मणिपुर: सिर्फ क्रोध और आक्रोश काफी नहीं, अमन बहाली के ठोस कदम उठाने होंगे

मणिपुर में जब समुदाय-समाज बंटा हुआ है, एक संवैधानिक प्रक्रिया के तहत शांति स्थापित की जाए। लेकिन ये करने से पहले मुख्यमंत्री को जवाबदेह बनाकर उन्हें उनके पद से हटाना होगा। केंद्र सरकार को और खासतौर से केंद्रीय गृह मंत्रालय को भी जिम्मेदारी लेनी होगी।

देश के कई हिस्सों में मणिपुर में शांति बहाली की प्रार्थनाएं हो रही हैं (फोटो : Getty Images)
देश के कई हिस्सों में मणिपुर में शांति बहाली की प्रार्थनाएं हो रही हैं (फोटो : Getty Images)
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तसलीम खान

बुधवार को सामने आए मणिपुर के एक वीडियो ने पूरे देश को विचलित कर दिया। क्रोध, आक्रोश और शर्म से देश कांप उठा। जितने कठोरतम शब्दों में इस जघन्य और मानवता को कलंकित करने वाले अपराध की निंदा हो सकती थी, की जा रही  थी। फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मणिपुर को अपना मौन व्रत तोड़ने में 24 घंटे का वक्त लग गया। अगर यह वीडियो सामने नहीं आया होता तो शायद प्रधानमंत्री अपनी करीब तीन महीने की चुप्पी तोड़ते भी नहीं। उन्होंने गुरुवार को संसद के मॉनसून सत्र की शुरुआत से पहले रस्मी तौर पर पत्रकारों से बातचीत में कहा, “मेरा हृदय पीड़ा से भरा हुआ है, क्रोध से भरा हुआ है। मणिपुर से जो घटना सामने आई है वह किसी भी सभ्य समाज को शर्मिंदा करने वाली घटना है।” उन्होंने आगे कहा कि पाप करने वाले कितने हैं, कौन हैं, वह अपनी जगह पर हैं...लेकिन बेइज्जती पूरे देश की हो रही है। 140 करोड़ देशवासियों को शर्मसार होना पड़ रहा है।

उन्होंने आगे कहा, “मैं सभी मुख्यमंत्रियों से आग्रह करता हूं कि वे अपने राज्य में कानून-व्यवस्था को और मजबूत करें। खासतौर से माताओं-बहनों की रक्षा के लिए कठोर से कठोर कदम उठाएं। घटना चाहे राजस्थान में हो, चाहे छत्तीसगढ़ में हो, चाहे मणिपुर में हो, किसी भी राज्य में राजनीति वाद-विवाद से ऊपर उठकर कानून व्यवस्था का महात्मय हो, नारी का सम्मान हो...मैं देशवासियों को विश्वास दिलाना चाहता हूं कि किसी भी गुनहगार को बख्शा नहीं जाएगा। कानून अपनी पूरी शक्ति से पूरी सख्ती से अपना काम करेगा, मणिपुर की बेटियों के साथ जो हुआ है, उसे कभी माफ नहीं किया जा सकता।”

यहां सवाल है कि आखिर मणिपुर की भयावह घटना पर प्रधानमंत्री क्रोध और पीड़ा तो व्यक्त कर रहे थे, ऐसे मामलों में रानजीतिक वाद-विवाद से ऊपर उठकर कदम उठाने का आह्वान कर रहे थे, लेकिन खुद ही राजनीति करते हुए मणिपुर के साथ राजस्थान और छत्तीसगढ़ का नाम लेना नहीं भूले। क्या राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ऐसी कोई घटना हुई है जहां सैकड़ों दरिंदों की भीड़ ने महिलाओं को निर्वस्त्र परेड कराई हो और उनका शीलभंग किया हो? क्या मणिपुर के अलावा किसी भी राज्य में वह राजस्थान हो या छत्तीसगढ़, ढाई महीने से अनवरत हिंसा जारी है? क्या किसी भी राज्य में हजारों महिलाएं, बुजुर्ग, बच्चे और युवा बेघर हो गए हों? क्या किसी भी राज्य में 100 से ज्यादा लोगों की जान चली गई हो और केंद्र सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रही हो?

मणिपुर की घटना पर प्रधानमंत्री ने कठोर शब्दों का प्रयोग तो किया है, लेकिन उनके इन शब्दों की आहट क्या सुदूर पूर्व के राज्य मणिपुर में शासन-प्रशासन तक पहुंची है, जहां उनकी ही पार्टी बीजेपी की सरकार है? जहां केंद्रीय मंत्री अमित शाह दौरा तो कर आए हैं, लेकिन उनके दौरे के बीच ही और उसके बाद भी लगातार न सिर्फ हिंसा का नंगा नाच हो रहा है, बल्कि महिलाओं के सम्मान को नोचा-खसोटा जा रहा है।


मणिपुर से आए वीडियो का देश की सर्वोच्च अदालत ने भी संज्ञान लिया है। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने इस घटना पर गहरा आक्रोश और चिंता जताते हुए कहा, “समय आ गया है कि सरकार को सच में दखल देना होगा और कार्रवाई करनी होगी क्योंकि ये सब किसी तरह स्वीकार नहीं किया जाएगा।” चीफ जस्टिस ने इस घटना को "संवैधानिक और मानवाधिकारों का सबसे बड़ा उल्लंघन" बताते हुए यह भी कहा कि, "अगर जमीनी तौर पर कुछ नहीं हो रहा है तो हम कार्रवाई करेंगे।"

सुप्रीम कोर्ट ने जो कुछ कहा और जिन शब्दों में कहा, उसका स्वागत करना चाहिए, लेकिन चिंता भी जताना चाहिए कि सर्वोच्च न्यायालय को भी अपना आक्रोश व्यक्त करने में ढाई महीने का वक्त लगा।

मणिपुर तो मई की शुरुआत से ही जल रहा है। इसकी शुरुआत उस समय हुई जब संख्या और राजनीतिक प्रभाव की दृष्टि से मजबूत मैतेई समुदाय के वर्चस्व वाली इम्फाल घाटी में राजधानी के आसपास की पहाड़ियों पर रहने वाले अल्पसंख्यक कुकी समुदाय और अन्य जनजातियों के बीच हिंसा भड़ उठी थी। तब से अब तक सौ से अधिक लोगों की जान जा चुकी है, बड़ी संख्या में चर्चों को ध्वस्त किया गया है, संपत्तियां नष्ट की गई हैं। हजारों लोगों को अपने घर छोड़कर जान बचाने के लिए पलायन करना पड़ा है। वे मणिपुर और पड़ोसी मिजोरम में शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं। आम तौर पर मैतेई समुदाय की तरफ झुकाव रखने वाली राज्य सरकार और प्रशासन एक तरह से हाथ पर हाथ ही धरे बैठा रहा है।

जिस वीडियो को लेकर देश में उबाल आया है, वह 4 मई की घटना बताई जा रही है। इस घटना पर 18 मई को एफआईआर भी दर्ज हो गई थी। लेकिन जितना आक्रोश इस घटना पर है, उतना ही क्रोध इस बात पर है कि दो महीने तक एक भी आरोपी नहीं पकड़ा गया और कोई कार्रवाई नहीं की गई। अब मणिपुर के मुख्यमंत्री ऐलान कर रहे हैं कि गुरुवार (20 जुलाई, 2023) को एक अपराधी पकड़ा गया है। उसकी फोटो भी जारी की गई है।

बात साफ है, मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह और उनकी सरकार इन मुश्किल लम्हों में किसी किस्म का भरोसा देते हुए नहीं दिखते, उन्हें तो पद पर रहने का हक है ही नहीं। और सिर्फ मुख्यमंत्री ही नहीं, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी उतने ही जवाबदेह हैं जितने कि मुख्यमंत्री। उन्होंने भी तो मई में ही मणिपुर का दौरा किया था। उन्हें तो इस घटना की जानकारी रही होगी। क्या उन्हें नैतिक तौर पर अपने पद पर रहने का अधिकार है? अभी 24 जून को ही दिल्ली में मणिपुर पर सर्वदलीय बैठक हुई थी, जिसमें अधिकांश दलों ने मणिपुर के मुख्यमंत्री से इस्तीफा लेने का आग्रह किया था, हालात को काबू करने के लिए केंद्र सरकार के सीधे दखल की मांग की थी, लेकिन देश के गृहमंत्री होने के नाते अमित शाह ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की।


यह सर्वविदित है कि कहीं भी सांप्रदायिक या जातीय संघर्ष होता है तो इसकी सबसे ज्यादा शिकार महिलाएं ही होती हैं, और महिलाओं पर अत्याचार करने वाले, उन्हें निशाना बनाने वालों को शायद ही कभी अदालत के कटघरे तक पहुंचाया जाता हो। चीफ जस्टिस ने भी अपनी टिप्पणी में इसे दोहराया। उन्होंने कहा कि, "सांप्रदायिक संघर्ष वाले इलाकों लैंगिक हिंसा भड़काने के लिए महिलाओं को एक साधन के रूप में इस्तेमाल करना बेहद चिंतित करने वाली स्थिति है..."।

मणिपुर में वैसे भी महिलाओं के खिलाफ हिंसा का एक इतिहास है। 1970 के दशक में नागरिक अधिकारों के लिए आंदोलन हुआ था। तब से ही महिलाओं के खिलाफ हिंसा एक ज्वलंत मुद्दा रहा है। उस दौरान इम्फाल में महिलाओं ने निर्वस्त्र होकर प्रदर्शन किया था, तब कहीं जाकर उग्रवाद के उस दौर में महिलाओं के मानवाधिकार उल्लंघन को गभीरता से लेना पड़ा था। इरोम शर्मिला ने भी आर्म्ड फोर्सेस विशेषाधिकार कानून (AFSPA) के खिलाफ 16 साल लंबा आंदोलन किया। मणिपुर में महिलाएं अधिकारों के लिए आवाज उठाती रही हैं, फिर भी उन्हें ही सबसे ज्यादा हिंसा और यौन उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा है।

मणिपुर में शांति के लिए एक नई राजनीतिक परिकल्पना की जरूरत है, जिसकी बुनियादी प्रक्रिया भले ही धीमी लेकिन ठोस हो। इस प्रक्रिया में महिलाओं और सभी जातीय समुदायों के प्रति संवेदनशीलता की जरूरत है। ये सब करने के लिए सरकार को लोगों का भरोसा जीतना होगा कि वह उनके साथ है, न कि अपराधियों के। ऐसे वक्त में जब समुदाय-समाज बंट हुआ है, एक ही तरीका है कि संविधान के प्रकाश में कोशिश की जाए। लेकिन ये सब करने से पहले मुख्यमंत्री को जवाबदेह बनाकर उन्हें उनके पद से हटाना होगा। केंद्र सरकार को और खासतौर से केंद्रीय गृहमंत्रालय को अपनी नाकामियों को स्वीकार करते हुए जवाबदेह होना पड़ेगा।

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