विष्णु नागर का व्यंग्य: मोदी जी स्वतंत्रता दिवस पर वो कह-कर नहीं पाए, जो वे कहना-करना चाहते थे !

मोदीजी तो बहुत कुछ करना चाहते थे, जैसे लालकिले के बुर्ज से अपनी गरीब मां के लिए जार-जार रोकर दिखाना चाहते थे, जसोदाबेन का वनवास एक घंटे के लिए खत्म करके, उन्हें प्रधानमंत्री निवास में घुमाकर, फिर वापस भेजकर, माता-बहनों का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते थे।

फोटो: सोशल मीडिया 
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विष्णु नागर

मैंं 15 अगस्त के पावन पर्व के दिन सच्चा देशभक्त होता तो लालकिले से दिए गए भाषण की किसी टीवी चैनल पर भूरी- भूरी प्रशंसा करते-करते, गश खाकर गिर पड़ता। मुंह और सिर से झरते खून और टूटी नाक के बीच फिर से खड़ा हो जाता, फिर तारीफ़ का झर-झर झरना ऐसे बहाने लगता, जैसे बरसात में नाला नदी बनकर बहने लगता है। लेकिन जैनेंद्र कुमार की एक कहानी का शीर्षक है - 'अपना-अपना भाग्य'। तो भाग्य-भाग्य की बात है, अपना ऐसा भाग्य कहां! अगर हुआ होता तो स्टूडियो से सीधा अस्पताल जाने की बजाय विश्व हिंदी सम्मेलन में मॉरीशस जाने के लिए अटैची तैयार कर रहा होता पर वोई है, कहते हैं न, 'अपना अपना भाग्य' !

फिर भी, फिर भी इतना तो अवश्य कहूंगा कि सुभान अल्लाह, क्या भाषण था उनका! डेढ़ घंटे तो मैं 'मॉब लिंचिंग' अगैरह-वगैरह जैसी घटिया बातों से एकदम उबरकर मोदीजी का प्यारा, बल्कि प्यारा-प्यारा देशवासी बनकर स्वर्ग में टहलता-बहलता-झूलता रहा। उसके बाद कमल जिस कीचड़ में उगते हैं, उसमें दन्न से आ गिरा। दस-पंद्रह कमल तो जरूर मेरी देह के नीचे दब गये होंगे, उनसे माफी मांगता हूं मगर इससे ज्यादा नुकसान मोदी जी का हुआ। इसका मुझे अफसोस तो है मगर यह खुशी भी है कि गिरा तो कीचड़ में ही गिरा और उस कीचड़ में गिरा, उन फूलों पर गिरा, जिनका नाम कमल है। सोचिए कि किसी चट्टान पर गिरा होता तो देश के सवा सौ करोड़ देशवासियों को तो मेरी कमी नहीं खलती मगर मैं मोदीजी के भाषण की इतनी तारीफ करने से भी वंचित रह जाता!चलो जो हुआ, अच्छा हुआ। कीचड़ तो धुल गया, कपड़े भी धोकर-सुखाकर अभी आया हूं और आज मौसम भी कपड़े सूखने लायक है तो मोदीजी के विदाई-भाषण के दिन सब शुभ -शुभ ही हुआ।

पता नहीं आपके सूत्र कैसे हैं मगर मेरे सूत्र न केवल विश्वसनीय हैं, बल्कि अनेक हैं। इन सूत्रों से प्राप्त जानकारी के आधार पर बताना चाहता हूं कि 'फॉर ए चेंज' मोदीजी आज लालकिले पर भाषण देने के लिए सफेद टोपी पहनकर आनेवाले थे। चूंकि मार्गदर्शक मंडल खुद मार्ग भटका हुआ है तो उसे दिशा देने के लिए मोदीजी ने आडवाणी जी को फोन किया कि माननीय यह बताएं कि सफेद टोपी पहनकर जाना ठीक होगा? चूंकि मार्गदर्शन मंडल की ओर से मोदी जी को मार्ग दिखाने का यह पहला अवसर था तो आडवाणी जी अपने सतयुगीन शिष्य को ईमानदारी से मार्गदर्शन करने का लोभ संवरण न कर सके। उन्होंने कहा कि मेरे सच्चे गुरु, आप ऐसी गलती मत कीजिएगा। आप केसरिया साफा पहनिए, यही राष्ट्रहित में है। तो मोदीजी ने कहा कि वैसे भले मैं आपको सार्वजनिक रूप से अपमान कर देता हूं मगर हृदय से तो अभी भी आपका बहुत सम्मान करता हूं और आप तो जानते ही हैं मेरा हृदय मेरे पैरों में स्थित है, फिर भी आपने जैसा कहा, वैसा ही करूंगा।

मोदीजी ने सोचा था कि पता नहीं, भारत को स्वर्ग बना देने के बावजूद यह जनता क्या करे तो उन्होंने यशवंत सिन्हा जी के अनुभव का लाभ भी उठाना चाहा। उनसे पूछा कि क्या इस विदा-भाषण में पहली और आखिरी बार नेहरू जी का नामोल्लेख कर दूं? सिन्हा जी ने कहा कि महाराज, आपको भी यही सब करना था तो आपने मुझे प्रधानमंत्री बना दिया होता! मैं नेहरूजी और जयप्रकाश जी दोनों को एक सांस में निबटा देता, फिर भी संघ का वफादार बना रहता। आपको यह भारी पड़ जाएगा। 'ठीक कहा' और मोदीजी ने सिन्हा जी का भी कहा माना। इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा।

मोदीजी ने सोचा अब दोस्तों से भी विचार-विमर्श कर लिया जाए, उन्हें भी परख लिया जाए। उन्होंने अंबानी जी और अडाणी जी दोनों को फोन किया। उनसे पूछा कि एक जबरदस्त प्लान है। आप मित्रों के द्वारा प्रायोजित एक झोंपड़ा हो। उसमें एक प्रायोजित गरीब हो, स्वतंत्रता दिवस के पवित्र अवसर मैं उससे मिलने जाऊं और चटाई पर बैठकर 'जय गरीब, जय गरीब, जय गरीब देवा:' की आरती उतारकर, प्रसाद बांट आऊं, तो कैसा रहेगा? उन्होंने सम्मिलित सलाह दी कि चुनाव अभी दूर हैं। अभी लोग भूल जाएंगे। यह नौटंकी 2019 के मार्च-अप्रैल में करना ठीक रहेगा। मोदीजी ने कहा, 'सही कहा हुजूर'।

मोदीजी तो खैर बहुत कुछ करना चाहते थे, जैसे लालकिले के बुर्ज से अपनी गरीब मां के लिए जार-जार रोकर दिखाना चाहते थे, जसोदाबेन का वनवास एक घंटे के लिए खत्म करके, उन्हें प्रधानमंत्री निवास में घुमाकर, फिर वापस भेजकर, माता-बहनों का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते थे। यहां तक कि प्रधानमंत्री वाकई वाली 'मन की बात' भी आजादी के दिन करना चाहते थे, सब अमित शाह ने एक-एक कर रिजेक्ट कर दिया। फिर क्या बचा था बोलने के लिए तो आकाशवाणी वाली 'मन की बात' को लंबा खींच के, हाथ हिलाकर, चले आए लेकिन ऊपरवाले को यह सब पता है। उन्हीं के सूत्रों ने आज मुझसे कहा कि यह बात संडे से पहले सार्वजनिक नहीं होना चाहिए। पहले उनके भाषण की माला फेरने का काम टीवी चैनलों को भरपेट करने का अवसर देना चाहिए और जब वे थक जाएं तो फिर यह खबर चलवा देना चाहिए।

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