विष्णु नागर का व्यंग्यः मजाक बने बिना भी देश में पीएम बने रहना संभव, पहले के प्रधानमंत्री दिखा चुके हैं राह!

जीना हराम करना छोटी बात है, आपने तो मरना तक हराम कर रखा है। लोग तड़प-तड़प कर मरे हैं कोरोना से और उन्हें इनसान की तरह मरने और अंतिम संस्कार तक का मौका नहीं दिया आपने और कहते हो, ये प्रधानमंत्री पद सत्ता के लिए नहीं हैं, तो क्या भजन करने के लिए हैं?

फाइल फोटोः सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

मान्यवर, पिछली बार 'मन की बात' में आपने कहा: "मैं आज भी सत्ता में नहीं हूं और भविष्य में भी सत्ता में जाना नहीं चाहता हूं। मैं सिर्फ सेवा में रहना चाहता हूं। मेरे लिए ये पद, ये प्रधानमंत्री, ये सारी चीजें सत्ता के लिए हैं ही नहीं, सेवा के लिए है।"

ऐसा है माननीय आप केवल नरेन्द्र मोदी होते, बीजेपी के नेता होते, उसके अध्यक्ष होते तो आप अपने को कितना भी हास्यास्पद बनाते, दुख न होता, मगर खुशी भी न होती। पर आप संयोग से प्रधानमंत्री हैं और आप अभी कम से कम ढाई साल और इस पद को 'शोभायमान' या जो कुछ भी आप अभी तक करते रहे हैं, करते रहेंगे।

इसलिए आप जब हास्यास्पद हो जाते हैं तो दुख होता है। ऐसा लगता है, जैसे मैं खुद हास्यास्पद हो.चुका हूं। इस देश के 130 करोड़ लोग हास्यास्पद हो चुके हैं, हमारा लोकतंत्र हास्यास्पद हो चुका है। हममें से अधिकांश ने आपकी पार्टी को वोट देने का पाप सपने तक में नहीं किया है। फिर भी यह जिल्लत भोगनी पड़ रही है, इसलिए माननीय-विमाननीय और भी बुरा लगता है वरना इसे अपना ही पाप मान कर झेलते रहते!

आप प्रधानमंत्री हो तो हम ये तो नहीं कह सकते कि आप चूंकि हास्यास्पदता की सारी सीमाएं लांघ रहे हो, इसलिए आज से आप हमारे प्रधानमंत्री नहीं हो। आप हममें से किसी को देशद्रोही, नक्सली, बांग्लादेशी, आंदोलनजीवी आदि कह और कहलवा सकते हो, जिसको चाहे, हममें से जेल भिजवा सकते हो पर हममें से कोई लाख आपको भला-बुरा कहे मगर ये तो नहीं कह सकता कि आप देश के प्रधानमंत्री नहीं हो यानी हमारे प्रधानमंत्री नहीं हो!


और हो तो माननीय हमारी इज्जत बचाना भी आपका एक काम है। आपने कहा, मैं प्रधानसेवक हूं तो हमने यह कड़ुआ घूंट पी लिया। ऊपर से थोड़ा पानी पी लिया। सब ठीक हो गया। अब भी आपने इतना ही कहा होता कि मैं राजनीति में सेवा के लिए आया हूं तो माननीय इतना सफेद राजनीतिक झूठ चल जाता। आपको विशेष रूप से जनता ने कुछ ज्यादा ही झूठ बोलने की इजाजत दे रखी है, इसलिए और भी मजे से चल जाता। मगर महाशय आपने तो सारी लिमिट क्रास कर दी। कहा कि मैं आज भी सत्ता में नहीं हूं, सत्ता में जाना भी नहीं जाना चाहता हूं, ये नाटक क्या है महोदय?

नाटक बहुत हो चुका ये सब। अब इस देश का बच्चा-बच्चा जानता है कि आप सत्ता में ही हो और कहीं नहीं हो। आज तक के किसी भी प्रधानमंत्री से ज्यादा आप सत्ता में हो। आप कहीं और हो ही नहीं सकते। सत्ता ही आपकी दिनचर्या है। आपका नाश्ता, खाना,पीना, सोना, गाना-बजाना सब सत्ता है। सत्ता ही आपका साबुन, तेल, पावडर-वावडर सब है। सत्ता के जल में ही आप नहाते हो। सत्ता का ही आप पूजापाठ, ध्यान, मनन, सेवन, खेवन करते हो। सत्ता ही आपका पलंग, कुर्सी, सोफासेट है!

किसी प्रधानमंत्री ने इतना हाय सत्ता, हाय सत्ता नहीं किया, जितना आपने किया है। अपने इन साढ़े सात सालों में आपने इसी सत्ता के मद में सारे हिंदुस्तानियों का जीना हराम कर रखा है और आप कहते हो, मैं सत्ता में न हूं, न जाना चाहता हूं? क्या आपको ही यह बताऊं कि आपने किस -किस तरह जीना हराम कर रखा है?

जीना हराम करना भी छोटी बात है महोदय, आपने तो मरना तक हराम कर रखा है। लोग तड़प तड़प कर मरे हैं कोरोना से और उन्हें इनसान की तरह मरने और अंतिम संस्कार तक का मौका नहीं दिया है आपने और आप कहते हो, ये पद, ये प्रधानमंत्री सारी चीजें सत्ता के लिए नहीं हैं तो क्या भजन करने के लिए हैं? भजन करके क्या इस देश में इतनी नफरत पनपाई जा सकती थी? वाकई भजन करना है तो महाशय घर में करो, मंदिर में करो, प्रधानमंत्री निवास उसकी जगह नहीं है। तपस्या के बारे में आप बताते हो कि आपने हिमालय में की है तो फिर वहीं जा कर करो मगर हमारे करोड़ों रुपये लुटाकर नहीं।


और सच्ची तपस्या तो यह होगी माननीय कि जीवन का एक शतक पूरा करने की तरफ बढ़ रही अपनी मां की सेवा अहमदाबाद जा कर करो और अपनी पत्नी को भी वहीं बुला लो। दोनों मिलकर उनकी सेवा करो। बहुत कम लोगों को यह सौभाग्य प्राप्त होता है। 71 के खुद हो चुके हो, जाओ अब तो कुछ करो। देश की सेवा करने को उत्सुक तो बहुत से हैं और आपसे बेहतर कर लेंगे। मां की सेवा से आपको ट्रेनिंग मिलेगी कि सेवा क्या होती है। अंबानी-अडानी सेवा, सेवा नहीं होती!

पर खैर आपको यह सब नहीं करना है पर भाईजी, हद दर्जे की नाटकबाजी भी मत करो। सेवा तो आप उन्हीं की कर सकते हो, जिनकी करते रहे हो। इसलिए मैं सत्ता में नहीं हूं, न जाना चाहता हूं वगैरह मत कहा करो। हास्यास्पद बने बिना भी प्रधानमंत्री बने रहना इस देश में संभव है। पहले के प्रधानमंत्रियों ने यह रास्ता दिखाया है परभो। सबके पास आंखें हैं, कान हैं, नाक है, दिमाग है। लोगों को बेवकूफ मत समझो। सब देख रहे हैं कि मोदी क्या है। अपने को ही होशियार मत समझो। लोगों के पेट पर जब लात पड़ती है तो सेवक और मेवक का फर्क नजर आ जाता है!

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