जारी रहें दशरथ मांझी के साहस के अच्छे परिणाम
वर्ष 1982 के आसपास लगभग 22 वर्षों की अथक मेहनत से यह प्रयास सफल हुए और बैलगाड़ी निकलने तक का रास्ता पर्वत में दशरथ की मेहनत से निकल गया। बाद में सरकार और गांववासियों की मेहनत से इसे और चैड़ा और लंबा कर दिया गया।

दशरथ मांझी ने पर्वतों के बीच रास्ता निकाल कर जिस तरह अपने गांववासियों के हितों के लिए अथक मेहनत से बड़ी सफलता प्राप्त की, उनके इस साहस और त्याग के अच्छे परिणाम आज भी उनके गांववासियों को मिल रहे हैं। दशरथ ने जिस तरह पर्वत काट कर नया रास्ता बनाया, उस नए रास्ते से गांववासियों की अनेक समस्याएं कम हुईं। इससे प्रेरणा प्राप्त कर यहां सरकार ने विकास के कुछ कार्य किए। आज इसी प्रेरणा को आगे ले जाते हुए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की सम्मान परियोजना के अन्तर्गत सहभागी शिक्षा केन्द्र के कार्यकर्ता यहां शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका सुधार के अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं।

साल 1960 में गया जिले (बिहार) की गहलौर पंचायत (मोहरा प्रखंड) की स्थिति बहुत उपेक्षा व पिछड़ेनप की थी जिसका एक बहुत बड़ा कारण यह था कि सबसे पास के छोटे शहर वजीरगंज व गांव के बीच एक ऐसा बड़ा पहाड़ खड़ा था जिसमें कोई रास्ता नहीं था व इस कारण गांव के लोग वजीरगंज तक बहुत लंबे रास्ते से ही पहुंच पाते थे या उन्हें पहाड़ की बहुत खतरनाक चढ़ाई करनी पड़ती थी। पहाड़ पर लकड़ी की मजदूरी के लिए गए भूमिहीन मजदूर दशरथ मांझी की पत्नी फाल्गुनी देवी इस खतरनाक रास्ते पर बुरी तरह गिर गई और घायल हो गई। फाल्गुनी की यह दर्दनाक स्थिति देखकर दलित मजदूर दशरथ मांझी ने निर्णय किया कि वे इस पर्वत को काट कर इसमें एक रास्ता निकाल लेंगे।
दशरथ ने अपने लुहार मित्र से छेनी हथौड़ा प्राप्त किया और पर्वत में रास्ता निकालने का काम आरंभ कर दिया। पहले कुछ वर्षों तक तो गांववासियों ने कहा कि यह क्या पागलपन है, इस तरह कोई पर्वत से रास्ता निकल सकता है, पर जब दशरथ का प्रयास वर्षों तक चलता रहा तो कुछ गांववासियों ने भी पत्थर हटाने जैसा थोड़ा बहुत सहयोग आरंभ कर दिया।

साथ-साथ दशरथ को चार सदस्यों के परिवार के भरण पोषण के लिए भी मजदूरी करनी पड़ती थी। जब उनकी पत्नी फाल्गुनी देवी की इस संघर्ष के दौर में मृत्यु हो गई तो दशरथ ने उनकी याद में अपने प्रयास और तेज कर दिए।
वर्ष 1982 के आसपास लगभग 22 वर्षों की अथक मेहनत से यह प्रयास सफल हुए और बैलगाड़ी निकलने तक का रास्ता पर्वत में दशरथ की मेहनत से निकल गया। बाद में सरकार और गांववासियों की मेहनत से इसे और चैड़ा और लंबा कर दिया गया।
दशरथ के प्रयास की चर्चा दूर-दूर तक हुई और उन्हें बहुत प्रशंसा-सम्मान मिलने लगा, पर उन्होंने अपने गांव की भलाई के कार्य और आगे भी जारी रखे। वे दिल्ली तक पंहुचे और इसके लिए उन्होंने रेल-पटरी के किनारे-किनारे पैदल यात्रा की। उनके जानकार गांववासियों ने बताया कि वे उस समय की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी से मिले। वहां उन्होंने गांव के स्वास्थ्य, शिक्षा, पेयजल सुधार आदि की मांग रखी। फिर वे बिहार के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार के पास पंहुचे। दशरथ के बीमार पड़ने पर उनके इलाज की व्यवस्था दिल्ली के एम्स में की गई। यहां वर्ष 2007 में दशरथ की मृत्यु होने पर उनके गांव में ही राजकीय सम्मान सहित उनका अंतिम संस्कार किया गया व बाद में उनका समाधि-स्थल विकसित किया गया। उनके सम्मान में डाक-टिकट निकाला गया।
इसके बावजूद उनके गांव के दलित और निर्धन भूमिहीन परिवारों के लिए आजीविका का संकट बना रहा। यहां के मांझी परिवारों से बातचीत करने पर पता चला कि आज भी दूर-दूर के ईंट-भट्टों में मजदूरी के लिए वे प्रतिवर्ष न जाएं तो उनके परिवार की गुजर-बसर नहीं हो सकती है। उन्होंने बताया कि ईंट-भट्टों में उन्हें शोषण सहना पड़ता है। प्रवासी मजदूरी के बावजूद भूख व कुपोषण की समस्या आज भी है। पेयजल का गंभीर संकट आज भी उनके सामने है।
इस स्थिति में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने 18 महीने की सम्मान परियोजना के अन्तर्गत इस पंचायत में अनेक विकास कार्यों को आगे बढ़ाया है। सहभागी शिक्षा केन्द्र के सहयोग से चल रही इस परियोजना के अंतर्गत इस पंचायत के दो स्कूलों में अनेक सुधार कार्य किए गए हैं ताकि बच्चे स्कूलों में बेहतर माहौल में शिक्षा प्राप्त कर सकें। इसके फलस्वरूप सरकारी स्कूलों में नया उत्साह है। आंगनवाड़ी को भी सुधारा गया है व छोटे बच्चों की शिक्षा के अन्य प्रयास किए गए हैं। एंबुलैंस सुविधा व मात्तृत्व सुरक्षा के प्रयासों से मात्तृत्व सुरक्षा को बढ़ाया गया है। आजीविका सुधार के प्रयास जैसे सिलाई की शिक्षा, बकरियों के वितरण द्वारा किए गए हैं। सरकारी कार्यक्रमों का बेहतर लाभ उठाने के लिए प्रयास किए गए हैं। पंचायत घर को सुधारा गया है व यहां एक ग्राम सेवा केन्द्र में नई सुविधाए दी गई हैं। इस ग्राम सेवा केन्द्र में गांववासियों को सरकारी सुविधाओं का बेहतर लाभ उठाने के लिए तरह-तरह की सहायता दी जाती है। इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य, स्वच्छता, पोषण आदि से संबंधित सुविधाओं का प्रसार भी निरंतरता से किया जाता है।
इसके बावजूद दशरथ मांझी के सभी सपने पूरे नहीं हुए हैं। यहां के मांझी व निर्धन परिवारों को डर है कि हाईवे विस्तार में विस्थापन हुआ तो कहीं पूरे कागज-पत्र ने होने के कारण उन्हें अन्य स्थान पर भूमि देने से वंचित न किया जाए। ऐसे इन परिवारों को गारंटी मिलनी चाहिए कि उन्हें आवास-सुरक्षा मिलती रहेगी व उनके लिए आवश्यक सुधार जिससे उनकी आजीविका भी मजबूत हो। इस समय निर्धनता के कारण उन्हें दूर-दूर के ईंट, भट्टों में भटकना पड़ता है। पेयजल की भीषण समस्या उनके सामने है। अतः दशरथ मांझी के गांव के इन निर्धन परिवारों के लिए अभी बहुत कुछ करना शेष है। इसके लिए परस्पर सहयोग से समुदाय को मजबूत करते हुए प्रयास होने चाहिए।
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