विष्णु नागर का व्यंग्यः मोदी-योगी की सबसे बड़ी चुनौती यूपी चुनाव में, नफरत का खेल नहीं होगा तो क्या होगा!

ये पद, मर्यादा, संसद, मंत्रिमंडल, प्रधानमंत्री सभी नफरत में समा चुके हैं और नफरत धर्म में समा चुकी है। भारत भी अब भारत कहां रहा। यह हिन्दू राष्ट्र में समा चुका है। और हिन्दू राष्ट्र अडाणियों-अंबानियों में समा चुका है। जो समा नहीं पाए, वे निशाने पर हैं।

फाइल फोटोः सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

चुनाव तो अनेक राज्यों में हैं मगर सबसे बड़ी चुनौती यूपी में है तो अब नफरत-नफरत का खेल तो जमकर खेला ही जाएगा। गाय के बहाने नफरत के खेल की कमान अब प्रधानमंत्री जी ने फिर से मजबूती से संभाल ली है। योगी जी ने तो कभी कमान ढीली छोड़ी ही नहीं थी। उसे अब और कस दिया है। देखना योगी जी, आपकी कमान आपको ही न कस दे। मोदी जी का ध्यान रखना।अभी ढाई साल उन्हें प्रधानमंत्री रहना है। ऐसा न हो कि कमान उनके हाथ में रह जाए और घोड़ा उन्हें गिराकर भाग जाए!

तो खैर अब रोज-रोज हिन्दू, हिन्दू, मुसलमान-मुसलमान नहीं होगा तो फिर क्या होगा? और केवल इनके कमान संभालने से क्या होगा? तो इन्होंने धर्म संसद नामक एक फर्जी संसद को नफरत के खेल को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी दे दी है। उधर योगी जी भी पीछे नहीं हैं। उन्होंने भी अपनी हिंदू युवा वाहिनी को धंधे से लगा दिया है। मतलब अब चुनाव कार्यक्रम घोषित होने वाला है। फर्जी विकास जितना किया जा सकता था, लगभग किया जा चुका है। अब विकास ने जो खाली मैदान छोड़ा है, उसमें नफरत का विकास करना है। वह विकास तो काम आएगा नहीं, यही काम आएगा। यह वाला विकास मोदी की भाजपा, जितना कर सकती है और कोई नहीं कर सकता!

मुसलमानों के विरुद्ध युद्ध का ऐलान करवाया जा चुका है। 2024 में कोई मुसलमान प्रधानमंत्री न बन जाए, इसका खेल खेला जा रहा है। गुजरात में यह खेल अहमद पटेल को मुख्यमंत्री बनाने की साजिश के नाम पर सफलता से खेला जा चुका है। अब किसी मुसलमान को प्रधानमंत्री बनाने की साजिश के नाम पर खेला जा रहा है। कोई मुसलिम नेता जबकि दूर दूर तक इस दौड़ में नहीं है मगर नफरत का खेल है। इसे इसी प्रकार खेला जाता है। कोरोना की पहली लहर में भी यह खेल खूब खेला गया था, फिर से खेला जाएगा। जो भी मोदी के सामने मजबूत दिखेगा, वह मुसलमान बना दिया जाएगा। नफरत के निशाने पर लाया जाएगा। मुसलमान से बड़ा नफरत का निशाना और कौन हो सकता है? जब नेहरू जी मुसलमान हो सकते हैं तो कोई भी मुसलमान हो सकता है!

गुजरात में बात हथियार उठाने तक नहीं ले जाई गई थी। अब हथियार उठाने की बात की जाने लगी है। मुसलमानों की हत्या कर हिंदू राष्ट्र बनाने का आह्वान किया जाने लगा है। नाथूराम गोडसे बनने की ख्वाहिश पालने वाले को संत बताया जा रहा है। उसे आगे लाया जा रहा है, जो कभी पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की हत्या करने का इच्छुक था।


नफरत को आज हमारा राष्ट्रधर्म बना दिया गया है। बस उसका एक खास रंग होना चाहिए।किसी भी रंग की नफरत नहीं चलेगी। उस रंग की नफरत फैलाना आज का सबसे वैध, सबसे पवित्र कर्म बन चुका है। उस रंग की नफरत अब सच्ची देशभक्ति का दर्जा पा चुकी है। इस नफरत को हाथ में तिरंगा उठाकर चलने-दौड़ने की पूर्ण स्वतंत्रता है, इसे वंदे मातरम गाकर फैलाने का पूरा इंतजाम है। राम का नाम खौफ का पर्याय बनाया जा चुका है।

अब जुमे की नमाज खुले में पढ़ना जुर्म हो चुका है। वहां जयश्री राम के नारे लग रहे हैं। कौन कहता है कि इस देश में अंबेडकर का संविधान चल रहा है? हिंदू राज चल रहा है और भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा के हिस्से में मालाएं आ रही हैं। महान से महान, शूरवीर से शूरवीर की मूर्ति या फोटू में इतनी ताकत होती नहीं कि ऐसों की माला उठाकर फेंक दे! अपनी प्रतिमा या फोटू से बाहर निकलकर आए और झूठी तारीफ करने वाले के सामने से माइक छीन ले!

अब खास रंग के नफरती हत्यारों के समर्थन में जुलूस और झांकियां निकालने की पूर्ण स्वतंत्रता दी जा चुकी है। अब नफरत न्यू इंडिया का नया कानून बन चुका है, यही उसका संविधान भी है।इंतजार मत करो कि सबकुछ संसद पारित करे, राष्ट्रपति ही उस पर हस्ताक्षर करें। सबकुछ ऐसा चलता रहा और चलने दिया गया तो वह दिन भी जल्दी ही देखने को मिलेगा। अब सबकुछ संभव है। ये पद, ये मर्यादा सब फालतू बनाए जा चुके हैं। न संसद, संसद रही, न मंत्रिमंडल, मंत्रिमंडल। न कोई और कुछ रहा। सब प्रधानमंत्री में समा चुके हैं, जो नफरत में समाए हुए हैं।और नफरत धर्म में समा चुकी है। सबकुछ समा चुका है। भारत भी अब भारत कहां रहा! वह हिन्दू राष्ट्र में समा चुका है। और हिन्दू राष्ट्र अडाणियों-अंबानियों में समा चुका है। सब समा चुका है। लगता है, ऊपर कुछ रहा नहीं। मुश्किल उनकी है, जो फिर समा नहीं पाए। वे निशाने पर हैं।

जब नफरत ही कानून है तो फिर इसे फैलाने में डर क्यों और किसका? डरें तो वे जो इस कानून के खिलाफ हैं, जो इस कानून की खिलाफत करते हैं। जेल वे जाएंगे। और फिर जिस कानून के डर से कभी डर रहता था, उस कानून और संविधान के पालक और रक्षक भी तो वही हैं, जो खुद नफरत फैलाकर ऊंचे-ऊंचे सिंहासनों पर विराजमान हुए हैं। जब सैंया ही कोतवाल बन चुके हैं तो फिर डर और भय किसका? फिर कोतवाल साहब, चौकीदार जी, जिसे कानून और संविधान मानेंगे, वही कानून, वही संविधान, वही संसद, वही अदालत होगी! जब वैदिक हिंसा, हिंसा न भवति है तो फिर ऐसी हिंसा ही सबसे सच्ची अहिंसा होगी। वह नहीं, जिसके प्रचारक महात्मा गांधी थे। अब तो नफरत ही प्रेम है, नफरत ही भाईचारा।


नफरत ही आज का लैटेस्ट फैशन भी है। जो सबसे ज्यादा नफरती है, वही सबसे ज्यादा 'कूल' भी है। सफलता का सबसे आसान नुस्खा है नफरत। नफरती बनकर आप ज्यादा आराम से रात.में ही क्या दिन में भी सो सकते हैं। अगर रात में नींद बीच में टूट जाए, दुबारा नहीं आए, तो नींद की गोलियां खाने का युग गया, नफरती बनिए। नफरत अब नींद की 101 प्रतिशत गारंटी है।

फिर भी नींद नहीं आ रही है तो चैक करवाइए। हो सकता है कि आप में नफरत की मिकदार कम हो तो उसे बढ़ाइये। आराम से घर में बैठकर रजाई में लेटे लेटे नफरत बढ़ाने का जी कर रहा हो तो न्यूज चैनल खोल लीजिए, यूट्यूब पर चले जाइए। मोदी जी, योगी जी और उनके चन्नू-मुन्नू जी के ताजा भाषण सुनिए। नींद फिर भी न आए तो अभी हरिद्वार में हुई धर्म संसद और दिल्ली में हुई हिंदू युवा वाहिनी के शूरवीरों के भाषण सुन लीजिए। इसे सुनकर भी नींद न आए, बल्कि नींद उड़ जाए तो समझ लीजिए, आप पक्के देशभक्त नहीं हैं। आप एक खतरनाक आदमी हैं, आप सेकुलर हैं। आपकी नागरिकता संदिग्ध है!

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