राजनीति को अपराधमुक्त करने की मोदी की प्रतिज्ञा भी जुमला ही साबित हुई !

2014 लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान मोदी ने प्रतिज्ञा ली थी कि वे राजनीति को अपराधमुक्त कर देंगे। नए कानून बनाएंगे, विशेष अदालतें बनेगी। लेकिन यह वादा और प्रतिज्ञा भी जुमला ही साबित हुई। सुप्रीम कोर्ट बार-बार याद दिला रहा है इस विषय पर, लेकिन सरकार को कुछ सुनाई नहीं दे रहा।

फोटो : सोशल मीडिया
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राजेश रपरिया

यह कहने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिये कि वादों से मुंह चुराना मोदी और उनकी सरकार की फितरत बन चुकी है। वचन भंग करने में मोदी सिरमौर बन चुके हैं। चुनावी प्रचार के दौरान 2013-14 में मोदी ने भारतीय राजनीति को अपराध मुक्त बनाने की एकमात्र प्रतिज्ञा की थी। लेकिन अब प्रधानमंत्री मोदी इस प्रतिज्ञा को पूरा करने में नहीं, बल्कि उसे तोड़ने के लिए ज्यादा उद्धत दिखाई देते हैं, जो उनकी मंशा पर सवाल खड़े करती है। बीजेपी की हर कीमत पर चुनाव जीतने की जिद ने मोदी की इस प्रतिज्ञा को नासूर में बदल दिया है।

बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में मोदी ने अपने चुनावी भाषणों में एक बार नहीं, अनेक बार कहा था कि वह बिना किसी भेदभाव के आपराधिक पृष्ठभूमि के सभी नेताओं को जेल पहुंचायेंगे। 15 राज्यों के 100 शहरों में प्रसारित 15 अप्रैल 2014 की अहमदाबाद की विशाल रैली में नरेंद्र मोदी ने संकल्प लिया था कि यदि वह सत्ता में आते हैं , तो भारतीय राजनीति को अपराध मुक्त बना कर स्वच्छ कर देंगे। उन्होंने इस रैली में कहा था कि राजनीति में अपराधियों का प्रवेश कैसे निषिध्द किया जाये, इसकी केवल चर्चा होती है। पर उनके पास समाधान है।

उन्होंने इस रैली में भीष्म प्रतिज्ञा की और कहा कि बस मुझे जनता के समर्थन की आवश्यकता है। उन्होंने भरोसा दिलाया कि सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में विशेष अदालतों का गठन किया जायेगा जो पंचायत प्रमुखों, पार्षदों, विधायकों और सांसदों की जांच करेगी और इनमें जो आपराधिक पृष्ठभूमि के होंगे, उन पर समयबध्द तरीके से मुकदमे चलाये जायेंगे। इन मुकदमों पर एक साल में फैसला आएगा और उनके पांच साल के शासन के बाद राजनीतिक व्यवस्था एकदम स्वच्छ हो जायेगी। इसके बाद इलाहाबाद की चुनावी रैली में भी एक और बड़ा ऐलान मोदी ने किया कि अगली संसद में आपराधिक पृष्ठभूमि के सांसदों को दंडित किया जायेगा और जो सीटें खाली होंगी, उन पर उपचुनाव कराये जायेंगे।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा लोकसभा के 186 सांसदों ने अपने चुनावी शपथ पत्र में बताया है कि उन पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें 112 सांसदों पर हत्या, हत्या के प्रयास, अपहरण, सांप्रदायिक विद्वेश और महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसे संगीन मामले हैं। इनमें सबसे ज्यादा सांसद सत्ताधारी बीजेपी के ही हैं। इसके बाद उसके सहयोगी शिवसेना और तृणमूल कांग्रेस का नंबर है। मोदी के पास अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने का मौका भी था और दस्तूर भी। लेकिन सत्ता पाते ही प्रधानमंत्री मोदी अपनी इस प्रतिज्ञा को भूल गये।

सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यों वाली संविधान पीठ ने एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए अगस्त 2014 में दिए अपने फैसले में मोदी सरकार को चेताया भी। इन सभी न्यायाधीशों ने एक मत से यह कड़ा संदेश दिया कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों को आपराधिक, भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे लोगों को मंत्री नहीं बनाना चाहिए।

संविधान पीठ ने 123 पन्नों के फैसले में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 75 (1) के चलते ऐसे लोगों (अपराध और भ्रष्टाचार के आरोपियों) को अयोग्य लोगों की सूची में शामिल नहीं कर सकते हैं। पर यह हम प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के विवेक पर छोड़ते हैं कि वह ऐसे लोगों के मंत्री बनाये जाने की सिफारिश राष्ट्रपति या राज्यपाल से न करें। संविधान पीठ ने कहा कि प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को याद रखना चाहिए कि संविधान ने उन पर असीम भरोसा व्यक्त किया है और उन्होंने संविधान की भावना के विरुद्ध कोई कार्य न करने की शपथ ली है।

सुप्रीम कोर्ट के कड़े संदेश के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी को राजनीति को अपराध मुक्त की प्रतिज्ञा याद नहीं आयी और देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने न केवल जम कर आपराधिक पृष्ठभूमि वालों को टिकट बांटे, बल्कि योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री और केशव प्रसाद मौर्य को उपमुख्यमंत्री बनाया जिन्होंने अपने चुनावी शपथ पत्र में बताया है कि उन पर आपराधिक मामले दर्ज हैं।

योगी आदित्यनाथ के चुनावी शपथ पत्र के अनुसार उन पर तीन आपराधिक मामले दर्ज थे, जिनमें आपराधिक रूप से डराने-धमकाने, हत्या का प्रयास, बलवा आदि जैसे सात गंभीर आरेाप हैं। उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने अपने चुनावी शपथ पत्र में 11 आपराधिक मामलों का जिक्र किया है जिनमें हत्या, बलवा, डराने-धमकाने, धार्मिक आस्था को चोट पहुंचाने जैसे 15 संगीन आरोप हैं। इसके अलावा योगी मंत्रिमंडल में 18 ऐसे मंत्री हैं, जिन पर आपराधिक मामले हैं। उत्तर प्रदेश की मौजूदा विधानसभा में 26 फीसदी विधायकों पर संगीन आपराधिक आरोप हैं जो पिछली विधानसभा (2012) से ज्यादा हैं। इनमें सर्वाधिक बीजेपी के विधायक हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने पांच साल में राजनीति को अपराध मुक्त बनाने का भरोसा दिया था, लेकिन इस दिशा में कुछ नहीं हुआ। हारकर 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार से 1581 सांसदों और विधायकों का आपराधिक विवरण मांगा, जिनका ब्योरा उन्होंने अपने चुनावी शपथ पत्र में दिया था और पूछा कि उनमें से कितने मामलों पर फैसला आ चुका है, कितने उसमें दोषी साबित हुए या मुक्त हुए हैं। प्रधानमंत्री मोदी के उलट योगी सरकार ने राजनीति को स्वच्छ बनाने का नया तरीका निकाला है। योगी सरकार ने तमाम नेताओं पर से तकरीबन 20 हजार मुकदमे वापस ले लिये जिनमें योगी आदित्यनाथ, केशव प्रसाद मौर्य और मुलायम सिंह जैसे अनेक प्रमुख नेता शामिल हैं।

अब हर कीमत पर चुनाव जीतने की अमित शाह-मोदी की जिद से मोदी अपराध मुक्त राजनीति की प्रतिज्ञा नासूर बन गयी है। इसका सटीक उदाहरण कर्नाटक विधानसभा चुनाव है, जहां हर कीमत पर जीतने और सरकार बनाने की जिद ने रेड्डी बंधुओं और उनके शार्गिद श्रीमुलु को टिकट देने में बीजेपी को परहेज नहीं हुआ, जो अवैध खनन और भ्रष्टाचार के लिए कुख्यात हैं।

सुप्रीम कोर्ट बार-बार याद दिलाता रहा, लेकिन मोदी और उनकी सरकार तो जैसे इस प्रतिज्ञा को भूल ही चुकी है। पिछले सितंबर महीने में एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में राजनीति का अपराधीकरण चिंता का विषय है। भष्ट्राचार और राजनीति का अपराधीकरण भारतीय लोकतंत्र की नींव को खोखला कर रहा है। संसद यह सुनिशित करे कि आपराधिक नेता राजनीति में न आएं।

बमुशिकल अब तक ऐसी 12 अदालतों का ही गठन हो पाया है। मोदी अपनी प्रतिज्ञा के प्रति कितने प्रतिबध्द हैं,इसका अंदाज लव जिहाद, गौ रक्षा आदि के नाम पर देश में दर्दनाक हिंसक वारदातों में हुई भयावह वृध्दि से लगाया जा सकता है और उनके बल पर चुनाव जीतने की सत्ताधारी कुनबे की मंशा किसी से छुपी नहीं है।

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