विज्ञान को राजनैतिक हथियार की तरह इस्तेमाल करती है मोदी सरकार, फायदे के लिए दूसरी कोरोना लहर को नरसंहार बनने दिया

देश में कोरोना वायरस को लेकर सरकार की तरफ से क्रूर वाहवाही का सिलसिला अभी थमा नहीं है। इसका नमूना अभी प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर सामने आया था, जब रिकॉर्ड टीके द्वारा जनता को स्पष्ट कर दिया गया कि हम एक दिन में दो करोड़ टीके लगा सकते हैं, पर लगाएंगे नहीं।

फोटोः सोशल मीडिया
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महेन्द्र पांडे

सितम्बर 2020 में केंद्र सरकार की एक कमेटी ने कोविड-19 के विस्तार से संबंधित एक रिपोर्ट पेश की थी, जिसके अनुसार कोरोना की दूसरी लहर की कोई आशंका नहीं थी और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में इसके जादुई प्रबंधन और शुरू में ही सख्त देशव्यापी लॉकडाउन के कारण ऐसा संभव हो सका है। जाहिर है, ऐसी रिपोर्ट से मोदी जी की छाती और चौड़ी हो गई और उनके अंधभक्त कोविड के सन्दर्भ में दुनिया के सबसे अच्छे नेता उन्हें बताने लगे। इसके बाद अप्रैल से जून 2021 तक अस्पतालों, श्मशानों, नदियों और ऑक्सीजन की जो हालत थी उसे केवल अपने देश ने ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया ने देखा।

इसके बाद भी कोविड-19 की क्रूर वाहवाही का सिलसिला थमा नहीं है। इसका नमूना अभी प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर सामने आया था, जब रिकॉर्ड टीके द्वारा जनता को स्पष्ट कर दिया कि हम एक दिन में दो करोड़ टीके लगा सकते हैं, पर लगाएंगे नहीं। इसके पहले ताली, थाली बजाकर और मोमबत्तियां जलाकर हमें प्रधानमंत्री जी ने बताया था कि स्थितियां कैसी भी हों, उत्सव जरूर मनाना चाहिए। अब मीडिया लगातार बता रहा है कि अमेरिका यात्रा के दौरान पहले उपराष्ट्रपति और फिर अमेरिकी राष्ट्रपति ने मोदी जी को कोविड 19 की रोकथाम के लिए शाबाशी दी है।

जिस रिपोर्ट की बात की जा रही है उसके बारे में कहा गया कि यह अत्याधुनिक मैथेमेटिकल मॉडल पर और पूरी तरह कोविड-19 के देश में मामलों पर आधारित है। पर, इस रिपोर्ट को तैयार करने वालों में एक भी महामारी विशेषज्ञ नहीं था और इसमें ऐसे पैरामीटरों की भरमार थी जिसे कभी मापा नहीं जा सकता था। सेवानिवृत्त वैज्ञानिक सोमदत्त सिन्हा के अनुसार यह केवल लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए और प्रधानमंत्री मोदी को खुश करने के लिए तैयार किया गया था और इसका महामारी विज्ञान से दूर-दूर तक नाता नहीं था।

प्रधानमंत्री ने दावा पहले किया था कि हमने कोविड-19 को पूरी तरह से रोक दिया है और हमारा देश अनोखा है क्योंकि अमेरिका, ब्राजील, इंग्लैंड में होने वाली मौतों की तुलना में हमारे देश की स्थिति बहुत अच्छी है। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री अर्थव्यवस्था को किसी भी कीमत पर खोलना चाहते थे और पश्चिम बंगाल समेत अनेक राज्यों में चुनाव की रैलियां भी करनी थी। प्रधानमंत्री के दावे और इच्छा के बाद इस मॉडल को तैयार किया गया था, जिसमें विज्ञान को दरकिनार कर बताया गया था कि कोविड-19 की दूसरी लहर का कोई अंदेशा नहीं है।


अब सवाल यह है कि क्या डॉ बलराम भार्गव की अगुवाई वाली इंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च में काम करने वाले वैज्ञानिकों ने इस रिपोर्ट पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। दरअसल वैज्ञानिकों के एक छोटे से समूह ने इस रिपोर्ट को देखने के बाद डॉ बलराम भार्गव समेत उच्च अधिकारियों को बताया कि यह रिपोर्ट सरासर गलत के साथ ही जन-स्वास्थ्य के लिए घातक है क्योंकि जाहिर है कि इसके बाहर जाते ही सरकारी मीडिया मोदी जी का गुणगान करेगा और दूसरी तरफ लोग अपनी सावधानियां भूल जाएंगे और इससे कोविड-19 का प्रसार और तेजी से होगा।

इन वैज्ञानिकों में डॉ अरूप अग्रवाल भी थे और इनके अनुसार डॉ भार्गव और वरिष्ठ अधिकारियों ने इन वैज्ञानिकों को अपना मुंह बंद रखने को कहा और धमकी भी दी कि यदि इस रिपोर्ट के बारे में बाहर कुछ भी कहा तो गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। डॉ अरूप अग्रवाल इसके बाद अपनी नौकरी छोड़कर एक अमेरिकी कंपनी में चले गए। डॉ अग्रवाल के अनुसार, मोदी सरकार अपने राजनैतिक एजेंडा को आगे बढाने के लिए विज्ञान को एक राजनैतिक हथियार की तरह इस्तेमाल करती है, उनका लोगों की समस्याओं से कोई लेनादेना नहीं है।

आईसीएमआर ने सरकार को खुश करने के लिए आंकड़ों को छुपाया, सरकार पर प्रश्न उठाती एक रिपोर्ट को निरस्त कर दिया और एक दूसरी रिपोर्ट, जो दूसरी लहर के बारे में आशंका जता रही थी, उसे प्रकाशित करने से इनकार कर दिया। कुल मिलाकर इस वैज्ञानिक संस्था ने प्रधानमंत्री को खुश करने के लिए और उनकी वाहवाही बटोरने के लिए दूसरी लहर के द्वारा नरसंहार का रास्ता खोल दिया। देश के प्रतिष्ठित वायरोलोजिस्ट शहीद जमील ने कहा है कि विज्ञान वहीं पनपता है, जहां इस पर गंभीर चर्चा की जाती है और इसे स्वतंत्र माहौल मिलता है। जाहिर है हमारे देश में इस सरकार ने इसका ठीक विपरीत माहौल तैयार किया है। यहां के वैज्ञानिक अपनी नौकरी खोने के डर से गलत अध्ययन पर भी चुप बैठे रहते हैं।

आईसीएमआर ने वास्तविक रिपोर्ट को दबाकर अपनी तरफ से ऐलान किया था कि देश में कोविड-19 की दूसरी लहर की कोई आशंका नहीं है और प्रधानमंत्री ने समय रहते इतने बेहतर इंतजाम किये जिससे हमने कोविड-19 पर विजय प्राप्त कर ली। प्रधानमंत्री के स्वयं के भाषणों में भी ऐसी ही भाषा रहती थी। 21 जनवरी 2021 को प्रधानमंत्री मोदी ने एक भाषण में अपने अंदाज में कहा था कि हमने कोविड की रोकथाम में अमेरिका, ब्राजील, यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों को बहुत पीछे छोड़ दिया है, वहां के मौत के आंकड़े देखिये और हमारे मौत के आंकड़े देखिये– कोरोना पर विजय प्राप्त कर हमने मनुष्य जाति को एक बड़े खतरे से बचा लिया। इसके बाद तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री ने मार्च में कोविड-19 के देश से अंत की घोषणा कर दी थी। इस बीच में आईसीएमआर ने कोरोना वायरस के आंकड़ों को रोक दिया था, जिससे इस संस्थान के बाहर के वैज्ञानिक कोविड-19 से संबंधित कोई अध्ययन नहीं कर सकें और वास्तविक स्थिति को उजागर नहीं कर सकें।


डॉ बलराम भार्गव के नेतृत्व में आईसीएमआर समेत दूसरे सरकारी संस्थानों के अधिकतर वैज्ञानिक विज्ञान को पूरी तरह ताक पर रखकर मोदी जी की भक्ति में लीन थे और कोरोना की दूसरी लहर के इतना घातक होने का कारण भी यही था। अप्रैल, 2020 में प्रधानमंत्री समेत पूरी केंद्र सरकार और अंधभक्तों को एक नया मुद्दा मिला था– तबलीगी जमात के अधिवेशन का। उस दौर में लगभग डेढ़ महीने देश के हरेक समाचार चैनल यही खबर चलाते रहे थे और टीवी डिबेट में बड़ी संख्या में सरकारी वैज्ञानिक भी अफवाहों को हवा देते रहे थे। जून 2020 में आईसीएमआर के कुछ वैज्ञानिकों के एक अध्ययन के अनुसार लॉकडाउन से केवल वायरस के विस्तार की गति को कम किया जा सकता है, इससे इसे रोका नहीं जा सकता है– इस अध्ययन को आईसीएमआर ने दो-तीन दिनों के भीतर ही कचरे के डिब्बे में डाल दिया था।

2 जुलाई 2020 को डॉ बलराम भार्गव ने दो हास्यास्पद निर्देश जारी किये थे– पहले निर्देश के अनुसार वैज्ञानिकों को 6 सप्ताह (15 अगस्त तक) का समय दिया गया था, जिसके भीतर वैक्सीन का विकास करना था और ऐसा नहीं होने पर गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी गई थी। दूसरा निर्देश हर उस अध्ययन को सार्वजनिक नहीं करने से संबंधित था, जिसमें बताया जा रहा था कि वायरस का विस्तार अभी जारी है। पहले निर्देश को हमारी मीडिया ने प्रधानमंत्री की वाहवाही करने के लिए खूब इस्तेमाल किया, पर जब यह खबर पूरी दुनिया तक पहुंच गई और दुनिया के वैज्ञानिक सवाल खड़ा करने लगे और इससे संबंधित अनेक वैज्ञानिकों ने भी इस पर प्रश्न खड़े किये तब जाकर इस डेडलाइन को बढ़ाया गया और जनवरी में वैक्सीन आ पाई। याद कीजिये, जिस समय वैक्सीन लगानी शुरू की गई थी तब भी इसके परीक्षण पूरे नहीं हुए थे। प्रधानमंत्री जी इसे 15 अगस्त 2020 को लाल किले की प्राचीर से बता कर वाहवाही लेना चाहते थे और आईसीएमआर प्रधानमंत्री के इन अवैज्ञानिक फैसलों में विज्ञान और जनता के स्वास्थ्य को दांव पर लगाकर पूरा साथ निभाने वाला था।

डॉ भार्गव के दूसरे निर्देश के बाद उस समय के सिरोलोजीकल सर्वे की रिपोर्ट को रोक दिया गया क्योंकि इसमें कोरोना वायरस का विस्तार बताया जा रहा था। जब वैज्ञानिकों ने इसे रोकने पर सवाल खड़े किये तब डॉ भार्गव ने ई-मेल द्वारा वैज्ञानिकों को जानकारी दी कि यह एक संवेदनशील मामला है और इसे सार्वजनिक करने का अनुमोदन ऊपर से नहीं आया है। जाहिर है ऊपर से डॉ बलराम भार्गव का इशारा प्रधानमंत्री कार्यालय ही रहा होगा। इस परियोजना पर काम करने वाले डॉ नमन शाह ने बाद में आईसीएमआर छोड़ दिया।

डॉ नमन शाह के अनुसार प्रधानमंत्री का प्राकृतिक स्वभाव प्रजातंत्र और विज्ञान के विरुद्ध काम करना है। इस सरकार का इतिहास और उद्देश्य अपनी निरंकुश ताकतों का उपयोग कर सभी संस्थाओं पर हमला कर अपने अधीन रखना है और हरेक संस्था को एक राजनैतिक अखाड़ा में परिवर्तित करना है। अपनी राजनैतिक मुराद पूरी करने के लिए सरकार आंकड़ों को छुपाती है, अवैज्ञानिक रिपोर्ट प्रस्तुत करती है और फिर इसी रिपोर्ट के आधार पर प्रधानमंत्री, दूसरे मंत्री, अपनी कुर्सी बचाते वैज्ञानिक संस्थानों के बड़े अधिकारी भौंडी मीडिया के सहारे अनपढ़ जैसे वक्तव्य देते हैं, प्रधानमंत्री जी को खुश करने के लिए अवैज्ञानिक तथ्य प्रस्तुत करते हैं और इसका नतीजा दूसरी लहर में लाखों मौतों के रूप में पूरी दुनिया ने देख लिया।


जिस सरो सर्वे को दबाया गया था उसे दो महीने बाद नए कलेवर में सार्वजनिक किया गया और सभी वास्तविक निष्कर्ष गायब कर नए निष्कर्ष भरे गए। इसके अनुसार पिछले वर्ष सितम्बर तक कोविड 19 का सबसे बुरा दौर ख़त्म हो चुका था और 2021 के मध्य फरवरी तक इसके पूरी तरह से खत्म होने की बात कही गई थी। इस रिपोर्ट के अनुसार सितंबर 2020 तक देश में 35 करोड़ व्यक्ति कोविड-19 की चपेट में आ चुके थे, इसलिए हम हर्ड इम्युनिटी की सीमा में प्रवेश कर चुके हैं और अब पूरी तरह से सुरक्षित हैं।

प्रतिष्ठित वैज्ञानिक जर्नल के जनवरी 2021 के अंक में एक शोध पत्र प्रकाशित किया गया था, जिसके अनुसार कोविड-19 की दूसरी लहर जल्दी ही देश में आएगी। इस शोध पत्र को लिखने वालों में आईसीएमआर के वैज्ञानिक भी थे, जिन्हें शोधपत्र से अपना नाम हटाने का आदेश दिया गया था। इसके बाद मार्च के अंत से जब दूसरी लहर का कहर टूटा, तो सबने इसका नतीजा देख लिया। आईसीएमआर ने मई 2020 में ही स्पष्ट तौर पर कह दिया था कि प्लाज्मा थेरेपी से कोई फायदा नहीं होता पर सितंबर 2020 में प्रधानमंत्री के 70वें जन्मदिन पर बीजेपी ने प्रधानमंत्री के नाम पर ही प्लाज्मा डोनेशन कैम्प लगाए थे। पूरी दुनिया के वैज्ञानिक बताते रहे कि कोविड 19 के मरीजों को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन से कोई लाभ नहीं होता पर प्रधानमंत्री जी इसका प्रचार-प्रसार करते रहे और दुनिया में बांटते रहे।

दूसरी लहर के दौरान जो कुछ हुआ वह केवल एक व्यक्ति की राजनैतिक महत्वाकांक्षा का परिणाम था– नरसंहार की महत्वाकांक्षा। हो सकता है, कुछ लोगों को नरसंहार शब्द ठीक नहीं लग रहा हो, पर जरा सोचिये, दूसरी लहर की चेतावनी को दबा कर राजनैतिक लाभ लेना किसी हद तक समझा भी जा सकता है, पर सबकुछ मालूम रहते हुए भी स्वास्थ्य सेवाओं को अंधेरे में रखने को आप क्या कहेंगे? इसका नतीजा जो हुआ उसे सबने देखा और हरेक घर ने भुगता। जाहिर है, कोविड 19 की दूसरी लहर का नरसंहार एक निरंकुश संवेदनहीन शासक, वैज्ञानिक संस्थानों और मीडिया की देन था, जहां नरसंहार का हथियार गोला-बारूद नहीं था, बल्कि विज्ञान की उपेक्षा था।

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