लॉकडाउन में शराब की बिक्री से कमाई तो कर लेगी की सरकार, लेकिन बढ़ जाएंगी डिप्रेशन और घरेलू हिंसा की समस्याएं

सरकार ने लॉकडाउन के बीच ही कमाई बढ़ाने के लिए शराब की बिक्री तो शुरु करा दी है, लेकिन इन शोधों को देखने की जरूरत है जिनसे साफ है कि शराब सेवन ने डिप्रेशन जैसी मानसिक समस्याएं और घरेलू हिंसा के मामलों में बढ़ोत्तरी होती है

फोटो : Getty Images
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भारत डोगरा

बहुत देर से शराब लॉबी जोर लगा रही थी कि लॉकडाउन में शराब की बिक्री को खोल दिया जाए और आखिर अब सरकार ने उसकी बात मान ली है। लेकिन यह फैसला लेते समय सरकार ने यह नहीं सोचा कि इससे पहले से गंभीर हो रही मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं और घरेलू हिंसा की समस्याएं तेजी से और बिगड़ सकती हैं। ध्यान रहे कि लॉकडाउन के दौरान देश के अनेक भागों से समाचार मिले हैं कि विभिन्न आर्थिक समस्याएं, भूख और बेरोजगारी बढ़ जाने तथा भविष्य के बारे में चिंता और भी बढ़ जाने के कारण मानसिक स्वास्थ्य की हालत बिगड़ गई है। खासतौर से अवसाद यानी डिप्रेशन की स्थिति अधिक नजर आ रही है। शराब उपलब्ध होने से यह स्थिति और तेजी से बिगड़ सकती है।

साफ है कि लॉकडाउन के कारण मौजूद डिप्रेशन की अधिकता शराब की उपलब्ध होने से और गंभीर रूप ले सकती है और इस बारे में बहुत सावधान रहना होगा। एक सावधानी यह ली जानी चाहिए कि किसी भी हथियार व कीटनाशक जैसी जहरीली वस्तुओं को नशा करने वाले से दूर रखा जाए। शोध बताते हैं कि अगर शराब न पिए हुए व्यक्ति से तुलना करें तो शराब पीने के बाद किसी व्यक्ति में आत्महत्या का खतरा सात गुणा बढ़ जाता है व अधिक मात्रा में शराब पीने के बाद यह खतरा 37 गुना बढ़ जाता है। 2017 में आया बोर्जे का अध्ययन साफ संकेत देता है कि एल्कोहल उपयोग डिसआर्डर के कारण अवसाद की संभावना कम से कम दोगुना बढ़ जाती है।

कुछ वर्ष पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक अन्य रिपोर्ट तैयार करवाई थी जिसे हिंसा व स्वास्थ्य पर विश्व रिपोर्ट (हिंस्व रिपोर्ट) का शीर्षक दिया गया था। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि डिप्रेशन या अवसाद के लिए भी एल्कोहल एक महत्त्वपूर्ण कारक है। हिंस्व रिपोर्ट के अनुसार एल्कोहल व नशीली दवाओं के दुरुपयोग की आत्महत्या में भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। संयुक्त राज्य अमेरिका में चार में से कम से कम एक आत्महत्या में एल्कोहल की भूमिका रिपोर्ट की गई है।

यदि शराब का नियमित सेवन करने वाले व्यक्ति की तुलना शराब न पीने वाले व्यक्ति से की जाए तो कुछ अध्ययनों ने कहा है कि पहली तरह के व्यक्ति में आत्महत्या करने की संभावना 60 से 120 गुणा अधिक पाई जाती है। रूस के एक अध्ययन में रसवोदवाजी ने बताया है कि जहां वोदका की बिक्री पर रोक लगाई गई वहां आत्महत्या की प्रवृत्ति में कमी आई।

इसके अतिरिक्त लॉकडाउन के असर के बारे में अनेक स्थानों से यह समाचार भी आए हैं कि इस दौर में घरेलू हिंसा बढ़ गई है। शराब की उपलब्ध हो जाने के कारण यह समस्या भी पहले से और बिगड़ सकती है। हिंस्व रिपोर्ट ने घरेलू हिंसा पर अनेक अध्ययनों के आधार पर बताया है कि जो महिलाएं अधिक शराब पीने वालों के साथ रहती हैं उनके प्रति पति या पार्टनर की हिंसा की संभावना कहीं अधिक होती हैं। इसी रिपोर्ट के अनुसार इन अध्ययनों में यह भी बताया गया है कि शराब पीने वाले या पी रहे व्यक्ति हिंसा करते हैं तो उनके द्वारा की गई हिंसा अधिक भीषण होती है। इस रिपोर्ट में कनाडा के एक सर्वेक्षण के बारे में बताया गया है, जिससे पता चला है कि यदि शराब न पीने वालों के साथ रहने वाली महिलाओं की तुलना अधिक शराब पीने वालों के साथ रहने वाली महिलाओं से की जाए तो दूसरी श्रेणी वाली महिलाओं पर पति या पार्टनर के हमले या हिंसा की संभावना पांच गुणा बढ़ जाती है।

होना तो यह चाहिए था कि जिस तरह के अन्य संदेश लोगों तक पंहुचाए गए हैं वैसे ही शराब विरोधी संदेश, शराब से होने वाली बहुत व्यापक क्षति की जानकारी देने वाले संदेश इस दौरान लोगों तक पहंुचाए जाते और उन्हें सदा के लिए शराब छोड़ देने के लिए प्रेरित किया जाता। पर सरकार ने ऐसा कोई प्रयास नहीं किया। वैसे सामान्य समय में भी सरकार के नशा विरोधी प्रयास बहुत कमजोर रहे हैं व हाल केे वर्षों में शराब की खपत तेजी से बढ़ी है।

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