भक्तों, अगर राहुल की प्रेस कांफ्रेंस का संदेश नहीं समझ आया, तो एक बार फिर देख लें...

राहुल से नफरत करने वालों, खासतौर से मोदी को मसीहा मानने वालों को राहुल गांधी की उस 15 मिनट की प्रेस कांफ्रेंस को जरूर देखना चाहिए जो उन्होंने शनिवार को अश्रुपूरित येदियुरप्पा के इस्तीफा देने के फौरन बाद दिल्ली में की थी।

फोटो : @INCIndia
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माला जे

कर्नाटक में जो कुछ हो रहा था, उस पर द्रुत गति से कांग्रेस नेताओं और उसके वकीलों की प्रतिक्रिया ने राजनीतिक रंगमंच पर कर्नाटक के नाटक पल-पल नए दृश्य पैदा किए। सत्ता हथियाने की जल्दबाजी में बीजेपी ने जो भी कदम उठाया, उसका इतनी तेज़ी से जवाब दिया गया कि भगवा रणनीतिकारों को संभलने का मौका ही नहीं मिला।

लेकिन, सिर्फ द्रुत गति ही नहीं थी, जिसने बीजेपी का खेल खराब किया, या दुश्मन से आगे-आगे सोचने का दांव नहीं था, जिससे मोदी, शाह, येदियुरप्पा और वाला हक्के-बक्के रह गए। यह सोची-समझी रणनीति पर बुद्धिमत्ता के साथ अपनी योजना पर अमल था।

कर्नाटक संकट के पूरे एपिसोड में बहुत कुछ ऐसा हुआ, जिसने कांग्रेस को अपनी क्षमताएं नए सिरे से निखारने और उनका इस्तेमाल करने का मौका दिया। इस राजनीतिक घटनाक्रम से कांग्रेस को अपनी उन प्रतिभाओं, ज्ञान और अनुभव का एक बार फिर एहसास हुआ, जो देश के सबसे पुराने राजनीतिक संगठन में हमेशा से था।

  • अदालती मोर्चे संभालने के लिए उसके पास सिंघवी, सिब्बल और दर्जनों वकीलों की फौज है
  • राजनीतिक कुशाग्रता के लिए उसके पास गुलाम नबी आज़ाद, अशोक गहलोत और तमाम राष्ट्रीय नेता है।
  • राज्यों में उसके पास सिद्धारमैया, डी के शिवकुमार और विभिन्न नेताओं की टीम है।
  • मीडिया मैनेजमेंट के लिए उसकेपास सुरजेवाला, संजय झा, मनीष तिवारी और पवन खेड़ा जैसे नेताओं की निपुण टीम है

और , सबसे बढ़कर सोनिया गांधी और राहुल गांधी हैं। यूं तो विश्लेषण, तथ्य परक अध्य्यन और शोध के बाद ही पता चलेगा कि कर्नाटक की विधान सौधा में विजय कैसे हासिल की गई, लेकिन इतना तय है कि सोनिया गांधी की सेक्युलर विश्वसनीयता ही वह आधार रही जिसके दम पर देवेगौड़ा के साथ सही समय पर सबसे महत्वपूर्ण समझौता हो पाया।

इसके अलावा 2014 के बाद कांग्रेस के सबसे सफल राजनीतिक ऑपरेशन के पीछे अगर किसी को मास्टमाइंड कहा जा सकता है, तो वह हैं राहुल गांधी। कर्नाटक में न सिर्फ कांग्रेस के प्रचार में राहुल गांधी छाए रहे, बल्कि पल-पल बदलती राजनीतिक परिस्थितियों में मास्टर स्टैटजिस्ट के तौर पर सही समय पर सही व्यक्ति और टीम को लगाने के पीछे भी उनका राजनीतिक कौशल ही नजर आया।

सर्वविदित है कि किसी भी उथल-पुथल भरे ऑपरेशन में सफलता की कुंजी सही व्यक्तियों का चयन, संगठन की मजबूती, नियंत्रण और कोआर्डिनेशन, निर्णय प्रक्रिया और सही दिशा-निर्देश ही होते हैं।

महज छह महीने पहले पार्टी की कमान संभालने वाले राहुल गांधी ने कर्नाटक में जिस कौशल का प्रदर्शन किया, उससे उन लोगों के मुंह बंद हो गए जो कांग्रेस के पुनर्जीवन को मिशन इंपासिबिल की संज्ञा दे रहे थे।

राहुल से नफरत करने वालों और उन पर विश्वास न करने वालों को, और खासतौर से उन लोगों को, जो मोदी को मसीहा मानते हैं, ऐसा लगता होगा कि राहुल के बारे में ऐसा बोलना अतिश्योक्ति है, लेकिन इन लोगों को राहुल गांधी की उस 15 मिनट की प्रेस कांफ्रेंस को जरूर देखना चाहिए जो उन्होंने शनिवार को अश्रुपूरित येदियुरप्पा के इस्तीफा देने के फौरन बाद दिल्ली में की थी।

इन्हें इस वीडियो को सिर्फ देखना ही नहीं चाहिए, बल्कि ध्यान इस पर देना चाहिए कि राहुल गांधी क्या कह रहे थे, कैसे कह रहे थे और इसका विश्लेषण करना चाहिए कि उन्होंने जो कुछ कहा उसके आने वाले समय में क्या राजनीतिक परिणाम होंगे।

प्रेस कांफ्रेंस की शुरुआत में राहुल गांधी ने मोदी के राष्ट्रवाद के दंभ को तहस-नहस कर दिया। कांग्रेस अध्यक्ष ने मधुरता से सबसे सवाल पूछा कि, क्या आपने नोट किया कि इस्तीफा देने के बाद येदियुरप्पा और बीजेपी विधायक प्रोटेम स्पीकर समेत विधानसभा से उस समय बाहर जाने लगे जब राष्ट्रगान चल रहा था।?

यह बेहद परेशान करने वाला दृश्य था, जब बीजेपी के मुख्यमंत्री, उनके पार्टी विधायक और खासतौर से चुने गए प्रोटेम स्पीकर के जी बोपैय्या, सब के सब जन गण मन का अपमान करते हुए विधानसभा से बाहर निकल गए, और पूरा देश सकते में यह सब देख रहा था, कि वह लोग जो खुद को राष्ट्रभक्त और राष्ट्रवादी कहते नहीं थकते, किस तरह राष्ट्रगान का अपमान कर रहे हैं।

राहुल गांधी ने इस सवाल से बीजेपी के चहरे पर चढ़े छद्म राष्ट्रवाद के मुखौटे को नोंच कर फेंक दिया। उन्होंने मोदी के उस जुमले की भी धज्जियां उड़ाईं जिसमें वह भ्रष्टाचार के खिलाफ खुद को योद्धा के तौर पर पेश करते रहे हैं।

उन्होंने भले ही शब्द दूसरे चुने थे, लेकिन कहा यही कि, प्रधानसेवक जी, आखिर क्या हुआ कि बेंग्लुरु में आपकी पार्टी के नेता विधायकों को खरीदने की कोशिश कर रहे थे। राहुल ने यही पूछा कि यह सब क्या प्रधानसेवक जी के इशारे पर नहीं हो रहा था। राहुल गांधी दूसरे शब्दों में यह सब कह रहे थे, लेकिन उनका तात्पर्य क्या था, यह सबको समझ में आ रहा था।

राहुल ने साफ कहा कि, प्रधानमंत्री खुद भ्रष्टाचार हैं। इतनी सीधी साफ बात किसी ने कभी इस तरीके से नहीं कही होगी, खास तौर से पिछले चार साल में तो बिल्कुल नहीं। और हां, राहुल गांधी ने फेक मीडिया के बारे में बहुत सरल तरीके से अपनी बात सामने रखी।

राहुल गांधी ने शुरुआत तो मोदी से की, लेकिन उन्होंने अमित शाह को भी नहीं छोड़ा। उन्होंने साफ कहा कि, देश के लोगों ने ‘हत्याभियुक्त’ अमित शाह को दिखा दिया कि पैसे की ताकत के मुकाबले संविधान कहीं ज्यादा ताकतवर है।

और राहुल गांधी ने राजनीतिक संदेश देते हुए साफ कर दिया कि वह गैर बीजेपी दलों की एकता के पक्षधर हैं। उनके इस संदेश को देश के सभी क्षेत्रीय दलों ने सुना और समझा, और आने वाले समय में यह संदेश कोई रंग जरूर दिखाएगा।

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