जानें उन 10 फिल्मों के बारे में जिनकी रीमेक बहुत ही खराब थीं, कुछ नाम तो चौंकाने वाले हैं!

‘कुली नंबर 1’ फिल्म सिनेमा के उस एकमात्र सुनहरे नियम को बार-बार दोहराती है कि कभी भी किसी फिल्म का खराब रीमेक नहीं बनाना चाहिए। तो फिर चलो, बताओ कि अभी तक की सबसे खराब रीमेक कौन-कौन सी हैं?

फोटो: फिल्म पोस्टर
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सुभाष के झा

‘कुली नंबर 1’ फिल्म सिनेमा के उस एकमात्र सुनहरे नियम को बार-बार दोहराती है कि कभी भी किसी फिल्म का खराब रीमेक नहीं बनाना चाहिए। तो फिर चलो, बताओ कि अभी तक की सबसे खराब रीमेक कौन-कौन सी हैं? क्या वह रामगोपाल वर्मा की आग है या साजिद खान की ‘हिम्मतवाला’ या फिर सतीश कौशिक की ‘कर्ज’? गड़बड़ झाले से भरी हुई फिल्म ‘नौटंकी साला’ एक फ्रांसिसी फिल्म की रीमेक है। उसके बारे में आपका क्या ख्याल है? बॉलीवुड को बहुत अच्छी-अच्छी चीजों (प्यारा माल) को खराब करने में बहुत आनंद मिलता है। हम यहां बॉलीवुड की अभी तक की सबसे खराब दस रीमेक फिल्मों पर एक नजर डालेंगे।

राम गोपाल वर्मा की आग

क्या इससे ज्यादा कहने की जरूरत है? कभी न थकने वाले रामगोपाल वर्मा ने स्वयं कहा था कि ‘शोले’ का रीमेक बनाना एक गलती थी। लेकिन यह उन्होंने तब कहा जब आलोचक उनके ऊपर ऐसे टूट पड़े जैसे ईटों से भरा एक ट्रक। इससे पहले तो उन्होंने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ कहा था, “लोग जानते नहीं हैं कि मैं क्या बना रहा हूं, इसीलिए वे पुरानी यादों में आतुर होकर प्रतिक्रिया कर रहे हैं। जया जी और धरमजी से लेकर मेरे शुभचिंतकों तक ने मुझे ‘शोले’ से दूर रहने की हिदायत दी थी। धरमजी ने तो यहां तक कहा था कि वह इस बार उस पानी की टंकी से कूद ही जाएंगे अगर मैंने ‘शोले’ के साथ कुछ गड़बड़ की तो। वह क्यों कूदेंगे? बल्कि उन्हें मुझे उस टंकी से धक्का दे देना चाहिए अगर मैंने ‘शोले’ के साथ गड़बड़ की तो। मैंने बहुत बड़े पैमाने तैयारियां की हैं। मेरी ‘शोले’ में पुरानी ‘शोले’ जैसा कुछ नहीं होगा। उदाहरण के लिए, मेरी ‘शोले’ में कोई बसंती नहीं है। अगर आप तांगे को और घाघरा-चोली को बसंती से अलग कर दें तो वह वैसी ही लगेंगी जैसे कि कथानक में कोई भी लड़की लगेगी। गब्बर के गैंग के बहुत सारे किरदारों में कुछ अतिरिक्त ब्यौरा भी जोड़ा गया है। सांभा की बात अलग है। इसी तरह से जो ठाकुर को मिलने पहला पुलिसवाला आता है, वह मेरी फिल्म में बहुत ज्यादा अहमियत रखता है।

मेरी फिल्म में पुलिस की उपस्थिति बहुत अधिक है क्योंकि मेरी फिल्म शहर में है। जाहिर है, गब्बर तो एक खौफ ही होगा। इसलिए मिस्टर बच्चन का गेट-अप बहुत विस्तृत होगा। यह कहानी अपने आप में असल से भी बड़ीहै। हर एक का कद असल से बहुत बड़ाही होगा। आप उसकी क्रूरता को महसूसकर पाएंगे।...लोग कहते हैं किमैं ‘शोले’ दोबारा बनाने की क्षमता नहीं रखता। मेरे पासउनके लिए एक आश्वासन है। चूंकि आलोचकों ने अपनी सारी ऊर्जा और बारूद ‘शिवा’ पर खर्चकर दिया है तो ‘शोले’ को लेकर कुछकहने के लिए उनके पास कुछ भी नहीं बचा होगा। मैं सोचता हूं कि वे सब पैसे जमा करके एक गैंगस्टर को भाड़े पर लेंगे, ताकि मुझसे पीछा छुड़ा सकें। अगर अल्लाह, ईसा मसीह और वैष्णो देवी आकर एक साथ मुझ से गुजारिश करें कि मैं ‘शोले’ न बनाऊं तो मैं तब भी ‘शोले’ बनाऊंगा। आगे जो होगा देखा जाएगा।” तो रामू, हम सब जानते हैं कि फिर क्या हुआ। इस कहानी की शिक्षा यह है कि कभी भी क्लासिक के साथ छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए।


मेला

नासिर हुसैन की खूबसूरत फिल्म ‘कारवां’ का रीमेक थी धर्मेश दर्शन की निर्मम और अजीब सी फिल्म ‘मेला’ जिसमें ‘शोले’ के थोड़े बहुत बिखरे-बिखरे नजारे भी थे जहां आमिर खान और उनके असल जिंदगी के भाई फैजल ने ‘शोले’ के जय और वीरू का किरदार निभाया था। ट्विंकल खन्ना ने ‘कारवां’ की आशा पारेख का किरदार निभाया था। यह जो खिचड़ी थी, वह पचने वाली नहीं थी। ट्विंकल के पास धर्मेश की पागलपंथी के निर्देशन को लेकर ऑफ-रिकॉर्ड बताने के लिए बहुत कुछ मजेदार बातें हैं, जैसे– वह जोर-जोर से चीखते थे और कहते थे, “टीना और इमोशन डालो।” बेचारी ट्विंकल कभी पर्याप्त “इमोशन” डाल ही नहीं पाई। धर्मेश को ट्विंकल की लाइन डब करवाने के लिए बहुत ही भावुक (इमोशनल) आवाज ढूंढकर लानी पड़ी।

मैं प्रेम की दीवानी हूं

सूरज बड़जात्या की यह फिल्म बासु चटर्जी की फिल्म ‘चित्तचोर’ का रीमेक थी। उन्होंने मूल फिल्म में से तीन रस्टिक (गंवई) किरदार उठाए और उन्हें एल्पस और नियगारा फॉल्स और जाने कहां-कहां लेकर चले गए। ऋतिक और करीना ने प्यार में जोड़े जैसे दिखने की कोशिश में उसका कचमूर निकाल दिया। अभिषेक बच्चन पूरी फिल्म में एक गंभीर चेहरा बनाए रखने की कोशिश में लगे रहे। बासु दा ने एक आह निकालते हुए कहा था, “उन्होंने मेरी फिल्म की क्या खिचड़ी बना कर रख दी है।” हम भी इससे इत्तेफाक रखते हैं।

मैं ऐसा ही हूं

हैरी बवेजा ने सीन पैन की फिल्म ‘आई एमसैम’ को लिया। यह फिल्म अपने में ही लीन एक आदमी की उसकी बेटी के साथ मजबूत और भावुक रिश्तों पर आधारित थी। जब हम इस गैर- अधिकृत भद्दे रीमेक को देख रहे थे तो शायद उस समय कैमरा भी कांप-कांप कर अपना गुस्सा प्रकट कर रहा होगा। अगर आपको ‘आई एमसैम’ का देसी रीमेक देखना ही है तो आप तमिल में बनी विक्रम की ‘नन्ना’ देखिए। इस फिल्म में विक्रम का काम सीन पैन के समकक्ष है। अजय देवगन को तो वास्तव में रीमेक के आसपास नहीं जाना चाहिए- रामू की शोले, साजिद की हिम्मतवाला और हैरी की आटिस्टिक आई एम खान... माफ करना आई एम सैम, देवगन की शर्मिंदगी की तिकड़ी को पूरा करती हैं।

कर्ज

हिमेश रेशमिया ने वह करने की जुर्रत की जिसे रणबीर ने कहा कि मैं नहीं करूंगा और वह था ऋषि कपूर की ‘कर्ज’ का रीमेक बनाना। इस रीमेक में उर्मिला मातोंडकर ने सिमी ग्रेवाल-जैसा ही किरदार निभाया। यह किरदार एक चालाक हत्यारिन का है। इस बर्बाद रीमेक का निर्देशन करने वाले सतीश कौशिक का कहना है कि “इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितना रीमेक बनाते हो क्योंकि तुम कभी भी उसकी तुलना ऑरिजनल से नहीं कर पाओगे।” हम इससे सहमत हैं। लेकिन ‘कर्ज’ का रीमेक मूल फिल्म का अपमान ही था।


दयावान

कमल हासन अभी भी आग बबूला हो जाते हैं जब उन्हें उनकी सदाबहार क्लासिक फिल्म ‘नायकन’ के रीमेक की याद दिलाई जाती है। इस रीमेक (‘दयावान’ फिल्म) में फिरोज खान ने विनोद खन्ना को एक वास्तविक गैंगस्टर वरदराजन मुदलियार के किरदार के लिए कास्ट किया था। महान कलाकार कमल हासन के समकक्ष पहुंचने की बात तो छोड़ ही दीजिए, विनोद खन्ना ने तो वैसा कुछ कर पाने की कोशिश की हो, वह भी नहीं दिखता। ऐसा सुनने में आया था कि मणि रत्नम ‘नायकन’ के इस रीमेक (‘दयावान’) से इतने नाराज हो गए थे कि उन्होंने लगभग मुकदमा करने का मन तक बना लिया था।

हिम्मतवाला

हो ताकी हो ताकी हो ताकी ताकी रे... श्रीदेवी की बात में दम तो था जब उन्होंने कहा था कि कोई ‘हिम्मतवाला’ की रीमेक क्यों बनाएगा, वह कोई ‘मुगले आजम’ थोड़े ही है। मुझे विश्वास है किस भी ने उनकी इस बात के मर्म को महसूस किया होगा जब उन्होंने ‘हिम्मतवाला’ की रीमेक देखी होगी। एक पहले से ही बेकार फिल्म की इतनी खराब रीमेक बनाने की क्या जरूरत है!

विक्टोरिया 203

अनंत महादेवन हमारे उन कुछ निर्देशकों में से हैं जिन्हें बहुत ही कम आंका गया है। ‘स्टेइंग अलाइव’ और ‘सिंधु ताई सपकल’ जैसी उत्कृष्ट फिल्में बनाने वाले इस संवेदनशील निर्देशक को सफलता की चाहत के लिए डायमंड की चोरी पर आधारित 1970 के दशक की फिल्म का रीमेक बनाने के लिए प्रेरित किया। लेकिन अनुपम खेर और ओम पुरी इस रीमेक में अशोक कुमार और प्राण के अभिनय को टक्कर नहीं दे सके।

आपको पहले भी कहीं देखा है

जै रॉश की ‘मीट द पेरेंटस’ का रीमेक अनुभव सिन्हा ने बहुत ही बुरा बनाया। हम सभी गलत जगहों पर हंस रहे थे। थोड़ी-सी तसल्ली इस बात की होती है कि यह फिल्म उनके ही द्वारा कई वर्षों बाद बनाई गई ‘रा-वन’ से थोड़ी बेहतर थी।

आतंक ही आतंक

फिरोज खान, मणि रत्नम से लेकर रामगोपाल वर्मा तक सभी ने फ्रांसिस कोपोला की ‘द गॉडफादर’ पर फिल्में बनाने की कोशिश की है। लेकिन सबसे बढ़िया कोशिश निर्देशक दिलीप शंकर की रही। यहां ब्रान्डो बने आमिर खान को जो विग पहनाई गई थी, उसकी फिटिंग बहुत खराब थी। इससे हमें एक इशारा तो मिला कि भगवान (पढ़ें: एके) भी गलती करते हैं। यह फिल्म बहुत बड़ी गलती थी।

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