अपने भविष्य के प्रति आश्वस्त नहीं हैं ज्यादातर भारतीय युवा, पीएम साहब वोटबैंक से आगे युवाओं के बारे में भी सोचिए!   

हमारे देश में सत्ता में बैठे नेताओं के लगभग हरेक भाषण में यह जिक्र किया जाता है कि हमारा देश युवाओं का देश है, पर जब योजनाओं और नीतियों की बारी आती है तब इन्हीं युवाओं को पूरी तरह से नकार दिया जाता है।

फोटोः सोशल मीडिया
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महेन्द्र पांडे

एक अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षण में भारत के 132809 युवाओं और किशोरों से पूछा गया कि उज्ज्वल भविष्य के लिए उनकी जरूरतें क्या हैं– इसमें से 52182 युवाओं ने कहा रोजगार, बेहतर शिक्षा और कौशल विकास, 36129 युवाओं की पहली जरूरत थी सामाजिक और व्यक्तिगत सुरक्षा, 24332 युवाओं में बेहतर स्वास्थ्य और पोषण को सबसे आगे रखा और 11785 युवाओं की पहली जरूरत सकारात्मक विचार थे। सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले युवा और किशोर 10 से 24 वर्ष के बीच की उम्र के थे, और इनकी औसत आयु 18 वर्ष थी। इसमें से 46729 बालिकाएं थीं और 43757 बालक थे।

इस सर्वेक्षण की एक खासियत यह थी कि आयोजकों द्वारा प्रतिभागियों को कोई भी निश्चित शब्द या वाक्यांश नहीं सुझाए गए थे। प्रतिभागियों द्वारा सबसे अधिक उपयोग किए गए शब्द थे– शिक्षा, स्वास्थ्य, विद्यालय, मौके, रोजगार और उपलब्धता। इसी तरह सबसे अधिक चुने गए वाक्यांश थे – मानसिक स्वास्थ्य, बेहतर स्वास्थ्य, बेहतर शिक्षा, प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य शिक्षा, शिक्षा के मौके और उचित रोजगार के अवसर। साफ पीने के पानी का जिक्र भी अनेक युवाओं ने किए। अधिकतर बालिकाओं ने सेनेटरी पैड की चर्चा भी की। जाहिर है प्रधानमंत्री और सत्ता के तमाम दावों से परे देश के युवा आज भी बेहतर शिक्षा, कौशल विकास, रोजगार और बेहतर स्वास्थ्य और पोषण की सुविधा से वंचित हैं और इनके अभाव में वे अपने भविष्य के प्रति आश्वस्त नहीं हैं।

हमारे देश में सत्ता में बैठे नेताओं के लगभग हरेक भाषण में यह जिक्र किया जाता है कि हमारा देश युवाओं का देश है, पर जब योजनाओं और नीतियों की बारी आती है तब इन्हीं युवाओं को पूरी तरह से नकार दिया जाता है। जब युवा सत्ता के सामने बेरोजगारी और बेहतर शिक्षा जैसी अपनी समस्याएं रखते है, या फिर इसके लिए आंदोलन करते हैं तब उनका दमन किया जाता है। कई राज्य सरकारों ने तो यह घोषणा भी की है कि आंदोलन में हिस्सा लेने वाले युवाओं को रोजगार से अलग रखा जाएगा। सत्ता के लिए युवा वोट बैंक और उन्मादी/हिंसक भीड़ तंत्र से अधिक कुछ भी नहीं हैं। बीजेपी सरकार ने जितना नुकसान युवाओं का किया है उतना शायद ही आबादी के किसी वर्ग का किया होगा– उन्हें प्रत्यक्ष तौर पर केवल अपने फायदे के लिए समाज विभाजन और हिंसा के लिए प्रेरित किया है – जिसका असर समाज में लम्बे समय तक महसूस किया जाएगा।

दूसरी तरफ, युवाओं के अपने विचार हैं, अपनी आकांक्षाएं हैं और बेहतर भविष्य के लिए अपनी जरूरतें हैं – पर युवाओं से यह सब कोई नहीं पूछता। युवाओं और किशोरों के लिए आवाज उठाने वाली एक अंतरराष्ट्रीय संस्था, पार्टनरशिप फॉर मैटरनल, न्यूबोर्न, एंड चाइल्ड हेल्थ ने पिछले वर्ष अक्टूबर में 1.8 यंग पीपल फॉर चेंज नामक अभियान की शुरुआत की थी। इस अभियान के तहत लक्ष्य है कि इस वर्ष के अक्टूबर तक भारत समेत विकासशील देशों के कम से कम दस लाख युवाओं और किशोरों से उनके विचार जाने जाएं कि बेहतर भविष्य के लिए उन्हें सबसे जरूरी क्या लगता है। यह सर्वेक्षण युवाओं के बीच अबतक किया गया सबसे बड़ा सर्वेक्षण है। इस अभियान के तहत अबतक 7 लाख से अधिक युवाओं के विचार एकत्रित किए जा चुके हैं और हाल में ही इस सर्वेक्षण के प्राथमिक परिणाम सार्वजनिक किए गए हैं। इसमें सबसे बड़ा वर्ग 15 से 19 वर्ष तक आयु कके युवाओं का है, जिनी संख्या कुल संख्या का 47.2 प्रतिशत है, इसमें से 25.7 प्रतिशत बालिकाएं और 21.5 प्रतिशत बालक हैं।


सर्वेक्षण के अनुसार 40 प्रतिशत से अधिक युवाओं ने बेहतर भविष्य के लिए बेहतर शिक्षा, रोजगार और स्किल डेवलपमेंट को सबसे जरूरी बताया। दूसरे स्थान पर सुरक्षा और युवा विचारों का सम्मान था, जिसे 21 प्रतिशत से अधिक युवाओं से सबसे जरूरी बताया था। लगभग 16 प्रतिशत युवाओं ने बेहतर स्वास्थ्य और पोषण को प्राथमिकता दी। पार्टनरशिप फॉर मैटरनल, न्यूबोर्न, एंड चाइल्ड हेल्थ का मुख्यालय जेनेवा में विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुख्यालय में स्थित है। इसकी एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर हेलगा फोग्स्ताद ने इन परिणामों को प्रस्तुत करते हुए कहा कि इस समय दुनिया में युवाओं की जितनी संख्या है ऐसी संह्या मानव इतिहास के किसी भी मोड़ पर नहीं रही है, फिर भी सरकारी नीतियों में इन युवाओं की आकांक्षा की उपेक्षा की जाती है। परिणामों से स्पष्ट है कि दुनियाभर के युवा अपने और समाज के बेहतर भविष्य के लिए आर्थिक सुरक्षा, कौशल विकास, बेहतर शिक्षा, बेहतर पोषण और आजादी को जरूरी मानते हैं, पर दुखद है कि अधिकतर विकासशील देशों में इन सभी विषयों की उपेक्षा की जा रही है। कोविड 19 से पहले विकासशील देशों के 53 प्रतिशत 10 वर्ष से कम उम्र के बच्चे सामान्य से कम ज्ञान रखते थे, पर अब यह संख्या 70 प्रतिशत से अधिक हो चली है।

भले ही यह एक अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षण था, पर हमारे देश के लिए इसका विशेष महत्त्व है। सर्वेक्षण के सात लाख से अधिक प्रतिभागियों में सबसे अधिक, 17 प्रतिशत से अधिक, भारत के हैं। इसके बाद 12 प्रतिशत यूगांडा के, 10.2 प्रतिशत इंडोनेशिया के और 8.4 प्रतिशत ज़ाम्बिया के हैं। कुल प्रतिभागियों में 68.8 प्रतिशत अफ्रीका के, 27.5 प्रतिशत एशिया के और शेष दक्षिणी अमेरिका के हैं।

हमारे देश में बेरोजगारी पर चर्चा को रोकने के लिए इसके सरकारी आंकड़े नदारद हैं, पर तथ्य यह है कि यहां बेरोजगारी दुनिया के किसी भी देश की तुलना में अधिक है। प्रधानमंत्री जी के लिए बेरोजगारी भी एक मजाक का विषय है, जिसके बारे में वे अक्सर कहा करते हैं कि हमारे देश के युवा रोजगार लेते नहीं हैं बल्कि अब तो रोजगार देते हैं। हमारे देश में 15 से 24 वर्ष की आयुवर्ग में एक-चौथाई से अधिक युवा बेरोजगार हैं और जिन्हें रोजगार मिला है उनमें से आधे से अधिक युवाओं को दक्षता और योग्यता के अनुरूप रोजगार नहीं मिला है। महिलाओं में बेरोजगारी 40 प्रतिशत से अधिक है।

महिलाओं की एक बड़ी संख्या शिक्षा और रोजगार की किल्लत से परेशान होकर आर्थिक धारा से ही बाहर हो गयी है। राष्ट्रीय सैंपल सर्वे संस्थान द्वारा अप्रैल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार देश में आबादी की कुल संख्या में से एक-चौथाई संख्या 15 से 29 वर्ष के आयु वर्ग में है। इसमें से लगभग एक-तिहाई आबादी देश की आर्थिक धारा से बिलकुल अलग हो चुकी हैं – यानि वे शिक्षा, कौशल विकास और रोजगार से पूरी तरह बाहर हैं। पर, यहाँ खतरनाक तथ्य यह है कि इसमें से अधिकतर महिलाएं हैं। पुरुषों में 15 से 29 वर्ष के आयुवर्ग के 15.4 प्रतिशत लोग आर्थिक धारा से अलग हैं, जबकि महिलाओं में यह संख्या 51.7 प्रतिशत है। अधिकतर परिवारों में बालिकाओं की आर्थिक सशक्तता उनके शिक्षा और रोजगार में नहीं बल्कि विवाह में देखी जाती है।

युवा वर्ग बेरोजगारी की बात करता है, स्वास्थ्य की बात करता है और शिक्षा की बात करता है – पर सत्ता उन्हें हिंसक बना रही है और सामाजिक असमानता पैदा करने के लिए उपयोग कर रही है। बेरोजगार और अशिक्षित युवा ही बजरंग दल, विश्व हिन्दू परिषद और श्रीराम सेना जैसे ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने वाले संगठनों की शक्ति हैं – और सत्ता को सत्ता में बने रहने के लिए ऐसे ही संगठनों की जरूरत है।

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