मुनाफ़े के लिए इंडिगो एयरलाइन का कुप्रबंधन और यात्रियों की बढ़ती परेशानी

इंडिगो का कुप्रबंधन और उड्डयन मंत्रालय की अकुशलता से ऐसी स्थिति बनी है जिसमें सबसे ज्यादा नुकसान यात्रियों को हो रहा है। यदि भारत वैश्विक उड्डयन केंद्र बनना चाहता है, तो यात्रियों की सुरक्षा, सम्मान, सुविधा और अधिकारों को प्राथमिकता देनी ही होगी।

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शैलेंद्र चौहान

भारतीय उड्डयन क्षेत्र आज दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते बाजारों में शामिल है, लेकिन यह विस्तार जितना चकित करता है, उतना ही चिंतित भी करता है। हवाई यात्रियों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी के बावजूद, भारतीय एयरलाइंस और सरकारी नियामक संस्थाएं यात्रियों को सुरक्षित, समयबद्ध और भरोसेमंद सेवाएं देने में नाकाम दिखती हैं। इसका सबसे बड़ा दर्पण बनकर उभरता है—इंडिगो एयरलाइंस का संचालन मॉडल, जिसने वर्षों से मुनाफ़े को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए यात्री सुविधाओं, सेवा-गुणवत्ता, सुरक्षा-मानकों और पारदर्शिता को गौण बना दिया है। उधर उड्डयन मंत्रालय और नागर विमानन महानिदेशालय यानी डीजीसीए की नीतिगत ढिलाई और अकुशलता ने इस समस्या को संस्थागत रूप दे दिया है। नतीजा यह कि आम यात्री लगातार परेशानियों, असुरक्षा, अव्यवस्था और उपेक्षा का सामना कर रहा है।

इंडिगो की ओवरबुकिंग : एक “व्यापार रणनीति” जो यात्री के लिए बनी दुःस्वप्न

विश्व स्तर पर ओवरबुकिंग को एयरलाइंस अपनीती हैं, लेकिन यह तभी व्यवहारिक होती है जब यात्रियों को विकल्प, मुआवज़ा और पूर्ण पारदर्शिता मिले। भारत में इंडिगो जैसे निजी ऑपरेटरों ने इसे मुनाफ़ा बढ़ाने का साधन बना लिया है। उड़ानों में जितनी सीटें हैं, उससे 10–20% अधिक टिकट बेचना और फिर हवाईअड्डे पर यात्रियों को “बोर्डिंग अस्वीकार” जैसी स्थिति का सामना कराना आम हो चुका है। एयरलाइंस इसे “नो-शो पैसेंजर” के संतुलन के नाम पर उचित ठहराती हैं, लेकिन यह प्रबंधन की विफलता और अव्यवस्था को व्यवस्थित करने के बजाय यात्रियों पर थोपने का तरीका है।

ओवरबुकिंग के कारण कई यात्रियों को अपने महत्वपूर्ण काम, मीटिंग, पारिवारिक अवसर या चिकित्सकीय अपॉइंटमेंट तक छोड़ने पड़ते हैं। सबसे चिंताजनक यह है कि इंडिगो अक्सर मुआवज़े के स्पष्ट नियमों का पालन नहीं करती, और यात्रियों को घंटों तक हवाईअड्डे पर भटकना पड़ता है।

फ्लाइट कैंसिलेशन और देरी से उड़ानों का संकट

इंडिगो के संचालन में पिछले वर्षों से उड़ान रद्द होने और घंटों देरी से उड़ान भरने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। आधिकारिक कारण आमतौर पर “ऑपरेशनल इश्यू”, “मौसम”, “तकनीकी गड़बड़ी” या “स्टाफ शॉर्टेज” बताए जाते हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि पायलटों की कमी, क्रू मैनेजमेंट की अव्यवस्था, अधिकतम पैसेंजर फ्लाइट्स शेड्यूल करने का दबाव और ग्राउंड हैंडलिंग का कमजोर सिस्टम इस देरी और रद्द होने के मूल कारण हैं। उड़ान रद्द होने पर एयरलाइन यात्रियों को ठीक से सूचित नहीं करती, और कई बार रिफंड या मुआवज़े के लिए सप्ताहों तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है।

क्रू और पायलटों की थकान: सुरक्षा पर घनघोर खतरा

पिछले वर्षों में इंडिगो के पायलट और क्रू ने लगातार थकान, ओवरवर्क और अत्यधिक दबाव के मुद्दे उठाए हैं। कई पायलटों ने शिकायत की कि उन्हें न्यूनतम विश्राम समय नहीं दिया जाता, और शेड्यूलिंग टीम मुनाफ़े के दबाव में उनकी क्षमता से अधिक फ्लाइटें अलॉट करती है।

यह केवल कर्मचारी अधिकारों का मुद्दा नहीं, बल्कि यात्री सुरक्षा का प्रश्न है। थके हुए पायलटों द्वारा विमान उड़ाना अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मानकों का स्पष्ट उल्लंघन है। लेकिन डीजीसीए की “कागजी जांच” और इंडिगो की “कॉर्पोरेट भाषा” के बीच यह मुद्दा लगातार दबा दिया गया।


एयरपोर्ट पर हेल्प डेस्क की नाकामी

इंडिगो अपनी “ऑनटाइम परफार्मेंस” का दावा करती है, लेकिन जमीन पर हालात इसके उलट हैं। सहायता काउंटरों पर स्टाफ की कमी, यात्रियों के प्रश्नों का समाधान न होना, सामान को होने वाले नुकसान या गुम होने पर फौरन मदद का अभाव और व्हीलचेयर/विशेष जरूरत वाले यात्रियों के प्रति उपेक्षा आम बात है। ये समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। बदसलूकी के कई वीडियो और शिकायतें सोशल मीडिया पर सामने आती हैं, जिससे एयरलाइन की ब्रांड छवि भी प्रभावित होती है। लेकिन कंपनी की रुचि इन शिकायतों को हल करने के बजाय “इमेज मैनेजमेंट” और फायरफाइटिंग में अधिक दिखती है।

उड्डयन मंत्रालय और डीजीसीए : नियमन की जगह मौन, सुधार की जगह खोखले बयान

डीजीसीए का काम नियामक का है, लेकिन वह मात्र दर्शक बनकर रह गया है। डीजीसीए का दायित्व सुरक्षा, सेवा-मानक, टिकटिंग व्यवस्था, मुआवज़ा प्रणाली और संचालन शुचिता की निगरानी करना है। लेकिन इंडिगो जैसी बड़ी एयरलाइंस के मामलों में डीजीसीए अक्सर अत्यंत नरम रवैया अपनाती है। मामूली जुर्माने, चेतावनियां या केवल नोटिस भेज कर औपचारिकता पूरी कर ली जाती है। इन सबके कारण एयरलाइंस बिना भय के मनमानी करती रहती हैं। जुर्माना लाखों में लगता है, लेकिन इंडिगो जैसी कंपनियां जो अरबों का वार्षिक मुनाफ़ा कमाती हैं; ऐसे में जुर्माना उनकी आर्थिक रणनीति का हिस्सा मात्र बनकर रह जाता है।

नीतिगत फैसलों में आनाकानी और राजनीतिक दखल

उड्डयन मंत्रालय द्वारा एयरलाइंस को स्लॉट (टेकऑफ–लैंडिंग समय), रूट और परमिट अलॉट करने के नियम पारदर्शी नहीं हैं। बड़े ऑपरेटरों को प्राथमिकता देने से छोटी और क्षेत्रीय एयरलाइंस कमजोर होती हैं। इससे प्रतिस्पर्धा कम होती है, नतीजतन बड़ी कंपनियां सेवाओं में गिरावट के बावजूद यात्रियों पर बोझ डालती रहती हैं। नीतिगत स्तर पर परिवर्तन लाने में मंत्रालय बहुत सुस्त है। कई बार राजनीतिक कारणों से एयरलाइंस को छूट दी जाती है। मंत्रालय का काम यात्रियों की सुरक्षा और अधिकारों की रक्षा करना है, लेकिन प्रशासन का रवैया अक्सर एयरलाइंस के हितों के अनुरूप दिखता है।

हवाई अड्डा अवसंरचना : तेजी से बढ़ती मांग, धीमी प्रतिक्रिया

पिछले दशक में यात्रियों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है, लेकिन उसके अनुपात में हवाईअड्डों का आधुनिकीकरण और विस्तार नहीं हुआ। नतीजा हवाई अड्डों पर भीड़भाड़, सामान हैंडलिंग में देरी, रनवे पर ट्रैफिक जाम, सुरक्षा जांच में लंबी कतारें और विमान संचालन में देरी होना है। ये समस्याएं आम हो गई हैं। मंत्रालय और निजी हवाईअड्डा प्रबंधन कंपनियां डिज़ाइन क्षमता बढ़ाने में पीछे रह गई हैं, जिससे एयरलाइंस को मनमानी करने का और अवसर मिलता है—क्योंकि अव्यवस्था का दोष वे “एयरपोर्ट कंजेशन” के नाम पर डाल देती हैं।


रिफंड में दोरी, मुआवज़ा तो और मुश्किल

जब इंडिगो या कोई भी एयरलाइन उड़ान रद्द करती है, तो यात्री को मिलने वाला रिफंड कई बार हफ्तों या महीनों तक रोका जाता है। एयरलाइंस “क्रेडिट शेल” का विकल्प देती हैं, जिसमें पैसा यात्रियों के खाते में बंध जाता है। यह उपभोक्ता अधिकारों का उल्लंघन है। विदेशों में ईयू-261 जैसे नियम यात्रियों को मोटा मुआवज़ा देते हैं लेकिन भारत में इस दिशा में कोई ठोस कानून नहीं है। परिणामस्वरूप एयरलाइंस मनमानी करती रहती हैं और मंत्रालय/नियामक मौन रहते हैं।

इंडिगो की बाज़ार हिस्सेदारी 55% से अधिक होने का अर्थ यह है कि आधे से ज्यादा यात्रियों के पास विकल्प सीमित हैं। एयरलाइन अपने प्रभुत्व का उपयोग कर सकती है। कम प्रतिस्पर्धा का परिणाम हमेशा उपभोक्ता के लिए हानिकारक होता है, और यह स्थिति उड्डयन क्षेत्र में तेज़ी से बन रही है। अन्य एयरलाइंस या तो बंद हो गईं (जेट एयरवेज) या संघर्ष कर रही हैं (गो फर्स्ट, स्पाइसजेट)। इससे इंडिगो की पकड़ और मजबूत हो रही है।

डीजीसीए को दंडात्मक शक्ति और कठोर नियम देने की आवश्यकता है। जब तक नियामक संस्था कठोर, निष्पक्ष और प्रभावी नहीं होगी, एयरलाइंस नियमों को केवल औपचारिकता की तरह लेंगी। DGCA को करना चाहिए। ओवरबुकिंग पर सीमा तय करना, देरी/रद्द उड़ानों पर स्पष्ट मुआवज़ा नियम लागू करना, फ्लाइट स्टाफ के आराम और सुरक्षा मानकों का कठोर पालन, गंभीर मामलों में लाइसेंस निलंबन तक की कार्यवाही।

यात्री अधिकार कानून के लिए भारत को ईयू-261 जैसे नियम चाहिए। यदि भारत में मजबूत यात्री अधिकार कानून लागू किया जाए, तो एयरलाइंस को जवाबदेह बनाना संभव होगा। इसमें देरी/रद्दीकरण पर निश्चित राशि का मुआवज़ा, बोर्डिंग डिनायल पर दोगुना मुआवज़ा, रिफंड 48 घंटे में अनिवार्य और क्रेडिट शेल की बाध्यता समाप्त।

इसके अलावा नए रनवे, बैगेज सिस्टम का आधुनिकीकरण, सुरक्षा जांच में टेक्नोलॉजी का उपयोग और भीड़ नियंत्रण के लिए प्रबंधन जैसे जरूरी सुधार हवाई अड्डों पर करना जरूरी हैं।

इंडिगो का कुप्रबंधन और उड्डयन मंत्रालय की अकुशलता मिलकर ऐसी स्थिति निर्मित कर रहे हैं जिसमें सबसे ज्यादा नुकसान यात्रियों को हो रहा है। यदि भारत वास्तव में वैश्विक उड्डयन केंद्र बनना चाहता है, तो यात्रियों की सुरक्षा, सम्मान, सुविधा और अधिकारों को प्राथमिकता देनी ही होगी। इंडिगो जैसे बड़े ऑपरेटरों की मनमानी तभी रुकेगी जब सरकार और नियामक ईमानदारी, पारदर्शिता और कठोरता से कार्य करें।

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