आकार पटेल / ममदानी की जीत ने लोगों की असली ताकत के सामने अरबपतियों की धनशक्ति को बौना साबित कर दिया
न्यूयॉर्क मेयर चुनाव और ममदानी की जीत का अध्ययन लंबे समय तक किया जाएगा क्योंकि यह चुनाव जीतने के दो तरीकों के साथ ही अरबपतियों की ताकत की सीमाओं को उजागर करती है।

अमेरिका के संविधान में जो संशोधन किया गया था, उसमें लिखा था, ‘'कांग्रेस किसी धर्म की स्थापना के संबंध में, या उसे मानने-अपनाने पर रोक लगाने, या बोलने या प्रेस की आजादी को कम करने, या लोगों के शांतिपूर्वक एकत्र होने और शिकायतों के निवारण के लिए सरकार के पास याचिका दायर करने के अधिकार के संबंध में कोई कानून नहीं बनाएगी।'’
इस संशोधन को चूंकि 1789 में लाया गया था, इस वजह से इसकी भाषा थोड़ी पुरानी लगती है, लेकिन यह समझने के लिए पर्याप्त साफगोई है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता। हालांकि, इस पर कुछ पाबंदिया लगाई जा सकती हैं, मसलन हिंसा या अश्लील साहित्य की धमकियां देने जैसे मामलों पर।
2010 में, अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी फंडिंग पर लगी पाबंदियों को हटाते हुए अपने फैसले में कहा था कि ऐसी सीमाएं पहले संशोधन के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करती हैं। इसके बाद से बड़ी कंपनियां और धनवान व्यक्ति राजनीतिक कार्य समितियां (पॉलिटिकल एक्शन कमिटी) बनाकर चुनावों को प्रभावित करने के लिए स्वतंत्र हो गए थे और अपनी पसंद के उम्मीदवारों और पार्टियों के प्रचार पर पैसे खर्च करते हैं।
यह फैसला अमेरिका के प्रसिद्ध सिटीजन्स यूनाइटेड बनाम फेडरल इलेक्शन कमीशन (अमेरिकी चुनाव आयोग) के बीच चले मुकदमे में आया था। इस फैसले से अमेरिकी लोकतंत्र को घातक नुकसान पहुंचा, क्योंकि अमेरिका के दोनों प्रमुख राजनीतिक दल अब स्थायी रूप से कॉर्पोरेट हितों से प्रभावित हैं।
अगर आपकी जीत का कारण आपके दानदाता हैं, तो मुमकिन है कि पद पर रहते हुए आपके काम भी उनसे प्रभावित होंगे। ऐसा लगता है कि अमेरिकी राजनीति में यह अब अपरिहार्य हो गया है। वैसे, राजनीति करने का एक और तरीका भी है, और उसका तरीका आसान होने के बावजूद उसे लागू करना बहुत मुश्किल है।
किसी ऐसे काम को करने की कोशिश करना जिसमें नाकामी की दर बहुत ज़्यादा हो, उसके लिए एक ख़ास तरह के दृढ़ संकल्प और दृष्टिकोण की ज़रूरत होती है। ऐसे काम में सफल होना वाकई अद्भुत होता है। इसका एक उदाहरण हमें हाल ही में हुए न्यूयॉर्क मेयर चुनाव से मिलता है।
इस चुनाव के दोनों प्रमुख उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने के अलग-अलग तरीके थे। पहला तरीका वही है जो दोनों प्रमुख राजनीतिक दल और उनके उम्मीदवार पसंद करते हैं, यानी अपने प्रतिद्वंद्वी से ज़्यादा धन जुटाकर जीत हासिल करना। फिर इस धन का इस्तेमाल मुख्य रूप से प्रचार पर और लोगों तक संदेश भेजने के लिए टेलीविजन विज्ञापन और ई-मेल आदि पर खर्च होता है। ऐसे प्रचार और संदेश मतदाताओं को विज्ञापन के लिए पैसे खर्च करने वाले उम्मीदवार के बारे में अच्छी राय बनाने और उसके प्रतिद्वंद्वी के बारे में गलत या नकारात्मक धारणाएं बनाने के लिए डिज़ाइन किए जाते हैं।
जो उम्मीदवार जितने ज़्यादा विज्ञापन दे सकता है, उसकी सफलता की संभावना उतनी ही ज़्यादा होती है। 2018 की एक रिपोर्ट, जिसका शीर्षक था "पैसा चुनावों को कैसे प्रभावित करता है", में पाया गया कि 90 प्रतिशत से ज़्यादा बार, जिस उम्मीदवार ने अपने प्रतिद्वंद्वी से ज़्यादा धन जुटाया और खर्च किया, उसने कांग्रेस (लोकसभा का अमेरकी संस्करण) की सीट के लिए चुनाव जीता।
न्यूयॉर्क मेयर चुनाव के दो मुख्य उम्मीदवारों में से एक, एंड्रयू कुओमो ने यही तरीका अपनाया और अपने प्रतिद्वंदी से पांच गुना ज़्यादा धन जुटाया और खर्च किया। लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। क्यों? (ज़रा सोचिए।)
दूसरा तरीका है मतदाताओं को विज्ञापनों के ज़रिए नहीं, बल्कि व्यक्तिगत बातचीत के ज़रिए समझाना। यह कारगर तो है, लेकिन इसे बड़े पैमाने पर नहीं इस्तेमाल किया जा सकता। लाखों मतदाताओं वाले आम चुनाव में ऐसा करना ख़ास तौर पर मुश्किल और बेतुका लग सकता है।
इतने बड़े पैमाने पर ऐसा करने के लिए जितने लोगों की ज़रूरत होगी, उसकी लागत निश्चित रूप से विज्ञापन से कहीं ज़्यादा होगी। और इन लोगों के लिए अजनबियों से बातचीत शुरू करना मुश्किल होगा, क्योंकि कई लोग या तो अपने घर का दरवाज़ा ही नहीं खोलेंगे या दरवाज़ा खोलकर तुरंत उस व्यक्ति को जाने के लिए कह देंगे, या फिर अगर सड़क पर उन्हें रोका भी जाए, तो वे रुकेंगे ही नहीं।
फिर भी अगर वे बोलना भी चाहें, तो उन्हें उम्मीदवार के पक्ष में वोट देने के लिए मनाना मुश्किल काम होगा। इन तमाम अगर-मगर के बाद, सफलता की दर दस में से एक से भी कम होने की संभावना है। इसका मतलब है कि हर उस व्यक्ति के लिए जो उम्मीदवार को वोट देने के लिए राज़ी हो जाता है, दस और लोग दरवाज़ा बंद कर देते हैं, कहते हैं कि वे दूसरे पक्ष का समर्थन करेंगे, या बिना कुछ कहे चले जाते हैं।
सवाल है कि आखिर इन कार्यकर्ताओं को कैसे प्रेरित किया जाए और उत्साहित रखा जाए? उन्हें सिर्फ इस बात का नाटक करने से कौन रोक सकेगा कि उन्होंने हर घर का दरवाज़ा खटखटाया और सड़क पर आते-जाते अजनबियों को रोक कर अपने उम्मीदवार के लिए बात की, जबकि इस दौरान वे या तो अपने घर पर रहे या किसी कैफे में मस्ती करते रहे? यही वजह है कि प्रचार के इस दूसरे तरीके को नहीं अपनाया जाता और उम्मीदवार सिर्फ़ ज़्यादा पैसे जुटाने का विकल्प क्यों चुनते हैं।
यह तरीका सिर्फ कुछ खास और तय परिस्थितियों में ही कामयाब हो सकता है।
पहला तो यह कि संदेश बड़ी संख्या में संभावित मतदाताओं को आकर्षित करने वाला हो। दूसरा यह कि कार्यकर्ता अत्यधिक प्रेरित और उत्साहित हों और नाकामी की ऊंची दर से विचलित नहीं हों। यहां प्रेरणा पैसे से नहीं, बल्कि उद्देश्य से है। एक तरह से यह धर्म प्रचार और धर्मांतरण जैसा तरीका ही है। तीसरा, यह कि कोई ऐसी व्यवस्था है जो जुड़ाव पर नज़र रखती है और मतदान के दिन तक उसे जारी रखती है। इसका मतलब है कि एक बार संपर्क हो जाने के बाद लोगों के साथ लगातार संपर्क बनाए रखा जाए।
भारतीय मूल के सोशलिस्ट ज़ोहरान ममदानी ने यही तरीका अपनाया था और 4 नवंबर, 2025 को उनकी जीत का ऐलान हुआ कि वे न्यूयॉर्क के अगले मेयर होंगे। जो लोग कहते हैं कि उन्हें अनुभव नहीं है और लीडरशिप के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं, वे यह नहीं समझते कि उन्होंने लीडरशिप की एक ऊंची मिसाल पहले ही स्थापित और प्रदर्शित कर दी है। उन्होंने लोगों को किसी ऐसी चीज़ में खुद को खपाने के लिए प्रेरित किया, जिसमें असफलता की दर बहुत ज़्यादा मानी जाती है, और फिर उसमें सफलता हासिल की।
ममदानी के प्रचार अभियान के लिए 700 सीनियर वॉलंटियर द्वारा प्रशिक्षित और उनके नेतृत्व में एक लाख से ज़्यादा वॉलंटियर या कार्यकर्ताओं की एक सेना काम कर रही इनमे हालांकि ज़्यादातर युवा थे, लेकिन कई अधेड़ और उम्र दराज लोग भी थे जिन्होंने कई महीनों तक स्वेच्छा से घंटों मेहनत की क्योंकि उन्हें एक मकसद पर विश्वास था।
दूसरी तरफ एंड्रयू कुओमो का समर्थन करने वाले कॉरपोरेट्स ने ममदानी को आतंकवादी के रूप में प्रचारित करने के लिए 4 करोड़ डॉलर से ज़्यादा खर्च किए। लेकिन वे उन वॉलंटियर्स से हार गए जिन्हें कुछ भी भुगतान नहीं किया गया।
इस चुनाव और जीत का अध्ययन लंबे समय तक किया जाएगा क्योंकि यह चुनाव जीतने के दो तरीकों को पूरी तरह से उजागर करता है और अरबपतियों की ताकत की सीमाओं को उजागर करती है। जैसा कि अमेरिका में एक्टिविस्ट कहते हैं: उनके पास पैसा है, हमारे पास लोग हैं।
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