खरी-खरी: यूपी को सामंती-जातिवादी शासन और सांप्रदायिक राजनीति के चक्रव्यूह से बचाने के लिए 'योगीराज' के अंत का समय

उत्तर प्रदेश में संविधान का नहीं बल्कि योगी आदित्यनाथ का सामंती शासन चल रहा है। लेकिन जनता अब योगी के आतंक से त्रस्त हो चुकी है और उनका विरोध बढ़ता जा रहा है। ऐसे में बौखलाए मुख्यमंत्री और उनकी आतंकी पुलिस जातीय और सांप्रदायिक षडयंत्र की दुहाई दे रही है।

फोटो : सोशल मीडिया
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ज़फ़र आग़ा

हाथरस कांड के हंगामे के बाद राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे की मांग की है। यह कोई गलत मांग नहीं है। सच तो यह है कि इस व्यक्ति को तुरंत सत्ता से बाहर किया जाना चाहिए। उत्तर प्रदेश देश का सबसे प्रमुख राज्य है। इसकी जनसंख्या लगभग पूरे यूरोप की आबादी से कम नहीं है। इतने बड़े प्रदेश में इस समय आग लगी है। महिलाओं का बलात्कार, पुलिस की धांधली, आए दिन होने वाले पुलिस एनकाउंटर, कोविड महामारी का बढ़ता प्रकोप और गरीबी से ग्रस्त इस प्रदेश में बढ़ती बेरोजगारी-जैसी समस्याएं अपने चरम पर हैं। स्पष्ट है कि योगी आदित्यनाथ हर मोर्चे पर विफल हैं। वह केवल विफल ही नहीं है बल्कि अब बेगैरती पर उतर आए हैं। आप स्वयं देखें कि हाथरस जिले में होने वाले महापाप को योगी और उनकी पुलिस एक ‘विदेशी षडयंत्र’ की संज्ञा दे रहे हैं। ऐसी बेगैरती वाला बयान देने से पहले योगी जी को कुछ शर्म तो करनी चाहिए थी।

खरी-खरी: यूपी को सामंती-जातिवादी शासन और सांप्रदायिक राजनीति के चक्रव्यूह से बचाने के लिए 'योगीराज' के अंत का समय

लेकिन योगी आदित्यनाथ और शर्म- इन दोनों का आपस में दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। आप जरा योगी का राजनीतिक जीवन देखें, तो आपको यह समझ में आ जाएगा कि यह उत्तर प्रदेश की बदनसीबी थी कि उसको योगी आदित्यनाथ जैसा मुख्यमंत्री मिला। योगी ने जब देश के इस प्रमुख प्रदेश की सत्ता संभाली तो उस समय उनके ऊपर लगभग आधे दर्जन आपराधिक मामलों में मुकदमे चल रहे थे। कहते हैं कि हत्या के एक मामले की सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट में चल रही थी। गोरखनाथ पीठ के इस महंत की सरकार ने जल्द ही इन तमाम मामलों को खारिज कर सरकार की ओर से योगी को ‘क्लीन चिट’ दे दी। इस तरह से उत्तर प्रदेश में एक दबंग मुख्यमंत्री के शासन का श्री गणेश हो गया।

खरी-खरी: यूपी को सामंती-जातिवादी शासन और सांप्रदायिक राजनीति के चक्रव्यूह से बचाने के लिए 'योगीराज' के अंत का समय

सत्ता में प्रवेश करते ही योगी जी के शासन की तीन नीतियां बहुत ही स्पष्ट रूप से सामने आईं। शासन की पहली प्राथमिकता प्रदेश को पुलिस राज में बदलने की थी, अर्थात प्रदेश संविधान के अंतर्गत नहीं बल्कि योगी के आदेशानुसार चलेगा और पुलिस हर हाल में उनके आदेश का पालन करेगी। यह उनकी सामंती और मठाधीशी मानसिकता का प्रतीक था। तभी तो उन्होंने सबसे पहले प्रदेश का ‘जंगल राज’ समाप्त करने के लिए पुलिस को गुंडों को मारने के लिए ‘सीधे एनकाउंटर’ की अनुमति दे दी। इसका नजीता यह हुआ कि पिछले तीन वर्षों में उत्तर प्रदेश में 6,145 ‘एनकाउंटर’ हो चुके हैं जिनमें 119 अपराधी मारे जा चुके हैं, अर्थात पुलिस को छूट मिल गई कि वह जिसे भी चाहे नियम-कायदों से नहीं बल्कि गोली से निपटे। इसका नतीजा आपने कानपुर के दबंग अपराधी विकास दुबे के कथित एनकाउंटर के रूप में देखा। इस प्रकार पुलिस को खुली छूट दे दी गई।

और, इस समय उत्तर प्रदेश में पुलिस का आतंक चरम सीमा पर है। अरे, दलित लड़की का बलात्कार हो और उसकी मृत्यु के बाद पुलिस उसके घरवालों को उसके दाह-संस्कार में शरीक भी न होने दे, यह आतंक नहीं तो और क्या है! और यह सब कुछ ऐसे ही नहीं हो रहा बल्कि मुख्यमंत्री की मर्जी से हो रहा है क्योंकि यही योगी की नीति है।

योगी शासन की दूसरी प्राथमिकता प्रदेश में खुला जातिवादी शासन चलाना है। उत्तर प्रदेश और बिहार में मंडल प्रकरण के बाद से यह चलन हो गया है कि जिस जाति का व्यक्ति मुख्यमंत्री बनता है, वह अपनी जाति का एक वोट बैंक अपने लिए बनाता है। मुलायम सिंह और अखिलेश यादव सत्ता में हों तो थानों एवं शासन में यादवों का वर्चस्व होगा। मायावती का शासनकाल आते ही यादव किनारे और उनकी जगह स्वयं उनकी जाति के जाटव लोगों का वर्चस्व हो जाता है। योगी जब सत्ता में आए तो उन्होंने ताल ठोक कर जातिवाद के अंत का ऐलान किया। लेकिन, उनके जातिवाद के अंत की घोषणा का अर्थ था कि वे पिछड़े और दलित जो मुलायम और मायावती के राज में ‘सिर’ पर चढ़ गए थे, उनको ठीक किया जाएगा। और इस काम का ठेका स्वयं योगी के ठाकुर वंशजों को दिया गया। तब ही तो आए दिन उत्तर प्रदेश में दलित महिलाओं के बलात्कार की चीत्कार सुनाई पड़ती है।

यदि आप इन दिनों उत्तर प्रदेश में किसी से भी बात करें तो यह सुनने को अवश्य मिलेगा कि आजकल ‘ठाकुरों’ का जोर है, अर्थात थानों एवं प्रशासन में ठाकुर वर्चस्व है और उनको मनमानी छूट है। यह ऐसे ही नहीं बल्कि यह ठाकुर आदित्यनाथ की नीति के अनुसार हो रहा है। इसका कारण यह है कि महत्वाकांक्षी आदित्यनाथ स्वयं अपनी राजनीति के लिए ठाकुर वोट बैंक पुख्ता कर रहे हैं। परंतु इस प्रक्रिया में प्रदेश में एक खुला जातिवादी प्रशासन चल रहा है।


योगी सरकार की तीसरी प्राथमिकता सांप्रदायिक राजनीति फैलाना है। वैसे तो हिंदू-मुस्लिम को बांटने की राजनीति बीजेपी का मुख्य डीएनए ही है, लेकिन अपने गुरु नरेंद्र मोदी की तरह ही योगी आदित्यनाथ की घुट्टी में भी सांप्रदायिकता मिली हुई है। जरा गोरखपुर में चुनाव जीतने के लिए योगी के भाषण सुनिए तो आपको यह पता चलेगा कि उनके मन में कितनी मुस्लिम घृणा है। ‘यदि तुम (मुसलमान) एक (हिंदू) मारोगे तो हम सौ (मुसलमान) मारेंगे’ जैसे योगी के भड़काऊ भाषण की आज भी गोरखपुर में चर्चा होती है। भला ऐसा व्यक्ति जब मुख्यमंत्री बनेगा तो उसका शासन अल्पसंख्यकों के साथ कैसा व्यवहार करेगा, आप स्वयं ही कल्पना कर सकते हैं।

तब ही तो नागरिकता संशोधन कानून-2019 (सीएए) का जब लखनऊ और राज्य के अन्य स्थानों में विरोध हुआ तो उत्तर प्रदेश सरकार जिस बर्बरता से पेश आई, वह आप देख और सुन चुके हैं। सीएए के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले पुरुषों और महिलाओं पर पुलिस ने डंडे बरसाए। उनको जेलों में ठूंसा गया। उनकी जमीन-जायदाद की कुर्की तक हुई। उनको बदनाम करने के लिए शहर में उनकी फोटो के साथ बड़े-बड़े होर्डिंग लगा दिए गए। शासन का सीधा संदेश था कि यदि अल्पसंख्यकों के हित की बात हुई तो उनको ठीक से सबक सिखा दिया जाएगा। और यह सब मुख्यमंत्री केआदेशानुसार ही हो रहा था।

याद रखिए, जब दमन का इस्तेमाल एक शासक किसी एक समुदाय के लिए करे तो फिर समस्याओं से घिरने पर वही शासक दमन का इस्तेमाल फिर खुलकर अपने हर प्रतिद्वंदी के लिए करने पर उतारू हो जाता है। हाथरस बलात्कार कांड में यही बात खुलकर सामने आ गई। राहुल और प्रियंका गांधी जब पहले रोज हाथरस की ओर चले तो उत्तर प्रदेश पुलिस ने नोएडा बॉर्डर पर रोका। फिर जब राहुल गांधी ने कहा कि वह स्वयं अकेले जाएंगे तो पुलिस ने उनको धक्के मारकर जमीन पर गिरा दिया। दूसरे रोज जब राहुल और प्रियंका गांधी फिर से हाथरस जाने के लिए आए तो पहले कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर लाठियां बरसाई गईं। और जब प्रियंका गांधी ने एक कार्यकर्ता को बचाने की चेष्टा की तो एक पुसिलकर्मी ने उनका कॉलर पकड़कर उनके साथ धक्का-मुक्की की।


यह है योगी आदित्यनाथ का उत्तर प्रदेश जहां इस समय संविधान का शासन नहीं बल्कि स्वयं योगी का सामंती शासन चल रहा है। परंतु बकौल साहिर- ‘जुल्म फिर जुल्म है, बढ़ता है तो मिट जाता है।’ उत्तर प्रदेश से यह संकेत मिल रहे हैं कि जनता अब योगी के आतंक से ऊब चुकी है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश का किसान सड़कों पर है। शासन के आतंक का विरोध करने वाले जयंत चौधरी जैसों पर डंडे बरसाए जा रहे हैं। लेकिन विपक्षी नेता अब चुप बैठने को तैयार नहीं हैं। प्रदेश में योगी विरोध अब बढ़ता जा रहा है। ऐसे में योगी के होश उड़ने लगे हैं और घबराए मुख्यमंत्री का आतंक तेजी से बढ़ रहा है। हाथरस की नाकाबंदी अभी भी जारी है। कोई नेता वहां प्रवेश नहीं कर सकता है। हद यह है कि पत्रकारों को हाथरस का रुख करने पर षडयंत्र के आरोप में गिरफ्तार किया जा रहा है।

उत्तर प्रदेश के बौखलाए मुख्यमंत्री और उनकी आतंकी पुलिस जातीय और सांप्रदायिक षडयंत्र की दुहाई दे रही है। यह एक सामंती विफल नेता की पुकार है जो पूरी तरह से विफल हो चुका है। स्वयं बीजेपी के हितमें यही है कि वह अब योगी आदित्यनाथ की छुट्टी करे।

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