मोदी सरकार ने संघीय ढांचे को पूरी तरह से कमजोर किया, सीएए के विरोध में आए राज्यों का रुख बहुत कुछ तय करेगा

अगर हम 2014 के बाद से भारत के डिजिटलाइजेशन परिदृश्य और आधार में हर निवासी को दर्ज किए जाने के आक्रामक रवैये के बिंदुओं को जोड़ते हैं तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि उन्मत्त डिजिटलाइजेशन की निर्दयी दौड़ एनआरआईसी की बुनियाद डालने का दृढ़संकल्प था।

फोटोः सोशल मीडिया
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सी पी जीवन

साल 2019 के आखिरी हफ्ते में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) को अपडेट (अद्यतन) करने और 2021 की जनगणना के कार्यों के लिए क्रमशः 39.41 अरब और 85 अरब की राशि को मंजूरी दी। इसके बाद गृह मंत्री अमित शाह ने एक टीवी शो के दौरान कहा कि राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी)- नेशनल रजिस्टर ऑफ इंडियन सिटिजन्स (एनआरआईसी) का जनगणना 2021 के साथ किए जाने वाले एनपीआर के कार्यों से कोई संबंध नहीं है। जबकि आधिकारिक दस्तावेज स्पष्ट कहते हैं कि एनपीआर, एनआरआईसी की ओर बढ़ने का एक कदम है।

लेकिन गृहमंत्री ने निर्लिप्त भाव से कहा कि एनपीआर एक ‘सामान्य’ तकनीक आधारित गणना है जिसमें घर या ऑनलाइन से बिना किसी परेशानी के सभी डेटा एकत्र किए जाएंगे और ‘चिंता करने की कोई बात नहीं’ है। जैसा कि पहले भी कई बार हो चुका है, जब सरकार कहती है कि चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है, जहां कुछ को नहीं हो, लेकिन बहुतों को जरूर होनी चाहिए। इसके अलावा, यदि नागरिक अपने निजी डेटा को राज्य के साथ साझा करते हैं तो उन्हें हर सूचना को जानने का पूरा अधिकार है। जब सरकार किसी बात की पूरी जानकारी दिए बिना नागरिकों से सहयोग करने को कहती है तो यह आश्वस्त करने वाला नहीं है। यह और भी बुरा है जब शीर्ष पर बैठे लोग अलग-अलग समय परअलग-अलग बातें करते हैं और अक्सर अपनी ही बातों को काटते हैं। उनकी विभिन्न बयानबाजियों के पहले ही आधिकारिक दस्तावेज लोगों के बीच उपलब्ध थे।

समाचार रिपोर्टों के अनुसार, ‘पिता और माता के जन्म स्थान का विवरण’ मांगते हुए एनपीआर डेटा संग्रहण अनुसूची का इस्तेमाल ट्रायल के स्टेज पर किया गया, जिसे अधिकारियों के इस दावे के रूप में अंतिम रूप दिए जाने की संभावना है कि उन्हें सैंपल देने वालों से महत्वपूर्ण प्रतिकूल फीडबैक नहीं मिला है। शासन-प्रणाली से जुड़े आधिकारिक डिजिटलाइजेशन के प्रयास के सबसे बड़े विरोधाभासों में से एक है विवादास्पद उपक्रम- आधार, जो प्रत्येक भारतीय निवासी, नागरिक नहीं, का कथित रूप से अचूक बायोमेट्रिक पहचान डेटाबेस है।

ईवीएम के साथ बायोमेट्रिक आधारित आधार को राज्य के हाथों में पूरी तरह से सुरक्षित होने का दावा किया जाता है। फिर भी, यह स्मरण किया जा सकता है कि आज जो लोग इसको आक्रामक तरीके से आगे बढ़ा रहे हैं उन्होंने शुरुआत में इसकी वैधता को लेकर सवाल उठाए थे। बीजेपी ने शुरुआत में आधार का विरोध तब किया जब इसका इस्तेमाल एक सीमित तरीके से किया जा रहा था, लेकिन केंद्र की सत्ता में आते ही उसने कई तरह के अनिवार्य नियमों का इस्तेमाल करते हुए सभी नागरिकों को इसमें नामांकन के लिए मजबूर कर दिया। शुरुआती चरण में, लोगों को आधार और एनपीआर में अलग-अलग पंजीकृत किया गया था। अब एनपीआर और आधार एक दूसरे में समाहित डेटाबेस हैं।


अधिकारिक वेबसाइटें साफ बताती हैं कि देश के प्रत्येक नागरिक के लिए नेशनल रजिस्टर ऑफ इंडियन सिटिजन्स (एनआरआईसी) में पंजीकरण करना अनिवार्य है और एनआरआईसी को तैयार करने की दिशा में एनपीआर पहला कदम है। इसमें कहा गया है कि नागरिकता की स्थिति के सत्यापन के बाद डेटा सेट (आकंड़ा समुच्चय) में से नागरिकों का उप समुच्चय (सबसेट) लिया जाएगा और इसलिए सभी सामान्य निवासियों के लिए एनपीआर के तहत पंजीकरण अनिवार्य है।

यह बताता है कि सामान्य सूचना के अलावा हर व्यक्ति के माता-पिता से संबंधित व्यक्तिगत जानकारी और पांच वर्ष और उससे अधिक आयु के सभी लोगों के महत्वपूर्ण बॉयोमेट्रिक्स की जानकारी भी एनपीआर में शामिल होगी। मुख्यतः एनपीआर में तीन तरह के डेटा शामिल होंगे- 1) जनसांख्यिकी, 2) बायोमेट्रिक्स और3) आधार। यह साफ है कि एनपीआर आधार के साथ लयबद्ध (सिन्ग्क्रॉनाइज्ड) है, और आधार लगभग सभी अन्य डेटाबेस के साथ जुड़ने के बतौर काम करता है।

गृहमंत्री और सत्ताधारी दल के नेताओं ने यह युद्धरत घोषणा की कि तथाकथित ‘अवैध’ निवासियों की पहचान करने और उन्हें बाहर निकालने के लिए एनआरआईसी को देश भर में लागू किया जाएगा। जिस तरह की भाषा और शब्दों का इस्तेमाल किया गया- ‘दीमक’, ‘घुसपैठिये’, ‘दुश्मन’ आदि- वे बहुत ही चिंताजनक और स्पष्ट रूप से धमकी भरे हैं। देश भर में विरोध-प्रदर्शनों के शुरू होने के बाद के बयान भी भ्रमित करने वाले और अस्पष्ट हैं।

उदाहरण के लिए, किसी विवरण का खुलासा किए बिना विज्ञापन दावा करते हैं कि एनआरआईसी से किसी भी भारतीय नागरिक को बाहर नहीं किया जाएगा। हालांकि, एनआरआईसी की जो सटीक प्रक्रिया है वो तथाकथित ‘गैर-नागरिकों’ से नागरिकों को अलग करेगी। ‘गैर-नागरिकों’ के रूप में चिन्हित लोग संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के तहत आएंगे, जिसका (सीएए) आधार धार्मिक भेदभाव है। 2020 का एनपीआर सभी निवासियों की सूची का संग्रह करेगा और इसका इस्तेमाल निवासियों को विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत करने के लिए किया जाएगा- संभावित नागरिकों से लेकर संभावित अवैध निवासियों तक। इसके बाद 2021 की जनगणना पूरक जनसांख्यिकीय डेटा उपलब्ध कराएगी। संशोधित एनपीआर डेटाशीट, जनगणना, आधार और डिजिटलाइजेशन के प्रयासों के हिस्से के बतौर तैयार अन्य बहुत सारे डेटाबेस से डेटा फील्ड्स का संयोजन एनआरआईसी की कंपाइलिंग की दिशा में तेज गति से मदद करेगा।

बहुत सारे टीवी शो के जरिए यह धारणा बनाई गई है कि यह प्रकिया जटिल और बहुत महंगी होगी और इसमें संभवतः काफी वक्त लगेगा। असम में एनआरसी के कार्य के अनुभव से ये निष्कर्ष निकाले गए हैं। पहली बात तो यह कि, एनआरआईसी के लिए नियम और संस्थागत व्यवस्थाएं एनआरसी (असम वाली) से कुछ अलग हो सकती हैं। दूसरा, एनआरआईसी मौजूदा बड़े राष्ट्रीय डेटाबेसों में से बहुतों का इस्तेमाल करने जा रहा है- मतदाता फोटो पहचान पत्र, जनगणना (2011 और 2021), पिछली सामाजिक-आर्थिक (जाति) जनगणना, बीपीएल सूची, मनरेगा, आधार, पैन, जीएसटी, राशन कार्ड, टेलीकॉम उपभोक्ताओं की सूची, बैंकिंग, विभिन्न लाभकारी योजनाएं आदि। एनआरआईसी के लिए निश्चित नियमों के बारे में तभी स्पष्टता होगी जब विस्तृत सूचनाएं अधूसूचित होंगी।


प्रोत्साहन और चेतावनियों तथा आक्रामक नियमों के जरिए सरकार बहुत ही चतुराई से सभी भारतीय निवासियों के नाम इन डेटाबेसों में दर्ज कराने में कामयाब हो चुकी है। अप्रैल से सितंबर, 2020 के दौरान 2021 की जनगणना के निवास सूचीकरण के चरण के साथ ही सरकार की योजना एनपीआर को फिर से अपडेट करने की है। एनपीआर 2020 के साथ जोड़े गए नए डेटा फील्ड्स एनआरआईसी डेटाबेस की बुनियादी जरूरत के साथ पूरी तरह से मेल खाते हैं। चूंकि ये सभी डिजिटल डेटाबेस हैं, हमें यह मानना चाहिए कि एनआरआईसी से संबंधित शुरुआती कार्य का बहुत बड़ा हिस्सा कम लागत में बहुत तेजी से पूरा होने की संभावना है।

आधार के साथ हुए अनुभव को देखें, तो केंद्र सरकार शुरुआती चरण के बाद सभी को जबरन एनआरआईसी में शामिल होने के लिए अवपीड़क नीतियों का इस्तेमाल कर सकती है। संभवतः, एनआरआईसी के कार्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा पहले ही पूरा हो चुका है। एनआरआईसी के लिए, सरकार सूचना प्रौद्योगिकी के दिग्गजों की विशेषज्ञता और सेवाएं लेते हुए वह डेटा माइनिंग और परिष्कृत डेटाबेस प्रबंधन क्षमताओं का पूर्ण रूप से उपयोग करेगी। अगर हम 2014 के बाद से भारत के डिजिटलाइजेशन परिदृश्य और आधार में हर निवासी को दर्ज किए जाने के आक्रामक रवैये के बिंदुओं को जोड़ते हैं तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि उन्मत्त डिजिटलाइजेशन की निर्दयी दौड़ एनआरआईसी की बुनियाद डालने का दृढ़संकल्प था।

साल 2003 और 2004 के नागरिकता के नियमों में बदलाव और बहुत सारे नियम, जो आधार के इस्तेमाल को बाध्यकारी बनाते हैं, एनआरआईसी की बुनियाद डालने के समग्र लक्ष्य के साथ जुड़े हुए हैं। हालांकि, यह तकरीबन जाहिर है कि व्यापक तौर पर इस पर ध्यान नहीं दिया गया। हालांकि, बहुत सारे गैर-बीजेपी राजनीतिक दलों ने कहा है कि वे एनआरआईसी के कार्य के लिए केंद्र सरकार के साथ सहयोग नहीं करेंगे। यह स्पष्ट नहीं है कि क्या वे डिजिटलाइजेशन की गहराई और विस्तार, जो स्पष्ट रूप से एनआरआईसी की ओर बढ़ती प्रगति को मजबूत करते हैं, से उत्पन्न चुनौतियों को वाकई समझते हैं। अनिवार्य डिजिटलाइजेशन के परिणाम स्वरूप अति-केंद्रीकरण ने जहां भी डिजिटलाइजेशन मौजूद है वहां राज्य सरकारों की भूमिका को लगभग पूरी तरह से हाशिये पर डाल दिया है।

भारत के संघीय ढांचे के बावजूद, केंद्र द्वारा जीएसटी सहित बहुत सारे वित्तीय अधिनियमों के साथ-साथ जिस आक्रामक तरीके से डिजिटलाइजेशन को आगे बढ़ाया गया, वह शासन के कई क्षेत्रों में राज्यों की भूमिका और स्वायत्तता को वास्तव में लगभग पूरी तरह से खत्म कर देता है। एनआरआईसी लागू करने में राज्य जो भूमिका निभा सकते हैं वह भी इसमें शामिल है। बड़ा सवाल यह है कि जो राज्य सीएए और एनआरआईसी का विरोध कर रहे हैं, देखना होगा कि वे शब्दाडम्बर से परे जाकर एनआरआईसी और सीएए के कार्यान्वयन को प्रभावित करने के लिए किस तरह का रुख अख्तियार करते हैं।

(लेखक वरिष्ठ वैज्ञानिक और स्वतंत्र शोधकर्ता हैं और लेख में उनके अपने विचार हैं)

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Published: 20 Jan 2020, 9:13 PM