खरी-खरीः अन्ना आंदोलन से जन्मे केजरीवाल अब खुलकर चलाएंगे संघ का एजेंडा

अरविंद केजरीवाल की पार्टी के विधायक अब अपने इलाके में मंगलवार को हनुमान चालीसा का पाठ करवाएंगे। अन्ना आंदोलन से जन्मे केजरीवाल को अंततः जहां जाना था, वहां पहुंच गए। दरअसल, वह शुरू से ही संघ के एक प्यादा थे जो अब दिल्लीकी राजनीतिक बिसात पर बादशाह बन गए हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
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ज़फ़र आग़ा

लीजिए, अरविंद केजरीवाल भी चले हिंदुत्व की राह! अपने शपथ ग्रहण समारोह में केजरीवाल ने केवल मोदी को आमंत्रित ही नहीं किया, अपितु अपने भाषण में उन्होंने खुलकर यह ऐलान भी किया कि वह केंद्र सरकार के साथ मिलकर दिल्ली के विकास के लिए काम करेंगे। इतना ही नहीं सीएए और एनपीआर/एनआरसी पर चुप्पी साधकर उन्होंने चुनाव के दौरान ही आम आदमी पार्टी को हिंदुत्व के एजेंडे से जोड़ दिया था। फिर हनुमान चालीसा पढ़कर और शपथ ग्रहण समारोह में अपनी वेशभूषा तथा तिलक आदि द्वारा राजनीतिक संकेत देकर यह स्पष्ट कर दिया कि वह अब न केवल विपक्ष से दूर हैं बल्कि वह तो वैचारिक रूप से संघ के हिंदुत्व मार्ग के अनुयायी हैं और वह केंद्र के सहयोग अर्थात नरेंद्र मोदी के सहयोग से ही दिल्ली की सरकार चलाएंगे।

केजरीवाल की यह राजनीतिक पल्टी कोई बहुत हैरतनाक बात नहीं है। क्योंकि केजरीवाल का राजनीतिक स्वरूप ही संघ के कंधों पर सवार होकर बना था। साल 2012 में तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ चलने वाला ‘भ्रष्टाचार विरोधी’ अन्ना आंदोलन लगभग संघ द्वारा संचालित आंदोलन था। उस अन्ना आंदोलन से पहले अरविंद केजरीवाल की जनता के बीच कोई पहचान नहीं थी। अन्ना आंदोलन ने केजरीवाल को केजरीवाल बना दिया और वह देखते-देखते दिल्ली के मुख्यमंत्री बन गए।

परंतु आप पूछेंगे कि अन्ना आंदोलन का संघ से क्या लेना-देना था? याद रखिये इस देश में जब-जब ‘भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन’ हुआ है, उसमें संघ की सबसे प्रमुख भूमिका रही है। यह भी सत्य है कि हर भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन केवल कांग्रेस सरकार के विरूद्ध ही होता है। इसी प्रकार हर ऐसे आंदोलन से बीजेपी को राजनीतिक लाभ होता है। हर भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का वास्तविक लक्ष्य भ्रष्टाचार समाप्त करना नहीं होता, अपितु कांग्रेस सरकार को बदनाम कर चुनाव में उसको हराकर एक नए विपक्ष की सरकार बनाना होता है। और हर ऐसी विपक्षी सरकार का अंततः लाभ बीजेपी को ही होता है। आप कहेंगे कैसे! तो आइए पिछले तीन सबसे बड़े भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलनों और उनके राजनीतिक परिणामों पर एक निगाह डालें।

सबसे पहला भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन साल 1974 में गुजरात में वहां की तत्कालीन चिमनभाई पटेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के खिलाफ आरंभ हुआ था। यह वह समय था जब बांग्लादेश बनवाकर इंदिरा गांधी अपनी लोकप्रियता की चरम सीमा पर थीं। परंतु उस समय उनका झुकाव बहुत ज्यादा वामपंथ की ओर था। साथ ही बांग्लादेश के निर्माण के पश्चात उन्होंने असम, बिहार और राजस्थान में तीन मुस्लिम मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिए थे। संघ की भाषा में वह वोटबैंक की राजनीति कर रही थीं जो संघ के लिए पाप है। फिर देश में वामपंथी विचार बढ़ने से स्वयं संघ को वैचारिक चोट पहुंच रही थी।


ऐसे माहौल में यकायक गुजरात में कांग्रेसी मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल के विरूद्ध छात्रों का ‘चिमन चोर’ आंदोलन प्रारंभ हुआ। देखते-देखते वही छात्र आंदोलन बिहार में कांग्रेसी मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर के खिलाफ फैल गया। जल्द ही इस आंदोलन के निर्णायक जय प्रकाश नारायण बन गए। जेपी आंदोलन को संघ ने पूरी संगठनात्मक सहायता दी। फिर इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगा दी। नतीजा यह हुआ कि इस भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के बाद सन 1977 में जो चुनाव हुए उसमें कांग्रेस पार्टी पहली बार केंद्र की सत्ता से बाहर कर दी गई और बीजेपी का पुराना अवतार जनसंघ जनता पार्टी के साथ मिलकर पहली बार केंद्र की सत्ता तक पहुंच गया। इस प्रकार 1970 के दशक में पहले भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के कारण जब कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई और जनता पार्टी सत्ता में आ गई तो सब भ्रष्टाचार को भूल ही नहीं गए, बल्कि देश में भ्रष्टाचार और बढ़ गया।

इसी प्रकार दूसरा भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन 1980 के दशक में वीपी सिंह के नेतृत्व में राजीव गांधी सरकार के खिलाफ बोफोर्स तोप खरीद के मामले पर हुआ। यह आंदोलन सन 1986 में उस समय फूट पड़ा, जब राजीव गांधी की सरकार ने तीन तलाक मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटकर मुस्लिम महिला कानून पारित करवाया था। निःसंदेह यह बात संघ के एजेंडे के खिलाफ थी। बस सारे भारत में बोफोर्स का शोर मच गया। वीपी सिंह जनता के हीरो बन गए। इस पूरे आंदोलन को भी संघ और बीजेपी का संपूर्ण सहयोग ही नहीं मिला बल्कि वीपी सिंह की जनता दल और बीजेपी ने मिलकर 1989 का चुनाव लड़ा और कांग्रेस सरकार को सत्ता से बाहर कर दिया।

इस प्रकार भ्रष्टाचार के नाम पर एक और कांग्रेस सरकार को सत्ता से बाहर कर दिया गया। दूसरी ओर सन 1984 के लोकसभा चुनाव में केवल दो सीटों पर सिमटी बीजेपी वीपी सिंह की लहर से 1989 में 89 सीटों पर पहुंच गई। साथ ही भ्रष्टाचार देश में हजारों करोड़ पर पहुंच गया। वीपी सिंह सरकार जल्द ही सत्ता से बाहर हो गई परंतु बीजेपी राम मंदिर की आड़ में देश की मुख्यधारा की पार्टी बन गई। तो यह था दूसरे भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का परिणाम।

तीसरा भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन साल 2012 में लोकपाल को नियुक्ति करने के नाम पर प्रारंभ हुआ। उस समय मनमोहन सिंह की सरकार थी। इस आंदोलन को भी संघ और विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठनों का संपूर्ण सहयोग था। इस आंदोलन के जो परिणाम हुए उससे सब अवगत हैं। अन्ना आंदोलन के तुरंत पश्चात 2014 में जो चुनाव हुए उससे कांग्रेस सत्ता से ही बाहर नहीं हुई, बल्कि नरेंद्र मोदी ने पूर्ण बहुमत के साथ बीजेपी की केंद्र में सरकार भी बनाई। देश में हिंदुत्व का डंका बज उठा। अब खुले तौर पर देश हिंदू राष्ट्र की ओर चल निकला।


स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का राजनीतिक लक्ष्य कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर संघ और बीजेपी को आगे करना होता है। अरविंद केजरीवाल ऐसे ही अन्नाआंदोलन की कोख से जन्मे और अब एक निपुण नेता हैं, जिनकी वैचारिक सहानुभूति संघ और बीजेपी के साथ होना कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है। वह बात जो बहुत सारे राजनीतिक सूझबूझ के लोग केजरीवाल के बारे में उस समय कह रहे थे वह अब खुलकर सामने आ गई है। अर्थात् अरविंद केजरीवाल आरंभ से ही संघ के एक प्यादे थे जो अब दिल्ली की राजनीतिक बिसात पर बादशाह बन गए हैं। तो फिर अब स्वयं केजरीवाल खुलकर यह क्यों न कहें कि हम भी संघी हैं!

जी हां, अरविंद केजरीवाल अब दिल्ली में केवल मोदी जी के सहयोग से केवल दिल्ली सरकार ही नहीं चलाएंगे बल्कि वह तो अब दिल्ली में संघ का एजेंडा भी चलाएंगे। उनकी पार्टी के विधायक अब अपने इलाके में मंगलवार को हनुमान चालीसा का पाठ करवाएंगे। आगे-आगे देखिए होता है क्या! खैर, भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की कोख से जन्मे अरविंद केजरीवाल को अंततः जहां जाना था वह वहां पहुंच गए हैं। आखिर पहुंची वहीं पे खाक जहां का खमीर था!

परंतु अरविंद केजरीवाल की इस वैचारिक कायापलट के पश्चात देश के सेकुलर और लिबरल वोटर को भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलनों से सतर्क रहना चाहिए। क्योंकि हर ऐसे आंदोलन का लक्ष्य भ्रष्टाचार हटाना नहीं बल्कि दक्षिणपंथी राजनीति को हवा देना होता है जो काम अब केजरीवाल खुलकर दिल्ली में करेंगे।

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Published: 20 Feb 2020, 9:16 PM
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