वक्त-बेवक्त: राष्ट्रवाद के नाम पर चीन में वीगर मुसलमानों के शोषण की दास्तान 

वीगर लोगों की प्रमुख पहचान चूंकि उनका इस्लाम धर्म है, चीन ने इस्लाम से जुड़ी हर चीज़ का अपराधीकरण कर दिया है। इस साल और उसके पहले भी रमजान के महीने में रोजा रखने और उसकी हर रस्म पर पाबंदी लगा दी गई थी।

फोटो: सोशल मीडिया
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अपूर्वानंद

दस लाख लापता. और मुल्क ही नहीं पूरी दुनिया खामोश! क्या इसलिए कि यह संसार के बाहुबली चीन का मामला है? हम वीगर शीनजांग प्रांत के वीगर समुदाय के लोगों की बात कर रहे हैं जिनकी बात कोई देश नहीं करना चाहता। इनका कसूर यह है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी इन्हें पर्याप्त चीनी और राष्ट्रवादी नहीं मानती। इनकी भाषा, जो इनकी है, इनका पहरावा-ओढ़ावा, इनकी पूजा पद्धति और धर्म, सब कुछ चीन की निगाह में संदिग्ध है। हर वीगर इसके लिए तैयार है कि उसे उसके घर से, सड़क से, अस्पताल से या उसके काम करने की जगह से उठा लिया जाएगा और ‘स्कूल’ में डाल दिया जाएगा। चीनी अधिकारी इन्हें शिक्षा केंद्र कहते हैं। लेकिन इनका सही नाम कॉन्सेंट्रेशन कैम्प है। इनमें पहुंचा दिए जाने के बाद किसी वीगर की वापसी सिर्फ एक इत्तेफाक और उसका नसीब है।

दस लाख से ज्यादा वीगर अपने घरों, परिजनों, मित्रों के लिए अब सिर्फ एक खबर हैं, बल्कि वह भी नहीं क्योंकि खबर लेने वाला खुद संकट में पड़ सकता है अगर उसने खबर लेने की कोशिश की।

धीरे-धीरे यूरोप और अमरीका के अखबार और वहां के मानवाधिकार समूह मुखर रूप से चीन की इस ज्यादती का विरोध कर रहे हैं। ज्यादती शब्द की जगह दमन शब्द का इस्तेमाल करना उचित है। लेकिन जब पूरी दुनिया चीन को ईर्ष्या से देख रही हो कि उसकी तरह वह तरक्की की सीढ़ियां फलांगते हुए शिखर पर कैसे जा पहुंचे तो उसकी नाइंसाफी का वह विरोध कैसे करे!

चीन इसे दमन मान नहीं सकता। वह इसे वीगर लोगों का चीनीकरण कहता है। उनमें राष्ट्रीयता की जो कमी है, वह उदार राज्य के प्रशिक्षण से दूर की जा रही है, बल्कि उसकी हिमाकत तो यह है कि वह यह कह सकता है कि दुनिया के सबसे खुशहाल मुसलमान यहां रहते हैं।

क्या यह सुनकर हमें अपने देश की याद आ रही है?

वीगर लोग ही निशाना क्यों हैं? क्योंकि शीनजांग प्रदेश में रहने वाले इन लोगों ने 20 सदी के आरम्भ में चीन से खुद को आज़ाद घोषित कर दिया था। इन पर चीन ने वापस 1949 में कब्जा किया। वीगर इस्लाम को मानने वाले हैं। इस प्रदेश की सीमा मंगोलिया के अलावा जिन देशों से मिलती है, वे तरह-तरह की भाषाओं और संस्कृतियों वाले देश मुस्लिम बहुल देश हैं। किर्गिस्तान, कजाकिस्तान जैसे देशों से इसका काफी मेल है और वीगर मुसलमान इसे अभी भी पूर्वी तुर्किस्तान की तरह जानते हैं। इनकी अपनी भाषा वीगर है जिसे ये पूर्वी तुर्की भी कहते हैं। इस आबादी के एक हिस्से ने बीच-बीच में चीन से आजादी की कोशिश की है। जवाबी कार्रवाई में चीन ने वह किया जो अक्सर एक राष्ट्र, एक जन के सिद्धांत को मानने वाले करते हैं। उसने हान समुदाय के लोगों की आबादी को शीनजांग में बड़ी संख्या में बसने की नीति आक्रामक रूप से लागू की है। कालक्रम में अब वीगर अपने ही इलाके में अल्पसंख्यक बन चुके हैं। इसलिए आज़ादी का खतरा तो अब दूर-दूर तक नहीं।

फिर भी चीन के राष्ट्रीयकरण की परियोजना के जोर और उसकी क्रूरता में कोई कमी नहीं आई है। अमरीका में 11 सितंबर के दहशतगर्द हमले के बाद अमरीका ने दुनिया में जो मुसलमानों के खिलाफ एक शक और नफरत का माहौल बनाया, उसने चीन के विस्तारवादी राष्ट्रवाद को एक हथियार और औचित्य दे दिया। दहशतगर्दी के खिलाफ जंग के नाम पर पर वीगर समुदाय को एक प्रकार के नस्ली सफाया अभियान का निशाना बनाया जा रहा है। चीन का इरादा है इस आबादी को पूरी तरह बदल देना। अगर सबका सफाया न किया जा सके जो हिटलर ने करना चाहा था तो उनके रहने-सहने, तौर-तरीके, महसूस करने और सोचने, कुल मिलाकर जीने के ढंग को पूरी तरह बदल देने की महत्वाकांक्षा चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की है।

यह राष्ट्रवादी लोभ प्रत्येक स्थान और काल में पाया जाता है। जिस व्यक्ति के नाम पर राष्ट्रीयता की बहस दुनिया भर के कम्युनिस्ट करते रहे हैं, उस स्टालिन ने भी युक्रेन और दूसरे इलाकों का रूसीकरण करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।

वीगर लोगों की प्रमुख पहचान चूंकि उनका इस्लाम धर्म है, चीन ने इस्लाम से जुड़ी हर चीज़ का अपराधीकरण कर दिया है। इस साल और उसके पहले भी रमजान के महीने में रोजा रखने और उसकी हर रस्म पर पाबंदी लगा दी गई थी। मस्जिदों की निगरानी, इमामों को तरह-तरह से परेशान करना और मुसलमानों की बाहर रहने वाले रिश्तेदारों से बातचीत की जासूसी निगहबंदी, स्कूलों से धार्मिक अध्यापकों और छात्रों को निकाल बाहर किया जाना, यह रोज़ाना की सरकारी कार्रवाई है जिसे एक राष्ट्र-एक जन के नाम पर चलाया जा रहा है। इस्लाम को विचारधारात्मक बीमारी घोषित किया गया है और उससे वीगर समुदाय को मुक्त किया जा रहा है। हर तरह की इस्लामी धार्मिक अभिव्यक्ति राज्य के लिए अस्वीकार्य है।

चीन ने इस इलाज के लिए शिक्षा शिविर बनाए हैं जिनमें कोई भी मुसलमान कैद किया जा सकता है। यहां उन पर होने वाले जुल्म की फेहरिस्त लंबी है। सुअर का गोश्त खाने, शराब पीने को बाध्य करने, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के गीत याद करने और गाने, चीनी भाषा सीखने से लेकर हर वह ज़बरदस्ती जो वीगर लोगों की मुसलमानी पहचान को खुरच-खुरच कर निकाल देने के लिए ज़रूरी है।

इससे भी अधिक भयानक है चीनी अधिकारियों की वीगर परिवारों को तोड़ देने की तरकीब. स्कूलों में अध्यापक बच्चों को अपने माता-पिता और रिश्तेदारों पर निगाह रखने और उनकी दिनचर्या की रिपोर्ट करने को उत्साहित करते हैं। उनकी जानकारियों के आधार पर मां-बाप या संबंधियों को पकड़ा जा सकता है और इन शिक्षा शिविरों में कैद कर दिया जा सकता है।

जिन बच्चों के मां-बाप गिरफ्तार कर लिए गए हैं, वे राज्य की संपत्ति हो जाते हैं। राजकीय शरणार्थी गृहों में उन्हें पाला जाता है और उनकी दिमागी धुलाई की जाती है। यह वह सबसे भयानक तरीका है जिससे चीन वीगर परिवारों को ही तोड़े दे रहा है। यह तरीका माओ ने सांस्कृतिक क्रांति के दौरान भी अपनाया था।

जीन बुनिन ने गार्डियन अखबार में इस प्रदेश में अपने लंबे प्रवास का वर्णन करते हुए एक घटना का जिक्र किया है। जीन बुनिन ने चीन में 18 महीने तक घूमते हुए वहां के रेस्तराओं में काम करनेवाले वीगर लोगों से बात की। जीन की मुलाकात एक रेस्तरां में एक वीगर से हुई जो किसी निचले स्तर का सरकारी कर्मचारी था। उस वर्दीधारी मुलाजिम से खुलकर बात करने में जब बुनिन ने संकोच किया तो उसने खुद ही कहा, “आप जो सोचते हैं वह मुझसे छिपा रहे हैं। यहीं निगाह घुमाकर देखिए। हम नेस्तनाबूद कर दिए गए लोग हैं।”

अल जज़ीरा में खालेद बेदुईन ने विदेश में रह रहे एक वीगर छात्र का एक पत्र उद्धृत किया है, “हम दुनिया का इंतजार कर रहे हैं। हम इंतजार कर रहे हैं कि दुनिया जाने कि हम कौन हैं।”

क्या अपने-अपने राष्ट्रवाद की हिफाजत के लिए ही हर देश इस जुल्म की ओर से आंखें मोड़ लेगा? क्या वीगर मुसलमान हमारे देखते-देखते नेस्तनाबूद कर डाले जाएंगे? और फिर भी यह दुनिया इंसानी कहलाती रहेगी?

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