एम जे अकबरः राजनीति की तो उसूलों के उलट और यौन हवस में पार कर दीं सारी हदें

इक्कीसवीं सदी की महिला हर चीज की तरह बदल चुकी है। उसे रोजगार भी चाहिए और इज्जत भी। वह घुट-घट कर जीने को तैयार नहीं है। मी टू आंदोलन इस सच्चाई का सबूत है और वो चाहे एमजे अकबर हों या नाना पाटेकर, आज की दुनिया में हवस के भेड़ियों की जगह खत्म होती जा रही है।

फोटोः सोशल मीडिया
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ज़फ़र आग़ा

अल्लहा की पनाह, क्या दबदबा था एम जे अकबर का! अकबर जो लिख दें वह पत्थर की लकीर होता था। किसी भी मुद्दे पर उनका लिखा आखिरी शब्द समझा जाता था। जिस राजनेता के पक्ष में अकबर लिख देते उसका वारा न्यारा हो जाता और जिसके खिलाफ लिख देते उसकी मिट्टी पलीद हो जाती। जी हां एम जे अकबर हिंदुस्तान के संभवतः एकलौते ऐसे पत्रकार रहे हैं जिनका नाम सिर्फ हिंदुस्तान और पाकिस्तान तक ही सीमित नहीं था, बल्कि अकबर दुनिया भर के कुछ प्रसिद्ध नामी पत्रकारों में से एक रहे हैं। फिर अचानक अकबर को राजनीति का शौक हो गया और वह कुछ दिन कांग्रेस में रहे, फिर वापस पत्रकारिता में लौट आए और अपना करिश्मा दिखाया और फिर मोदी के नेतृत्व में बीजेपी में शामिल हो गए। और आखिरकार मोदी सरकार में मंत्री भी बन गए।

अकबर के इस फैसले ने सिर्फ पत्रकारों को ही नहीं बल्कि दुनिया भर के बुद्धीजीवियों को हैरत में डाल दिया। जवाहर लाल नेहरू और राजीव गांधी जैसे उदारवादी नेताओं के लिए भी प्रशंसनीय रहे अकबर गुजरात दंगों के आरोप में घिरे नरेंद्र मोदी को आखिर अपना नेता कैसे बना बैठे, ये बात किसी की समझ में नहीं आयी। दुनिया भर में शोर मच गया कि कलम से सिद्धांतों और न्याय का ढिंडोरा पीटने वाले अकबर मौका परस्त हैं। क्योंकि किसी को ये समझ में नहीं आया कि कल तक उदारवाद और धर्मनिरपेक्षता की बात करने वाले एमजे अकबर को संघ और बीजेपी की सांप्रदायिक राजनीति में सिवाय मौकापरस्ती के और क्या खूबी नजर आयी कि वो मोदी के साथ हो लिए। बहरहाल ऐसी कौन सी चीज थी कि जिसकी एम जे अकबर को कमी थी। नाम और शोहरत अल्लाह ने उनको जी भर के दी। कामयाबी का ये आलम रहा कि उन्होंने जिस अखबार या मैगजीन को छू दिया वो आसमान पर पहुंच गया। घोड़ा, गाड़ी, मकान, फार्म हाऊस जैसी दुनिया की हर नेमतों से मालामाल अकबर को किसी भी चीज की जरूरत नहीं थी। लेकिन आलोचकों के अनुसार अकबर को हवस ने मारा।

जी हां, 6-7 महिला पत्रकारों ने अकबर पर यौन उतपीड़न के जैसे आरोप लगाए हैं, उनसे तो कुछ ऐसा ही प्रतीत होता है कि अकबर को हवस ने मारा। राजनीति किया तो सिद्धांतों से परे जाकर, और यौन हवस के शिकार हुए तो हद से गुजर गए। अब हालत ये है कि शोर मच रहा है कि अकबर को सरकार से बाहर करो। इस आलेख के लिखे जाने तक वो देश से बाहर थे और उनका कोई बयान नहीं आया था। लेकिन ये तय है कि सरकार से उनका बाहर जाना जरूरी है। मुस्लिम औरतों के अधिकारों का दम भरने वाली बीजेपी अकबर को सरकार से बाहर करने में अभी आनाकानी कर रही है। तो कुल मिलाकर बात ये है कि अकबर की कामयाबी की ऊंचाई और उनके पतन को देखकर क़ुरान की वो आयत याद आती है जिसका अर्थ कुछ इस तरह है: अल्लाह जिसको चाहे इज्जत दे, और अल्लाह जिसको चाहे जिल्लत दे। जी हां, अकबर को अल्लाह ने इज्जत दी तो आसमान पर बैठा दिया और अब जब जिल्लत दी तो अकबर के लिए जमीन में भी धंसने की जगह नहीं बची। खैर, ये तो अकबर का मामला है, वो जल्द ही अपने अंजाम तक पहुंच जाऐंगे।

लेकिन एम जे अकबर और नाना पाटेकर जैसे लोगों पर ‘मी टू’ कैंपेन के तहत लगे यौन उत्पीड़न के आरोपों का जो मुद्दा खड़ा किया है वो बहुत ही गंभीर है। दरअसल, इस अभियान की शुरूआत ठीक एक साल पहले अमेरीका में हालीवुड से शुरू हुई जिसमें वहां की कई अभिनेत्रियों ने एक मशहूर फिल्म डायरेक्टर और निर्माता हार्वे वेनस्टीन पर ये आरोप लगाया कि अपनी कामयाबी और शोहरत के नशे में डूबा वो शख्स कैसे अपने हवस को पूरा करने के लिए जवान अभिनेत्रियों का यौन शौषण करता था। ज्यादातर घटनाएं सालों पुरानी थीं लेकिन उनका शोर मच गया, दुनिया भर में औरतों ने अपना मुंह खोलना शुरू कर दिया और अपनी आप-बीती सुनानी शुरू कर दी। इस तरह सोशल मीडिया पर ‘हैश टैग मी टू’ यानी मैं भी इस में शामिल हूं- आंदोलन दुनिया भर में चल पड़ा। और अब वही आंदोलन भारत में अपना रंग दिखा रहा है और हंगामा खड़ा किये हुए है। फिल्म इंडस्ट्री, मीडीया, टीवी, एडवरटाइजमेंट ही क्या हर कारोबारी क्षेत्र में इस आंदोलन का शोर है और एक-एक कर के बड़े-बड़े बुत गिर रहे हैं। और अकबर भी इसी आंदोलन के शिकार हुए।

इस में कोई शक नहीं कि मर्द ने औरत को हमेशा अपने से कमतर और अक्सर अपनी हवस मिटाने का खिलौना समझा है। लेकिन धीरे-धीरे महिलाएं इस नाइंसाफी के खिलाफ संघर्ष कर मर्दों के बराबर खड़ी होती गईं। और अब ये हुआ कि बीसवीं और इक्कीसवीं सदी में महिलाएं जीवन के हर क्षेत्र में मर्दों की तरह अपनी मौजूदगी दर्ज करा रही हैं। लेकिन कुछ लोगों ने महिलाओं की इस आजादी का गलत फायदा उठाया और अपनी ताकत और ऊंचे पद के घमंड में उनका यौन उत्पीड़न करना शुरू कर दिया। चूंकि महिलाओं को नौकरी और सफलता चाहिए थी, इस वजह से अक्सर कुछ महिलाएं खामोश रहीं और कुछ सब कुछ छोड़छाड़ कर घर जा बैठीं।

लेकिन ये इक्कीसवीं सदी है और ये स्मार्ट फोन का दौर है। आज की लड़की हर चीज की तरह बदल चुकी है। उसे रोजगार भी चाहिए और इज्जत भी। इस इक्कीसवीं सदी की महिला घुट-घट कर जीने को तैयार नहीं है। मी टू आंदोलन इस सच्चाई का सबूत है और वो चाहे एमजे अकबर हों या नाना पाटेकर, आज की दुनिया में हवस के भेड़ीयों की जगह खत्म होती जा रही है।

समाज में महिलाएं भी उतना ही सम्मान पाने की हकदार हैं, जितना कि मर्द। इस लोकतांत्रिक दुनिया में दोनों को बिल्कुल बराबर अधिकार प्राप्त हैं। उनमें से किसी को किसी का भी यौन शोषण या किसी और तरह का उत्पीड़न करने का हक नहीं है। ये अधिकार अब सिर्फ संविधान तक ही सीमित नहीं रह सकता, बल्कि अब इस अधिकार को आज की महिलाएं हर हाल में लेकर रहेगी। अगर कोई उसे ये अधिकार देने को तैयार नहीं तो उसको इसके परिणाम भुगतने पड़ेंगे। वो एमजे अकबर हों या नाना पाटेकर, हर किसी का हिसाब-किताब होगा और महिलाओं को उनका अधिकार और न्याय मिलेगा। महिला अधिकार की इस लड़ाई में हम उनके साथ ही नहीं बल्कि उस के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने को भी तैयार खड़े हैं। ‘मी टू’ के झंडे तले महिलाओं ने जो आंदोलन शुरू किया है वो कामयाब होगा और हमें इस बात का भी विश्वास है कि रोजगार के नाम पर महिलाओं के जिस यौन उत्पीड़न का चलन चल पड़ा है वो भी खत्म होगा।

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