लॉकडाउन-2ः झूठ से लबालब भाषण से लोगों को अवाक कर गए मोदी, गरीब के भूखे पेट और सांप्रदायिक जहर पर शब्द नहीं मिले

लॉकडाउन-2 की घोषणा के लिए पीएम मोदी द्वारा दिए गए भाषण में यह दावा कि उनकी सरकार ने भारत के सभी एयरपोर्टों पर स्क्रीनिंग तभी शुरू कर दी थी जब भारत में इस वायरस का एक भी मामला सामने नहीं आया था, कतई सच नहीं है, बल्कि झूठ की सारी हदों को पार करने वाला है।

फोटोः सोशल मीडिया
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उमाकांत लखेड़ा

क्या पीएम मोदी के इस दावे में जरा भी सच्चाई है कि जब देश में कोई कोरोना मरीज नहीं था तब से ही हमने अपने हवाई अड्डों पर स्क्रीनिंग शुरू कर दी थी? ये बातें मोदीजी की सरकार के रिकॉर्ड का हिस्सा हैं कि भारत में वास्तव में 17 जनवरी से केवल चीन से भारत आने वालों की ही स्क्रीनिंग शुरू की गई थी। मार्च आते-आते इस महामारी का संक्रमण 13 बाकी देशों में फैल चुका था। यह सच सरकारी रिकॉर्ड में है कि बाकी देशों से आने वाली सभी उड़ानों के यात्रियों की स्क्रीनिंग का पहली बार फैसला 9 मार्च 2020 को घोषित हुआ।

यानी बाहर से आने वालों की स्क्रीनिंग का फैसला लेने में मोदी सरकार ने 50 से ज्यादा दिन खराब किए। मोदी जी के भाषण में यह दावा कि हमने भारत के सभी एयरपोर्टों पर स्क्रीनिंग तभी शुरू कर दी थी जब भारत में इस वायरस का एक भी मामला सामने नहीं आया था कतई सच नहीं है, बल्कि झूठ की सारी हदों को भी पार करने वाला है।

बता दें कि भारत सरकार द्वारा 17 जनवरी 2020 को केवल और केवल चीन और हांगकांग से आने वाले यात्रियों की ही स्क्रीनिंग का फैसला लिया गया। बाकी देशों पर यह नियम 9 मार्च के बाद लागू हुआ। भारत सरकार इतने दिन बाद भी तब जगी जब देश में कोरोना से पहली मौत हो गई और भारत में कुल कोरोना संक्रमित लोगों की तादाद 39 तक पहुंच गई थी। उसके बाद ही सारे एयरपोर्ट पर सभी उड़ानों से आने वाले हर यात्री की विधिवत स्क्रीनिंग की शुरुआत हुई।

उससे काफी पहले 31 जनवरी को विश्व स्वास्थ्य संगठन कोविड-19 को वैश्विक महामारी घोषित कर चुका था। कांग्रेस नेता राहुल गांधी 12 फरवरी को मोदी सरकार को इस महामारी से सतर्क रहने की चेतावनी दे चुके थे। लेकिन उसके बाद भी कई सप्ताह तक भारत में अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों के लिए हवाई अड्डे खोले रखे गए।

इस सवाल पर भी पीएम मोदी ने भ्रम में डाल दिया कि भारत में जब एक भी मामला सामने नहीं आया था तो हमने एयरपोर्टों पर स्क्रीनिंग शुरू कर दी थी, अगर यह सच है तो फिर कई विदेशी जमाती संक्रमित होकर निजामुद्दीन मरकज में किस रास्ते पहुंचे। उन्हें 17 जनवरी 2020 के बाद ही वीजा देना बंद क्यों नहीं किया गया?

अशांत और धार्मिक वैमन्यसता फैलाए जाने से बने दुषित माहौल में लोगों को उम्मीद थी कि देश भर में अफवाहें फैलाने वालों को मोदी सख्त संदेश देंगे। गली-गली में अल्पसंख्यक गरीबों, फेरी लगाकर फल-सब्जी बेचले वालों से सौदा न खरीदने का हुक्मनामा जारी करने वाले रास्ते पर आएंगे। लेकिन हैरत है कि इस तरह के कुटिल कामों में जुटे, देश के महानगरों से लेकर छोटे शहरों तक सांप्रदायिकता का जहर फैलाने वाले स्वयंभू भक्तों और बीजेपी-आरएसएस समर्थकों पर पीएम मोदी ने एक शब्द नहीं कहा।

समाज के एक बड़े तबके को इस बात से बेहद निराशा है कि मोदी जी ने देश के नाम जो 7 अपीलें अपने भाषण के अंत में जारी की हैं, उनके साथ बतौर 8वीं अपील, देश की सारी राज्य सरकारों, पुलिस और जिला प्रशासन को आवश्यक दिशानिर्देश देने में कन्नी क्यों काट गए। मुस्लिम समुदाय के इन बेहद गरीब लोगों की, जो इतनी गर्मी में शहरों की गली-गली और गांवों में भटककर अपने परिवार की भूख मिटाने, दो जून की रोटी का जुगाड़ करने घर से निकलें हैं, सुरक्षा की गांरटी पीएएम मोदी के राष्ट्रीय संबोधन में स्थान क्यों नहीं पा सकी।

दूसरा मुद्दा जो इस पूरे लॉकडाउन के दौरान गोदी टीवी, डिजीटल और ज्यादातर हिंदी मीडिया में खूब प्रचारित हुआ, वह था दिल्ली में तब्लीगी जमात के लोगों द्वारा कथित तौर पर देश के कई हिस्सों में घूमने और बड़ी तादाद में लोगों को संक्रमित करने वाली खबरों का रहा है। कई दर्जन मामले ऐसे सामने आ चुके हैं, जिनमें इस दुष्प्रचार का खंडन हो चुका है। झारखंड में भी एक ऐसी ही जमातीयों द्वारा लोगों पर थूकने की घटना का गोदी मीडिया ने जमकर दुष्प्रचार करके आग को हवा दी। लेकिन प्रदेश के डीजीपी एमवी राव ने थूकने की घटना को फेक न्यूज बताया। उनका कहना था कि उन्हीं से जांच शुरू करेंगे, जिन पर थूका गया, लेकिन कोई सामने क्यों नहीं आ रहा।

बता दें कि मुस्लिम समुदाय से जुड़ी लगभग 99 प्रतिशत खबरों की जांच पर उन्हें फेक और फर्जी पाया गया। मोदी के अपने राज्य गुजरात और बीजेपी शासित कई प्रदेशों में इस तरह की झूठी घटनाओं की आड़ में बीजेपी समर्थकों और कुछ मामलों में पुलिसकर्मियों की भी घिनौनी करतूतें सामने आ चुकी हैं। कई सामाजिक कार्यकर्ता मानते हैं कि शिकायतों के बाद खानापूरी के लिए कार्रवाई कुछ ही लोगों के खिलाफ हुई। ज्यादातर दोषी तत्व अभी भी खुलेआम इस राष्ट्रीय विपदा की घड़ी में पीएम मोदी को भगवान बनाने की वृहद योजना में मशगूल हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने भाषण की शुरुआत ही अपने प्रकट अंतर्विरोधों से कर डाली। उन्होंने शुरू में ही अपनी पीठ इस बात के लिए थपाथपाने में जरा भी हिचक नहीं दिखाई कि दुनिया में जैसे ही कोरोना का पता लगा तो हमने पूरे इंतजाम कर दिए। जबकि सच्चाई यह है कि देश में 21 दिन का लॉकडाउन तो 3 घंटे के नोटिस पर ही किया गया। देश में अधिकतम कोरोना टेस्ट कैसे मुमकिन हों, इतने अहम मामले पर लाठियां बहुत बाद में भांजी गईं। इस बात के सत्य और तथ्यपरक आंकड़ों पर कई दिनों तक मात्र लाठियां ही भांजी जाती रहीं कि देश में टेस्ट किटों के अभाव में महामारी की जद में आए लोगों को कैसे बचाया जाए।

गौरतलब है कि दुनिया के कई ऐसे देश हैं जो भारत से बहुत ही छोटे हैं। थाईलैंड जैसे देश ने अपने देश के हर नागरिक को छह माह तक हर महीने 5000 रु और मलेशिया ने 8000 रु महीना और फ्री बिजली देने का ऐलान किया है। देश के पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने मोदी जी से अपील की थी कि आम लोगों के हाथों में किसी भी तरह नकद पैसा भिजवाने की व्यवस्था करें। इस तरह के कई सुझाव जाने-माने अर्थशात्रियों ने भी दिए। कई लोग सोशल मीडिया और स्वतंत्र माध्यमों से आवाज उठा रहे हैं कि बिना आर्थिक पैकेज के कोरे भाषण से लोगों के पेट में अन्न का दाना तो नहीं जाने वाला।

कई लोगों की ये बातें अब कड़वी सच्चाई के तौर पर सामने आ रही हैं कि भारत में इस महामारी से ज्यादा इससे निपटने की कुव्यवस्था से निपटना बड़ी चुनौती है। जैसे कि अगर लॉकडाउन के पहले लोगों को अपने ठिकाने छोड़ने और अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए 2-4 दिन का भी वक्त दिया जाता तो दर्जनों बेकसूर लोगों की जानें इसी से बच सकती थीं।

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