भारत को अमेरिका का निकटतम मित्र बनाने का सपना है जो बाइडेन का, लेकिन फिलहाल उनकी प्राथमिकताओं पर रखनी होगी नजर

बाइडेन ने 2006 में कहा था, ‘मेरा सपना है कि 2020 में अमेरिका और भारत दुनिया में दो निकटतम मित्र बनें।’ उपराष्ट्रपति के रूप में 2013 में भारत आने पर भी बाइडेन ने वही बात कही। देखना होगा कि 20 जनवरी के बाद वह सबसे पहले किन देशों के नेताओं से बात करते हैं।

Photo by Vijayanand Gupta/Hindustan Times via Getty Images
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प्रमोद जोशी

आगामी 20 जनवरी को जो बाइडेन अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में काम संभाल लेंगे। उनका पहला काम कोविड-19 की महामारी को रोकने का होगा। यह स्वाभाविक है। पर इसके साथ ही कुछ दूसरी बड़ी घोषणाएं वह काम के पहले दिन कर सकते हैं। चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने दर्जनों और महत्वाकांक्षी कार्यक्रम गिनाए हैं। इनमें आर्थिक और पर्यावरण से जुड़े मसले हैं। सामाजिक न्याय, शिक्षा तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ी बातें हैं।

डोनल्ड ट्रंप की कुछ नीतियों को वापस लेने या उनमें सुधार के काम भी कर सकते हैं। उन्होंने अपने पहले 100 दिन के जो काम घोषित किए हैं, उनमें प्रवास से जुड़ी दर्जन भर बातें हैं जिन्हें लागू करना आसान नहीं। सबसे बड़ी परेशानी संसद में होगी। प्रतिनिधि सदन में डेमोक्रेटिक को बहुमत जरूर है, पर वहां भी रिपब्लिकन पार्टी की स्थिति बेहतर है। सीनेट की शक्ल जनवरी में जॉर्जिया की दो सीटों पर मतदान के बाद स्पष्ट होगी।

संसद में बाइडेन को अपनी पार्टी के ऐसे नीतिगत फैसलों को लागू करने में दिक्कत होगी जिन्हें रिपब्लिकन पार्टी का समर्थन नहीं है; जैसे, हेल्थ केयर और पर्यावरण। इसलिए वह शुरू में कोविड-19 और इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार जैसे कार्यक्रमों को ही बढ़ा पाएंगे। उन्होंने डॉ एंथनी फाउची से नेशनल इंस्टीट्यूटऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शंस डिजीज का डायरेक्टर बने रहने का आग्रह किया है। वह इस पद पर 1984 से हैं। उनकी सलाह ट्रंप ने नहीं मानी थी।

पेरिस संधि और डब्लूएचओ

काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस के सीनियर वाइस प्रेसीडेंट जेम्स एम लिंडसे ने लिखा है कि पेरिस संधि और विश्व स्वास्थ्य संगठन में शामिल होना शायद उनके पहले वैश्विक निर्णय होंगे। लगता है कि वह चीन संग व्यापार-युद्ध को फिलहाल रोकने की कोशिश करेंगे। उनकी पहली परीक्षा ईरान के साथ परमाणु संधि पर होगी। इसके अलावा रूसी हैकरों की घुसपैठ पर भी वह पहले विचार करेंगे। बाइडेन से अपेक्षाएं ज्यादा हैं और राजनीतिक रूप से वह उतने ताकतवर नहीं हैं जबकि उन्होंने कुछ ऐसे फैसलों की घोषणा कर रखी है जो उन्हें अलोकप्रिय बनाएंगे।

राजनीतिक फैसले

बाइडेन ने प्रचार के दौरान कहा था कि राष्ट्रपति पद ग्रहण करने के पहले दिन कॉरपोरेट आयकर 21 से बढ़ाकर 28 फीसदी करेंगे। ट्रंप प्रशासन ने 2017 में इसकी दर घटाकर 21 फीसदी की थी। उनका वादा है कि सालाना चार लाख डॉलर से कम आय वालों पर कम टैक्स लगेगा। पहले दिन के जिन फैसलों का वायदा उन्होंने किया है, उनमें 1.1 करोड़ प्रवासियों को नागरिकता देना भी है।

उन्होंने कुछ मुस्लिम देशों के नागरिकों की अमेरिका यात्रा पर लगी रोक को खत्म करने का वादा भी किया है। शरणागत- नीतियों को बदलने और खासतौर से मैक्सिको से आने वालों के साथ होने वाले व्यवहार को रोकने का वादा है। उन्होंने दक्षिणी सीमा पर बन रही दीवार के लिए और पैसे नहीं देने की घोषणा की है, पर बनी दीवार को गिराने का भी इरादा नहीं है।

पिछले दिनों अश्वेत नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड तथा कुछ अन्य अश्वेतों की हत्याओं पर खड़े ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ आंदोलन के संदर्भ में उनका वादा है कि वह पुलिस ओवर साइट कमीशन नियुक्ति करेंगे। पुलिस व्यवस्था को ओवरहॉल करने की दिशा में यह बड़ा कदम होगा। उन्होंने बड़े स्तर पर निवेश के सहारे 50 लाख नए रोजगार का वादा किया है। ‘मेड इन अमेरिका’ पॉलिसी की घोषणा भी की है।

चीन की चुनौती और भारत

लगता है, हमारे अमेरिका से रिश्तों में स्थिरता का समय आ गया है। दूसरी तरफ चीन और अमेरिका के रिश्तों में तल्खी आ रही है और भारत से सुधार। शुरुआत रिपब्लिकन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के समय हुई और डेमोक्रेट बराक ओबामा के समय में यह पुष्ट हुई। ट्रंप के कार्यकाल में कुछ महत्वपूर्ण सामरिक समझौते हुए। जो बाइडेन इसे आगे बढ़ाएंगे।

भारत की दिलचस्पी आर्थिक विकास में है। अमेरिका के सामने चीन एक तरफ आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है तो दूसरी तरफ सामरिक चुनौती बन कर खड़ा है। इस चुनौती को अमेरिकी प्रशासन और उसके सहयोगी देश जापान ने सन 2000 में ही देख लिया था। इसीलिए 1998 के एटमी धमाकों के बाद लगाई पाबंदियों को इन्होंने धीरे-धीरे खत्म किया और आज ये दो देश भारत के निकटतम सामरिक सहयोगी हैं। सामरिक सहयोग बगैर आर्थिक सहयोग अधूरा है। बाइडेन प्रशासन के समय में ही आर्थिक सहयोग की बुनियाद पड़नी चाहिए।

चीन केवल सामरिक चुनौती ही पेश नहीं कर रहा है, बल्कि तकनीकी महाशक्ति के रूप में स्थापित अमेरिका के वर्चस्व को भी चुनौती दे रहा है। हुवावेई की 5-जी तकनीक इसका उदाहरण है। अमेरिका अपने यूरोपीय सहयोगी देशों के साथ मिलकर चीन के विस्तार को रोकेगा। इधर भारत और चीन के कारोबारी रिश्तों में रुकावट आई है। लद्दाख की घटना ने इसे और तेज कर दिया है। इस साल क्वॉड की दिशा में न केवल प्रगति हुई बल्कि मालाबार अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया भी शामिल हुआ।

ट्रंप में हंगामा करने की कला थी। पर्यवेक्षकों का अनुमान है कि बाइडेन खामोशी से चीन-विरोधी अभियान चलाएंगे। इसमें भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया का समर्थन मिलेगा क्योंकि इन तीनों देशों को भी चीन से शिकायतें हैं।


पाकिस्तान और भारत

हमारे लिए अमेरिका की पाकिस्तान-नीति ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। डोनाल्ड ट्रंप ने अफगानिस्तान से अपनी सेना वापस बुलाने का फैसला कर लिया है। यह फैसला इस बिना पर किया कि तालिबान पर पाकिस्तान के जरिये दबाव रखा जाएगा। पाकिस्तान को पुचकारने और तमाचा जड़ने की नीति जारी रहनी चाहिए। अफगानिस्तान में अब चीन और रूस की दिलचस्पी भी है। भारत चाहता है कि अमेरिकी सेना की उपस्थिति किसी-न- किसी रूप में बनी रहे। बाइडेन प्रशासन की इस नीति पर भारत की निगाहें रहेंगी।

भारत की दिलचस्पी रोजगार और शिक्षा के लिए अमेरिकी वीजा में भी है। ट्रंप की नीतियों में भारत के लिए किसी किस्म की रियायत नहीं थी। फरवरी, 2020 में ट्रंप की दिल्ली-यात्रा के दौरान व्यापार-समझौते पर बात हुई। अब बाइडेन प्रशासन से इस पर बात करनी होगी।

भारत शुल्क मुक्त निर्यात योजना (जीएसपी) को बहाल करने पर भी बात कर सकता है। ट्रंप प्रशासन ने 2019 में जीएसपी सूची से भारत को हटा दिया था। इसके तहत भारत 2,000 से अधिक उत्पादों का अमेरिका को शुल्क मुक्त निर्यात करता था।

बाइडेन ने सन 2006 में ही कहा था, ‘मेरा सपना है कि 2020 में अमेरिका और भारत दुनिया में दो निकटतम मित्र बनें।’ यह सपना अब पूरा हो रहा है। उपराष्ट्रपति के रूप में 2013 में भारत आने पर भी बाइडेन ने वही बात कही। देखना होगा कि 20 जनवरी के बाद वह सबसे पहले किन देशों के नेताओं से बात करते हैं।

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