खरी-खरी: देश पर चढ़ता हिंदुत्व का रंग और यूपी में सामाजिक संतुलन के नाम पर योगी-मोदी संतुलन

अब यह स्पष्ट हो गया कि देश के अधिकतर भागों में चुनाव अल्पसंख्यक घृणा के मुद्दों पर हो रहे हैं। हैरत यह है कि आखिर महंगाई, बेरोजगारी, आर्थिक संकट जैसी घोर समस्याओं को भूलकर लोग हिन्दुत्व की अल्पसंख्यक विरोधी राजनीति पर ही क्यों वोट डाल रहे हैं।

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ज़फ़र आग़ा

हम और आप यह मानें अथवा नहीं, परंतु यह एक कटु सामाजिक एवं राजनीतिक सत्य है कि भारत 2014 से अब तक बहुत कुछ बदल गया है। हमारे राष्ट्र निर्माताओं और संविधान के रचनाकारों ने जिस आधुनिक भारत का सपना देखा था, उससे कहीं परे एक ‘न्यू इंडिया’ अंगड़ाई ले रहा है। यह वह भारत है जो स्वयं सदियों पुरानी परंपराओं और सामाजिक तथा धार्मिक रीति-रिवाजों से परे है। भारतीय सभ्यता सदैव एक समावेशी सभ्यता रही है। यहां सदियों से हर धर्म को सम्मान मिला है और हर धर्म को पनपने का अवसर भी मिला है। भारतीय सभ्यता सदा से एक उदार सभ्यता एवं अपने को समय के साथ मिलाकर चलने वाली सभ्यता रही है। आधुनिक भारत के निर्माताओं ने इन्हीं परंपराओं और मान्यताओं पर आधारित भारतीय संविधान की रचना की थी।

परंतु मोदी का भारत विनायक दामोदर सावरकर के हिन्दुत्व के सिद्धांतों पर आधारित है। इस भारत में हिन्दू धर्म के अतिरिक्त किसी भी धर्म के लिए किसी भी तरह के सम्मान की कोई जगह नहीं है। सावरकर विशेषतया भारत के बाहर जन्मे इस्लाम धर्म और ईसाई धर्म के विरोधी रहे हैं। तभी तो मोदी के ‘न्यू इंडिया’ में मुसलमानों और ईसाइयों पर भाजपा शासित राज्यों में विशेषतयाः एक प्रकार से आक्रमण की स्थिति बनी रहती है। परंतु चिंता की बात यह है कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ मोदीराज में जिस प्रकार की घृणा की परिस्थिति सामाजिक तौर पर उत्पन्न हुई है, उसको काफी हद तक मान्यता प्राप्त हुई है। अब यह स्पष्ट होता जा रहा है कि देश के अधिकतर भागों में राज्य और केन्द्र- दोनों के ही चुनाव अल्पसंख्यक घृणा के मुद्दों पर हो रहे हैं। लोगों को हैरत होती है कि कोविड महामारी, नोटबंदी, लॉकडाउन के बाद आर्थिक संकट-जैसे जन-जीवन की रोजमर्रा की घोर समस्याओं को भूलकर जनता हिन्दुत्व की अल्पसंख्यक विरोधी राजनीति पर ही वोट डालती है। यदि यह कहा जाए कि आज हिन्दुत्व चुनाव जिताने का पासपोर्ट बनता जा रहा है तो यह कहना निश्चय ही गलत नहीं होगा। और यही कारण है कि राज्य के स्तर पर योगी आदित्यनाथ और हिमंत विश्व शर्मा-जैसे भाजपा नेता भी अपने को हिन्दुत्व मॉडल पर ही ढाल रहे हैं। और-तो-और आम आदमी पार्टी जैसी विपक्षी पार्टियां भी अब खुलकर ‘सॉफ्ट हिन्दुत्व’ के मॉडल को अपना रही हैं।

यह चिंताजनक स्थिति है क्योंकि इससे देश का संविधान और देश की ऐतिहासिक मान्यताएं एवं परंपराएं ही खतरे में नहीं हैं बल्कि देश की एकता और अखंडता को भी खतरा है।

यूपी कैबिनेट विस्तार: सामाजिक नहीं ‘मोदी संतुलन’ है यह

उत्तर प्रदेश में चुनाव सिर पर हैं और इधर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मंत्रिमंडल का विस्तार किया है। चुनाव से कोई चार माह पहले मंत्रिमंडल में विस्तार का कोई औचित्य तो नहीं है। परंतु स्वयं उनके अपने बयान के अनुसार, वह ऐसा सामाजिक संतुलन सुधारने के लिए कर रहे हैं। अर्थात, लगभग चार वर्षों से भी अधिक समय तक प्रदेश की सत्ता में सामाजिक संतुलन नहीं था। कौन है कि जो यह नहीं जानता कि उत्तर प्रदेश में पिछले साढ़े चार वर्ष में केवल एक व्यक्ति का राज था। वहां योगीजी न केवल सर्वेसर्वा थे बल्कि उनका हर शब्द अंतिम शब्द होता था। प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य तक को मुख्यमंत्री तव्वजो भी नहीं देते थे। वह तो जब चुनाव सिर पर आ गए तो योगीजी को आभास हुआ कि मौर्य पिछड़ी जाति के हैं और पिछड़े वर्गों का वोट बैंक सबसे बड़ा वोट बैंक है। अतः योगीजी अभी कुछ सप्ताह पहले मौर्य के घर गए और उनके साथ भोज भी किया। प्रदेश मीडिया डिपार्टमेंट ने इस भोज की बड़ी चर्चा भी की। लब्बोलुआब यह है कि मुख्यमंत्री को अब सामाजिक संतुलन की चिंता है और वह अब इसको ठीक करने का प्रयास कर रहे हैं। तब ही तो अभी मंत्रिमंडल के विस्तार में जितिन प्रसाद को कैबिनेट रैंक देकर प्रदेश के ब्राह्मणों को लुभाने की कोशिश की जा रही है। सब को भलीभांति मालूम है कि उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण योगीजी से बहुत खुश नहीं हैं। अब चुनाव से चार-पांच माह पूर्व एक जितिन प्रसाद के मंत्रिमंडल में आ जाने से ब्राह्मण सरकार से कितना खुश हो जाएंगे, भगवान ही जानें।

सत्य तो यह है कि अभी जो मंत्रिमंडल में विस्तार हुआ है, वह केन्द्र, अर्थात मोदी के दबाव के कारण ही हुआ है। मोदी जितिन प्रसाद और कुछ अन्य नेताओं को काफी लंबे समय से प्रदेश मंत्रिमंडल में शामिल कराना चाहते थे। परंतु अब यह बात भी आम है कि उत्तर प्रदेश में योगीजी मोदीजी को भी तव्वजो नहीं दे रहे थे। परंतु इस मंत्रिमंडल विस्तार से यह स्पष्ट है कि ऊंट पहाड़ के नीचे आ ही गया। योगीजी को अब शायद यह अहसास होने लगा है कि मोदीजी के बिना चुनाव निकलने वाला नहीं है। तब ही तो जितिन प्रसाद-जैसे मोदी के सहयोगियों को सत्ता में शामिल किया जा रहा है, अर्थात योगीजी सामाजिक संतुलन नहीं बल्कि मोदीजी के साथ संतुलन ठीक करने में लगे हैं।

यूं भी वह भली-भांति जानते हैं कि उत्तर प्रदेश में हालात इतने बिगड़े हुए हैं कि अब सामाजिक संतुलन ठीक करने से चुनाव ठीक होने वाला नहीं है। शासन की जो कुछ इज्जत बची थी, वह कोविड महामारी कीदूसरी लहर ने समाप्त कर दी। गंगा में लाशों का बहना और चिताओं के जलने की खबर घर-घर में है। फिर पश्चिमी उत्तर प्रदेश को किसान आंदोलन ने हिला दिया है। इन परिस्थितियों में भाजपा के लिए केवल हिन्दुत्व का आसरा है। और मोदीजी से बड़ा कोई हिन्दुत्व की राजनीति का खिलाड़ी नहीं है। अतः योगीजी को अब मोदीजी की आवश्यकता नजर आ रही है।


तालिबान का अनोखा इस्लाम

आप कहेंगे कि मैं पिछले तीन सप्ताह से लगातार अफगानिस्तान पर कुछ-न-कुछ लिखता रहता हूं, तो बात तो गलत नहीं होगी। परंतु अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद हर रोज कुछ-न- कुछ ऐसा होता रहता है जो संसार को आश्चर्यचकित कर देता है। बात तो यह है कि तालिबान फिर वही कर रहे हैं जो पहले कर चुके हैं। परंतु अबकी बार संसार के सामने एक उदारवादी अफगानिस्तान की छवि पेश करने की कोशिश है। जैसे, पिछली तालिबानी सरकार ने लड़कियों के लिए स्कूल और यूनिवर्सिटियां बिल्कुल बंद कर दी थीं, लेकिन इस बार महिलाओं को शिक्षा का अधिकार तो है और वे स्कूल, कॉलेज तथा यूनिवर्सिटी, कहीं भी दाखिला ले सकती हैं, परंतु ये सारे शैक्षिक संस्थान महिलाओं के लिए जेलखाने से कम नहीं होंगे। जरा, काबुल यूनिवर्सिटी की कल्पना कीजिए जहां क्लास रूम में लड़के और लड़कियों को अलग करने के लिए बीच में दीवार उठी होगी। फिर भी टीचर अथवा लड़के लड़कियों को देख न सकें इसलिए लड़कियों की ओर जाली बनी होगी। इतनी पाबंदी तो जेलखानों में भी नहीं होती है।

यह पागलपन नहीं तो और क्या है! परंतु यह पागलपन क्यों? केवल इसलिए कि तालिबान को आधुनिकता से बैर है। वह इसलिए कि यदि जनता आधुनिकता के संपर्क आ गई तो उस पर पश्चिमी सभ्यता की छाप पड़ जाएगी। यदि ऐसा हुआ तो सामाजिक परिवर्तन संभव है। सामाजिक परिवर्तन से इतना डर है कि क्लास रूम को जेलखाना बनाया जा रहा है। और यह सब उस इस्लाम के नाम पर जिसके पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब की पत्नी हजरत खदीजा स्वयं मक्का की सबसे बड़ी ताजिरों में से एक थीं। कहते हैं कि उन्होंने इस्लाम के प्रचार के लिए अपनी दौलत लुटा दी थी। पर तालिबान का इस्लाम अनोखा इस्लाम है जो औरत का स्थान घर या बाहर किसी कैदखाने से अधिक नहीं समझता।

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