हमास-इज़रायल संघर्ष: बारीकयों की तलाश और तटस्थता के दावों के बीच क्या वाजिब ठहराया जा सकता है नरसंहार !

गाजा में हो रहे संघर्ष में बारीकियां तलाश करना या उसमें तटस्थता की चादर ओढ़ लेना सरासर इस्लामोफोबिया है।

इजरायली सेना के हाथों मारे गए फिलिस्तीनियों के जनाजे की नमाज अदा करते स्थानीय लोग (फोटो - Getty Images)
इजरायली सेना के हाथों मारे गए फिलिस्तीनियों के जनाजे की नमाज अदा करते स्थानीय लोग (फोटो - Getty Images)
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अवय शुक्ला

गाजा में इजरायल और अमेरिका का ‘युद्ध अपराध’ बेकसूर फिलस्तीनियों को लीलता जा रहा है और पूरी दुनिया ने या तो चुप्पी साध रखी है या अमेरिकी विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकन की तर्ज पर बकवास कर रही है, जिससे नेतन्याहू को गाजा पट्टी को खाली कराने का और वक्त मिल जाए। मानवीय आधार पर युद्धविराम के लिए जॉर्डन द्वारा लाया गया गैर-बाध्यकारी संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव महासभा द्वारा पारित कर दिया गया है, लेकिन हमारे लिए शर्म की बात है कि भारत ने युद्धविराम के पक्ष में मतदान नहीं किया। एक भरोसेमंद अनुमान के मुताबिक, इजरायल पहले ही गाजा की 1 फीसदी आबादी को मार चुका है; प्रतिशत के लिहाज से भारतीय संदर्भ में लगभग 1.4 करोड़।

भारत की विदेश नीति पर नजर रखने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए हमारी नीतियों की विडंबना और विश्वासघात अब छिपा नहीं। ‘ग्लोबल साउथ’ के स्वयंभू नेता और ‘विश्वगुरु’ ने अपनी भ्रामक साख को चमकाने के लिए जी-20 सम्मेलन के आयोजन पर 4,000 करोड़ रुपये फूंक दिए, लेकिन अब वह ‘ग्लोबल नॉर्थ’ कैंप का पिछलग्गू बनकर रह गया है!

विडंबना यह है कि भारत बिना किसी नेतृत्व का ‘नेता’ है और विश्वासघात का काम उस विदेश मंत्री के हाथों अंजाम हुआ जिसने आईएफएस में अपना पूरा कॅरियर फिलिस्तीनी मुद्दे के समर्थन में बिताया, लेकिन अब इजरायल समर्थक खेमे में शामिल होने पर उसकी अंतरात्मा में कोई हलचल नहीं है।

या तो उन्होंने अपना मन बदल लिया है या लौकिक फायदे के लिए अपनी आत्मा बेच दी है। पिछले कुछ समय से दक्षिणपंथी विचारधारा के प्रति निष्ठा की उनकी स्पष्ट अभिव्यक्ति को देखते हुए मैं मान लेता हूं कि उन्होंने लौकिक फायदे के लिए ऐसा किया। यह एक इंसान के रूप में उनका नीचे गिरना है: उन्होंने अपने सिद्धांतों और मूल्यों से समझौता कर लिया है और अब वह एक संवेदनहीन, अवसरवादी, अनैतिक और लेन-देन वाली दुनिया में शामिल हो गए हैं। मुझे यह सोचकर हैरानी होती है कि उन्हें रात में नींद कैसे आती होगी?

भारत अब ‘नो मैन्स लैंड’ में सिमट गया है। हमने ग्लोबल साउथ का नेतृत्व करने के नैतिक अधिकार को छोड़ दिया है; और ग्लोबल नॉर्थ में हम महज एक नव-धनाढ्य बन गए हैं जो अमेरिका की नजर में अच्छा बना रहने की कोशिश कर रहे हैं। इस तरह हमने अपने सभी एजेंडे या इच्छाएं एक ही भू-राजनीतिक टोकरी में डाल दिए हैं। कभी-न-कभी हमारे लेखा-जोखा का वक्त भी आएगा लेकिन इससे फिलिस्तीनियों को इस नरसंहार से राहत नहीं मिलने वाली।


50 से ऊपर आईक्यू वाला कोई भी व्यक्ति (जो अंधभक्त न हो) यह नहीं मानेगा कि गाजा संघर्ष में हम ‘तटस्थ’ हैं। दुनिया की चौथी सबसे शक्तिशाली सेना जो परमाणु शक्ति संपन्न हो और एक कथित ‘राष्ट्र’ जिसमें लाखों विस्थापित लोग रह रहे हों, जिनकी कोई सरकार, अर्थव्यवस्था या सेना न हो और जहां 80 फीसदी लोग सिर्फ मदद पर जिंदा हों, के बीच विवाद के मामले में तटस्थ रहना कोई तटस्थता नहीं, बल्कि हमलावर के साथ खड़ा होना है। जैसा कि मार्टिन लूथर किंग ने कहा था: सही और गलत या अच्छे और बुरे के बीच कोई तटस्थता नहीं हो सकती। 

न केवल कट्टरपंथी हिन्दुत्ववादी बल्कि तमाम पढ़े-लिखे और समझदार लोग भी फिलीस्तीनियों के नरसंहार पर इजरायल के पक्ष में जा खड़े हुए हैं। उनका तर्क है: गाजा पर इजरायल का असंगत हमला कोई सीधे-सीधे सही-गलत के नजरिये से देखा जाने वाला मुद्दा नहीं बल्कि इसमें तमाम ‘बारीकियां’ हैं जिन्हें समझा जाना चाहिए। इजरायल एक ऐसे आतंकवादी संगठन से अपना बचाव कर रहा है जिसने बच्चों के सिर काट दिए और दादी-नानियों के साथ बलात्कार किया, जिसने इजरायल के खिलाफ रॉकेट दागे और 250 लोगों को बंधक बना लिया। गाजावासी हमास का पूरा समर्थन करते हैं और अब उन्हें इसकी कीमत चुकानी होगी।

सबसे अहम बात यह है कि यहूदियों का फिलिस्तीनियों की जमीन पर अधिकार है क्योंकि वही वहां के मूल निवासी थे। 20वीं सदी की शुरुआत में अरबों द्वारा 9,00,000 यहूदियों को फिलिस्तीन से बेदखल कर दिया गया था; कुछ समर्थक फिलिस्तीनी भूमि पर इजरायल के दावे को वाजिब ठहराने के लिए ओल्ड टेस्टामेंट और कनानी काल तक पीछे चले जाते हैं। इनमें से ज्यादातर भ्रामक और बकवास हैं और बहस को भटकाकर गाजा में किए जा रहे युद्ध अपराधों से दूर ले जाने का प्रयास भर हैं। 

आज वैश्विक आक्रोश इस बात को लेकर नहीं होना चाहिए कि जमीन पर ज्यादा सही दावा किसका है- यहूदियों का या फिलिस्तीनियों का। गुस्सा इस बात को लेकर होना चाहिए कि गाजा में हजारों बेकसूर लोगों, जिनमें बड़ी तादाद औरतों और बच्चों की है, की हत्या की जा रही है। इस मामले में न किसी भ्रम की गुंजाइश है, न बारीकियों की उलझनों में फंसने की क्योंकि यह 4,500 से ज्यादा बच्चों और 3,000 से ज्यादा महिलाओं की हत्या से जुड़ा विषय है; विस्फोट के बाद मलबे के नीचे दबे 2,000 लोगों का मामला है; अस्पतालों, स्कूलों, शरणार्थी शिविरों पर बमबारी का मामला है; गाजा के 8,00,000 लोगों को उनके घरों से जबरन बेदखल करने का मामला है; भुखमरी को युद्ध के औजार के तौर पर इस्तेमाल का मामला है; 17 साल की नाकाबंदी के कारण पहले से ही बुरी हालत में गुजर-बसर कर रहे लोगों तक भोजन, ईंधन और दवा पहुंचाने का मामला है। 

उस जमीन पर कानूनी अधिकार जताने के लिए जो कभी आपकी नहीं रही, हजारों बेकसूर लोगों की हत्या के पीछे किसी तरह की कोई बारीकी नहीं हो सकती। 


गाजा में जिस तरह का नरसंहार और जातीय सफाया चल रहा है, उसमें इजरायल को दोषी ठहराने में कोई बारीकियां नहीं हैं। भले ही हमास को एक आतंकवादी संगठन कहा जाता है लेकिन इससे इजरायल को आतंकवादी की तरह व्यवहार करने का अधिकार नहीं मिल जाता, जैसा कि वह 1947 से कर रहा है। एक संप्रभु, लोकतांत्रिक सरकार या देश को शांति और युद्ध- दोनों के दौरान अंतरराष्ट्रीय नियमों और अनुबंधों का पालन करना होता है। वास्तव में, इसे एक आतंकवादी संगठन की तुलना में उच्च मानक पर रखा जाना चाहिए। अगर वह खुद को एक आतंकवादी इकाई की तरह संचालित करता है, तो उसके अपराध को निर्धारित करने में बारीकियों की कोई भूमिका नहीं रह जाती है। 

अब स्वतंत्र सबूत सामने आ रहे हैं कि नेतन्याहू ने खुद फिलिस्तीनी प्राधिकरण के प्रति-संतुलन के रूप में गुप्त रूप से हमास का समर्थन और वित्त पोषण किया: हमास उन्हीं का खड़ा किया हुआ संगठन है। इससे भी ज्यादा खतरनाक बात यह है कि तमाम ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि 7 और 8 अक्टूबर को मारे गए ज्यादातर यहूदियों की आईडीएफ (इजरायल रक्षा बलों) की जवाबी कार्रवाई में जान गई थी जो हर कीमत पर दुश्मन का ‘सफाया’ करने के लिए अधिकृत हैं बेशक इसमें उसके ही नागरिकों की जान क्यों न चली जाए।

कुछ रिपोर्टों से पता चलता है कि ये लोग इजरायली टैंक के गोले और 5.7 एमएम की गोलियों से मारे गए जो हमास के पास थे ही नहीं। न ही हमास के पास उस जैसी घातक मिसाइलें हैं जिसने आधी रात को एक ही हमले में गाजा के अस्पताल में 500 लोगों को मार डाला था। शिशुओं के सिर काटे जाने की खबर को स्वतंत्र पत्रकारों ने खारिज कर दिया है। नेतन्याहू सत्ता में बने रहने के लिए हमास का इस्तेमाल एक बहाने के तौर पर कर रहे हैं और इसकी आड़ में वह बर्बरता भी दिखा रहे हैं। भारत में उनके दोस्त अपनी दिवालिया ‘तटस्थता’ के साथ ऐसा ही करते दिख रहे हैं।

इस संघर्ष में बारीकियों की तलाश करना या तटस्थता का दावा करना सरासर इस्लामोफोबिया और हमारी आंखों के सामने चल रहे नव-औपनिवेशिक खेल में शामिल होने की मिलीभगत है। 16वीं और 17वीं शताब्दी का पश्चिमी उपनिवेशवाद प्रतिशोध के साथ वापस आ गया है। इसके मसीहा व्हाइट हाउस का स्व-घोषित जायोनीवादी हैं जो बिना ठोकर खाए तीन सीढ़ियां नहीं चढ़ सकता। वह एक मनोरोगी है जिसके मनोचिकित्सक ने हाल ही में खुदकुशी कर ली और जिसका मानना था कि व्हाइट हाउस में बैठे उस शख्स का दिमाग ‘एक ब्लैक होल’ है जिसे भेदा नहीं जा सकता। सच ही कहा गया है: मनुष्य मनुष्य के लिए भेड़िया है।

(अभय शुक्ला सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी हैं। यह https://avayshukla.blogspot.com में छपे लेख का संपादित रूप है।)

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