वल्लभ भाई पटेल के विचार: ‘पंडित नेहरू ने देश के लिए जो किया, उसे मुझसे बेहतर कौन जानता है’ 

परिचय की इस घनिष्ठता, आत्मीयता और भ्रातृतुल्य स्नेह के कारण मेरे लिए यह कठिन हो जाता है कि सर्व साधारण के लिए उसकी समीक्षा उपस्थित कर सकूं। पर देश के आदर्श, जनता के नेता, राष्ट्र के प्रधानमंत्री और सबके लाडले जवाहरलाल को मेरे अनुमोदन की कोई आवश्यकता नहीं है।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

जवाहरलाल और मैं साथ-साथ कांग्रेस के सदस्य, आजादी के सिपाही, कांग्रेस की कार्यकारिणी और अन्य समितियों के सहकर्मी, महात्माजी के, जो हमारे दुर्भाग्य से हमें जटिल समस्याओं के साथ जूझने को छोड़ गए हैं, अनुयायी और इस विशाल देश के शासन-प्रबंध के गुरुतर भार के वाहक रहे हैं। इतने विभिन्न प्रकार के कर्मक्षेत्रों में साथ रहकर और एक-दूसरे को जानकर हममें परस्पर स्नेह होना स्वाभाविक था। काल की गति के साथ वह स्नेह बढ़ता गया है और आज लोग कल्पना भी नहीं कर सकते कि जब हम अलग होते हैं और अपनी समस्याओं और कठिनाइयों का हल निकालने के लिए उन पर मिल कर विचार नहीं कर सकते तो यह दूरी हमें कितनी खलती है। परिचय की इस घनिष्ठता, आत्मीयता और भ्रातृतुल्य स्नेह के कारण मेरे लिए यह कठिन हो जाता है कि सर्व साधारण के लिए उसकी समीक्षा उपस्थित कर सकूं। पर देश के आदर्श, जनता के नेता, राष्ट्र के प्रधानमंत्री और सबके लाडले जवाहरलाल को, जिनके महान कृतित्व का भव्य इतिहास सबके सामने खुली पोथी सा है, मेरे अनुमोदन की कोई आवश्यकता नहीं है।

दृढ़ और निष्कपट योद्धा की भांति उन्होंने विदेशी शासन से अनवरत युद्ध किया। युक्त प्रांत के किसान आंदोलन के संगठनकर्ता के रूप में पहली ‘’दीक्षा’’ पाकर वह अहिंसात्मक युद्ध की कला और विज्ञान में पूरे निष्णात हो गए। उनकी भावनाओं की तीव्रता और अन्याय या उत्पीड़न के प्रति उनके विरोध ने शीघ्र ही उन्हें गरीबी पर जेहाद बोलने को बाध्य कर दिया। दीन के प्रति सहज सहानुभूति के साथ उन्होंने निर्धन किसान की अवस्था सुधारने के आंदोलन की आग में अपने को झोंक दिया। क्रमशः उनका कार्यक्षेत्र विस्तीर्ण होता गया और शीघ्र ही वह उस विशाल संगठन के मौन संगठनकर्ता हो गए, जिसे अपने स्वाधीनता युद्ध का साधन बनाने के लिए हम सब समर्पित थे। जवाहरलाल के ज्वलंत आदर्शवाद, जीवन में कला और सौंदर्य के प्रति प्रेम, दूसरों को प्रेरणा और स्फूर्ति देने की अद्भुत आकर्षण शक्ति और संसार के प्रमुख व्यक्तियों की सभा में भी विशिष्ट रूप से चमकने वाले व्यक्तित्व ने, एक राजनीतिक नेता के रूप में, उन्हें क्रमशः उच्च से उच्चतर शिखरों पर पहुंचा दिया है। पत्नी की बीमारी के कारण की गई विदेश यात्रा ने भारतीय राष्ट्रवाद संबंधी उनकी भावनाओं को एक आकाशीय अंतर्राष्ट्रीय तल पर पहुंचा दिया। यह उनके जीवन और चरित्र के उस अंतर्राष्ट्रीय झुकाव का आरंभ था, जो अंतर्राष्ट्रीय अथवा विश्व समस्याओं के प्रति उनके रवैये में स्पष्ट लक्षित होता है। उस समय से जवाहरलाल ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। भारत में भी और बाहर भी उनका महत्व बढ़ता ही गया है। उनकी वैचारिक निष्ठा, उदार प्रवृत्ति, पैनी दृष्टि और भावनाओं की सचाई के प्रति देश और विदेशों की लाखों-लाख जनता ने श्रद्धांलि अर्पित की है।

अतएव यह उचित ही था कि स्वातंत्र्य की उषा से पहले के गहन अंधकार में वह हमारी मार्ग दर्शक ज्योति बनें, और स्वाधीनता मिलते ही जब भारत के आगे संकट पर संकट आ रहा हो तब हमारे विश्वास की धुरी हों और हमारी जनता का नेतृत्व करें। हमारे नए जीवन के पिछले कठिन वर्षों में उन्होंने देश के लिए जो अथक परिश्रम किया है, उसे मुझसे अधिक अच्छी तरह कोई नहीं जानता। मैंने इस अवधि में उन्हें अपने उच्च पद की चितांओं और अपने गुरुतर उत्तरदायित्व के भार के कारण बड़ी तेजी के साथ बूढ़े होते देखा है। शरणार्थियों की सेवा में उन्होंने कोई कसर नहीं उठा रखी और उनमें से कोई कदाचित ही उनके पास से निराश लौटा हो। राष्ट्र संघ (कामनवेल्थ) की मंत्रणाओं में उन्होंने उल्लेखनीय भाग लिया है और संसार के मंच पर भी उनका कृतित्व अत्यंत्र महत्वपूर्ण रहा है। किंतु इस सबके बावजूद उनके चेहरे पर जवानी की पुरानी रौनक कायम है और वह संतुलन, मर्यादा ज्ञान, धैर्य और मिलनसारी, जो आंतरिक संयम और बौद्धिक अनुशासन का परिचय देते हैं, अब भी ज्यों के त्यों हैं। निस्संदेह उनका रोष कभी-कभी फूट पड़ता है, किंतु उनका अधैर्य क्योंकि न्याय और कार्य तत्परता के लिए होता है और अन्याय या धींगा-धींगी को सहन नहीं करता, इसलिए ये विस्फोट प्रेरणा देने वाले ही होते हैं और मामलों को तेजी तथा परिश्रम के साथ सुलझाने में मदद देते हैं। ये मानो सुरक्षित शक्ति हैं, जिनकी कुमक से आलस्य, दीर्घसूत्रता और लगन या तत्परता की कमी पर विजय प्राप्त हो जाती है।

आयु में बड़े होने के नाते मुझे कई बार उन्हें उन समस्याओं पर परामर्श देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, जो शासन-प्रबंध या संगठन क्षेत्र में हम दोनों के सामने आती रही हैं। मैंने उन्हें सदैव सलाह लेने को तत्पर और मानने को राजी पाया है। कुछ स्वार्थप्रेरित लोगों ने हमारे विषय में भ्रांतियां फैलाने का यत्न किया है और कुछ भोले व्यक्ति उन पर विश्वास भी कर लेते हैं, किंतु वास्तव में हम लोग आजीवन सहकारियों और बंधुओं की भांति साथ काम करते रहे हैं। अवसर की मांग के अनुसार हमने एक दूसरे के दृष्टिकोण के अनुसार अपने को बदला है और एक दूसरे के मतामत का सर्वदा सम्मान किया है, जैसा कि गहरा विश्वास होने पर ही किया जा सकता है, उनके मनोभाव युवकोचित उत्साह से लेकर प्रौढ़ गंभीरता तक बराबर बदलते रहते हैं। और उनमें वह मानसिक लचीलापन है, जो दूसरे को झेल भी लेता है और निरुत्तर भी कर देता है। क्रीड़ारत बच्चों में और विचार संलग्न बूढ़ों में जवाहरलाल समान भाव से भागी हो जाते हैं। यह लचीलापन और बहुमुखता ही उनके अजस्र यौवन का, उनकी अद्भुत स्फूर्ति और ताजगी का रहस्य है। उनके महान और उज्ज्वल व्यक्तित्व के साथ इन थोड़े से शब्दों में न्याय नहीं किया जा सकता। उनके चरित्र और कृतित्व का बहुमुखी प्रसार अंकन से परे है। उनके विचारों में कभी-कभी वह गहराई होती है, जिसका तल न मिले, किंतु उनके नीचे सर्वदा एक निर्मल पारदर्शी खरापन और यौवन की तेजस्विता रहती है और इन गुणों के कारण सर्वसामान्य, जाति, धर्म, देश की सीमाएं पार कर उनसे स्नेह करते हैं।

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