मोदी-शाह की जोड़ी का कुप्रबंधनः जल्द ही बड़े पैमाने पर बीजेपी में होगी भगदड़

कुछ लोग अभी बीजेपी में नेतृत्व परिवर्तन का इंतजार कर रहे हैं, वहीं बीजेपी से दुखी सांसदों और विधायकों की एक बड़ी संख्या ने उन दलों में अपनी संभावनाएं तलाशनी शुरू कर दी है, जहां से वे बीजेपी में आए थे।

फोटोः सोशल मीडिया
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सुजाता आनंदन

हाल ही में वंशवाद के गुण-दोषों पर एक चर्चा में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा, “राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में बात करें तो राजनीतिक राजवंशों के उत्तराधिकारियों का आपकी जगह संभालना ज्यादा बेहतर होता है।”

वह ये बात राहुल गांधी के बारे में नहीं बोल रहे थे। वह खुद राजवंशीय उत्तराधिकार से लाभान्वित हुए हैं - उनकी मां इंदिरा गांधी की काफी करीबी थीं और वह महाराष्ट्र कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष भी थीं। चव्हाण अमेरिका में नौकरी कर रहे थे और काफी खुश थे, लेकिन उनकी पृष्ठभूमि को देखते हुए राजीव गांधी ने उन्हें वापस राजनीति में बुला लिया। हालांकि, उन्होंने आज बीजेपी समेत सभी राजनीतिक दलों में मौजूद भाई-भतीजावाद के खिलाफ तर्कों को स्वीकार किया लेकिन उनका ज्यादा ध्यान 2014 के चुनावों के दौरान ‘आया राम’ और ‘गया राम’ नेताओं पर था।

मई 2014 में लोकसभा चुनावों और उसके 6 महीने बाद अक्टूबर 2014 में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के बीच कांग्रेसियों की एक बड़ी भीड़ और शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से भी कई लोग बीजेपी में गए थे। अमित शाह ने दोनों ही पार्टियों के कई संभावित विजेताओं का सावधानी से चयन कर उन्हें प्रलोभन दिया और विधानसभा का टिकट भी दिया। उनमें से ज्यादातर ने जीत हासिल की। लेकिन जो लोग कांग्रेस में बचे रहे उनमें ज्यादातर बच्चे, जवान या बूढ़े और पूर्व कांग्रेसी थे और पार्टी से उनकी वफादारी और उसकी संस्कृति में उनका विश्वास बीजेपी द्वारा दिए जाने वाले किसी भी प्रलोभन से कहीं अधिक मजबूत था।

उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी से नरेंद्र मोदी और अमित शाह द्वारा बीजेपी मे लाए गए बहुत सारे दलित सांसदों की बेचैनी सामने आने के बाद हो सकता है कि अब पार्टी से बहुत सारे नेता वापस उन पार्टियों में लौटेंगे जहां से वे आए थे।

कर्नाटक में बीजेपी की संभावनाएं जरा भी अच्छी नहीं नजर आ रही हैं। पूर्व सहयोगी तेलगु देशम पार्टी के एनडीए गठबंधन से अलग होने और अक्टूबर 2014 में गठबंधन से निकाल दी गई शिवसेना द्वारा गठबंधन में वापस आने के लिए दिए जा रहे हर तरह के प्रलोभनों को ठुकरा दिए जाने से पूर्व में स्थिर माना जाने वाला यह गठबंधन कमजोर हुआ है।

एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल द्वारा किनारे लगा दिए गए पूर्व कांग्रेसी रहे गोडिंया से बीजेपी सांसद नाना पटोले दल-बदल करने वाले पहले शख्स थे, जिन्होंने दीवार पर लिखी इबारत पढ़कर बहुत पहले ही अपनी लोकसभा सीट छोड़ दी थी। उन्हें कांग्रेस से टिकट मिल भी सकता है या नहीं भी मिल सकता है, लेकिन बीजेपी में ऐसे कई सांसद हैं, जो तैयार बैठे हैं और किसी भी अल्प सूचना पर पार्टी छोड़ सकते हैं। ऐसे सभी नेताओं में मौसम के सबसे अनुकूल रहने वाले केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले भी विरोधी सुर अलाप रहे हैं और बहुत जल्द एलसीपी में लौट सकते हैं।

इस सबकी सबसे बड़ी वजह मोदी और शाह दोनों के कामकाज की शैली है। बीजेपी के एक विचारक ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि इन दोनों ने देवेंद्र फडणवीस और नितिन गडकरी सहित पार्टी में कई लोगों को गलत तरीके से परेशान किया है। लेकिन आरएसएस के साथ-साथ चव्हाण के वर्णन के अनुसार ये दोनों ही प्रतिबद्ध राजवंशीय हैं (दोनों के पिता संघ में थे)। ऐसे कई अन्य लोग हैं जो अब अपने खुद के भविष्य को लेकर चिंतित हैं।

बीजेपी विचारक ने कहा कि पार्टी को स्वर्गीय प्रमोद महाजन जैसे माहिर संयोजक की तत्काल जरूरत है, जो लोगों को गठबंधन में बनाए रखने के लिए मधुर लहजे में बात कर सकता हो, अन्यथा नीतीश कुमार गठबंधन छोड़ने वाले अगले नेता हो सकते हैं। मोदी और शाह को चुनावी मशीनों के रूप में देखा जाता था, जिन्हें चुनाव दर चुनाव जीतने के लिए खुद के अलावा किसी और की जरूरत नहीं पड़ती थी। लेकिन यह खूबी अब बोझ में बदल रही है। दोनों सुझावों को लेकर बहुत विनम्र नहीं हैं और न ही कुछ सुनने की इच्छा रखते हैं।

गोरक्षा से उन्हें कम लाभ हो रहा है। किसानों समेत कई समुदाय के लोग सरकार की उन मनमानी नीतिंयों से परेशान हैं, जो उनके आर्थिक हितों के खिलाफ हैं। नोटबंदी का प्रभाव और गलत तरीके से लागू किए गए वस्तु एवं सेवा कर ने छोटे कारोबारियों और व्यापारियों के मूल आधार को प्रभावित किया है और उनकी किसी भी लोकलुभावन योजनाओं को जनता के बीच तारीफ नहीं मिल रही है।

लगातार तीन बार से बीजेपी के एक लोकसभा सांसद ने हाल ही में अमित शाह के ध्यान में ये बात लाई कि उनके क्षेत्र के लोग पूछ रहे हैं कि बीजेपी वास्तव में कब उनके लिए कुछ करने जा रही है। उनके अनुसार, उनके मतदाताओं ने उन्हें कहा कि मोदी सरकार की फसल बीमा, जीवन बीमा जैसी हर योजना में उन्हें सरकार को कुछ न कुछ देना होता है। भले ही वह पांच या दस रुपये हो, लेकिन यह गरीब ग्रामीणों के लिए एक बड़ी राशि है। अगर वे इन राशियों का भुगतान कर भी दें तो भी इनकी मियाद 20 या 50 साल होती है और इसलिए वे इसके लाभ को देखने के लिए शायद ही जीवित रहें।

उन्होंने सांसद को बताया कि आखिरी बार जो कुछ किसी सरकार ने उनके लिए किया था, तो वह रोजगार गारंटी योजना, मनरेगा था, जिसने उन्हें एक निश्चित आय (बिना कुछ लिए) उपलब्ध कराया था। लेकिन मोदी सरकार उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य भी देने में असमर्थ है। समस्याएं अभी और बढ़ सकती हैं, फिर भी क्या मोदी-शाह की जोड़ी कुछ सुनने की इच्छुक थी। अपने क्षेत्र के ग्रामीणों के सवाल उठाने वाले सांसद के मुताबिक, जब उन्होंने दोनों शीर्ष नेताओं के सामने इस चिंता को उठाया, तो उन्हें इतने कठोर रूप से खारिज कर दिया गया कि उन्हें वह अपनी गरिमा और आत्मसम्मान का उल्लंघन लगा और वह अब फिर कभी उन दोनों से बात नहीं करना चाहते हैं।

जो लोग आरएसएस की पृष्ठभूमि से हैं या फिर जिनके माता-पिता बीजेपी में हैं, वे नेतृत्व में बदलाव का इंतेजार कर रहे हैं। लेकिन बीजेपी के एक विचारक का कहना है कि बीजेपी द्वारा अपनी चुनावी संख्या को बढ़ाने के लिए जिन सांसदों और विधायकों की विशाल संख्या को पार्टी में शामिल कराया गया था, वे लोग उन पार्टियों से बातचीत शुरू कर चुके हैं, जहां से उन्होंने पलायन कर लिया था।

सत्ता की गंध उन्हें बीजेपी में लाने वाली एकमात्र चीज थी। मोदी और शाह में मुद्दों की कोई समझ नहीं होने और बेहतर सुझावों को सुनने के प्रति अनिच्छा को देखते हुए वे अब हार को आसानी से महसूस कर सकते हैं। उन्हें बीजेपी में रोके रखने के लिए उनके पास कुछ भी नहीं है। ऐसे में बीजेपी से जल्द ही एक भगदड़ की संभावना साफ देखी जा सकती है।

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