विष्णु नागर का व्यंग्यः मोदी जी उधार की नाक नीची रखिए, जनता मालिक है, कभी भी काट लेगी

नाक को उसकी असली साइज में रहने दीजिए, नाक से उसका बेसिक काम ही लीजिए और ट्रंप की गति पाना चाहें तो खुशी-खुशी पाइए। हम ही क्या आपके आज के परम सगे भी आपकी नाक छोटी होने का हमसे कई गुना ज्यादा आनंद लेंगे, क्योंकि उनको भी आपने बहुत बेइज्जत किया और करवाया है।

फोटोः IANS
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विष्णु नागर

ऐसा तो है नहीं कि नाक अकेले मोदी जी की है, हमारी भी है। और ऐसा भी नहीं है कि उनकी ही नाक, नाक है, हमारी नाक, नाक नहीं है! और ऐसा भी नहीं है कि नाक उनकी ही लंबी हो सकती है, हमारी नहीं! शादी के ऐन पहले लड़के वालों की नाक अक्सर जितनी लंबी हो जाती है, उतनी लंबी नाक तो प्रधानमंत्री होकर भी मोदी जी की नहीं हो सकती! और फाइनली मोदी जी की नाक जितनी भी लंबी हो, वह उनकी अपनी नहीं, उधार की नाक है, किराए की नाक है। जिस दिन मकान मालिक यानी जनता चाहेगी, उन्हें निकाल बाहर करेगी और उनकी नाक कितनी ही लंबी हो, इतनी नन्ही-मुन्नी हो जाएगी कि सामने वाले को दिखेगी तक नहीं। पहचानना मुश्किल हो जाएगा कि यही वह मोदी जी हैं, जो कभी बहुत लंबी नाक लिए घूमा करते थे।

पद तो माननीय आनी-जानी चीज है। कल आप प्रधानमंत्री नहीं रहे तो आप अपनी नाक को पचास फीट लंबी और सौ फीट चौड़ी भी करवा लेंगे, तो कोई पूछने नहीं आएगा। अपनी नाक पर गर्व करते बैठे रहिएगा अपने घर या बंगले में। आईना सामने रखकर उसे प्रेम से निहारते रहिएगा। लेते रहिएगा उसकी सेल्फियां! पड़ोसी भी झांकने नहीं आएंगे। और वे तो शर्तिया तौर नहीं आएंगे, जो आज दिन रात मोदी-मोदी का भजन किया करते हैं और प्रसाद पाते हैं।

इसलिए मोदी जी, फिर कहता हूं, महाराज, यह नाक उधार की है, टेम्परेरी है। चुनाव में बड़े-बड़ों की नाक कटी है और ऐसी जोरदार कटी है कि उसे बड़े-बड़े सर्जन भी दुबारा जोड़ नहीं पाए। अपने मित्र ट्रंप का हाल ही देख लीजिए। बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले, वाला हाल है उस बेचारे का यानी ठीक उसका, जिसके लिए आप नारा लगाकर आए थे- अगली बार ट्रंप सरकार। तो जो भी नाक का सवाल चुनाव या किसी और बात को बना लेता है, उसकी नाक आज नहीं तो कल और कल नहीं तो परसों कटकर रहती है और ऐसी कटती है कि उसे सूरज की रोशनी में क्या अंधेरे में भी बाहर निकलने में डर लगता है।

तो मोदी जी महाराज नाक से सांस लेने और छोड़ने का काम ही लिया कीजिए। आसपास की चीजें सूंघने और सूंघ कर समझने का काम भी उससे ले लिया कीजिए। ये नाक के बेसिक काम हैं। वैसे आजकल सर्दी का मौसम है। नाक प्रधानमंत्री की हो, चाहे चूल्हाचंद की, सुड़सुड़ाने से बच नहीं पाती। नाक होने की और शरीर में चेहरे पर चिपकी होने की यह ट्रेजेडी है नीच। सुड़सुड़ नाक की सूंघने की क्षमता कभी-कभी शून्य तक पहुंच जाती है।

आपकी  समस्या सर्दी का यह मौसम हो सकती है। किसी ईएनटी एक्सपर्ट को अपने बंगले पर हाजिर करवाइए। उसे शानदार नाश्ता करवाइए। फिर उसे दिखाइए कि दरअसल आपकी समस्या क्या है- नाक का सुड़सुड़ाना या उसका लंबा-चौड़ा होना! समस्या ईएनटी की होगी तो आपकी सूंघने की क्षमता  लौट आएगी।समस्या दूसरी होगी तो फिर तो लाइलाज है। वैसे लगता तो यही है कि समस्या, दूसरी है- लाइलाजवाली।

वैसे मोदी जी, आपकी नाक हमेशा से लंबी तो नहीं रही होगी। जब आप तथाकथित रेलवे स्टेशन पर तथाकथित चाय बेचते थे, तब तो आपकी नाक काफी छोटी रही होगी, इतनी छोटी कि रेल यात्रियों को आपकी नाक तो क्या चेहरा तक नहीं दिखता होगा! दिखती होगी केवल चाय की केतली और मटमैले कप। और महोदय, आप एक दिन अचानक गुजरात के मुख्यमंत्री बन गए तो इसलिए तो नहीं बने होंगे कि आपकी नाक काफी लंबी थी। छोटी रही होगी तभी बने होंगे। अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी सबसे बहुत छोटी रही होगी। इतनी छोटी  कि इन्हें अंदाज भी नहीं रहा होगा कि मोदी की नाक कभी इतनी लंबी हो जाएगी कि यह हमें आंखें दिखाने लगेगा!

इसलिए नाक को उसकी असली साइज में रहने दीजिए, नाक से उसका बेसिक काम ही लीजिए और ट्रंप की गति पाना चाहें तो खुशी-खुशी पाइए। हम ही क्या आपके आज के परम सगे भी आपकी नाक छोटी होने का बहुत आनंद लेंगे। हमसे कई गुना ज्यादा क्योंकि उन सबको भी आपने बहुत बेइज्जत किया और करवाया है।

बेहतर हो नाक को आप तथाकथित चाय बेचने वाले स्तर पर ही फिर से ले आएं तो आपकी चाय ज्यादा बिकेगी। सॉरी, चाय नहीं, देश। अब आपके हाथ में चाय की केतली नहीं, देश की केतली है, जिससे आप और आपके दोस्त मिल-बैठकर चाय पीते रहते हैं, देश बेचते रहते हैं। कभी अमेरिका के राष्ट्रपति को बेच देते हैं, कभी वहां के उद्योगपतियों को और कभी यहां के उद्योगपतियों को। और हर बेचने वाले को अपनी नाक छोटी ही रखनी होती है, चाहे वह अंबानी हो या अडाणी। तभी उसकी दूकानदारी अच्छी चलती है। बाकी की दूकानें बंद हो जाती हैं।

तो जो खरीदने नहीं आया है कुछ आपसे, उसके सामने भी नाक को उतना ही छोटा रखिए वरना जनता आपको यह सिखा देगी- किसी दिन। फिर आपकी नाक लंबी क्या छोटी भी नहीं रह जाएगी।सांस लेना और छोड़ना तक मुश्किल हो जाएगा। योग-फोग सब धरा रह जाएगा। कटी हुई नाक से योग करेंगे तो सांस लेते वक्त अंदर कचरा घुस जाएगा और कचरा शरीर को क्या आपके नन्हे से मस्तिष्क को भी क्षति पहुंचाएगा। वह प्राणहारक भी सिद्ध हो सकता है।

इसलिए किराए की नाक है, इसे मकान मालिक के सामने छोटा ही रखिए। किसान धरने पर हैं मोदी जी और 2020 जा चुका है, 2021आ चुका है। समय बदल चुका है। कम लिखा, ज्यादा समझना। सेस सब कुसल है न मोदी जी! अरे है न! अरे बोलो बाबा, कुछ तो बोलो। अच्छा तो फिर प्रणाम।

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