आकार पटेल का लेख: विश्वकप में पाकिस्तान से न खेलना बचकाना और खुद को नुकसान पहुंचने वाला कदम होगा

गुस्से का अकबका प्रदर्शन करने से अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति नाराज होगी और पाकिस्तान को विश्वकप में दो अंक बिना खेले मिल जाएंगे, और हमें हासिल कुछ नहीं होगा। मेरी समझ से तो विश्व कप में पाकिस्तान का बहिष्कार करने से हमें कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है।

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आकार पटेल

क्रिकेट के विश्व कप में तय कार्यक्रम के मुताबिक भारत का मुकाबला पाकिस्तान से 16 जून को ओल्ड ट्रफर्ड, मांचेस्टर में होना है। विश्व कप में हमारा यह चौथा मैत होगा। विश्व कप में हिस्सा ले रहीं सभी 10 टीमों को पहले दौर में बाकी 9 टीमों से मुकाबला करना है। इनमें से जिन 4 टीमों के सबसे ज्यादा अंक होंगे, वे सेमाफाइनल में पहुंचेंगी।

पाकिस्तान से पहले भारत का मुकाबला 5 जून को दक्षिण अफ्रीका से, 9 जून को ऑस्ट्रेलिया से और 13 जून को न्यूज़ीलैंड के साथ होना है। पाकिस्तान से मैच के बाद भारत को अफगानिस्तान, वेस्ट इंडीज़, इंग्लैंड, बांग्लादेश और श्रीलंका के साथ 5 और मैच खेलने हैं।

इसका सीधा अर्थ है कि जब हम पाकिस्तान से मैच खेलेंगे तो उस समय तक हमें नहीं पता होगा कि हम सेमीफाइनल में पहुंचने वाले हैं या नहीं। लेकिन भारतीय टीम पर जबरदस्त दबाव डाला जा रहा है कि वह पाकिस्तान के साथ मैच न खेले।

ओल्ड ट्रफर्ड में भारत एक बार और 6 जून 1999 को पाकिस्तान के साथ मैच खेल चुका है। भारत ने पहले बल्लेबाज़ी करते हुए यह मैच जीता था। इस मैच में अज़हरुद्दीन और राहुल द्रविड़ ने अर्धशतक लगाए थे और वेंकटेश प्रसाद ने 5 विकेट लिए थे।

विश्व कप में अब तक भारत-पाकिस्तान के बीच हुए सभी 6 मुकाबले भारत ने जीते हैं। इसके अतिरिक्त वनडे मैचों में हमारा रिकॉर्ड पाकिस्तान के साथ अच्छा नहीं है। भारत और पाकिस्तान ने अब तक कुल 131 वनडे मैच खेले हैं जिनमें से 54 भारत ने जीते हैं और 73 पाकिस्तान ने। 4 मैचों का कोई नतीजा नहीं निकला है। लेकिन विश्व कप में हमने हमेशा पाकिस्तान को धूल चटाई है।

इस बार अगर पुलवामा हमले के कारण हम पाकिस्तान से मैच नहीं खेलते हैं तो यह पहला मौका होगा जब पाकिस्तान को विश्व कप में हमारे खिलाफ अंक हासिल करने का मौका मिलेगा।

सचिन तेंदुलकर का मानना है कि बिना खेले हम पाकिस्तान को अगर 2 अंक दे देंगे तो इससे उन्हें फायदा होगा। सुनील गावस्कर ने भी यही बात कही है। लेकिन हरभजन सिंह कहते हैं कि हमें पाकिस्तान के साथ नहीं खेलना चाहिए। मेरी समझ में यह नहीं ता कि पाकिस्तान से न खेलकर हमें कौन सा फायदा मिलने वाला है।

पाकिस्तान का बहिष्कार करना 1980 और 1970 के दशक से अलग है जब कई देशों ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ खेलने से इनकार कर दिया था। उस समय दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद नीति थी, जिसके तहत अश्वेतों को नागरिक और राजनीतिक अधिकार नहीं थे।

आज पूरी दुनिया में हम अकेले देश हैं जो पाकिस्तान का खेलों में बहिष्कार करना चाहते हैं। अभी शुक्रवार को जब अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने ऐलान किया है कि अगर भारत अपने यहां हो रहे निशानेबाज़ी प्रतियोगिता (शूटिंग कम्पिटीशन) में पाकिस्तान को आने का वीज़ा नहीं देता है तो 2020 के ओलंपिक में भारत के खिलाड़ियों को हिस्सा नहीं लेने दिया जाएगा।

ओलंपिक समिति का बयान इस मायने में काफी महत्वपूर्ण है, लेकिन न्यूज़ चैनलों ने इसकी रिपोर्ट सही ढंग से पेश नहीं की। बयान में कहा गया कि:

“यह स्थिति ओलंपिक चार्टर के बुनियादी उसूलों के खिलाफ है, खासतौर से भेदभाव विरोधी सिद्धांतों का उल्लंघन है, साथ ही यह ओलंपिक आंदोलन की भावनाओं के भी अनुकूल नहीं है, जो समय-समय पर दोहराया जाता रहा है कि सभी प्रतियोगियों और खेल मंडलों को अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में बिना किसी भेदभाव या राजनीतिक दखल के मेजबान देश द्वारा बराबरी का सम्मान दिया जाएगा।”

“नतीजतन, अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के एक्जीक्यूटिव बोर्ड ने भारतीय नेशनल ओलंपिक कमेटी और सरकार द्वारा भविष्य में आयोजित किए जाने वाले किसी भी खेल या ओलंपिक से जुड़े आयोजन को सस्पेंड करने का फैसला किया है। यह सस्पेंशन तब तक रहेगा जब तक कि भारत सरकार सभी प्रतियोगियों की ऐसे किसी भी आयोजन में ओलंपकि चार्टर के मुताबिक भागीदारी सुनिश्चित नहीं करती। साथ इस बात की सिफारिश की जाती है कि अंतरराष्ट्रीय खेल फेडरेशन ऐसी गारंटी मिलने तक भारत में किसी भी खेल आयोजन को नहीं करेंगी।”

इस तरह भारत में होने वाले सभी ओलंपिक आयोजन पर रोक लगा दी गई है। यह एक बेहद चिंताजनक स्थिति है। इससे हमारे अपने खिलाड़ियों पर गहरा असर पड़ सकता है। हम खेलों में पिछड़ सकते हैं, क्योंकि विश्व भर में हमारे इस कदम को बेहद बचकाना और खुद को नुकसान पहुंचाने वाला समझा जाएगा।

क्या हमें पता नहीं था कि अगर हम पाकिस्तानी खिलाड़ियों को वीज़ा नहीं देंगे तो आईओसी ऐसा कदम उठा लेगी? हो सकता है हमें पता हो, लेकिन कम से कम ऐसा तो नहीं लगा कि हमारे नेता और खेल प्रशासक इस बारे में कुछ सोच भी रहे थे। हर किसी पर मीडिया का जबरदस्त दबाव नजर आता है कि कुछ कड़े कदम उठाए जाएं, भले ही इससे पाकिस्तान के बजाए भारत का ही नुकसान क्यों न होता हो।

अगर हमें लगता है कि खेलों में पाकिस्तान का बहिष्कार करना जरूरी है, जो इसे एक दीर्घ रणनीति के तहत किया जाना चाहिए जिससे वाछित नतीजे सामने आ सकें। और वांछित नतीजे क्यां हैं, सीमापार से आतंकवाद खत्म हो।

गुस्से का अकबका प्रदर्शन करने से अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति नाराज होगी और पाकिस्तान को विश्वकप में दो अंक बिना खेले मिल जाएंगे, और हमें हासिल कुछ नहीं होगा। मेरी समझ से तो विश्व कप में पाकिस्तान का बहिष्कार करने से हमें कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है।

यह तो बच्चे करते हैं कि जब गुस्सा होते हैं तो गेंद-बल्ला लेकर घर चले जाते हैं और नहीं खेलते हैं, बड़े ऐसा नहीं करते, और देश तो कभी नहीं।

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