कोरोना संकट से उपजे दर्द और अनिश्चय की परछाईं में धुंधलाया चैती पूर्णिमा का चांद

चैत्र मास से हिंदू विक्रमी वर्ष का पहला मास शुरु होता है, इसलिए भी चैत्र पूर्णिमा का विशेष महत्व है। माना जाता है कि श्रीकृष्ण ने इसी दिन गोपियों संग वृंदावन में महारास रचाया था। वैष्णव लोग हनुमान के जन्म से जोड़कर इसी दिन को हनुमान जयंती मनाते हैं।

फोटोः तसलीम खान
फोटोः तसलीम खान
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मृणाल पाण्डे

चैती पूर्णिमा चांद्रमास का वह दिन है जब चंद्रमा चैत के साफ आकाश में अपने पूर्ण यानी पूरे आकार में दिखाई देता है। भारतीय चांद्रमास पर आधारित कैलेंडर में यह फसलों से जुड़ी पूर्णिमा शारदीय पूर्णिमा की ही तरह सुखद उम्मीदों से भरी है, इसलिए यह दिन धार्मिक रूप से भी एक महत्वपूर्ण दिन सहज बन गया।

चैत्र मास से हिंदू विक्रमी वर्ष का पहला मास शुरु होता है, इसलिए भी चैत्र पूर्णिमा का विशेष महत्व है। माना जाता है कि श्रीकृष्ण ने इसी दिन गोपियों के साथ वृंदावन में महारास रचाया था। इस दिन को वैष्णव लोग हनुमान के जन्म से जोड़कर, इसी दिन हनुमान जयंती मनाते हैं। इधर जब से देश की चुनावी राजनीति में धर्म की आमद बढ़ी है, हनुमान भक्ति के सार्वजनिक प्रदर्शन का भी राजनैतिक महत्त्व काफी बढ़ा है।

हमारे गांवों में यह समय फसलों के पक कर तैयार होने का सुखद मौका है। इसलिए खेतिहर गृहस्थ कुछ ही दिनों में घर बखार भरने आ रही ताजा फसल के उल्लास से भर कर इस पूर्णिमा पर उपवास रखकर धरती पर सुख समृद्धि के प्रतीक विष्णु और चंद्रमा के साथ अपने कई स्थानीय लोक देवताओं की भी पूजा करते हैं। वैशाख माह का मेला अलबत्ता फसल कटाई के बाद ही भरता है, जब पखवाड़े बाद 14 तारीख के आसपास बैसाखी का पर्व आता है।

इस साल चैती पूर्णिमा कोरोना वायरस से उपजे दर्द और बंद पड़ी मंडियों को लेकर पड़ रही अनिश्चय की परछाईं से धुंधलाई सी लग रही है। प्रेमचंद ने कभी कहा था, “किसान की सारी किस्मत फसल की बुवाई से कटाई तक खुले आसमान तले पड़ी रहती है, इसलिए उससे बदला लेना भगवान से इंसान तक सबके लिए आसान है।”

इधर साल दर साल मौसम के बदलते तेवरों के मद्देनजर हर कहीं किसानों को आशंका है कि कहीं ऐन कटाई के समय ओला बारिश न आ जाएं। एक और बड़ा अनिश्चय लॉकडाउन के कारण उपजा है। किसान के सामने हर कहीं भारी संकट है। कटाई के लिए, फसल की ढुलाई लदाई-उतराई और बिकवाली के लिए जिन हजारों प्रवासी मजूरों, ट्रक वालों, और मेकैनिकों पर किसानी समुदाय निर्भर रहता है, वे बदहवास होकर भाग निकले हैं। जो गांव लौटे वे क्वारंटाइन शिविरों में कैद हैं।

ऐसे में किसकी जयंती, कैसा महारास? फसल कटाई के पारंपरिक उल्लासमय लोकगीत भी इस बार कौन गाए? अभूतपूर्व संकट की इन घड़ियों में भगवान भली करें, संकटमोचक हनुमान परिवारों को जल्द उबारें। आज 8 अप्रैल को पड़ रही चैती पूर्णिमा पर गांव से शहर तक लगभग हर कहीं प्रार्थना के स्वर यही जपेंगे।

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