एक ओर भूख से जूझ रही है आधी दुनिया, दूसरी तरफ धड़ल्ले से खाद्यान्न की बर्बादी जारी, अपराध में सभी देश शामिल

विशेषज्ञों के अनुसार दुनिया में जितनी असमानता बढ़ेगी खाद्यान्न की समस्या उतनी ही बढ़ती जाएगी। जो खाद्य पदार्थों का उत्पादन कर रहे हैं, गरीब हैं और जो खाना व्यर्थ कर रहे हैं वे अमीर हैं और अपने पैसों के बल पर व्यर्थ करने के लिए कुछ भी खरीद सकते हैं।

फोटोः GettyImages
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महेन्द्र पांडे

संयुक्त राष्ट्र सामान्य सभा के अधिवेशन के शुरू होने से ठीक पहले ‘फीडबैक ईयू’ नामक संस्था ने दुनिया भर के नेताओं को खाद्यान्न की बर्बादी से अवगत कराने के लिए एक रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसके अनुसार यूरोपीय संघ के देशों में जितना खाद्यान्न बर्बाद किया गया है उसकी मात्रा इन देशों द्वारा खाद्यान्न के आयात से भी अधिक है। यदि इस बर्बादी को कम कर दिया जाए तो रिपोर्ट के अनुसार खाद्यान्न की कीमतों से जुड़े मुद्रास्फिती से जनता को तुरंत राहत मिल सकती है। अध्ययन में बताया गया है कि यूरोपीय संघ के देशों में प्रतिवर्ष 15.3 करोड़ टन खाद्यान्न बर्बाद होता है, जो इन देशों द्वारा खाद्यान्न के सम्मिलित आयात से लगभग 1.5 करोड़ टन अधिक है। केवल गेहूं की ही इतनी बर्बादी की जाती है जिसकी मात्रा यूक्रेन द्वारा गेहूं के कुल वार्षिक निर्यात का आधा है, और यूरोपीय संघ के देशों द्वारा खाद्यान्न के कुल निर्यात का लगभग एक-चौथाई है।

फीडबैक ईयू के अध्यक्ष फ्रैंक मेचिएल्सें के अनुसार ऐसे समय में जब पूरी दुनिया खाद्यान्न की महंगाई और सभी आवश्यक वस्तुओं की महंगाई से जूझ रही है, खाद्यान्न की बर्बादी एक अपराध से कम नहीं है। यूरोपीय संघ के सभी देशों ने संयुक्त राष्ट्र में 2030 तक खाद्यान्न की बर्बादी को आधा करने का प्राण लिया है, पर यह समस्या साल-दर-साल बढ़ती ही जा रही है। खाद्यान्न की बर्बादी का मुद्दा भूखी आबादी के साथ ही जलवायु परिवर्तन से भी जुड़ा है, पर कोई भी देश इसे रोकने के लिए गंभीर प्रयास नहीं कर रहा है।

फ़ूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाईजेशन के अनुसार पिछले एक वर्ष के भीतर ही खाद्यान्न की वैश्विक कीमतें 8 प्रतिशत से अधिक बढ़ चुकी हैं। वैश्विक बाजार में गेहूं, मक्का और सोयाबीन के दाम वर्ष 2008 के आर्थिक संकट के दौर से भी आगे जा चुके हैं। ऊर्जा, उर्वरक और खाद्यान्न का परिवहन– सब कुछ पहले से महंगा हो गया है। पूरी दुनिया में खेती का मुनाफ़ा घटता जा रहा है और चरम प्राकृतिक आपदाएं खाद्यान्न उत्पादन को अनिश्चित बनाती जा रही हैं। सारी समस्याओं के बाद भी यांत्रिक खेती के दौर में किसानों को उत्पादन के दौरान बर्बादी कम करने की क्षमता विकसित करने से अधिक आसान और आर्थिक तौर पर प्रभावी बर्बादी लगती है। यूरोपीयन एनवायरनमेंट ब्यूरो के पिओत्र बर्च्ज़क के अनुसार 10 वर्ष पहले दुनिया के देशों ने संयुक्त राष्ट्र के सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स को स्वीकार करते हुए प्रण लिया था कि वर्ष 2030 तक खाद्यान्न की बर्बादी को आधे से भी कम करेंगें, पर यह बर्बादी साल-दर-साल बढ़ती जा रही है।

फीडबैक ईयू में यूरोपीय संघ के देशों द्वारा खाद्यान्न की बर्बादी का आकलन 15.3 करोड़ टन किया गया है, जो पहले के सभी आकलनों की तुलना में लगभग दोगुना है। रिपोर्ट के अनुसार पहले के किसी आकलन में उत्पादन के दौरान, खेतों में फसल छोड़ देना और बाजार तक नहीं पहुंच पाने वाले खाद्यान्न की बर्बादी का आकलन शामिल नहीं किया गया था, यह बर्बादी लगभग 9 करोड़ टन है, जो घरों में खाद्यान्न की बर्बादी की मात्रा का लगभग तीन गुना है। यूरोपीय संघ के देशों में कुल खाद्यान्न उत्पादन का 20 प्रतिशत बर्बाद हो जाता है, जिससे प्रतिवर्ष 143 अरब यूरो का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। इन देशों में खाद्यान्न की बर्बादी के कारण जितना ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, वह इन देशों द्वारा कुल उत्सर्जन का 6 प्रतिशत है।


वर्ष 2021 में प्रकाशित संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष लगभग 1 अरब टन खाना बर्बाद किया जाता है और यह मात्रा प्रति व्यक्ति के सन्दर्भ में 74 किलो प्रति वर्ष है। यूनाइटेड किंगडम में औसतन हरेक घर से प्रति सप्ताह 8 प्लेट खाना डस्टबिन में फेंक दिया जाता है। रेस्टोरेंट में बनने वाला 17 प्रतिशत से अधिक खाना फेंका जाता है, जबकि जितना खाद्यान्न आपूर्ति तंत्र में रहता है उसका एक-तिहाई कभी उपयोग में नहीं आता। इस रिपोर्ट के अनुसार खाद्यान्न की बर्बादी केवल अमीर देशों में नहीं होती बल्कि यह एक वैश्विक समस्या है।

इस दुनिया में भूखे लोगों की संख्या कुल आबादी का 50 प्रतिशत से अधिक है, पर अनेक अध्ययन बताते हैं कि दुनिया में जितना खाना बनता है उसमें से 30 से 50 प्रतिशत तक बर्बाद कर दिया जाता है। इसमें खाने के बर्बादी की वह मात्रा शामिल नहीं है जो लोग खाने को जरूरत से ज्यादा खाकर बर्बाद करते हैं। हमारे देश में भूखे लोगों की संख्या दुनिया में सबसे अधिक है और हमारे देश में जितना खाना बर्बाद किया जाता है, उतना खाना पूरे यूनाइटेड किंगडम में बनाया जाता है।

सबसे अधिक खाने की बर्बादी पर्यटन उद्योग में की जाती है पर इसका सही आकलन नहीं किया जा रहा है। यूनिवर्सिटी ऑफ़ ईस्टर्न फ़िनलैंड और यूनिवर्सिटी ऑफ़ साउथ कैलिफ़ोर्निया के वैज्ञानिकों के संयुक्त दल ने अपने एक अध्ययन में बताया था कि पर्यटन उद्योग परंपरागत पर्यटन को छोड़कर लगातार नए प्रयोग कर रहा है। पहले पर्यटन उद्योग होटलों, रेस्टोरेंट्स और रिसोर्ट्स तक ही सीमित था, पर अब यह टेंट हाउसेज, जंगलों, नदी के किनारे, कैम्पिंग, काउच सर्फिंग, मित्र या स्थानीय निवासियों के घरों और विशेष तौर पर तैयार की गयी गाड़ियों तक फ़ैल गया है।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ ईस्टर्न फ़िनलैंड के वैज्ञानिक जुहो पेसोनें के अनुसार होटलों और रेस्टोरेंट से खाने की बर्बादी का आकलन तो कर लिया जाता है पर पर्यटन से जुड़ी अन्य जगहों पर यह आकलन नहीं किया जाता, पर यह एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है| पर्यटन उद्योग में जितनी विविधता आती जा रही है, खाने के बर्बादी के स्त्रोत उतने ही विविध होते जा रहे हैं| अनुमान है कि दुनिया में प्रतिदिन 13 लाख टन खाने की बर्बादी की जाती है और इसके सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव हैं।


संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के अनुसार भारत में जितना खाना प्रतिदिन तैयार किया जाता है, उसमें से लगभग 40 प्रतिशत बेकार हो जाता है। देश में प्रति वर्ष 2 करोड़ 10 लाख टन गेहूं बर्बाद होता है। कृषि मंत्रालय के अनुसार देश में जितना खाना बर्बाद किया जाता है उसका मूल्य 50000 करोड़ रुपये के लगभग है, इसके साथ ही सिंचाई के लिए उपयोग किया जाने वाले कुल पानी में से 25 प्रतिशत से भी अधिक व्यर्थ हो जाता है।

वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में खाने की बर्बादी के चलते सिंचाई के लिए उपयोग किये जाने वाले पानी में से 25 प्रतिशत बर्बाद हो जाता है। दुनिया भर से जितना ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, उसमें से 10 प्रतिशत से अधिक अकेले खाने की बर्बादी से उत्पन्न होता है। ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन की यह मात्रा अमेरिका और चीन को छोड़कर किसी भी देश द्वारा किये जाने वाले उत्सर्जन से अधिक है। वैज्ञानिकों के अनुसार खाने की बर्बादी यदि एक में देश होता, तो ग्रीनहाउस गैसों के वायुमंडल में उत्सर्जन के सन्दर्भ में यह तीसरे स्थान पर रहता। यही नहीं, इस बर्बाद किये जाने वाले खाने को पैदा करने में चीन के क्षेत्रफल से भी अधिक भूमि की आवश्यकता होती है।

कनाडा के यूनिवर्सिटी ऑफ़ गोउल्फ के वैज्ञानिकों ने अपने एक अध्ययन में पाया कि हरेक घर से प्रति सप्ताह औसतन जितना खाना बेकार होकर फेंका जाता है उसका कैलोरी मान 3366 होता है और इस खाने से 2.2 वयस्क व्यतियों या फिर 1.7 बच्चों को प्रतिदिन पर्याप्त पोषण मिल सकता है। इस व्यर्थ खाने के चलते हरेक परिवार को लगभग 18 डॉलर प्रति सप्ताह का नुकसान उठाना पड़ता है। हरेक परिवार केवल व्यर्थ खाने के चलते वायुमंडल में 23.3 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करता है और इसके साथ ही 5 किलोलीटर पानी बर्बाद करता है।

जाहिर है, व्यर्थ खाना दुनिया भर में एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है, पर विशेषज्ञों के अनुसार दुनिया में जितनी असमानता बढ़ेगी यह समस्या उतनी ही बढ़ती जाएगी। जो खाद्य पदार्थों का उत्पादन कर रहे हैं, गरीब हैं और जो खाना व्यर्थ कर रहे हैं वे अमीर हैं और अपने पैसों के बल पर व्यर्थ करने के लिए कुछ भी खरीद सकते हैं। पर, दुनिया की सामाजिक समरसता, आर्थिक विषमता और पर्यावरण संकट को दूर करने के लिए इस समस्या का समाधान शीघ्र खोजना होगा।

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