मोदी सरकार मानवाधिकार हनन करने वाले देशों के साथ खड़ी है!

दुनिया के जितने भी नेता या राष्ट्राध्यक्ष मानवाधिकार और शांति पर प्रवचन देते हैं, सभी फिलिस्तीनियों के इजराइल की सेना द्वारा किये जा रहे नरसंहार को रोकने के बदले उसे बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं।

भारत ने इजराइल को फिलिस्तीनियों के नर-संहार के बीच ही सैन्य-श्रेणी के ड्रोन भेजे हैं
भारत ने इजराइल को फिलिस्तीनियों के नर-संहार के बीच ही सैन्य-श्रेणी के ड्रोन भेजे हैं
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महेन्द्र पांडे

मोदी सरकार हरेक उस देश के साथ खड़ी है, जहां मानवाधिकार हनन किया जाता है या फिर जहां की सत्ता नरसंहार में विश्वास रखती है। वैश्विक मंच पर शांति और वसुधैव कुटुम्बकम का नारा देने वाली मोदी सरकार रूस, इजराइल, म्यांमार और बांग्लादेश जैसे देशों की मदद में लिप्त है और चीन की तमाम भूमि-हड़पो नीति के बाद भी चीन के विरुद्ध कोई वक्तव्य नहीं आता। यह महज संयोग नहीं हो सकता कि ऐसे हरेक देश से गौतम अडानी के भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रिश्ते हैं। रूस और चीन से रिश्ते हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट में बताये गए थे, बांग्लादेश को अडानी ग्रुप बिजली की आपूर्ति करता है और इजराइल और म्यांमार में अडानी ग्रुप बंदरगाह बना रहा है। अब खबर यह है कि भारत ने इजराइल को फिलिस्तीनियों के नर-संहार के बीच ही सैन्य-श्रेणी के ड्रोन भेजे हैं, पर इस सौदे को भारत और इजराइल दोनों ने गोपनीय रखा है। जाहिर है इनका उपयोग गज़ा में चल रहे नर-संहार में किया जाएगा।

दुनिया के जितने भी नेता या राष्ट्राध्यक्ष मानवाधिकार और शांति पर प्रवचन देते हैं, सभी फिलिस्तीनियों के इजराइल की सेना द्वारा किये जा रहे नरसंहार को रोकने के बदले उसे बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं। अमेरिका ने लगातार तीसरी बार गाजा में तत्काल युद्ध-विराम से सम्बंधित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के प्रस्ताव को वीटो किया है। अमेरिका और कुछ यूरोपीय देशों के साथ ही भारत भी इजराइल और फिलिस्तिन – दो राष्ट्रों के समर्थन का दावा तो करता है, दूसरी तरफ ये सभी देश इजराइल को सैन्य मदद भी पहुंचा रहे हैं, जिनका उपयोग कर फिलिस्तिनियों का नरसंहार किया जा रहा है, निर्दोष महिलाओं और बच्चों का कत्लेआम किया जा रहा है। अमेरिका और यूरोपीय देश तो घोषित तौर पर इजराइल की सैन्य मदद कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ भारत अघोषित तौर पर, मीडिया और दुनिया की नज़रों से दूर, इजराइल की सैन्य मदद कर रहा है।

हाल में ही खबर आई है कि भारत ने इजराइल को युद्ध में काम आने वाले 20 हेर्मेस900 ड्रोन बेचे हैं। आश्चर्य यह है यह सौदा इतना गुप्त रखा गया कि न तो भारतीय अधिकारियों ने और ना ही इजराइल की सेना ने इसकी जानकारी दी। यह खबर कुछ विदेशी मीडिया में आई, जाहिर है अम्बानी और अडानी के मीडिया, जो मोदी जी को शांतिदूत बताता है, से ऐसी खबर की उम्मीद करना ही बेकार है। पर, इस खबर के आने के बाद देश के सरकारी बंदरगाहों से जुड़े एक प्रमुख श्रमिक संगठन ने ऐलान किया है कि उनके सदस्य इजराइल को हथियार की खेप ले जाने वाले जलपोतों पर कोई भी लोडिंग या अनलोडिंग नहीं करेंगें। द वाटर ट्रांसपोर्ट वर्कर्स फेडरेशन ऑफ़ इंडिया के लगभग 3500 सदस्य देश के प्रमुख 11 बंदरगाहों पर कार्यरत हैं। 14 फरवरी 2024 को इस फेडरेशन द्वारा जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि फिलिस्तिन की जनता के नरसंहार के विरोध में उनके सदस्य इजराइल को भेजे जाने वाले किसी भी हथियार या सैन्य साजो-सामान की ढुलाई नहीं करेंगें। विज्ञप्ति में कहा गया है कि हम हमेशा से युद्ध के खिलाफ रहे हैं और बेबस महिलाओं और बच्चों की ह्त्या की भर्त्सना करते हैं।


इस युद्ध में अब तक 30000 से भी अधिक निर्दोष फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं और जो मारे नहीं गए हैं वे भूख, प्यास और बीमारियों से तड़प रहे हैं। इससे पहले केरल के कुन्नूर में स्थित एक गारमेंट फैक्ट्री जो इज्राईली सैनिकों के यूनिफार्म तैयार करती थी, ने भी इस यूनिफार्म को बनाना बंद कर दिया है। इस श्रमिक फेडरेशन के जेनेरल सेक्रेटरी, टी नरेन्द्र राव ने मिडिल ईस्ट आई (Middle East Eye) नामक मीडिया को दिए गए साक्षात्कार में कहा कि हम निर्दोष फिलिस्तीनियों का समर्थन करते हैं और उनके नरसंहार की किसी भी कार्यवाही में भागीदारी नहीं करेंगें। द वाटर ट्रांसपोर्ट वर्कर्स फेडरेशन ऑफ़ इंडिया, श्रमिकों के वैश्विक संगठन वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ़ ट्रेड यूनियंस से जुड़ा है, और इसने एथेंस में हुए सम्मेलन में दुनियाभर के श्रमिक संगठनों से फिलिस्तिनीयों पर किये जाने वाले हमलों से जुड़े सभी प्रकार के युद्ध सामग्रियों की ढुलाई का बहिष्कार करें।

इस आह्वान पर इटली, स्पेन, साउथ अफ्रीका, अमेरिका, स्पेन, ग्रीस, तुर्कीये, बेल्जियम, यूनाइटेड किंगडम और भी अनेक देशों के श्रमिक संगठनों ने हरेक ऐसे काम का बहिष्कार किया है जिससे इजराइल को सैन्य मदद मिलती हो। नवम्बर 2023 के शुरू में इटली, तुर्कीये और ग्रीस के श्रमिक संगठनों के अधिवेशन के संयुक्त वक्तव्य में कहा गया था कि “श्रमिकों के अधिकारों का संघर्ष मावाधिकार, समानता और आजादी के संघर्ष से अलग नहीं है। परिवहन से जुड़े श्रमिकों का इतिहास हमेशा से युद्ध, फासिज्म, रंगभेद, असमानता और हमलों से दूर और शांति की तरफ रहा है। श्रमिक संगठन जनता के दमन का विरोध करते हैं। इस कारण से परिवहन साधनों को नरसंहार का कारण नहीं बना सकते।”

जस्टिस फॉर म्यांमार नामक मानवाधिकार संगठन ने वर्ष 2023 में उजागर किया था कि भारत सरकार की रक्षा सामग्री बनाने वाली संस्था “यंत्र इंडिया लिमिटेड” ने अक्टूबर 2022 में म्यांमार की सेना को होवित्ज़र्स में उपयोग की जाने वाली 122 मिलीमीटर की 20 गोले दागने वाली नलियां, बैरेल, की आपूर्ति की है। होवित्ज़र्स तोप और मिसाइल लांचर के बीच का हथियार है और इससे गोले-बारूद दागे जाते हैं। इसकी कीमत 3,30,000 डॉलर है। यहाँ यह ध्यान रखना आवश्यक है कि म्यांमार में सेना द्वारा प्रजातांत्रिक सरकार के फरवरी 2021 में तख्ता-पलट के बाद से अधिकतर पश्चिमी देशों और अमेरिका ने सैनिक साज-सामानों की आपूर्ति प्रतिबंधित की हुई है। पर, भारत को प्रजातंत्र की जननी बताने वाली मोदी सरकार म्यांमार की उस सेना को हथियारों की आपूर्ति करती जा रही है जिसने ना केवल प्रजातांत्रिक सरकार को उखाड़ फेंका और प्रधानमंत्री समेत सभी मंत्रियों को जेल में डाल दिया – बल्कि अपनी ही जनता पर दुश्मन देश की सेना जैसा हमला जारी रखा है। जस्टिस फॉर म्यांमार ने इसके बाद भी विस्तार से भारत द्वारा सैन्य सहायता पर बताया है।


वर्ष 2023 में ही ग्लोबल विटनेस और एमनेस्टी इन्टरनेशनल द्वारा संयुक्त तहकीकात के बाद यह स्पष्ट हुआ कि पश्चिमी देशों और अमेरिका द्वारा वायुयानों में इस्तेमाल किये जाने वाले एवियेशन फ्यूल की आपूर्ति पर प्रतिबन्ध लगाने के बाद भी म्यांमार के बंदरगाहों पर एवियेशन फ्यूल से भरे टैंकर पहुँच रहे हैं। यह समाचार महत्वपूर्ण है क्योंकि म्यांमार की सेना लड़ाकू विमानों से भी अपने देश की जनता पर हमले कर रही है। म्यांमार के बंदरगाहों पर पहुंचे एविएशन फ्यूल से भरे टैंकरों में से कम से कम एक टैंकर ऐसा भी है जो भारत से गया है। “प्राइम वी” नामक यह टैंकर ग्रीक की कंपनी सी ट्रेड मरीन का है, और इसका इन्स्युरेंस जापान के पी एंड जी क्लब ने किया था। यह 28 नवम्बर 2022 को गुजरात के सिक्का बंदरगाह के रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के टर्मिनल से ए1 श्रेणी का एविएशन फ्यूल लेकर 10 दिसम्बर 2022 को म्यांमार के थिलावा बंदरगाह पर पहुंचा था।

भारत सरकार बड़ी बेशर्मी से निरंकुश और तानाशाही सत्ता को सीधी मदद को कभी अपनी निष्पक्ष और बिना गुट वाली विदेश नीति का हिस्सा बताती है तो कभी पड़ोसी देशों को की जाने वाली मदद। विदेश मंत्री एस जयशंकर म्यांमार की सत्ता में बैठी हत्यारी सेना की मदद को जायज ठहरा चुके हैं। सत्ता के दम पर फलते-फूलते उद्योगपति अडानी और अम्बानी को भी केवल अपने मुनाफे से मतलब है, और इसके लिए वे किसी तानाशाह और अपराधी की भी मदद कर सकते हैं। अडानी की कंपनी म्यांमार में सेना द्वारा नियंत्रित बंदरगाह का निर्माण और संचालन कर रही है तो दूसरी तरफ अम्बानी की कंपनी म्यांमार की सेना को प्रतिबंधित एवियेशन फ्यूल से भरे टैंकर भेज रही है। जब तक हमारे देश में ऐसी निरंकुश और प्रजातंत्र विरोधी सरकार और उद्योगपति हैं तब तक दुनिया के किसी भी निरकुश और हत्यारी सत्ता पर कोई भी प्रतिबन्ध का असर नहीं होगा।

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