भारत के ही रास्ते चल रहे कई पड़ोसी देश, म्यांमार तो भारत से भी चार कदम आगे

अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थान बीबीसी पर अब ईडी की नजर है। जाहिर है, सत्ता को बीबीसी के चुभते समाचार पसंद नहीं आते। नेशनल हेराल्ड पर लगातार हमले किए जाते हैं।

फोटो: सोशल मीडिया
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महेन्द्र पांडे

भारत एक ऐसा देश है, जहां पिछले कुछ वर्षों से प्रजातंत्र के नाम पर पुलिसिया राज चल रहा है, सत्ता की निरंकुशता बढ़ती जा रही है, ध्रुवीकरण और तुष्टिकरण की राजनीति का वर्चस्व है, एनकाउंटर और बुलडोजर का न्याय है, सभी संवैधानिक संस्थाओं का सरकारीकरण हो गया है, पूंजीपतियों की चाटुकार मीडिया खुलेआम नफरत और धर्म की राजनीति में व्यस्त है, निष्पक्ष पत्रकार या तो मारे जा चुके हैं या फिर जेलों में बंद हैं, और बेशर्मी से लगातार सत्ता सर्वोच्च न्यायालय पर हमले करती जा रही है। इन सबके बीच जनता महंगाई और बेरोजगारी से कराह रही है और सत्ता आत्ममुग्ध है। अपने क्षेत्र में चीन के बाद भारत सबसे बड़ा देश है, जाहिर है यहां की निरंकुश राजनीति से सभी पड़ोसी देश प्रभावित हैं और अनुसरण कर रहे हैं।

वसुधैव कुटुम्बकम का नारा देने वाली हमारी सरकार इस दौर में हरेक पड़ोसी देश जहां सत्ता जनता को लूट रही है, मार रही है, उन्हें सीधे तौर पर मदद कर रही है। मदद करने के साथ ही इन पड़ोसी देशों में सत्ता द्वारा की जाने वाली हिंसा पर कोई वक्तव्य भी नहीं जारी करती और ना ही संयुक्त राष्ट्र में ऐसे बहसों में हिस्सा लेती है। अब देश में प्रजातंत्र बस जी20 सम्मलेन के पोस्टरों में सिमट गया है, जिसपर भारत को प्रजातंत्र की माँ बताया गया है। यहां का मीडिया पाकिस्तान में सेना के राजनैतिक दखल पर तो लगातार खबरें दिखाता है, जिनमें सेना के अनेक पूर्व अधिकारी आकर दहाड़ते हैं, पर म्यांमार में दो वर्षों से प्रजातंत्र की ह्त्या कर सेना सत्ता में है और बड़े पैमाने पर नरसंहार कर रही है, इस बारे में शायद ही कोई खबर आती है। अपने देश के सत्ता की इन तानाशाही देशों की मदद एक मजबूरी भी है– सत्ता के दुलारे उद्योगपतियों का इन देशों में बड़ा कारोबार है और इन उद्योगपतियों का मुनाफ़ा बढ़ाने के लिए सत्ता प्रतिबद्ध है।

अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थान बीबीसी पर अब ईडी की नजर है। जाहिर है, सत्ता को बीबीसी के चुभते समाचार पसंद नहीं आते। नेशनल हेराल्ड पर लगातार हमले किए जाते हैं। सत्ता की कमियों को उजागर करते दूसरे मीडिया संस्थानों और स्वतंत्र पत्रकारों के साथ भी सत्ता का यही रवैय्या है। अब बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भी मीडिया के साथ यही बर्ताव शुरू कर दिया है। भारत और बांग्लादेश की सत्ता में घनिष्ठ सम्बन्ध हैं, दोनों प्रधानमंत्री एक दूसरे की तारीफ़ करते थकते नहीं।

बांग्लादेश में लंबे समय से सत्ता में काबिज शेख हसीना निरंकुशता के पैमाने पर दक्षिण एशिया के लगभग सभी शासकों से आगे हैं। निरंकुश सत्ता के लिए सबसे बड़ा डर आलोचना और नाकामियां उजागर करने वाला मीडिया होता है, इसलिए सत्ता पर कब्जा रखने के लिए ऐसे शासकों को निष्पक्ष मीडिया और विरोधियों को सबसे पहले कुचलना पड़ता है। शेख हसीना ने हाल में ही ऐसे समाचारपत्रों को देश का, जनता का और प्रजातंत्र का दुश्मन करार दिया है।


शेख हसीना ने देश के सबसे बड़े बंगला समाचारपत्र, प्रथम आलो (हिंदी में मतलब है – पहला प्रकाश) के एक पत्रकार को देश में बढ़ती महंगाई पर प्रकाशित एक समाचार पर झूठी खबर का आरोप लगाकर 14 वर्षों की कैद की सजा को ठीक ठहराते हुए कहा कि यह समाचारपत्र देश की स्थिरता नहीं चाहता, और सतारूढ़ आवामीलीग, जनता, देश और प्रजातंत्र का दुश्मन है। बांग्लादेश में जो मीडिया केवल सरकार के पक्ष में खबरें लिखता है, बस वही मीडिया शेख हसीना के शासनकाल में सुरक्षित है, पर प्रथम आलो ने अपनी निष्पक्षता अभी तक कायम रखी है, और यह जनता के बीच बहुत लोकप्रिय भी है। पिछले तीन दशकों से प्रकाशित होने वाले बांग्ला भाषा के प्रतिष्ठित समाचारपत्र दैनिक दिनकाल का फरवरी 2023 से प्रकाशन रोक दिया गया है क्योंकि विपक्षी दल, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी, से सम्बन्ध होने के कारण इसके लाइसेंस को रद्द कर दिया गया है।

बंगला दैनिक, प्रथम आलो, के वरिष्ठ पत्रकार, शम्सुजमान शम्स, को 14 वर्ष कैद की सजा सुनाई गयी है। उन्हें यह सजा तथाकथित झूठी खबर के लिए दी गयी है। शम्सुजमान शम्स ने बांग्लादेश के स्वाधीनता दिवस, 26 मार्च, को डिजिटल संस्करण में सामान्य लोगों से बात कर जनता के लिए आजादी का मतलब समझने का प्रयास किया था। इस लेख में एक 40 वर्षीय दिहाड़ी श्रमिक का वक्तव्य भी थी, जिसने कहा था कि “ऐसी आजादी का क्या मतलब है जिसमें हम भरपेट चावल भी नहीं खा सकें”। प्रकाशित लेख का शीर्षक भी यही वक्तव्य था। बांग्लादेश में वर्ष 2018 से डिजिटल सिक्यूरिटी एक्ट लागू किया गया है, पर मानवाधिकार कार्यकर्ता और निष्पक्ष पत्रकार लगातार इसका विरोध कर रहे हैं। लागू होने के बाद से ही डिजिटल सिक्यूरिटी एक्ट का उपयोग सत्ता केवल विरोध की आवाज दबाने के लिए कर रही है। इस क़ानून के तहत अब तक लगभग 3000 लोगों को दोषी करार दिया गया है, जिसमें 280 पत्रकार हैं।

म्यांमार की सत्ता में बैठी हत्यारी सेना तो हमारी प्रधानमंत्री की मुरीद है, और वहां के सेना प्रमुख हरेक मौके पर मदद के लिए रूस, चीन के साथ ही भारत को धन्यवाद करना नहीं भूलते। सेना द्वारा प्रजातांत्रिक सरकार का तख्तापलट के बाद से अमेरिका और अधिकतर यूरोपीय देशों ने म्यांमार पर प्रतिबन्ध लगाए हैं, और सेना को रक्षा उपकरणों की बिक्री रोक दी है। ऐसे माहौल में रक्षा उपकरणों और विमान के ईंधन जैसे जरूरी पदार्थों की आपूर्ति रूस, चीन और भारत द्वारा की जा रही है। म्यांमार की सेना इन उपकरणों और ईंधन से भरे लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल किसी दूसरे दुश्मन देश के लिए नहीं बल्कि अपनी ही जनता के ऊपर कर रही है।

हाल में ही सेना का विरोध और प्रजातंत्र का समर्थन करने वाले एक गुट, पीपल्स डिफेन्स फ़ोर्स, ने उत्तर-पश्चिमी इलाके के पज़िग्यी गांव में अपने कार्यालय के उद्घाटन का समारोह आयोजित किया था, जिसमें इसके कार्यकर्ताओं के साथ ही स्थानीय आबादी और स्कूली बच्चों ने भी हिस्सा लिया थ।| इसके उद्घाटन के समय म्यांमार की वायु सेना ने लड़ाकू जेट से इस जगह पर बम बरसाए। इसमें नया कार्यालय भवन ध्वस्त हो गया और 100 से भी अधिक नागरिक मारे गए, जिसमें 20 से अधिक बच्चे शामिल हैं। लड़ाकू जेट के बाद भी वायु सेना के हेलिकॉप्टर ने इस क्षेत्र में आसमान से गोलियां चलाईं। इस घटना को म्यांमार की सेना ने बड़े गर्व से स्वीकार किया है। आश्चर्य यह है कि ऐसे युद्ध अपराधियों की मदद भारत सरकार ऐसे समय खुलेआम कर रही है, जब जी20 की अध्यक्षता उसके पास है और इसके सभी सदस्य खामोशी से यह युद्ध अपराध और निरंकुशता देख रहे हैं।


हाल में ही ग्लोबल विटनेस और एमनेस्टी इन्टरनेशनल द्वारा संयुक्त तहकीकात के बाद यह स्पष्ट हुआ कि पश्चिमी देशों और अमेरिका द्वारा वायुयानों में इस्तेमाल किए जाने वाले एवियेशन फ्यूल की आपूर्ति पर प्रतिबंध लगाने के बाद भी म्यांमार के बंदरगाहों पर एवियेशन फ्यूल से भरे टैंकर पहुंच रहे हैं। यह समाचार महत्वपूर्ण है क्योंकि म्यांमार की सेना लड़ाकू विमानों से भी अपने देश की जनता पर हमले कर रही है। म्यांमार के बंदरगाहों पर पहुंचे एविएशन फ्यूल से भरे टैंकरों में से कम से कम एक टैंकर ऐसा भी है जो भारत से गया है। “प्राइम वी” नामक यह टैंकर ग्रीक की कंपनी सी ट्रेड मरीन का है, और इसका इन्स्युरेंस जापान के पी एंड जी क्लब ने किया था। यह 28 नवम्बर 2022 को गुजरात के सिक्का बंदरगाह के रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के टर्मिनल से ए1 श्रेणी का एविएशन फ्यूल लेकर 10 दिसम्बर 2022 को म्यांमार के थिलावा बंदरगाह पर पहुंचा था।

हमारे देश में पुलिस और सेना द्वारा नागरिकों की हत्याएं अब सामान्य घटनाएं हैं। हाल में ही झांसी में अतीक अहमद के बेटे मुहम्मद असद को तथाकथित एनकाउंटर में मार दिया गया। उत्तर प्रदेश पुलिस के इस कायराना हरकत की जाहिर है मुख्यमंत्री ने खूब तारीफ़ की और कहा कि इससे अपराधियों को सबक मिलेगा। किसी प्रजातंत्र में ऐसी हत्या का गुणगान केवल भारत में ही किया जा सकता है। उत्तर प्रदेश में इस तरह के तथाकथित एनकाउंटर लगातार किए जाते हैं, और ऐसे हरेक एनकाउंटर के बाद मुख्यमंत्री गर्व से प्रदेश के अपराधियों को समाप्त करने और सबक सिखाने की बात करते हैं। पर, ना तो आजतक अपराध ख़त्म हुआ और ना ही अपराधी, पर मुख्यमंत्री जी बेशर्मी से वक्तव्य दुहराते रहते हैं।

हमारा देश पुलिस और सेना द्वारा जनता की हत्याओं के सन्दर्भ में फिलीपींस, ब्राज़ील और वेनेज़ुएला के बाद दुनिया में चौथे स्थान पर है। जुलाई 2022 में लोकसभा में बताया गया था कि अप्रैल 2020 से मार्च 2022 में बीच देश में पुलिस हिरासत में 4484 मौतें दर्ज की गईं हैं, जबकि तथाकथित पुलिस एनकाउंटर में 233 लोग मारे जा चुके हैं। यह सब प्रजातंत्र की मां का नया चेहरा है, जाहिर है हमारी सत्ता निरंकुशता की मिसाल है जिससे सभी पड़ोसी देश सबक ले रहे हैं। अब सत्ता का आतंक केवल देश में ही नहीं बल्कि दूसरे देशों में भी फैल गया है।

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