खरी-खरी: कृषि कानूनों की वापसी के पीछे पंजाब नहीं, यूपी में बीजेपी की खिसकती ज़मीन है कारण...

चुनाव अभियान में स्वयं प्रधानमंत्री मोदी अभी से कुछ इस प्रकार से जुट चुके हैं कि इससे पूर्व किसी विधानसभा चुनाव में उनको जुटते नहीं देखा गया। इन दिनों मोदी दिल्ली कम और लखनऊ, आजमगढ़, सुलतानपुर तथा नोएडा-जैसे उत्तर प्रदेश के नगरों में अधिक पाए जाते हैं।

फोटो : सोशल मीडिया
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ज़फ़र आग़ा

किसानों ने नरेंद्र मोदी का घमंड तोड़ दिया। यह किसानों की पहली उपलब्धि है। क्योंकि किसान आंदोलन की विजय से यह बात सिद्ध हो गई कि जनतंत्र में नेता कितना ही बड़ा क्यों न हो, वह कभी भी जनता से महान नहीं हो सकता है। अतः किसानों के आगे मोदी जी ने जिस प्रकार घुटने टेके, वह केवल किसानों की ही नहीं, अपितु भारतीय जनतंत्र एवं लोकतंत्र व्यवस्था और उस व्यवस्था में विश्वास रखने वाले हर भारतीय की विजय है। अब प्रश्न यह है कि आखिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जो सन 2001 में गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद से अभी 2021 तक, अर्थात पिछले दो दशकों में कभी किसी के आगे झुके नहीं, वह मोदी किसानों के आगे क्यों झुक गए!

भारतीय मीडिया जो आजकल गोदी मीडिया कहलाता है, उसमें अथवा संघ के प्रचार करने वाले समूह की ओर से बहुत संगठित रूप से यह प्रचार हो रहा है कि मोदी जी ने तीन कृषि कानून वापस लेने का फैसला इस कारणवश किया है कि इस बात से वह पंजाब में कांग्रेस को धराशायी कर लेंगे। यह बात अपील भी करती है। कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस पार्टी छोड़कर न सिर्फ अपना दल बना चुके हैं, अपितु वह भाजपा के साथ अगले वर्ष पंजाब विधानसभा के होने वाले चुनाव में भाजपा के साथ हाथ मिलाने की घोषणा भी कर चुके हैं। अमरिंदर सिंह की केवल यही शर्त थी कि भाजपा उनसे हाथ मिलाने के लिए कृषि कानून वापस ले। मोदी जी ने यह कर दिया। अतः अब दोनों के सहयोग के लिए मैदान साफ है। इस प्रकार मोदी जी के ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ के सपने में पंजाब भी कांग्रेस के हाथों से निकल सकता है।

परंतु क्या नरेन्द्र मोदी जो संपूर्ण एक वर्ष तक किसानों की मांग के आगे टस से मस नहीं हुए, वह पंजाब-जैसी छोटी-सी केवल 13 लोकसभा सीटों वाले राज्य के लिए खून का घूंट पीकर एवं स्वसम्मान की कुर्बानी देकर किसानों के आगे घुटने टेक सकते थे? ऐसा संभव नहीं लगता है। हां, मोदी जी को कृषि कानून वापस लेने से राजनीतिक लाभ हो सकता है। परंतु केवल पंजाब के कारण मोदी जी ने आत्मसम्मान न्योछावर कर दिया, यह तर्क गले से नीचे नहीं उतरता है। तो फिर कौन-सी ऐसी बड़ी बात है जिसके कारण मोदी जी कृषि कानून से सबसे अधिक लाभान्वित होने वाले पूंजीपति मित्रों- अंबानी और अडानी के हितों को भी कुर्बान करने को तैयार हो गए। अर्थात बात पंजाब से कहीं बड़ी थी और स्वयं अकेले ही नहीं अपितु उनके साथ-साथ संपूर्ण संघ परिवार चिंतित था। तब ही तो पहली बार मोदी जी झुके एवं उन्होंने तीनों कृषि कानून वापस ले लिए। फिर वही प्रश्न आखिर वह क्या है जो मोदी सहित संपूर्ण संघ परिवार को चिंतित कर रहा है।

वह पंजाब नहीं, उत्तर प्रदेश है जिसने मोदी सहित संपूर्ण संघ परिवार की नींद उड़ा रखी है। पिछले एक माह में उत्तर प्रदेश से जो संकेत मिल रहे हैं, वे भाजपा के लिए कुछ अच्छा संदेश नहीं दे रहे हैं। मार्च, 2022 में उत्तर प्रदेश चुनाव होने हैं। चुनाव अभियान में स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अभी से कुछ इस प्रकार से जुट चुके हैं कि इससे पूर्व किसी राज्य स्तर के चुनाव में उनको जुटते नहीं देखा गया।


इन दिनों मोदी जी दिल्ली कम और लखनऊ, आजमगढ़, सुलतानपुर तथा नोएडा-जैसे उत्तर प्रदेश के नगरों में अधिक पाए जाते हैं। वह लगभग रोज ही वहां किसी- न-किसी सरकारी योजना का अनावरण करते हैं जिसमें सरकारी खर्च से लाखों की भीड़ इकट्ठा की जाती है। स्पष्ट है कि भाजपा को यह साफ दिखाई दे रहा है कि केवल योगी के नाम पर तो उत्तर प्रदेश हाथ से गया। इसीलिए संघ एवं भाजपा यह प्रचार कर रहे हैं कि सन 2024 में मोदी को लाना है, तो योगी को जिताना है, अर्थात अगले लोकसभा चुनाव में मोदी जी को वापस लाने के लिए अभी योगी की मजबूरी को मान लो और भाजपा को जिता दो। स्पष्ट है कि योगी स्वयं मोदी जी तथा भाजपा की मजबूरी बन चुके हैं। यह कोई ढकी-छुपी बात नहीं कि योगी को मोदी जी उत्तर प्रदेश चुनाव से पूर्व हटाना चाहते थे। परंतु संघ ने ऐसा नहीं होने दिया। परंतु मोदी जी को समझ में आ रहा है कि योगी के कारण उत्तर प्रदेश में भाजपा की नाव डूब सकती है। यही कारण है कि एक सप्ताह में मोदी जी कम-से-कम दो दिन उत्तर प्रदेश में बिता रहे हैं। वह इस प्रकार जनता को यह संदेश दे रहे हैं कि तुम्हारा वोट योगी को नहीं, मोदी को जाएगा।

परंतु प्रश्न तो यह है कि क्या मोदी जी अब भी उतने ही लोकप्रिय हैं कि वह पिछले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के समय नोटबंदी के बावजूद फिर से योगी के बावजूद भाजपा को चुनाव जितवा दें। मोदी जी की लोकप्रियता के वे दिन अब लद चुके हैं। इंडिया टुडे के एक सर्वे के अनुसार, उनकी लोकप्रियता कोविड 19 की दूसरी लहर के बाद 66 प्रतिशत थी जिसमें 24 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है।

किसान आंदोलन ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा को खोखला कर दिया है। फिर अखिलेश यादव एवं आरएलडी नेता जयंत चौधरी ने उत्तर प्रदेश चुनाव मिलकर लड़ने की घोषणा कर दी है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की मुस्लिम आबादी अभी से ‘जो भाजपा को हराए, उसको वोट डालो’ रणनीति की खुलकर बात कर रहा है। फिर पश्चिमी उत्तर प्रदेश से सटे रुहेलखंड के बिजनौर, रामपुर, मुरादाबाद एवं बरेली- जैसे जिलों पर भी किसान आंदोलन का प्रभाव है। फिर उत्तरी उत्तर प्रदेश वह भाग है जहां कोविड की दूसरी लहर में लाखों लोग मौत के घाट उतर गए। हद यह है कि गंगा में लाशें बहने लगीं। उत्तर प्रदेश के बड़े नगरों में काम करने वाला मजदूर एवं कारीगर लॉकडाउन में हजारों मील पैदल चला। प्रदेश के धंधे चौपट हो गए। आखिर मोदी जी की ‘मियां को ठीक कर दिया’ जैसे प्रचार के आधार पर खाली पेट जनता भाजपा के वादों पर कब तक वोट डालती रहेगी। अभी बंगाल विधानसभा चुनाव में हजारों करोड़ खर्च करने के बाद भी भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। वह चुनाव ममता के खिलाफ मोदी जी अपने ही दम पर लड़े थे।

स्पष्ट है कि मोदी जी अब वह मोदी जी नहीं रहे जिनके नाम पर जनता आंखें मूंदकर वोट डाल दे। यही कारण है कि मोदी सहित संपूर्ण संघ परिवार में घबराहट है और उसका पहला लक्षण कृषि कानून वापसी है। फिर मोदी जी कभी पुलिस कांफ्रेंस की आड़ में दो-दो दिन लखनऊ में बिता रहे हैं, वह भी घबराहट का लक्षण है। कभी सुलतानपुर में सड़क पर जहाज उतार कर जनता को लुभाने की चेष्टा है, तो कभी जेवर एयरपोर्ट की स्थापना रख प्रदेशवासियों को विकास का सपना दिखाया जा रहा है। चुनाव को अभी लगभग चार माह बाकी हैं परंतु मोदी जी अभी से पूर्णतया पंजाब में नहीं, उत्तर प्रदेश चुनाव प्रचार में व्यस्त हैं।


अतः पंजाब नहीं, उत्तर प्रदेश चुनाव की घबराहट ने नरेन्द्र मोदी जैसे कभी न झुकने वाले व्यक्ति को किसानों के आगे घुटना टेकने पर मजबूर कर दिया। कारण यह है कि किसान आंदोलन ने उत्तर प्रदेश ही नहीं, दिल्ली सिंहासन को भी हिला दिया है। ऐसे में यदि योगी गए तो सन 2024 में मोदी जी गए। यही कारण है कि अब मोदी जी रातों में दिल्ली में कम और लखनऊ में अधिक सोएं तो कोई बड़ी हैरत की बात नहीं है। और इस परिवर्तन के लिए सभी को देश में किसानों का आभारी होना चाहिए जिन्होंने मोदी जी का घमंड तोड़ कर मोदी शासन की नींव हिला दी।

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