देश की सत्ता में मुसलमानों की भागीदारी भी थी और प्रतिनिधित्व भी, तो फिर क्या हुआ कि बदल गया सबकुछ: सैयद खुर्रम रज़ा
आज का सत्तारूढ़ दल जानता है कि देश को धार्मिक आधार पर बांटे बिना वह सत्ता तक नहीं पहुंच सकता, इसलिए उसने बहुसंख्यकों को डराने के लिए मुस्लिम संगठनों और राजनीतिक दलों का इस्तेमाल शुरु किया।

मैं इसमें नहीं जाना चाहता कि आजादी से पहले क्या हुआ, देश का विभाजन क्यों हुआ और इसके बाद क्या कुछ घटा। एक हकीकत से इनकार नहीं किया जा सकता कि जब कुछ भारतीय मुसलमानों ने अपने एक अलग देश का चुनाव कर लिया था, उस वक्त जो मुसलमान देश में रह गए थे वे या तो अपने मुल्क को छोड़ना नही चाहते थे या उनमें हिम्मत की कमी थी। या फिर उनके पास उनके पास ऐसे संसाधन नहीं थे। बहरहाल कारण कोई भी हो लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि उस वक्त के गैर मुस्लिम नेताओं ने बड़ा दिल दिखाया और दूर अंदेशी (दूरदृष्टि) से काम लिया। इन नेताओं में महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल और बाबा साहेब आंबेडकर जैसे नेताओं के नाम शीर्ष पर आते हैं। इन नेताओं की दूरदृष्टि ही थी कि जहां विभाजन के लिए जिम्मेदार मुस्लिम लीग चुनावों में हिस्सा ले सकती है, वहीं मजलिस इत्तिहादुल मुस्लिमीन जैसी सिर्फ मुसलमानों के हित की बात करने वाली राजनीतिक पार्टी भी देश के किसी भी कोने से चुनाव लड़ सकती है।
आजादी के बाद कई उतार-चढ़ाव आए। देश ने कई सांपदायिक दंगे देखे, तो पिछड़ी जातियों को सत्ता संभालते भी देखा। इस यात्रा के दौरान देश ने बेसहारा मुसलमानों को विकास करते देखा और सिर्फ विकास और तरक्की ही नहीं बल्कि सत्ता में भागीदारी करते हुए भी देखा। मौलान आजाद जहां स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने, वहीं सात राज्यों के मुख्यमंत्री मुसलमान भी हुए, जिनमें बरकतुल्लाह खान, अब्दुर्रहमान अंतुले, अनवरा तैमूर, अब्दुल गफूर, मोहम्मद कोया, एम फारूकी, शेख अब्दुल्लाह, फारुक अब्दुल्लाह, मुफ्ती मोहम्मद सईद, गुलाम नबी आजाद और उमर अब्दुलाह आदि के नाम हैं।
इस वक्त देश की जो राजनीतिक स्थितियां हैं, उसमें ऐसा दोबारा होता नजर नहीं आ रहा और इसके लिए मुस्लिम नेतृत्व और सत्तारूढ़ नेतृत्व ही जिम्मेदार है। जो राजनीतिक पार्टी या राजनीतिक विचारधारा आज देश में सत्तासीन है उसको समझ आ गया है कि देश को धार्मिक आधार पर विभाजित किए बिना वह सत्ता हासिल नहीं कर सकतीं, इसलिए जहां इस विचारधारा ने अपने लिए जमीनी काम करना शुरु किया, वहीं उन्होंने बहुसंख्यकों को डराने के लिए मुस्लिम संगठनों और राजनीतिक दलों का इस्तेमाल शुरु किया। राम मंदिर आंदोलन इस मामले में सबसे ज्यादा लाभप्रद साबित हुआ।
अब स्थिति यह है कि कोई भी राजनीतिक पार्टी, भले ही मुसलमान उसका समर्थन करें या न करें, मुसलामनों का नाम लेने में अपना नुकसान समझ रही हैं। ऐसा एक दिन में नहीं हुआ है बल्कि इसके लिए सत्तारूढ़ पार्टी ने काफी काम किया और देश के मुसलमानों को राजनीतिक तौर पर अछूत बानने में सफल हुई है। इंदिरा गांधी के दौर से यह कोशिशें तेज हो गई थीं क्योंकि आजादी के वक्त की जो विचारधारा थी वह कहीं पीछे होने लगी थी। इसके लिए मुसलमान बहुत हद तक जिम्मेदार हैं क्योंकि उन्होंने राजनीतिक दूरअंदेशी के बजाए अपनी सियासत ताकत का बेजा मुजाहिरा यानी अनावश्यक प्रदर्शन शुरु कर दिया। मुसलमानों ने उत्तर भारत में अपनी मांगों के लिए वह तरीके अपनाना शुरु कर दिए जो सत्तारूढ़ पार्टी के लिए बहुसंख्यकों को डराने में सबसे अहम हथियार साबित होने लगे, यानी वह इनके जाल में फंस गए।
मुस्लिम संगठनों ने क्या भूमिका निभाई वह सबके सामने है, जिसके चलते आजादी के समय जो सोच बनी थी उसको नुकसान होना शुरु हो गया और अब बात यहां तक पहुंच गई है कि चंद महीने पहले तक मुसलमान अपनी नागरिकता साबित करने के लिए यहां से वहां कागजात तलाशते-बनवाते फिर रहे थे। इसी सोच को और नुकसान पहुंचाने केलिए सत्तारूढ़ दल को एक ऐसे दल की जरूरत है जिसका ‘हौवा’ बहुसंख्यक तबके के सामने पेश किया जा सके। सत्तारूढ़ दल के लिए यह काम असदुद्दीन ओवैसी की राजनीतिक पार्टी एआईएमआईएम बखूबी अंजाम दे रही है। ओवैसी मुसलमानों को उनके अधिकार देने की बात कर रहे हैं लेकिन जो तरीका उन्होंने अपनाया है उससे देश के मुसलमानों का और नुकसान ही हो रहा है।
एक बात सबको समझ लेनी चाहिए कि देश में बहुसंख्यक हों या अल्पसंख्यक, अगर वे अपने अधिकारों की बात करने लगेंगे तो यह हो सकता है कि इसका फायदा देश के बहुसंख्यक तबके को हो जाए, लेकिन देश का बहुत नुकसान हो जाएगा। देश की तरक्की के लिए आजादी के वक्त की सोच को दोबारा जिंदा करना होगा। अगर हमने ऐसा नहीं किया तो फिर पाकिस्तान शायर फहमीदा रियाज ने जो लिखा है वह सच साबित हो जाएगा, कि “तुम तो बिल्कुल हम जैसे निकले, अब तक कहां छिपे थे भाई”
फहमीदा रियाज की पूरी नज्म:
तुम बिल्कुल हम जैसे निकले
अब तक कहां छिपे थे भाई
वह मुरखता, वह घामड़पन
जिसमें हमने सदी गंवाई
आखिर पहुंची द्वार तुम्हारे
अरे बधाई बहुत बधाई
प्रेत धर्म का नाच रहा है
कायम हिंदू राज करोगे
सारे उलटे काज करोगे
अपना चमन ताराज करोगे
तुम बैठे करोगे सोचा
पूरी वैसी तैयारी
कौन है हिंदू, कैन नहीं है
तुम भी करोगे फतवा जारी
होगा कठिन यहां भी जीना
दांतों आ जाएगा पसीना
जैसी तैसी कटा करेगी
यहां भी सबकी सांस घुटेगी
भाड़ में जाए शिक्षा-विक्षा
अब जाहिल बनके गुण गाना
आगे गड्ढा है मत देखो
वापस लाओ गया जमाना
मश्क करो तुम आ आ जाएगा
उलटे पांव चले जाना
ध्यान न दो जो मन में आए
बस पीछे ही नजर जमाना
एक जाप सा करते जाओ
बार-बार यही दोहराओ
कैसा वीर महान था भारत
कितना आलीशान था भारत
फिर तुम लोग पहुंच जाओगे
बस परलोक पहुंच जाओगे
हम तो हैं पहले से वहां पर
तुम भी समय निकाले रहना
अब जिस नर्क में जाओ वहां से
चिट्ठी-विट्ठी डाले रहना
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