विष्णु नागर का व्यंग्यः चीन से न घबराएं मोदीजी, जब तक वीर रस के कवि हैं, कोई हमारी तरफ देख भी नहीं सकता!

चीन ने हमारे 20 जवानों को शहीद किया, मगर देखना वीर रस की कविताओं में हमारा एक भी जवान न शहीद होगा और न घायल होगा और हमारा तिरंगा फिर से बीजिंग पर फहराने लगेगा, बल्कि मोदीजी खुद जाकर लहरा आएंगे और जिनपिंग बस देखता रह जाएगा।

फोटोः सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

चीन हो या पाकिस्तान, इनसे सख्ती से निबटने का एक ही ब्रह्मास्त्र हमारे पास है और वह है कि हम अब वीर रस की कविताओं का कारपोरेट स्तर पर उत्पादन ( मोदीजी के घनिष्ठ अंबानी जी और अडाणी जी विशेष रूप से ध्यान दें) आरंभ करें। इसके बिना न चीन मानेगा, न पाकिस्तान कभी सुधरेगा। बाकी रहे नेपाल, बांग्लादेश वगैरह, तो इनसे तो हम बगैर वीर रस की कविताओं के भी निबट लेंगे।

मैं 1962 से ही -हालांकि तब बच्चा ही था- देखता आया हूं कि शत्रुओं का जिस वीरता, साहस और शौर्य से (वीरचक्र की आशा किए बगैर) सामना वीर रस की कविताओं ने किया था- आज तक कोई माई का लाल नहीं कर पाया है। उन्होंने माओ-चाओ (माओत्से तुंग और चाऊ एन लाई) की वो रंगत बनाई थी, वो रंगत बनाई थी कि फिर उन्होंने और उनके बाद के शासकों ने भी दोबारा हिम्मत नहीं की!

1962 मेंं बेशक हम चीन से युद्ध के मैदान में हार गए थे, मगर वीर रस की कविताओं के मैदान में हमने बीजिंग पर तिरंगा फहरा दिया था। वो तो बाद में संबंधों को मैत्रीपूर्ण बनाने के लिए हमारे ही कवियों ने प्रधानमंत्री से प्रार्थना की कि सिखा दिया इन्हें काफी सबक, अब तिरंगा उतार लो। तब उतारा गया, वरना आज तक वहां लहरा रहा होता। हमारी धरती केेेवल वीरप्रसूता नहींं है, वीर रस कवि प्रसूता भी है, इसे हम भूूल जाते हैं।

अगर आप बुरा न मानें और मुझे देशद्रोही घोषित किए जाने से बचाने का वायदा करेें तो मैं कहना चाहूंगा कि इस धरा ने वीरों से अधिक वीर रस के कवि उत्पन्न किए हैं। आज भी मैं विश्वास से कह सकता हूं कि हम इस क्षेत्र में पीछे नहीं हैं। समय की चुनौतियों को हमारे कवि सम्मेलनों के कवि अच्छी तरह समझते हैं। संकट की इस घड़ी में वीर रस के कवि ही नहीं बल्कि हास्य और श्रृंगार रस के कवि भी दुश्मनों से देश की रक्षा की खातिर वीर रस के क्षेत्र में कूद पड़ने को तैयार हैं।

इसलिए मोदीजी और राहुल जी आप भी निश्चिंत रहें, जब तक वीर रस की कविता और कवि इस देश की धरती पर मौजूद हैं, कोई हमारी तरफ आंख क्या, नाक-कान, मुंह यानी कुछ भी उठाकर नहीं देख सकता। उन्होंने हमारे 20 जवानों को शहीद किया, मगर देखना वीर रस की कविताओं में हमारा एक भी जवान न तो शहीद होगा, न घायल होगा, न चीनियों की हिम्मत पड़ेगी, उन्हें बंधक बनाकर रखने की। किसी को खरोंच तक नहीं आएगी और हमारा तिरंगा फिर से बीजिंग पर फहराने लगेगा, बल्कि मोदीजी खुद वहां जाकर लहरा कर आएंगे और शी जिनपिंग देखता रह जाएगा।

इसीलिए तो मुझे अपने देश पर विशेष रूप से गर्व है कि हमारे यहां वीर रस के कवियों की संख्या, हमारे सैनिकों से अधिक है, जहां कहो, वहां वे देश का झंडा फहराना जानते हैं। और सुनो मोदीजी, ट्रंप जी के होते तो चिंता की बात नहीं, आपकी उनसे दांत काटी दोस्ती है, मगर मौका आया तो व्हाइट हाउस पर भी झंडा फहराने से वीर रस के कवि नहीं चूकेंगेे। आपको इशारा करने की जरूरत भी नहीं!

तो वीर रस से पगे कवियों, मुझे विश्वास है आपने कम से कम एक हजार कविताएं तो इस बीच तैयार कर ही ली होंगी। वैसे तो इतनी भी चीन पर सफल बमबारी के लिए काफी हैं, मगर रुकना मत। क्या पता हमारी देखादेखी चीन में भी कवियों ने वीर रस की कविताओं का बड़े पैमाने पर सस्ता उत्पादन शुरु कर दिया हो। कहीं ऐसा न हो कि वे बेहद सस्ती कीमत में भारत के लिए भी वीर रस की कविताओं का उत्पादन शुरू कर दे और भारतीय बाजार में डम्प कर दे और इस क्षेत्र में भी प्रधानमंत्री को अलग से आत्मनिर्भरता का आह्वान करना पड़े। प्रधानमंत्री को चाहिए कि वह वीर रस की मेड इन चाइना कविताओं पर अभी से आयात शुल्क लगा दें, ताकि उनका माल सड़ जाए।

वीर रस के कवियों, आप रणभेरी बजाने, ललकारने, बांहों को फड़काने, छठी का दूध याद दिलाने, केसरिया बाना पहनाने आद- आदि शब्दों से लैस रचनाओं के साथ पूरी तरह तैयार रहिए। मैं सरकार से अनुरोध करूंगा कि वह कवि सम्मेलनों को प्रोत्साहित करने के लिए लॉकडाउन के नियमों से छूट दें। इन कवि सम्मेलनों में कवि कोरोना को भी चुनौती देंगे तो कोरोना और चीनी सेना के जवान, दोनों एक साथ भागते नजर आएंगे।

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