दक्षिणपंथी सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु को हिंदी फिल्मी दुनिया पर अपनी पकड़ को मजबूत करने के मौके के तौर पर देख रहे हैं।

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