पीएम मोदी के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री होने का अर्थ, देश के विज्ञान के अंधे होने की बारी आ चुकी है

कोई संशय नहीं है कि कट्टर हिन्दुवाद में आधुनिक विज्ञान की कोई जगह नहीं और यही कट्टरता बीजेपी की मूल विचारधारा भी है। पीएम मोदी देश में कट्टर हिन्दुवाद का अलख जगा रहे हैं, जिसमें हिंसा है, बलात्कार है, असमानता है, गरीबी और आधुनिक विज्ञान की उपेक्षा भी है।

फोटोः सोशल मीडिया
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महेन्द्र पांडे

केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल और विस्तार के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने विज्ञान और प्रोद्योगिकी मंत्रालय को अपने पास ही रखा है। जाहिर है, अब चमत्कार में विज्ञान की खोज को एक नया आयाम मिलेगा, अब विज्ञान प्रयोगशालाओं में नहीं बल्कि प्राचीन ग्रंथों में खोजा जाएगा और इस पर लगातार प्रवचन सुनने को भी मिलेगा।

अभी बहुत समय नहीं बीता है, जब मोदी सरकार द्वारा कोरोना के सन्दर्भ में वैज्ञानिकों द्वारा दी जाने वाली चेतावनियों को लगातार अनदेखा करने का परिणाम देश देख चुका है। मोदी सरकार की अकर्मण्यता को देखते हुए अनेक वैज्ञानिकों ने सरकारी कमेटियों से इस्तीफ़ा दिया था और तीन सौ से अधिक वैज्ञानिकों ने पत्र लिखकर कोविड से संबंधित आंकड़ों की मांग की थी। मोदी जी को गणेश कॉस्मेटिक सर्जरी का पहला उदाहरण नजर आते हैं, राम वायुयान उड़ाते हैं और बादलों के बीच राडार अंधे हो जाते हैं। अब हमारे देश के विज्ञान के अंधे होने की बारी आ चुकी है।

इसमें कोई संशय नहीं है कि कट्टर हिन्दुवाद में आधुनिक विज्ञान का कोई महत्त्व नहीं है और यही कट्टर हिन्दुवाद बीजेपी की मूल विचारधारा भी है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि आधुनिक विज्ञान और वैज्ञानिकों पर अनर्गल प्रलाप प्रधानमंत्री समेत केवल इसी पार्टी के नेता करते हैं, और खूब करते हैं। पीएम मोदी देश में कट्टर हिन्दुवाद का अलख जगा रहे हैं, जिसमें हिंसा है, बलात्कार है, असमानता है, गरीबी है और आधुनिक विज्ञान की उपेक्षा भी है। इस देश में जरूरत पड़ते ही आधुनिक चिकित्सा पद्धति की शरण में जाने वाले भी खुलेआम इसे गालियां देते हैं और इसे इसाई धर्म का प्रचार बताते हैं।

कट्टर हिन्दुवाद में हम इस तरह वैचारिक दरिद्रता का शिकार हो जाते हैं कि मस्तिष्क अपने विश्लेषण की क्षमता खो देता है। हमें गणेश में कॉस्मेटिक सर्जरी नजर आती है पर मिस्र के स्फिंक्स में नहीं, जिसमें शेर के शरीर के ऊपर मानव चेहरा है। राम का वायुयान उड़ाना तो पता है, पर रावण का जिक्र भी नहीं करते, जो उस तथाकथित वायुवान का मालिक था। बचपन में हम सबने अलादीन के चिराग की कहानी पढी थी। हम हनुमान का आकार बदलना, स्वामिभक्त होना और शक्तिशाली होना तो विज्ञान का चमत्कार मानते हैं, पर अलादीन के चिराग से प्रकट होते जिन्न में यही सारी खूबियां होने के बाद भी हम ऐसा नहीं सोचते और केवल कपोल कल्पित कहानी समझते हैं।


हम दैवीय आकाशवाणियों में तो विज्ञान खोजते हैं पर अलीबाबा की कहानी में खुल जा सिमसिम कहते ही गुफा के द्वार से भारी पत्थर के हटने को केवल कहानी मानते हैं। जाहिर है, हरेक धर्म और इससे जुड़े प्राचीन ग्रंथों में तमाम किस्से होते हैं, कल्पना की ऊंची उड़ान होती है, पर हमारे देश को छोड़कर दुनिया में कहीं भी केवल किस्से-कहानियों में विज्ञान नहीं खोजा जाता है, और ना ही गाय को दुनिया की हरेक स्वास्थ्य समस्या का समाधान करार दिया जाता है।

हमारा पड़ोसी देश, चीन, कृत्रिम सूर्य बना चुका है, चन्द्रमा के सबसे दूरूह हिस्से पर अपना यान उतार चुका है, चंद्रमा पर खेती की शुरुआत कर चुका है, शहरों में उजाले के लिए कृत्रिम चंद्रमा बनाने की तैयारी कर रहा है, विश्व का सबसे लंबा सी-लिंक बना चुका है, नेक्स्ट जनरेशन फाइटर प्लेन बना चुका है और अपने शहरों में 40 प्रतिशत तक वायु प्रदूषण कम कर चुका है। इस बीच हमारे प्रधानमंत्री जो अब विज्ञान मंत्री भी हैं, बीजेपी नेता, कुछ वैज्ञानिक और कुछ न्यायाधीश विज्ञान को वेदों, महाभारत और रामायण में खोज रहे हैं।

प्रधानमंत्री को अपने देश के विज्ञान और प्रोद्योगिकी की परंपरा पर गर्व है, जो वेदों जितनी पुरानी है। प्रधानमंत्री देश को वर्ष 2018 के नए साल पर बताते हैं कि गंगा साफ हो रही है और बिना किसी सन्दर्भ का हवाला देते हुए बताते है कि ऐसा अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन बताता है। मजेदार तथ्य यह है कि ऐसा कोई सन्दर्भ पीएमओ की वेबसाइट पर भी मौजूद नहीं है। पीएमओ की वेबसाइट पर झूठ से झूठ खबर भी यदि सरकार के समर्थन में रहती है तो जरूर लगाई जाती हैं। अभी, राफेल विमानों को फ्रांस से मंगाया गया है, पर हम पुष्पक विमान समेत अनेक तरीके के विमान बनाते थे और मल्टी गाइडेड मिसाइल तो विष्णु के समय से है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि हमारे मात्र दस वैज्ञानिक दुनिया के 4000 प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों में शुमार हैं।

हमारे प्रधानमंत्री, बड़बोले मंत्रियों, बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों, बीजेपी सांसद और नेताओं, और यहां तक कि कुछ वैज्ञानिकों को वेदों, रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों में विज्ञान खोजने की लत लग गई है। हरेक वर्ष जनवरी के आरम्भ में आयोजित किया जाने वाला प्रतिष्ठित भारतीय साइंस कांग्रेस भी अब तो पूरी तरह ऐसे ही विज्ञान की चपेट में आ चुका है।


प्रधानमंत्री जी तो सर्वज्ञानी हैं और विज्ञान के भी बड़े ज्ञाता हैं। पिछला चुनाव जीतने पर डीएनए पर खूब भाषण दिया था। इस बार चुनाव जीतने पर बनारस तक यह सन्देश देने गए कि अंकगणित को केमिस्ट्री ने हरा दिया। पर, मजाल है कि देश के किसी वैज्ञानिक की इस वक्तव्य पर कोई आवाज उठे। यह तुलना ठीक वैसे ही है जैसे मुंशी प्रेमचंद की तुलना कोई हरगोविंद खुराना से करने लगे। एक भाषण में प्रधानमंत्री जी ए प्लस बी होल स्क्वायर पर अपनी ही व्याख्या देते हैं। राडार और बादलों के बाद पता नहीं क्यों मोदी जी गणित के पीछे अचानक पड़ गए थे।

दूसरी तरफ प्रधानमंत्री के चहेते मंत्री, पियूष गोयल, ने गणित पर एक ऐसा वक्तव्य दे डाला था, जिसके बाद विदेशी मीडिया भारत की शिक्षा पद्धति पर ही सवाल खड़ा करने लगा। दरअसल, गोयल ने देश और विदेशों के प्रतिष्ठित संस्थानों से शिक्षा ली है और इसके बाद भी कट्टर हिन्दुवाद के रंग में रंगने के बाद निहायत ही बेवकूफी वाले बयान देते हैं। कभी वे देश की जीडीपी पर भाषण दे रहे थे और इस दौरान उन्होंने कहा- जीडीपी के आकलन के लिए गणित की जरूरत नहीं है, यदि प्रख्यात वैज्ञानिक आइंस्टीन गणित के पीछे पड़े होते तो गुरुत्वाकर्षण की खोज नहीं कर पाते। विदेशी मीडिया ने इस वक्तव्य पर खूब चटखारे लिए थे, क्योंकि गुरुत्वाकर्षण की खोज प्रख्यात वैज्ञानिक न्यूटन ने की थी और आइंस्टीन भौतिक विज्ञान के साथ ही गणित के भी विद्वान् थे।

प्रतिष्ठित वैज्ञानिक जयंत विष्णु नार्लीकर ने एक लेख में नागरिकों में वैज्ञानिक प्रवृत्ति विकसित करने पर जोर दिया था। पर जब हम समाज में आपने आसपास देखते हैं तो स्पष्ट होता है कि हम भारतीयों को, जिसमें राजनेता भी सम्मिलित हैं, आधुनिक विज्ञानं पर आधारित उपकरणों के उपयोग में कोई समस्या नहीं हैं, जबकि उसके सिद्धांत को मानने से परहेज करते हैं और इस खोज को नकार देते हैं। समस्या यह है कि एक बड़ी जनसंख्या के साथ-साथ पूरी सरकार का मत है कि वेदों के बाहर कोई विज्ञान नहीं है। पिछले वर्ष मानव संसाधन मंत्रालय ने इंजीनियरिंग के कोर्स में वेदों और पुराणों के अध्ययन को अनिवार्य कर दिया है।

साल 2018 में बीबीसी के अनुसार इंडियन साइंस कांग्रेस के एजेंडा में पुरातनवादी और धार्मिक विज्ञान गहरी पैठ जमा चुका है। आधुनिक विज्ञान के बहुत लाभ हैं, पर इससे जिस तरह का अवैज्ञानिक लाभ हमारे राजनेता और कुछ वैज्ञानिक ले रहे हैं, उसकी शायद ही किसी ने कल्पना की हो। कुछ भी हो, पर इतना तो तय है कि अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ऐसी खबरों को एक चुटकुले की तरह प्रकाशित करता है। विज्ञान इस तनाव की दुनिया में हमें हंसने का मौका दे रहा है और हमारे प्रधानमंत्री की नजरों में यही भारतीय विज्ञान की उपलब्द्धि है।

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Published: 18 Jul 2021, 6:59 AM