मीडिया के दुष्प्रचार से मास्क हो गया मुसलमान, भुखमरी के कगार पर पहुंचे परिवार ने किया राशन लेने स इनकार

कोरोना महामारी को लेकर मीडिया के दुष्प्रचार के कारण मास्क तक मुसलमान हो गया और स्वंयसेवी संस्था के कार्यकर्ता का नाम सुनते ही भुखमरी के कगार पर पहुंचे परिवार ने राशन लेने से इनकार कर दिया। यह विस्फोटक स्थिति है जिसे एक साजिश के तहत फैलाया जा रहा है

साभार - मीडियाविजिल
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अनिल चमड़िया

अगर सावधानी नहीं की जाए तो जिस तरह से कोरोना वायरस कई चरणों में फैलता हैं और उस के लक्षण नहीं दिखते हैं, उसी तरह से साम्प्रदायिकता के भीड़ तंत्र का दूसरा चरण उन लोगों को ही अपना शिकार बना रहा है जिनके नाम पर उसे खड़ा किया गया है। महाराष्ट्र के पालघर में तीन लोगों की हत्या उस तरह की घटनाओं में महज एक है जो कि कई स्तरों पर समाज में घटित हो रही है लेकिन उसकी खबर सतह पर देरी से आती है।

दिल्ली में 4 सितंबर 2019 को साहिल की हत्या की घटना को याद करना जरुरी लगता है। “पिता सुनील सिंह का कहना है कि मेरे बेटे का नाम साहिल था, पंडितों की गली थी, उन्होंने ये समझ लिया कि ये मुसलमान है।” साहिल की हत्या भीड़ ने ये मानकर कर दी थी कि उसका नाम मुसलमानों जैसा है।

उत्तर प्रदेश की तीन घटनाओं की चर्चा यहां की जा रही है। गरीब, कमजोर लोगों के बीच कोरोना का विषाणु तो नहीं पहुंचा लेकिन भीड़ तंत्र ने सोशल मीडिया और मुख्य धारा के मीडिया के जरिये कोरोना के साम्प्रदायिक विषाणु से उनकी बुरी तरह घेरेबंदी कर दी है।

बीए दूसरे वर्ष की छात्रा सरिता , तीसरे दर्जे में पढ़ने वाली उसकी बहन राधिका और बूढ़ी मां के सामने लॉकडाउन के लगभग दो हफ्ते के बाद उत्तर प्रदेश की राजधानी के एक पिछड़े इलाके में स्थित अपने घर में भूखमरी की हालत आ पहुंची थी। इस बात की खबर राधिका के एक शिक्षक ने खाने-पीने की राहत सामग्री मुहैया कराने वाली एक संस्था पीपुल्स अलायंस के एक सदस्य को दी। पीपुल्स अलांयस के सदस्य ने परिवार को फोन किया और लखनऊ के विशालखंड स्थित उनके घर तक पहुंचने का रास्ता जानना चाहा। लेकिन नई पीढ़ी की लड़की सरिता ने फोन करने वाले का नाम सुनकर उससे अनाज लेने से इनकार कर दिया। इस कार्यकर्ता का नाम रेहान था।

सरिता लखनऊ के एक प्रसिद्ध स्कूल द्वारा गरीब बच्चों के लिए स्थापित एक संस्था में पढ़कर निकली है। अब सरिता की बहन राधिका वहीं तीसरे वर्ग की छात्रा है। इनके साथ उनकी मां भी रहती है। इस स्कूल को इस रूप में जाना जाता है कि सभी धर्मों को बराबर दिखने की शिक्षा दी जाती है और किसी धर्म के विरुद्ध नफरत की आलोचना की जाती है।

लॉकडाउन के दौरान यह परिवार अपने घरों में कैद है और घर में समय गुजारने का एक जरिया उनके कमरे में पड़ा एक टीवी सेट हैं जिसमें सैकड़ों की संख्या में चैनल दिखाए जाते हैं। इनमें प्रमुख और स्थानीय चैनल भी हैं जो मार्च के सप्ताह से ही एक समुदाय विशेष को कोरोना वायरस के भारत में फैलने की वजहों में से एक बताने में लगे हुए हैं। कुछ ने तो इसे कोराना जेहाद तक का नाम दिया है।


भारत में रेहान नाम से उसके मुसलमान होने की ध्वनि निकलती है और यह नाम नई पीढ़ी की सरिता को डराता है। कोरोना से काफी पहले राही मासूम रजा ने लिखा था कि ‘मेरा नाम मुसलमानों जैसा है , मुझको कत्ल करों और मेरे घर में आग लगा दो।’ भारत के लोकप्रिय रचनाकार राही मासूम रजा वे हैं जिन्होंने पौराणिक महाकाव्य महाभारत पर आधारित धारावाहिक की स्क्रिप्ट लिखी है।

रोचक बात यह है कि भूखमरी से जूझते सरिता के परिवार ने दोबारा अपनी शिक्षक को खाने पीने की चीजें मुहैया कराने का अनुरोध किया तो उस शिक्षक को राहत पहुंचने वाले संगठन पर हैरानी हुई। उन्होंने फिर से उनके सदस्यों को फोन किया । तब उन्हें पता चला कि रेहान उनके लिए राशन लेकर गया था लेकिन उन्होंने उनका नाम सुनने के बाद उसे लेने से इनकार कर दिया। शिक्षक ने फिर सरिता को बताया कि रेहान उनकी सूचना के बाद ही उन्हें खाना देने गया था। तब सरिता ने रेहान के हाथों दिया खाना और राशन लिया। लेकिन वह शिक्षक न होती तो उस गरीब परिवार का क्या होता और भूख से परिवार को दूसरे दिन तक तड़पना पड़ा, महज मुस्लिम नाम से पैदा होने वाले भय की वजह से।

दूसरी घटना आजमगढ़ की है । इसी संस्था के सदस्यों ने बड़े स्तर पर कोरोना से बचाव के लिए मास्क बनाने और बांटने का अभियान चलाया। उसने सभी लोगों के सामने एक शर्त रखी कि उनके द्वारा बांटे जा रहे मास्क अपने आसपास भी बांटे और उसे बांटने के दौरान किसी धर्म व जाति आधार पर भेदभाव नहीं करें। यह अभियान निजामुद्दीन स्थित मरकज में तबलीगी जमात के कार्यक्रम के बारे में मीडिया में दुष्प्रचार के आने के काफी पहले से किया जा रहा था। यह अभियान सफलता पूर्वक चल रहा था। लेकिन ‘कोरोना जेहाद’ के प्रचार से जमीनी स्तर पर कोरोना से बचाव के लिए मास्क वितरण अभियान पर इसका असर पड़ने लगा। वह खाने पीने की चीजों की तरह ही मुस्लिम हो गया और उसके जरिये भी कोरोना फैलाने की साजिश का असर उनके दिमाग में दिखने लगा जो इस प्रचार की वजह से खुद को हिन्दू समझने लगे थे। यानी मास्क को मुसलमान बनाने के प्रचार ने ही उनके भीतर हिन्दू होने का एक भाव और डर दोनों पैदा किया।


इस अभियान की अगुवाई करने वाले एक सदस्य ने बताया कि उन्होंने मीडिया के दुष्प्रचार के बाद स्वयं मास्क देने की पहल से अपने आप को रोक लिया। उन्होंने एक मास्क बांटने के साथ यह अपील जोड़ी कि वह खुद मास्क नहीं देंगे जो इसके इच्छुक हैं वे उनसे मास्क ले सकते हैं। यह अपील उन्हें इन अनुभवों के कारण करनी पड़ी ।

पीपुल्स अलायंस के सदस्य ने बताया कि उन्होंने एक अपने परिचित को उस वक्त मास्क दिया जो कि रास्ते में बिना मास्क लगाए जा रहे थे। लेकिन उन्होंने दूर से ही मास्क लेने से मना कर दिया।अन्य दो लोग ऐसे थे जिन्होंने मास्क तो ले लिया लेकिन लगाया नहीं और आगे बढ़कर रिक्शे वाले को थमा दिया।

तीसरी कहानी डुमरिया गंज के इलाके की है। जहां पीपुल्स अलायंस के अन्य सदस्य ने बताया कि लॉकडाउन के बाद शुरूआत से ही संस्था के सदस्य जगह जगह जरूरतमंदों को राशन पहुंचा रहे थे। लेकिन मीडिया के दुष्प्रचार का यह असर हुआ कि जो जरूरतमंद हैं वह भी इस प्रचार के असर से डर गए हैं तो राशन-खाना लेने में हिचक रहे हैं।

पीपुल्स अलायंस विभिन्न जातियों व धर्मों से जुड़े लोगों का लॉक डाउन के बाद त्वरित बना एक मंच हैं। यह मंच वाह्टस एप के जरिये जरूरत चाहने वालों के बारे में एक जगह से दूसरी जगह सूचनाएं भेजता हैं।

कोरोना के बहाने हुए दुष्प्रचार ने गरीब, असहाय लोगों के बीच एक अदृश्य भीड़ तंत्र खड़ा कर दिया है और यह अदृश्य भीड़ तंत्र भूख और दूसरी बुनियादी जरूरतों के अभाव में लोगों को मरने के हालात तक पहुंचा रहा है।

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