विष्णु नागर का व्यंग्यः पीएम मोदी ने दिया नीरो को टक्कर, अवसर को आपदा में बदलकर रचा इतिहास

भारत का प्रधानमंत्री बन कर भी मोदी प्यारे, तूने अपना नाम अमर न किया तो फिर तूने क्या किया! अगर जलती लाशों की रोशनी में डिनर पार्टी नहीं दी तो फिर तूने क्या किया! पूरे देश को जलता-मरता छोड़ अगर बांसुरी में फूंक मारने का सुख न उठाया तो फिर क्या किया!

फाइल फोटोः सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

मोदी जी, आपको बहुत-बहुत बधाई। आप तो अमर हो गए, भगवन। आपका नाम तो अब नीरो की टक्कर में लिया जाने लगा है। जल्दी ही उसकी जगह केवल आपका नाम रहेगा, ऐसी शुभकामनाएं भारतीय होकर भी हम न देंगे तो क्या पाकिस्तानी देंगे? इतना बड़ा सम्मान जीते जी कितने शासकों को मिलता है, मोदी जी! अकेले आप बने हैं, इसके असली हकदार, वह भी उस नीरो के लगभग दो हजार साल बाद! बाकी तो केवल हिटलर पद पाकर संतुष्ट हो गए। आपके भीतर मौजूद फकीर को लगा कि छि: हिटलर तो हिटलर के अलावा भी दुनिया में अनेक हैं।इससे आगे का शिखर छूना है। ऐसा शिखर, जो बाद में दूसरा कोई न छू सके। अमरता का शिखर!

बहुत से अट्ठारह घंटे तो आपके इस शोध में खर्च हो गए कि वह शिखर क्या हो सकता है, लेकिन नतीजा सिफर रहा। वह तो भाग्य से आपके किसी नौकरशाह को नीरो के बारे में कुछ ज्ञान था।उसने आपका दे दिया और आपने ले भी लिया। उसी क्षण से आपने ठान लिया कि अगर अब कुछ बनना है तो नीरो बनना है। भारत का प्रधानमंत्री बन कर भी मोदी प्यारे, तूने अपना नाम अमर न किया तो फिर तूने क्या किया! अगर जलती लाशों की रोशनी में डिनर पार्टी नहीं दी तो फिर तूने क्या किया, जीवन क्या जीया! पूरे देश को जलता-मरता छोड़ अगर बांसुरी में फूंक मारने का सुख न उठाया तो फिर क्या किया!

मोदी जी की विशेषता है कि अपनी इमेज को पाताललोक में पहुंचाने का कोई भी नया आइडिया उन्हें आ जाए तो उसके पीछे वह लट्ठ लेकर पड़े बिना मानते नहीं। तुरंत दाढ़ी बढ़ाना शुरू कर देते हैं। आपदा को अवसर में बदलना तो उन्हे ही नहीं, अब तो उनके भक्तों को भी आता है, मगर नीरो बनने के लिए इतना काफी नहीं। इससे आगे, अवसर को आपदा में बदलना भी आना चाहिए!

दिमाग की इस बत्ती के जलने की देर थी कि प्रकाश ही प्रकाश हो गया। सवेरा ही सवेरा हो गया।अवसर तो कोरोना की दूसरी लहर का उपस्थित था ही। उन्होंने सोचा, भगवान जब उन्हें देता है तो अवसर छप्पर फाड़ के ही देता है। दे दिया भगवन, तूने नीरो बनने का सुनहरा अवसर दे दिया। अवसर को आपदा में बदलने का अवसर देकर जीवन तूने मेरा धन्य कर दिया!


फिर तो आपने देखा होगा कि मोदी जी किस तरह नीरोत्व की सीढ़ियां दर सीढ़ियां दर सीढ़ियां बिना उम्र का खयाल किए, डर-भय को मन में लाए चढ़ते गए और एक बार भी लड़खड़ाए नहीं।मन उनका सीधे केदारनाथ की गुफा साधनारत हो गया। फिर क्या था। अवसर ही अवसर उपस्थित हो गए, आपदाएं लाने के एक से एक नायाब उपाय सूझने लगे।

फिर कोरोना से पटापट लोग मरे सो मरे ही, बिना आक्सीजन, बिना एंबुलेंस, बिना बेड, बिना आईसीयू, बिना रेमेडेसिविर के भी प्राण तजने लगे। मरे हुओं को जलाने के लिए लकड़ियां खरीदने के पैसे जेब में न होने पर गंगा में लाशें बहाकर मृतकों से मुक्ति पाने लगे। टीवी पर इसकी लाइव परफार्मेंस देख डिनर टाइम पर लाशों की रोशनी में पार्टी देने के लिए मोदीजी का मन अकुलाने लगा। बांसुरी में फूंक मारने को जी मचलने लगा!

मोदी जी ने इस बीच अवसर को आपदा में बदलने के लिए सबकुछ किया। जो नहीं हो सकता था, वह अवश्य किया था। कुंभ का अवसर आया तो सोचा कि गांव-गांव तक इस आपदा को पहुंचाने का इससे सुनहरा अवसर और क्या हो सकता है! नीरो बनने का राजमार्ग इसी तरह के उपायों से खुलेगा। उन्होंने पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव के अवसर को भी आपदा को अभिमंत्रित करने का अच्छा अवसर पाया। उन्होंने इतना किया, इतना किया कि लोग खुद ब खुद उन्हें नीरो कहने लगे।

इससे लेकिन मोदी जी संतुष्ट नहीं हुए। अभी तो ये अंगड़ाई थी, नीरो बनने की अभी और लड़ाई थी। अभी यह नियुक्ति अस्थायी थी, स्थायीत्व का सपना अधूरा था। इतिहास में आने की उनकी उत्कंठा अत्यंत प्रबल थी। नीरो की परमानेंटली छुट्टी करने का आवेग उनके अंदर हिलोरें मार रहा था। हजारों बरसों से नीरो का कचरा जो लोगों के मन में जमा था, उसे साफ करके उस जगह अपना कचरा जमा करने का उनका प्रण पक्का और पक्का होता जा रहा था।


काम मुश्किल था मगर करना था और मोदी जी आज तक उसमें लगे हुए हैं और कल तक लगे रहने का उनका संकल्प है। लाकडाउन के बीच सेंट्रल विस्टा का निर्माण भी उसी की एक कड़ी में है। अभी तो पूरी लड़ी बनानी है। नीरो बनकर ही समझ में आता है कि विनाश में, मृत्यु में, नरसंहार में कितने और कैसे आनंद की प्राप्ति होती है। खेद है कि हम साधारण मनुष्यों की कल्पना की पहुंच वहां तक हो नहीं सकती।

इसलिए लेखक अपनी असफलता के इस बिन्दु तक पहुंच कर आपसे क्षमा सहित विराम चाहता है। शेष कुशल है।

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