ओमिक्रॉन का बढ़ता खतरा : बूस्टर डोज पर भारत की हिचकिचाहट और विश्व स्वास्थ्य संगठन के भ्रम से बढ़ता असमंजस

ओमिक्रॉन के बढ़ते खतरे के बीच भारत में बूस्टर डोज की बातें तो हो रही हैं, लेकिन तकनीकी सलाहकार समिति ने अभी फैसला नहीं लिया है। बच्चों की वैक्सीन पर भी फैसला नहीं हुआ है। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन के भ्रम से भी असमंजस बढ़ा है।

फोटो : सोशल मीडिया
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प्रमोद जोशी

पिछले दो साल में कोविड-19 के वायरस की प्रवृत्ति, उसके इलाज और वैक्सीनों के प्रभाव वगैरह को लेकर कई तरह की बातें सामने आई हैं, पर अब भ्रम की स्थिति पैदा हो रही है। सामान्य जनता का भ्रम समझ में आता है, पर विश्व स्वास्थ्य संगठनके विशेषज्ञों का भ्रम समझ में नहीं आता। यह भ्रम नए वेरिएंट ओमिक्रॉन को लेकर पैदा हुआ है। इस वेरिएंट के बारे में दक्षिण अफ्रीका ने 24 नवंबर को जानकारी दी थी। तब से करीब चार हफ्ते होने वाले हैं और वैश्विक स्वास्थ्य तंत्र यह तय नहीं कर पाया है कि नया खतरा कितना गंभीर है और इसका सामना करने की रणनीति क्या होनी चाहिए। यूरोप के कई देशों में 5 से 11 साल के बच्चों के टीके लगाने की शुरुआत हो गई है, पर हर देश अपनी अलग रणनीति बनाकर चल रहा है।

सबसे बड़ा संशय यात्रा प्रतिबंधों को लेकर है। कई देशों ने प्रतिबंध लगाए भी हैं, पर डब्ल्यूएचओ का कहना है कि व्यापक यात्रा प्रतिबंध ओमिक्रॉन के प्रसार को नहीं रोक पाएंगे। व्यापक यात्रा प्रतिबंध नए जीवन और आजीविका पर भारी बोझ डालेंगे, अलबत्ता 60 से अधिक उम्र के लोगों को यात्रा स्थगित करने की सलाह दी गई है। एक तरफ कहा जा रहा है कि यह वेरिएंट जबरदस्त संक्रामक है, वहीं यात्रा प्रतिबंधों का समर्थन भी नहीं कर रहे हैं। जरूरत इस बात की है कि डब्ल्यूएचओ और अन्य वैश्विक संस्थाएं लोगों को भरोसा दिलाने वाली बातें करें, जो उनके मन में बैठे डर को दूर करें।

कोरोना वायरस का नया वेरिएंट ओमिक्रॉन 9 दिसंबर तक 63 देशों में पहुंच चुका था और इसके संक्रमण की दर डेल्टा वेरिएंट से ज्यादा है। डब्ल्यूएचओ ने यह भी कहा है कि ओमिक्रॉन के कारण महामारी की दिशा बदल सकती है। और यह भी वैक्सीन कि होर्डिंग का अंदेशा है, वगैरह। दुनिया के स्वास्थ्य की रक्षा करने की जिम्मेदारी विश्व स्वास्थ्य संगठन की है। उसके विशेषज्ञों को बयान देने के पहले उसके परिणामों पर भी विचार करना चाहिए। आम राय बनाने के बाद ही लोगों को जानकारी देनी चाहिए।

तेज प्रसार क्यों?

संक्रमण कितना तेज है, इसका अनुमान ब्रिटेन के अनुभव से लगाया जा सकता है। ब्रिटेन में ओमिक्रॉन संक्रमण के कारण पहली मौत होने की खबर भी मिली है। 13 दिसंबर को प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने बताया कि लंदन में अब करीब 40 फीसदी संक्रमण ओमिक्रॉन के हैं। दक्षिण अफ्रीका में ओमिक्रॉन की उपस्थिति की घोषणा के तीन दिन बाद 27 नवंबर को ब्रिटेन में ओमिक्रॉन के संक्रमण की खबर आ गई थी।

डब्ल्यूएचओ के टेक्निकल ब्रीफ में कहा गया है कि अभी तक स्पष्ट नहीं है कि नया वेरिएंट इतनी तेजी से क्यों फैल रहा है। साथ ही यह भी कहा है कि ओमिक्रॉन ‘संक्रमण के खिलाफ टीके की प्रभावशीलता कम’ है। यह भी कि अभी इसका संक्रमण गंभीर नहीं है। भारत में डब्ल्यूएचओ की क्षेत्रीय निदेशक डॉ. पूनम खेत्रपाल ने कहा है कि नए वेरिएंट का मतलब यह नहीं है कि हालात और ज्यादा खराब होंगे। हां, उसे लेकर अनिश्चय ज्यादा होगा।


विश्व स्वास्थ्य संगठन की बातों से कई तरह के अनिश्चय जन्म ले रहे हैं। डब्ल्यूएचओ कहता है चूंकि पर्याप्त डेटा नहीं है, इसलिए हम नहीं कह सकते कि ओमिक्रॉन की तेज गति इसलिए है कि यह इम्यूनिटी को जल्दी भेद रहा है या इसमें संक्रामकता ज्यादा है या दोनों ही बातें हैं। जो डेटा उपलब्ध है, उससे कहा जा सकता है कि ओमिक्रॉन जल्द ही डेल्टा वेरिएंट को पीछे छोड़ देगा, पर इस वेरिएंट की गंभीरता को साबित करने वाला डेटा भी उपलब्ध नहीं है।

बचाव कैसे होगा?

7 दिसंबर को यूरोपियन मेडिसिन एजेंसी और यूरोपियन सेंटर फॉर डिजीज प्रिवेंशन एंड कंट्रोल ने कहा कि कोरोना वायरस से बचने के लिए मिक्स एंड मैच टीकाकरण की जरूरत है। इसमें कोविड-19 से बचाव के लिए तैयार किए गए वैक्टर आधारित और एमआरएनए, दोनों तरह के टीके शामिल हैं। दूसरे शब्दों में कहें, तो मेडिकल एजेंसी ने एक ही टीके की दो खुराक लेने की जगह, दो अलग-अलग टीकों की दो खुराक लेने की सिफारिश की है।

यह सिफारिश तब की गई है जब इंग्लैंड में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वायरोलॉजिस्ट मैथ्यू स्नेप ने कहा कि मिक्स एंड मैच टीकाकरण का सकारात्मक परिणाम दिख रहा है। स्नेप इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता हैं। उन्होंने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बात करते हुए इन परिणामों के बारे में बताया। इस साल जून में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने शुरुआती नतीजों की सफलता के बारे में बताया था। उन्होंने पाया था कि जिन रोगियों को पहली खुराक ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की लगी और चार सप्ताह बाद दूसरी खुराक बायोएनटेक-फायजर वैक्सीन की लगी, उनमें एस्ट्राजेनेका की दो खुराक लगाने वालों की तुलना में ज्यादा एंटीबॉडी विकसित हुईं। ऐसे कई अध्ययन हुए जिनके नतीजे जुलाई के आखिर में विज्ञान जरनल नेचर में प्रकाशित भी हुए हैं।

भारत के मसले

हालांकि हमारे देश में स्थिति काफी हद तक काबू में है, फिर भी लोगों को डर है कि शायद एक और लहर आने वाली है। भारत में वैक्सिनेशन से जुड़े तीन मसले हैं। वैक्सीन के दोनों डोज लेने वालों की संख्या में अपेक्षित वृद्धि नहीं हो रही है। सामान्य नागरिकों की बात बाद में करें, एक डोज लगवाने के बाद दूसरी डोज न लेने वालों में सबसे आगे हेल्थकेयर वर्कर और फ्रंटलाइन वर्कर हैं। हाल की जानकारी है कि देश में 1.03 करोड़ हेल्थकेयर वर्कर्स और 1.83 करोड़ फ्रंटलाइन वर्कर्स ने वैक्सीनकी पहली डोज ली थी। उसके बाद 95.21 लाख हेल्थकेयर वर्कर्स और 1.65 करोड़ ने दूसरी डोज लगवाई, यानी करीब 7 लाख हेल्थ केयर और 18 लाख फ्रंटलाइन वर्कर्स ने दूसरी डोज नहीं ली।

दूसरे भारत में भी बूस्टर डोज की बातें हो रही हैं। अब विशेषज्ञों की राय बन रही है कि बूस्टर डोज पहली दो डोज से पृथक वैक्सीन की होनी चाहिए। इस सिलसिले में तकनीकी सलाहकार समिति ने अपना फैसला फिलहाल स्थगित रखा है क्योंकि वह और अध्ययन करना चाहती है। एक और फैसला बच्चों की वैक्सीन का है। यूरोप के कई देशों में 5 से 11 साल के बच्चों को टीके लगाने की शुरुआत हो गई है। भारत में जायडस कैडिला की वैक्सीन तैयार है, पर फैसला होने में कुछ देर है।

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