कोरोना संकट पर खुला पत्रः लोगों और सरकारों के सामने चार चुनौतियां, इस घड़ी सामाजिक सौहार्द सबसे जरूरी

कोविड-19 सकंट के समाधान के लिए जो कुछ देशों में अति कठोर उपाय अपनाए गए हैं, उन पर कई वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने अपनी असहमति जाहिर की है या कम से कम गंभीर प्रश्न उठाए हैं। इस संकट से निपटने में वरिष्ठ वैज्ञानिकों की असहमति की ऐसी आवाजों को सुने जाने की जरूरत है।

फोटोः सोशल मीडिया
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भारत डोगरा

निश्चित तौर पर पहली तत्कालीन चुनौती तो रोकथाम, स्वास्थ्य सुविधा और चिकित्सा ही है। इसके लिए सर्वश्रेष्ठ विशेषज्ञों की सम्मिलित राय प्राप्त करने की जरूरत है, जिससे उपलब्ध सबसे उत्कृष्ट वैज्ञानिक स्वास्थ्य प्रक्रियाओं और उपचारों को निर्धारित किया जा सके। साथ ही यह ध्यान रखने की भी आवश्यकता है कि इस संबंध के नीतिगत फैसलों में सार्वजनिक हित को हर हालत में ऊपर रखा जाए और किसी संकीर्ण स्वार्थ का दखल और दबाव न होने दिया जाए।

कुछ सस्ती, सहज उपचार संभावनाओं की उपेक्षा कर संकीर्ण हितों को लाभान्वित करने वाले केंद्रीकृत समाधानों को अपनाने के संकेत पहले से ही कुछ देशों में दिखाई दे रहे हैं। ऐसे कुप्रयासों से बचने की सावधानी जरूरी है। कोविड-19 सकंट के समाधान के लिए जो कुछ देशों में अति कठोर उपाय अपनाए गए हैं, उन पर कई वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने अपनी असहमति जाहिर की है या कम से कम गंभीर प्रश्न उठाए हैं। वरिष्ठ वैज्ञानिकों की असहमति की ऐसी आवाजों को सुने जाने की जरूरत है।

सरकारों को यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोविड-19 का सामना करने के लिए जरूरी दवाओं, रक्षात्मक उपकरणों आदि की कमी न हो सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र दोनों की क्षमताओं का भरपूर उपयोग करना चाहिए। प्रथम पंक्ति में बीमारी और संक्रमण से लड़ने वाले स्वास्थ्यकर्मियों और स्वच्छताकर्मियों की रक्षा जरूरतों से संबंधित साजो-सामान पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध करवाने की बहुत आवश्यकता है। कोरोना के अतिरिक्त अन्य स्वास्थ्य जरूरतों, सभी जीवन रक्षक स्वास्थ्य सेवाओं और दवाओं की उपलब्धि लगातार बनी रहनी चाहिए। मातृत्व एवं जच्चा-बच्चा स्वास्थ्य सेवाओं का भी पहले की ही तरह चलना सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

दूसरी चुनौती है संक्रमण से बचाव की जरूरतों और जीवन निर्वाह की अन्य आवश्यकताओं के बीच संतुलन रखना, जिससे दोनों आवश्यकताओं की भली प्रकार पूर्ति हो सके। वास्तव में उन्हीं स्वास्थ्य मानदंडों को लंबे समय तक अपनाया जा सकता है, जो अन्य जीवन निर्वाह की जरूरी स्थितियों के समानांतर चल सकें। यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि खाद्य सुरक्षा और बुनियादी आजीविका की रक्षा की जाए। आर्थिक गतिविधियों को इस तरह चलाए जाने की जरूरत है जिससे मूलभूत आजीविकाओं की रक्षा हो और जीवन रक्षा के लिए जरूरी सभी आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।


अतः ऐसे समाधान जो जीवन, आजीविका और खाद्य सुरक्षा को बाधित करते हों उनकी जगह ऐसे समाधानों की जरूरत है, जो आजीविका रक्षा और मूलभूत आवश्यकताओं से सामंजस्य बनाए रखने में सक्षम हों। हाल में इस दृष्टिकोण को कई वरिष्ठ संक्रामक रोगों के विशेषज्ञ वैज्ञानिकों का भी समर्थन प्राप्त हुआ है। कई निर्धन और कमजोर लोगों का जीवन, उनकी आजीविका और खाद्य सुरक्षा बहुत बुरी हद तक क्षतिग्रस्त हो गए हैं, उनको तत्काल राहत पहुंचाने को महत्त्व देना चाहिए।

तीसरी चुनौती है कि व्यापक पर्यावरणीय और अमन-शांति के सबसे जरूरी कार्यों के लिए विश्व को जागृत किया जाए। हाल के वर्षों में जीव-जंतुओं के वायरस मनुष्य में प्रवेश करने जैसे कारणों से जुड़ी बीमारियों का खतरा बहुत बढ़ गया है और ऐसे अनेक संकेत मिले हैं कि इसका संबंध अंधाधुंध वन कटान और जंगली जीवों सहित जीवन के अन्य रूपों से कई तरह की निर्दयता से है। इसको रोकने की जरूरत है। जलवायु परिवर्तन के साथ लगभग 10 ऐसी गंभीर पर्यावरण संबंधी समस्याएं हैं जो बहुत तेजी से धरती की जीवनदायिनी स्थितियों को खतरे में डाल रही हैं।

युद्ध और युद्ध की तैयारियां भी इस पर्यावरणीय विनाश का एक बहुत बड़ा स्रोत है। सामूहिक विनाश के हथियार भी हमारे ग्रह की जीवनदायिनी क्षमता को खतरे में डाल रहे हैं। एक संक्रामक रोग से एक वर्ष में दस लाख लोगों तक की मौत हो सकती है, लेकिन मात्र दो देशों के एक दिन या चंद घंटों के युद्ध में परमाणु हथियारों के उपयोग से इससे बीस गुणा या उससे भी ज्यादा लोगों की बड़े दर्दनाक हालात में मौत हो सकती है। इसके अतिरिक्त एक बहुत बड़े क्षेत्र की जीवनदायिनी क्षमताएं संकट में पड़ सकती हैं। इस तरह के विनाश को रोकने के लिए एक बहुत मजबूत शांति आंदोलन की जरूरत है।

इसी तरह पर्यावरण रक्षा, स्वास्थ्य एवं सभी स्तरों पर न्याय के लिए मजबूत आंदोलनों की जरूरत है। हमें हमारे ग्रह की जीवनदायिनी क्षमता की रक्षा के लिए और जीवन के विविध रूपों को बहुत बड़े और व्यापक संकट से बचाने के लिए सचेत रहने की आवश्यकता है। यह पूरी तरह मानव निर्मित संकट है, जिससे बचने के लिए बहुत व्यापक मानवीय प्रयासों की आवश्यकता है। ‘सेव द अर्थ नाउ केम्पैन विद एसईडी डिमांड’ एक ऐसा ही अभियान है जो जलवायु बदलाव को नियंत्रित करने के बहुत मजबूत उपायों और सभी नाभिकीय हथियारों को पूरी तरह खत्म करने की मांग करता है। साथ ही अगले दशक को ‘सेव द अर्थ डिकेड’ (एसईडी) - पृथ्वी बचाने के दशक - के रूप में विश्व स्तर पर घोषित करने की मांग करता है।


चौथी चुनौती, मौजूदा गंभीर संकट के दौर में सरकारों और लोगों, दोनों को इस बारे में अधिक सजग होने की जरूरत है, ताकि इस संकट का लाभ चंद अति शक्तिशाली स्वार्थी तत्व बहुत मुनाफा कमाने और अन्य संकीर्ण हित साधने के लिए न कर पाएं। सभी देशों, विशेषकर गरीब और विकासशील देशों को चाहिए कि उपचार और रोकथाम के संदर्भ में जानकारियों, ज्ञान, वैज्ञानिक प्रतिभा और संसाधनों के मामले में आपसी सहयोग को बढ़ाएं और पेटेंट, निजी लाभ आदि से ऊपर उठकर उपचार और रोकथाम को कम से कम खर्च पर सभी लोेगों को सुलभ कराएं।

यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि विपरीत परिस्थितियों का दोहन अधिनायकवाद और विघटनकारी एजेंडा फैलाने के लिए न हो सके। दुर्भाग्यवश ऐसे रुझानों के संकेत अभी से मिल रहे हैं। अतः समय रहते चेतावनी की जरूरत है। स्पष्ट रूप से ऐसे समय में लोकतंत्र को मजबूत करने और सामाजिक सौहार्द बनाए रखने की बहुत आवश्यकता है। सभी संकीर्ण विभाजनों और सीमाओं से ऊपर उठकर सभी मनुष्यों की समानता और बंधुत्व के प्रति हमारी आस्था पहले से अधिक मजबूत करने की आवश्यकता है और निश्चित तौर पर रोजमर्रा की जिंदगी में दया और करुणा की और अधिक आवश्यकता है।

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