स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन को खुली चिट्ठी, विश्व स्वास्थ्य संगठन को ‘मामू’ शपथ की क्यों है जरूरत

सत्ता से जुड़े हर स्तर के कर्मचारियों को ये शपथ भी दिलाई जाती है कि वो धर्म, जाति, नस्ल, लिंग, भाषा आदि से निरपेक्ष होकर अपने नागरिकों के साथ एक सामान व्यवहार करेंगे। स्वास्थ्य सेवा से जुड़े सदस्यों द्वारा भी यह शपथ ली जाती है कि वह बिना किसी भेदभाव के अपनी जिम्मेदारी निभाएंगे।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया
user

अनिल चमड़िया

डा. हर्षवर्धन साहेब,

मैं महामारी जैसी आपात स्थिति में उन सेवाकर्मियों को संवेदनशील बनाने के लिए शपथ का एक प्रारूप भेज रहा हूं जो कि मोबाइल की तकनीक से हर वक्त मिलने वाले संदेशों/ सामग्री की वजह से प्रभावित हो जाते हैं और निरपेक्षता से सेवा की जिम्मेदारी से विचलित हो जाते हैं । उस तरह के विचलन को रोकने का एक नैतिक उपाय यह शपथ हो सकती है।

भारत के मीडिया ने संयुक्त राष्ट्र की सबसे बड़ी स्वास्थ्य संस्था का संचालन करने वाले कार्यकारी मंडल की कमान आपके द्वारा संभाले जाने पर खुशी जाहिर की है। वे लिखते हैं कि भारत के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री ने सर्वसम्मति विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्यकारी मंडल के अध्यक्ष की कमान ऐसे वक्त संभाली है जब दुनिया कोरोना वायरस संकट से जूझ रही है।

मैं इस खबर से इस रुप में भी उत्साही हुआ है कि इस पत्र के जरिये जो सुझाव दिया जा रहा है उसके महत्व को आप बेहतर समझ सकते हैं। कोरोना की महामारी के दौरान अपने देश में भी स्वास्थ्य केन्द्रों, क्वारंटीन केन्द्रों और आमतौर पर विभिन्न स्तरों पर लोगों के साथ होने वाले विभेदकारी व्यवहारों की खबरें आप तक भी पहुंची होगी और आपने उन पर दुख भी प्रगट किया होगा। सेवाकर्मियों के साहस पूर्ण कार्यों के साथ कई स्तरों पर विभेदकारी व्यवहारों के अनुभव से भी पूरी दुनिया गुजर रही है। मैं यह उम्मीद करता हूं कि उन अनुभवों के आधार पर वैश्विक स्तर पर महामारी जैसी आपदा के वक्त सभी मनुष्य के साथ बराबरी के स्तर पर व्यवहार करने के विचारों को सेवाकर्मियों की जिम्मेदारी के एहसास में शामिल करने के सांस्कृतिक उपाय आप विकसित करेंगे।

पूरी दुनिया में विभिन्न स्तरों पर मसलन धर्म, जाति, जेंडर, भाषा आदि के स्तर पर लोगों के बीच विभेद हैं और ये विभेद के एक वैचारिक आधार बन गए हैं। आर्थिक स्तर पर कमजोर वर्गों के साथ भी विभेद करने की स्थिति महसूस की जाती है। आम तौर पर समाज में लोगों द्वारा आपस में इन आधारों पर एक दूसरे के खिलाफ संघर्ष की स्थिति दिखती रही है। पूरी दुनिया में यह महसूस किया गया कि धर्म और जाति के आधार पर कोरोना से प्रभावित होने वाले मरीजों के साथ भी विभेदकारी व्यवहार किए गए।


पूरी दुनिया में सत्ता का चाहे जिस तरह का ढांचा हो, वह अपने नागरिकों को यह भरोसा देता है कि वह किसी भी तरह के विभेदकारी नीति को व्यवहार में नहीं दिखने देगा। सत्ता से जुड़े हर स्तर के कर्मचारियों को यह शपथ भी दिलाई जाती है कि वह धर्म, जाति, नस्ल, लिंग, भाषा आदि से निरपेक्ष होकर अपने नागरिकों के साथ व्यवहार करेंगे और कानून का एक सामान पालन करेंगे। स्वास्थ्य सेवा से जुड़े सदस्यों द्वारा भी यह शपथ ली जाती है कि वह बिना किसी भेदभाव के अपनी जिम्मेदारी निभाएंगे ।

लेकिन आपात स्थिति किसी भी तरह की सेवा में लगे सदस्यों को भी प्रभावित करती है। महामारी के दौरान यह अनुभव किया गया कि धर्म, वर्ग और जाति के आधार पर कोरोना से प्रभावित लोगों के साथ व्यवहार किया गया। दरअसल यह महसूस किया जा रहा है कि लोगों की निरपेक्ष होकर सेवा के दौरान अपनी जिम्मेदारी को अंजाम देने की जो शपथ ली जाती है वह सेवा में लगे लोगों के प्रशिक्षण के दौरान या सेवा में बहाली के दौरान एक बार ली जाती है। सामान्य स्थितियों में किसी भी सेवा में सक्रिय लोग एक दूसरे को उस शपथ के तहत निरपेक्ष भाव से अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करने के प्रति सतर्क करते रहते हैं और संस्थाएं भी उनका निरीक्षण करती रहती है। लेकिन आपात स्थिति का जो मनोवैज्ञानिक दबाव होता है उस हालात में निरपेक्षता के भाव और विचार को मजबूती से कायम रखा जा सकें, यह बड़ी चुनौती होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी कोरोना महामारी के दौरान यह अपील जारी की कि कोरोना के मरीजों की पहचान धर्म, जाति और वर्ग के आधार पर नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन जब धर्म, जाति और वर्ग के आधार पर पूर्वाग्रह एक विचार के रूप में गहरे स्तर पर अपनी जगह बना लें तो निरपेक्ष भाव से सेवा के लिए ली गई शपथ कमजोर हो जाती है। वह महज औपचारिकता का हिस्सा दिखने लगती है।

पूरी दुनिया में तकनीकी स्तर पर हालात बदले हैं। प्रशिक्षण या सेवा में बहाली के वक्त ली जाने वाली शपथ का पूरा ढांचा उस समय का है जब तकनीक का इस स्तर पर विस्तार नहीं हुआ था। इस वक्त हर क्षण किसी भी सेवा में सक्रिय सदस्य मोबाइल जैसी ऐसी तकनीक से जुड़े हैं जिससे उनका सोचना ,विचारना और जिम्मेदारी प्रभावित होती है। मैंने यह महसूस किया है कि कोरोना महामारी के दौरान क्वॉरंटीन सेंटर में निरपेक्ष भाव से सेवा देने की जिम्मेदारी निभाने के लिए नियुक्त किए गए सदस्य मीडिया और मोबाइल पर आने वाली सामग्री से हर पल प्रभावित होते हैं। अस्पतालों और स्वास्थ्य केन्द्रों और पुलिस आदि का भी मरीज के साथ व्यवहार निरपेक्ष नहीं रह जाता जब वे मरीज के धर्म, जाति, वर्ग के आधार पर विभेदकारी व्यवहार करने लगते हैं। यानी सेवा केन्द्रों से सुदूर बाहर की दुनिया में अन्य स्तरों पर विभेद पैदा करने वाली जो घटनाएं होती हैं उसकी तत्काल ही प्रतिक्रिया मरीज या आपात स्थिति में फंसे मनुष्य को झेलने पड़ती है। आपात स्थिति में जब सबको मिलकर हालात से निपटने की जरूरत होती है उस समय विभेदकारी विचार और व्यवहार इस तरह संघर्ष को कमजोर करते हैं।


दुनिया के स्तर पर यह जरूरी लगता है कि हर दिन या एक निश्चित समय के अंतराल में आपात स्थिति में जब निरपेक्षता के साथ जिम्मेदारी के निर्वहन की उम्मीद ज्यादा होती है वैसे समय के लिए सेंटसेटाइजेशन ( संवेदनशील ) के कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए। किसी मास मीडिया की तकनीक के सहयोग से यह किसी एक केंद्रित स्थान से भी हो सकता है और सेंटसेटाइजेशन के कार्यक्रम को डयूटी का हिस्सा बनाया जा सकता । सेंटसेटाइजेशन के कार्यक्रम का यह हिस्सा हो सकता है कि निरपेक्ष भाव से जिम्मेदारी का निर्वहन करने की एक शपथ रोजाना सेवा प्रारम्भ करने से पहले ली जाए। यह शपथ इस प्रकार से हो सकती है ।

“ यह शपथ लेते हैं कि अपनी डयूटी के दौरान हम मानव मूल्यों से प्रेरित होकर जिम्मेदारी का निर्वाह करेंगे और मानवीय मूल्यों को मजबूत करने में अपना योगदान देंगे। हम किसी भी वैसी सामग्री और आसपास की घटना से अपने इस कर्तव्य को प्रभावित नहीं होने देंगे जो कि लोगों के बीच तनाव और संघर्ष का कारण बनते हैं। हमें पूरा भरोसा है कि हम अपने इन वचनों की पूरी रक्षा कर सकेंगे।”

मैं यह अपील करता हूं कि कोरोना जैसी महामारी या ऐसी ही आपात स्थिति के लिए इस शपथ का मसविदा स्वीकार करने की अपील विश्व स्वास्थ्य संगठन के सामने रखें।

इस शपथ का नाम मामू दिया जा सकता है जो कि मानव मूल्य का संक्षेप हैं।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia