कितना ही टैरिफ-टैरिफ खेल लें ट्रंप, फिर भी दुनिया में कम होता रहेगा अमेरिका-यूरोप का प्रभुत्व / आकार पटेल

अमेरिका भले ही कितने कदम उठाले खुद को बचाने के लिए फिर भी दुनिया की अर्थव्यवस्था में उसका और यूरोप का प्रभुत्व कम ही होता रहेगा।

2019 में फ्रांस में हुई जी-7 बैठक में अन्य नेताओं के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (फोटो : Getty Images)
2019 में फ्रांस में हुई जी-7 बैठक में अन्य नेताओं के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (फोटो : Getty Images)
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आकार पटेल

20वीं सदी की शुरुआत से लेकर 2009 तक विश्व अर्थव्यवस्था में अमेरिका और यूरोप की साझी हिस्सेदारी 50 फीसदी से ज़्यादा यानी 51 फीसदी थी। 2009 के बाद से इसमें लगातार गिरावट आ रही है। पिछले साल यह हिस्सेदारी 43 फीसदी थी और अनुमान है कि इसमें और गिरावट आएगी।

इस हिस्सेदारी में यूरोप आर्थिक रूप से स्थिर है। यूरोपीय संघ की संयुक्त जीडीपी पिछले साल 1 प्रतिशत से कम और उससे पहले के साल में  भी 1 प्रतिशत से की की दर से बढ़ी थी। इस साल भी इसमें 1 प्रतिशत की दर से बढ़ोत्तरी हो सकती है, लेकिन लंबे समय तक उच्च वृद्धि दर की कोई संभावना नहीं है। यूनाइटेड किंगडम 2023 में 1 प्रतिशत से कम, 2024 में भी 1 प्रतिशत से कम की वृद्धि का गवाह रहा और इस साल 1 प्रतिशत की दर से बढ़ोत्तरी हो सकती है।

पिछले साल अमेरिका की वृद्धि दर 2 प्रतिशत रही और उसे इस साल मंदी का सामना करना पड़ रहा है। इसका अर्थ है कि इसकी अर्थव्यवस्था में सिकुड़न की संभावना है। अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के लोग मिलकर दुनिया की आबादी का 10 फीसदी हैं। इसका मतलब है कि दुनिया के 90% लोगों की अर्थव्यवस्था में 2009 तक 'पश्चिम' कहे जाने वाले देशों की तुलना में कम हिस्सेदारी थी। लेकिन इसमें तेजी से बदलाव हो रहा है।

बाकी दुनिया में बदलाव की बात करें तो चीन निस्संदेह शीर्ष पर है। 1990 में वैश्विक जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी 1 फीसदी थी, 2000 में 3 फीसदी, 2010 में 9 फीसदी और आज यह 17 फीसदी है। 1990 में भारत की हिस्सेदारी चीन के बराबर थी और आज यह 3.6% फीसदी है (कुल वैश्विक जीडीपी का लगभग 108 ट्रिलियन डॉलर)।

इस मोर्चे पर भारत ने काफी बेहतर और अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन पिछले 30 वर्षों से वैश्विक विकास का असली इंजन हमारा पड़ोसी देश रहा है। चीन के शानदार और तेज़ उदय ने 'पश्चिम' में चिंताएं पैदा कर दी हैं, यानी दुनिया भर में पश्चिम कुल प्रभुत्व कम होता जा रहा है। अफ्रीका और लैटिन अमेरिका और दक्षिण पूर्व एशिया में चीन की बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं पर पश्चिमी मीडिया के लगातार हमले इस बात को रेखांकित भी करते हैं। इसके साथ ही पिछले 20 वर्षों की वार्षिक रिपोर्टें बताती हैं कि चीन की आर्थिक सफलता जल्द ही समाप्त होने वाली है।


ऐसी ही चिंताएं यूरोपीय राजनीति और अमेरिका में भी सामने आ रही हैं। डोनाल्ड ट्रंप के प्रति अमेरिका का प्यार मुख्य रूप से दो मुद्दों पर आधारित है। पहला है अश्वेत देशों से आने वाले अप्रवासियों को रोकना और अमेरिका में पहले से मौजूद इन लोगों को निर्वासित करना; और दूसरा है अमेरिका को माल निर्यात करने वाले गरीब देशों द्वारा ‘धोखा’ दिए जाने से बचने की इच्छा। अमेरिकियों की प्रति व्यक्ति जीडीपी मैक्सिकों के लोगों से छह गुना ज़्यादा है और कनाडा के लोगों की तुलना में 30,000 डॉलर प्रति वर्ष ज़्यादा है, लेकिन फिर भी खुश नहीं हैं।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार इस वर्ष अमेरिका का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (पर कैपिटा जीडीपी) 90,000 डॉलर से कुछ कम रहने की संभावना है। इसे परिप्रेक्ष्य में रखें तो भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी प्रति वर्ष 3000 डॉलर से भी कम है। अमेरिका में भी पूर्ण रोजगार है, जिसका अर्थ है कि नौकरी चाहने वाले लगभग सभी लोगों को रोजगार मिल सकता है।

किसी भी पैमाने पर, अमेरिका के लोग दुनिया के सबसे सफल और सबसे विशेषाधिकार प्राप्त लोगों में से हैं और फिर भी वे दूसरों के उत्थान या तरक्की से नाराज़ हैं। और इनका मुख्य लक्ष्य चीन है। ट्रंप उन नौकरियों को, विशेष रूप से विनिर्माण क्षेत्र में, अमेरिका में लाना चाहते हैं जो चीन के लोग कर रहे हैं। 1990 में, अमेरिकी अर्थव्यवस्था में विनिर्माण का हिस्सा 16 फीसदी था, जो आज 10 फीसदी है, जबकि विनिर्माण उत्पादन 1990 में लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर से बढ़कर आज 3 ट्रिलियन डॉलर हो गया है। इसलिए विनिर्माण तो बढ़ा है, लेकिन बाकी अर्थव्यवस्था की तुलना में इसकी रफ्तार धीमी रही है। विनिर्माण में नौकरियां लगभग 18 मिलियन से घटकर लगभग 12 मिलियन हो गईं।

इसलिए आज विनिर्माण क्षेत्र में काम करने वाले आज की तुलना में संख्या रूप से कम अमेरिकी कर्मचारी 1990 में किए गए उत्पादन से तीन गुना से भी अधिक उत्पादन करते हैं। इसका कारण निश्चित रूप से स्वचालन और दक्षता (ऑटोमेशन और एफिशिएंसी) है। अमेरिका आज लगभग उतने ही स्टील का उत्पादन करता है जितना 1990 में करता था, यानी लगभग 80 मिलियन टन। हालांकि, स्टील प्लांट में काम करने वाले अमेरिकियों की संख्या 1980 में 512,000 से घटकर 1990 में 270,000 और पिछले साल 70,000 रह गई है।


एक ऐसा अमेरिका जो आज चीन में विनिर्माण क्षेत्र में की जा रही नौकरियों को अपने यहां सेवाओं और अन्य जगहों पर काम करने वाले कर्मचारियों की जगह ले लेगा, उसे आर्थिक उत्पादन में गिरावट देखने को मिलेगी। लोग अधिक उत्पादक काम करने से कम उत्पादक काम करने लगेंगे।

इस सबके बावजूद ट्रंप शासन में यही सारी कोशिशें हो रही हैं। इसके लिए दो तरीके अपनाए जा रहे हैं। पहला है सभी तरह की प्रतिस्पर्धा को रोकना। अमेरिका में आयात किए जाने पर चीनी इलेक्ट्रिक कारों पर 100 फीसदी कर लगता है, जिसका मतलब है कि उनकी कीमत दोगुनी होगी। अगर कोई अमेरिकी उस कर का भुगतान करता है तो भी वह चीनी कार नहीं चला पाएगा क्योंकि चीनी कार सॉफ्टवेयर पर प्रतिबंध है।

अमेरिकी वाणिज्य विभाग का कहना है कि 'कारों में कैमरे, माइक्रोफोन, जीपीएस ट्रैकिंग और अन्य टेक्नालॉजी होती हैं जो इंटरनेट से जुड़ी होती हैं... और वाणिज्य विभाग अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर और अमेरिकियों की गोपनीयता की रक्षा करने के लिए एक आवश्यक कदम उठा रहा है, ताकि विदेशी प्रतिद्वंद्वियों को संवेदनशील या व्यक्तिगत जानकारी तक पहुंचने के लिए इन टेक्नालॉजी में हेरफेर करने से रोका जा सके।'

यह प्रतिबंध अमेरिकी फर्मों की सुरक्षा और चीन को नकारने दोनों के उद्देश्य को पूरा करता है। दूसरा तरीका सार्वभौमिक टैरिफ के माध्यम से है और हम देखेंगे कि 2 अप्रैल को जब वे सामने आएंगे तो इसका क्या मतलब होगा। इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा, जिसमें यूरोप, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में अमेरिका के सहयोगी देश भी शामिल हैं, जो हैरान हैं क्योंकि वे इस जनवरी तक खुद को अमेरिका के भागीदार मानते थे। बाकी दुनिया के उत्थान ने इन दरारों को जन्म दिया है।

क्या अमेरिका के यह कदम यह सुनिश्चित करेंगे कि वह गरीब देशों के सापेक्ष और नीचे न गिर जाए? बिल्कुल नहीं। चीन और भारत और अफ्रीका और लैटिन अमेरिका का विकास जारी रहेगा। अमेरिका और यूरोप का प्रभुत्व और उनका प्रभाव कम होता रहेगा, क्योंकि उन्हें सत्ता साझा करने के लिए मजबूर किया जाता है। 100 साल पहले 'पश्चिम' जो कर सकता था, वह अब नहीं कर सकता। हम मानव इतिहास में एक नए युग में प्रवेश कर चुके हैं।

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