CAA-NRC के खिलाफ अपने ही अंदाज में विरोध कर रही नई पीढ़ी, रच रही है नया इतिहास

नागरिकता कानून का विरोध कर रहे लोगों पर पीएम मोदी की टिप्पणी के खिलाफ कई युवाओं ने बिना कपड़ों के प्रदर्शन में शामिल होकर चुनौती दे डाली कि पीएम मोदी अब उन्हें पहचान कर दिखाएं l कई हिंदू लड़कियों ने हिजाब पहनकर मुसलमानों को निशाना बनाए जाने का विरोध किया।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया
user

अमित सेनगुप्ता

केरल में एर्णाकुलम के गवर्नमेंट लाॅ काॅलेज में इंदुलेखा फर्स्ट इयर की छात्रा हैं। केरल में साक्षरता की दर काफी ऊंची है और यह प्रदेश वाम राजनीति का गढ़ है। फिर भी, इंदुलेखा कभी कैंपस या इससे बाहर किसी तरह की छात्र राजनीति वाली गतिविधियों में हिस्सेदार नहीं रहीं। लेकिन इस बार संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ शुरू हुए देशव्यापी आंदोलन में वह अचनाक से न सिर्फ सोशल मीडिया बल्कि प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया में भी कल्ट फीगर बन गईं। आखिर ऐसा उसने क्या किया?

दरअसल इंदुलेखा ने अपना प्रतिरोध जताने के लिए हिजाब पहनकर हाथ में एक प्लेकार्ड थाम रखा था, जिसमें लिखा था- “मोदी जी, मैं इंदुलेखा हूं। मुझे मेरी ड्रेस से पहचानिए!” गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इससे एक-दो दिन पहले ही झारखंड की एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए में कहा था कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ जो लोग प्रदर्शन कर रहे हैं, उन्हें उनकी ड्रेस से ही पहचाना जा सकता है। यहां मोदी का इशारा साफ-साफ मुसलमानों को लेकर था।

संविधान और खास तौर से, जाति, समुदाय, धर्म, स्तर या पहचान से ऊपर उठकर समानता की बात करने वाले अनुच्छेद-14 की समर्थक इंदुलेखा ने बाद में मीडिया से कहा, “जब वह विरोध-प्रदर्शन में भाग लेने सुबह आईं, तो यहां लोग आइडियाज मांग रहे थे। मुझे उसी वक्त यह तरीका सूझा। किसी ने कहा कि यह आइडिया नया नहीं है, क्योंकि मलयालम फिल्मों की कलाकार अनस्वरा राजन ने इसी तरह के मैसेज के साथ हिजाब वाली अपनी फोटो अभी ही पोस्ट की है। अनस्वरा अभी 18 साल की ही हैं। लेकिन मैंने तब तक यह मैसेज देखा नहीं था। बाद में, यह फैसला हुआ कि मैं हिजाब पहनूंगी और इस तरह के संदेश वाला प्लेकार्ड लहराऊंगी। विरोध-प्रदर्शन में भाग न लेने वाली मेरी क्लासमेट्स ने भी हिजाब पहनने में मेरी मदद की।”

जब दिल्ली में केंद्रीय विश्वविद्याालय- जामिया मिल्लिया इस्लामिया, के प्रदर्शनकारी बच्चों पर पुलिस ने मनमाने ढंग से लाठी चार्ज किया, तो उसके अगले दिन देश भर के कई विश्वविद्यालयों में गैरमुस्लिम बच्चियों ने भी हिजाब पहनकर प्रदर्शन किया। उस दिन दिल्ली में सर्द हवाएं बह रही थीं, पर जामिया के बाहर मेन रोड पर कई बच्चे नंगे बदन प्रदर्शन कर रहे थे। उन लोगों ने अपनी पीठ और छाती पर तरह-तरह के नारे-संदेश लिखवा रखे थे। एक हिंदू छात्र जनेऊ पहने था और उसने यह प्लेकार्ड लहरा रखा था, “मोदी जी, मुझे मेरे कपड़े से पहचानो।” यह तस्वीर भी इंटरनेट पर छा गई।

जामिया और एक अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालय- अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) में पुलिस ने जिस तरह लाठियां बरसाईं, उससे गुस्सा ज्यादा भड़का। दिल्ली में जंतर-मंतर पर विरोध करने वाली भीड़ उमड़ आई। वहां रेशमी प्रियम राॅय ने जो तरीकाअपनाया, उसने भी लोगों का ध्यान खासा आकर्षित किया। वह दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास से मास्टर्स का कोर्स कर रही है। उसका भी छात्र राजनीति से कोई रिश्ता नहीं रहा है। जब वह जंतर-मंतर आ रही थी, तो उसे यह डर भी था कि पुलिस अन्य जगहों पर जिस तरह बर्बर व्यवहार कर रही है, तो वे यहां उसे भी पीट सकते हैं। उसने गुलाब के कुछ फूल खरीदे। उसे जब कुछ पुलिस वाले दिखे, तो खुद ही आगे बढ़ी और फूल उन्हें पेश कर दिए। पुलिस वाले आसपास के माहौल से तनाव में थे और वे हतप्रभ रह गए। यह तरीका सबको अच्छा लगा और कई शहरों में बच्चे इसे दोहराने लगे। वैसे, यह तरीका दक्षिण कोरिया में सैन्य शासन के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान भी छात्रों ने अपनाया था और यह तब वहां भी प्रतीक बन गया था। खैर।


रेशमी प्रियम राॅय की राय बिल्कुल स्पष्ट है, “एनआरसी तो इस तरह का विचार है, मानो आपसे आपके घर में सवाल-जवाब किए जा रहे हों। आपको उसी देश में अपनी नागरिकता प्रमाणित करनी है, जहां आप सब दिन से रहे हैं। यह अपने संविधान और सेकुलर विचार का स्पष्ट उल्लंघन है। यह सबका जीवन मुश्किल कर देगा। मैं पटना से हूं। वहां बीजेपी और जेडीयू का गठबंधन है और मैंने परोक्ष ढंग से बीजेपी को वोट दिया। भारत धर्मनिरपेक्ष देश है, लेकिन बीजेपी की नीतियां जाति और धर्म के आधार पर इसे विभाजित कर रही है।

इन देशव्यापी विरोध-प्रदर्शनों की खासियत यह है कि इसमें नई पीढ़ी अपनी क्रिएटिविटी के जरिये बेहतर ढंग से कम्युनिकेट कर रही है। अब जैसे, चेन्नई के बेसंत नगर में बच्चों ने अल्पना या रंगोली के जरिये अपनी बातें रखीं। ऐसा करने वालों में पांच लोग प्रमुख थे, जिनमें एक ही ग्राफिक आर्टिस्ट है, बाकी चारों फ्रीलान्स लेखक। यह देश के विभिन्न हिस्सों में त्योहार के मौकों पर घर-घर बनाए जाते हैं लेकिन विरोध के स्वर के तौर पर भी इसका सशक्त उपयोग संभवतः बिरले ही किया गया हो। इन लोगों ने इसे 7ः30 बजे सुबह ही बना दिया, लेकिन यह सचमुच इतना तीखा था कि पुलिस ने उन्हें सुबह ही गिरफ्तार कर लिया और जीप में भरकर ले गई। अब हाल यह है कि लगभग पूरा चेन्नई शहर ही अल्पना या रंगोली बना रहा है। इसी तरह, जामिया में पैलेट या आंसू गैस के गोले से जब एक छात्र की आंखों की रोशनी चली गई, तो दिल्ली के ही शाहीन बाग में विरोध-प्रदर्शन कर रहे कई लोगों ने अपनी एक आंख पर पट्टी बांधकर प्रदर्शन में हिस्सा लिया।

विरोध-प्रदर्शनों का रंग क्रिसमस के आसपास गाढ़ा हो रहा था, तो उसके प्रतीकों का इस्तेमाल भी युवा वर्ग ने किया। जामिया और शाहीन बाग में प्रदर्शनकारियों ने क्रिसमस कैप लगा रखे थे। केरल में ईसाई बच्चियों ने हिजाब पहनकर क्रिसमस के मौके पर गाए जाने वाले गीत गाए। यहां फुटबाॅल स्टेडियमों में खेल के दौरान तो आजादी वाले गीत गाए ही गए, शादी-विवाह के अवसरों पर परिवारों के इकट्ठा होने पर भी इन्हें गाया गयाः “आजाद देश में आजादी, आंबेडकर वाली आजादी/अशफाक वाली आजादी, बिस्मिल वाली आजादी,/फुले वाली आजादी, गांधी वाली आजादी/भगत सिंह की आजादी, हम लड़के लेंगे आजादी।”

दरअसल, यह युवा वर्ग के लिए अब घृणा और दूसरों की ओर उंगलियां उठाकर की जाने वाली राजनीति को नकारने का मौका है, वे यह भी साफ-साफ बताना चाहते हैं कि वे किसी से डरने वाले भी नहीं हैं। इसलिए इकट्ठा होने वाले छात्रों में छोटे इंजीनियरिंग काॅलेजों से लेकर आईआईटी, आईआईएम तक के बच्चे भी हैं। छोटे काॅलेजों से लेकर यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले बच्चे तक इसमें शामिल हैं। उन्हें अर्थव्यवस्था का हाल पता है। वे यह पता करना जानते हैं कि फेक न्यूज कौन-सी है और कौन-सी असली।

इसीलिए वे संविधान को भी खुद पढ़-समझकर बातें कर रहे हैं- उस संविधान की जिसकी महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, भीमराव आंबेडकर, सुभाषचंद्र बोस, खान अब्दुल गफ्फार खान, भगत सिंह, अशफाक, मौलानाअबुल कलाम आजाद, खुदीराम बोस, चंद्रशेखर आजाद- जैसों के संघर्ष और बलिदान से मिली आजादी के बाद रचना की गई है। इसीलिए अधिकतर के हाथों में भगत सिंह और आंबेडकर की तस्वीरें हैं।

इनके हाथ नई तस्वीरें बना रहे हैं, वे नए ढंग के गीत रच और गा रहे हैं, वे अपने मोबाइल फोन से सबकुछ इसलिए भी कैद कर रहे हैं ताकि घटनाओं के प्रमाण रहें कि वे इतिहास के गवाह बन रहे हैं। यही नए साल का भारत है जो आशा का भाव लिए हुए है।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia