मोदी सरकार ने की ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के बजट में कमी, गांवों को नहीं मिल रहा पर्याप्त पीने का पानी

इस वर्ष के बजट में अधिक वृद्धि की उम्मीद अवश्य थी पर पिछले वर्ष के संशोधित अनुमान की तुलना में देखें तो 7050 करोड़ रुपए से कम होकर इस वर्ष का बजट अनुमान मात्र 7000 करोड़ रुपए रह गया है।

फोटो: सोशल मीडिया
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भारत डोगरा

गर्मी की दस्तक होने के साथ ही देश के अनेक गांवों में गंभीर पेयजल संकट के समाचार मिलने आरंभ हो गए है। इस संदर्भ में एक बड़ा सवाल यह है कि जब ग्रामीण पेयजल को एक उच्च प्राथमिकता मानने के बारे में व्यापक सहमति है, तो फिर ग्रामीण पेयजल व्यवस्था के लिए पर्याप्त आर्थिक संसाधन उपलब्ध करवाने में केंद्रीय सरकार कंजूसी क्यों दिखा रही है।

गांवों की प्यास बुझाने के लिए राष्ट्रीय स्तर के प्रमुख कार्यक्रम का नाम है राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम। इस कार्यक्रम के लिए केन्द्रीय सरकार के बजट में होने वाले आवंटन को हम यदि देखें तो स्पष्ट होता है कि इसमें महत्त्वपूर्ण कमी आई है। यह तालिका में दिखाया गया है।

राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के लिए केन्द्रीय बजट में वास्तविक खर्च या आवंटन:

2012-13 (वास्तविक खर्च) में 10,490 करोड़ रुपए

2013-14 (वास्तविक खर्च) में 9,691 करोड़ रुपए

2014-15 (वास्तविक खर्च) में 9,242 करोड़ रुपए

2015-16 (वास्तविक खर्च) में 4,369 करोड़ रुपए

2016-17 (बजट अनुमान) में 5,000 करोड़ रुपए

2016-17 (संशोधित अनुमान) में 6,000 करोड़ रुपए

2017-18 (बजट अनुमान) में 6,050 करोड़ रुपए

2017-18 (संशोधित अनुमान) में 7,050 करोड़ रुपए

2018-19 (बजट अनुमान) में 7,000 करोड़ रुपए

इस तालिका से स्पष्ट है कि वर्ष 2012-13 में इस कार्यक्रम के लिए 10,490 करोड़ रुपए खर्च हुआ था जबकि वर्ष 2018-19 के बजट में मात्र 7,000 करोड़ रुपए का आवंटन है।

मुख्य गिरावट वर्ष 2015-16 में आई। इसकी एक वजह यह बताई जाती है कि 14 वें वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार अधिक धनराशि राज्य सरकारों को दी गई। पर इतनी ऊंची प्राथमिकता के कार्यक्रम में इतनी बड़ी कमी नहीं करनी चाहिए थी क्योंकि नई स्थिति को संभालने में वक्त लगता है। राज्य सरकारों का आवंटन इतना भी नहीं बढ़ा कि वे इतने बड़े झटके को संभाल सकें।

उसके बाद भी जो अगले दो वर्षों में वृद्धि की गई वह मामूली सी ही थी व उससे पहले हुई क्षति की भरपाई नहीं हो सकी।

इस वर्ष के बजट में अधिक वृद्धि की उम्मीद अवश्य थी पर पिछले वर्ष के संशोधित अनुमान की तुलना में देखें तो 7050 करोड़ रुपए से कम होकर इस वर्ष का बजट अनुमान मात्र 7000 करोड़ रुपए रह गया है। यदि मंहगाई के असर को भी देखा जाए तो यह कमी और भी अधिक नजर आएगी।

वर्ष 2012-13 की तुलना में गिरावट को देखें तो यह बड़ी गिरावट है, पर यदि इसे महंगाई का असर हटाकर देखा जाए तो गिरावट और भी बड़ी है।

इस पृष्ठभूमि में हमें यह समझना होगा कि देश के बहुत से गांवों से गंभीर जल संकट के समाचार पिछले कुछ वर्षों में क्यों बढ़ते रहे हैं। निश्चय ही इसके व्यापक पर्यावरणीय कारण भी हैं पर साथ में पर्याप्त संसाधन उपलब्ध न होना भी एक बड़ी समस्या रहा है।

अतः अब यह समय आ गया है कि शीघ्र ही सरकार को इस क्षेत्र के संदर्भ में कदम उठाना चाहिए ताकि राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम स्वयं जरूरी संसाधनों के अभाव में प्यासा न रह जाए।

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