मोदी का भारत और विश्वगुरु का सपना

देश में बेरोजगारी की स्थिति भयावह है, बाजार सामानों से भरा है पर खरीददार नहीं हैं, दूसरे देशों को निर्यात पिछले तीन वर्षों से लगभग एक स्तर पर है, छोटे उद्योग तेजी से बंद हो रहे है और सत्ता विकसित भारत के सपने बेच रही है।

ध्यान लगाते पीएम मोदी
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महेन्द्र पांडे

कितने विरोधाभास हैं – देश की अर्थव्यवस्था का आकार दुनिया में पांचवें स्थान पर है, दावा है जल्दी ही यह तीसरे स्थान पर पहुँच जाएगी और दूसरी तरफ देश की 81 करोड़ से अधिक आबादी सरकार द्वारा मुफ़्त में दिए जा रहे 5 किलो अनाज पर जिंदा है। जिन्हें अनाज मुफ़्त मिल रहा है, उन्हें यह मुफ़्त अनाज वर्ष 2020 से लगातार मिल रहा है। भले ही यह आंकड़ा सत्ता और दलाल मीडिया को एक आर्थिक उपलब्धि के तौर पर नजर आता हो, पर मुफ़्त अनाज के संदर्भ में स्पष्ट है कि मोदी सरकार भी मानती है कि देश की बढ़ती अर्थव्यवस्था का फायदा कम से कम इन 81 करोड़ से अधिक लोगों को नहीं मिल रहा है। फिर यह विकास कैसा है, गरीबी घटाने के दावे किस आधार पर हैं और विकसित भारत का शोर किसलिए है?

स्वर्गीय प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के समय शुरू हुए देश के विकास को विपरीत दिशा में ले जाने में जितना योगदान मोदी सरकार का है, उससे कहीं अधिक जिम्मेदार अडानी और अंबानी के स्वामित्व वाली मेनस्ट्रीम मीडिया है, जिसने वर्षों से जनता तक देश की हकीकत को पहुँचने नहीं दिया है। सत्ता और मीडिया ने जनता को विकास का मतलब कल्पित सनातनी देश, ध्रुवीकरण, बड़े इन्फ्रस्ट्रक्चर परियोजनाओं को ही बताया है, और अब तो जनता भी इसे ही अपनी नियति मान चुकी है।


सितंबर 2024 में ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने एक साक्षात्कार में कहा था कि वर्ष 2050 तक भारत भी अमेरिका और चीन की तरह दुनिया में एक सुपरपावर होगा। प्रधानमंत्री मोदी लगातार विश्वगुरु की बात करते है और वर्ष 2047 तक भारत को विकसित बनाने की बात करते हैं। सतही तौर पर दुनिया की सबसे बड़ी आबादी और लगातार बढ़ती अर्थव्यवस्था के कारण भारत का सुपरपावर बनना तय भी लगता है। भौगोलिक राजनीति में भी भारत का दबदबा बढ़ रहा है, यह देश का मेनस्ट्रीम मीडिया लगातार प्रचारित करता है। गौर से देखें तो भारत दुनिया में निरंकुश शासकों का वर्चस्व बढ़ाने में जुटा है – रूस, इस्राइल, म्यांमार, बांग्ला देश की पूर्व तानाशाह शेख हसीना, मध्य पूर्व के देशों और अनेक मामलों में चीन के साथ भी खड़ा नजर आता है भारत। भारत तो अब अनेक विदेशी देशों में हत्याओं में भी शामिल होने लगा है – सत्ता इसे नकारती है और बीजेपी नेता मंचों पर खड़े होकर मुस्कराते हुए ऐलान करते हैं कि मोदी का भारत तो विरोधियों को उनके घर में घुस कर मारता है।

दुनिया में सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था का दावा भी अब खोखला नजर आने लगा है – आर्थिक विकास पिछले दो वर्षों के सबसे निचले स्तर पर पहुँच गया है। पूरे साल भर बड़े जोर शोर से सत्ता, मीडिया और तमाम अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं आर्थिक विकास दर को 7 से 8 प्रतिशत के बीच बताती रही, पर जुलाई से सितंबर 2024 के बीच यह विकास 5.4 प्रतिशत पर ठहर गया। अब वर्ष 2024 के लिए आर्थिक विकास को 6.5 से 6.8 प्रतिशत तक ही माना जा रहा है। आश्चर्य यह है कि इसके बाद भी सत्ता पर काबिज नेता 5 खरब की अर्थव्यवस्था को महज 1 से 2 वर्ष दूर बता रहे हैं। मीडिया भी इन दावों को खूब प्रचारित करती है। वास्तविकता यह है कि अभी देश की अर्थव्यवस्था 3.89 खरब डॉलर की है, और यदि हरेक वर्ष 7 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होती है (इस वर्ष का अनुमान महज 6.5 प्रतिशत का है) तब भी वर्ष 2028 तक हम 5 खरब डॉलर तक पहुँच पाएंगे।


विश्व बैंक के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति ऐसी है कि अमेरिका के अर्थव्यवस्था के चौथाई स्तर तक पहुँचने के लिए भी भारत को कम से कम 75 वर्ष लगेंगे। उपभोक्ता खर्च देश के कुल जीडीपी का लगभग 60 प्रतिशत है, पर बढ़ती मुद्रास्फीति, महंगाई और वेतन में कम या नहीं बृद्धि के कारण उपभोक्ता खर्च लगातार कम होता जा रहा है। हमारा देश वर्ष 2007 से लगातार निम्न-मध्यम आय वर्ग के देशों में शामिल है और मोदी सरकार की कोई ऐसी योजना नहीं नजर आती जिसमें आम आबादी की आय बढ़ाने के संकेत मिलते हों। दूसरी तरफ अडानी-अंबानी के कारोबार सीधे तौर पर सत्ता बढ़ाने में व्यस्त है। उन्हें सरकारी परियोजनाएं तोहफे में दी जा रही हैं, उनके कर्ज का इंतजाम किया जा रहा है और फिर कर्ज माफ करने का आदेश भी दिया जाता है। अडानी तेजी से पवन ऊर्जा के क्षेत्र में उतर जाए हैं, टीवी चैनलों पर पहले पंखा आएगा फिर बिजली आएगी वाले विज्ञापनों को लगातार दिखाया जा रहा है। अडानी को पवन चक्की फोरम स्थापित करने में दिक्कत नहीं हो, इसलिए केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को पर्याप्त भूमि उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है। विदेशों में अडानी-अंबानी का कारोबार बढ़े, इसलिए हरेक द्विपक्षीय वार्ता में ऊर्जा-विकास को शामिल किया जा रहा है।

 देश में बेरोजगारी की स्थिति भयावह है, बाजार सामानों से भरा है पर खरीददार नहीं हैं, दूसरे देशों को निर्यात पिछले तीन वर्षों से लगभग एक स्तर पर है, छोटे उद्योग तेजी से बंद हो रहे है और सत्ता विकसित भारत के सपने बेच रही है। वर्ष 2024 में जारी वर्ल्ड इनीक्वालटी लैब की रिपोर्ट के अनुसार भारत में आर्थिक असमानता का स्तर दुनिया में सबसे अधिक है और यह लगातार बढ़ता जा रहा है। आर्थिक असमानता की ऐसी भयावह स्थिति 1947 के पहले ब्रिटिश राज में भी नहीं रही, पर मोदी सरकार की नीतियों में इसे कम करने की योजनाएं नजर नहीं आतीं। मानव विकास इंडेक्स में कुल 191 देशों में भारत का स्थान 122वां है।

विकसित राष्ट्र और सुपरपावर का दर्जा केवल टेक्नॉलजी और इंफ्रास्ट्रक्चर से ही नहीं मिलता पर इसके लिए एक प्रबुद्ध और शांत समाज, सबको योग्य रोजगार और सत्ता के हस्तक्षेप से मुक्त न्याय व्यवस्था और संवैधानिक संस्थाओं की जरूरत भी होती है। मोदी सरकार ने वर्ष 2014 के बाद से सबसे अधिक हमला इन्हीं क्षेत्रों में किया है। इन्टरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन के आंकड़ों के अनुसार कुल बेरोजगारों में से पढे लिखे युवा बेरोजगारों की संख्या वर्ष 2000 में 54.2 प्रतिशत थी, पर वर्ष 2022 तक यह संख्या 65.7 प्रतिशत तक पहुँच गई। ये आँकड़े दरावे वाले हैं क्योंकि देश की औसत आयु महज 29 वर्ष ही है। दूसरी तरफ वर्ष 2014 के बाद से वेतन में कोई प्रभावी वृद्धि नहीं हुई है। हमारा देश श्रमिक उत्पादकत के संदर्भ में 133वें स्थान पर है तो दूसरी तरफ यहाँ के 51 प्रतिशत से अधिक श्रमिकों को हरेक सप्ताह 49 घंटे से अधिक काम करना पड़ता है – इस संदर्भ में भारत का स्थान दूसरा है।

विकसित देश समाज के ध्रुवीकरण और पूंजीपतियों के विकास से नहीं बंता, बल्कि समाज की समरसता और शांति से बनता है। मोदी सरकार की जन विरोधी नीतियों की अब ऐसी स्थिति है कि आंकड़ों की बाजीगरी के बाद भी देश की समृद्धि, शांति और समरसता नजर नहीं आती।  

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